चैप्टर 5 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 5 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 5 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 5 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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एक बज गया था। फैयाज़ इमरान को उसकी कोठी के करीब उतार कर चला गया। पाईं बाग का दरवाजा बंद हो चुका था। इमरान फाटक हिलाने लगा. ऊंघते हुए चौकीदार ने हांक लगाई।

“प्यारे चौकीदार! मैं हूँ तुम्हारा खादिम अली इमरान एसएससी, पीएचडी लंदन!”

“कौन छोटे सरकार!” चौकीदार फाटक के करीब आकर बोला, “हुज़ूर मुश्किल है!”

“दुनिया का हर बड़ा आदमी कह गया है कि वह मुश्किल ही नहीं, जो आसान हो जाये।”

“बड़े सरकार का हुक्म है कि फाटक न खोला जाये, अब बताइये।”

“बड़े सरकार तक कन्फ्यूशियस का पैगाम पहुँचा दो।”

“जी सरकार!” चौकीदार को खड़ा होकर बोला।

“उनसे कह दो कन्फ्यूशियस ने कहा है कि अंधेरी रात में भटकने वाले इमानदारों के लिए अपने दरवाजे खोल दो।”

“मगर बड़े सरकार ने कहा है…”

“हाँ…बड़े सरकार…उन्हें चीन में पैदा होना था। खैर, तुम उन तक कन्फ्यूशियस का यह पैगाम जरुर पहुँचा देना।”

“मैं क्या बताऊं?” चौकीदार कांपती हुई आवाज में बोला, “अब आप कहाँ जायेंगे?”

“फकीर ये सुहानी रार किसी कब्रिस्तान में बसर करेगा।’

“मैं आपके लिए क्या करूं?”

“दुआए मगफिरत! अच्छा टाटा।” इमरान चल पड़ा।

और फिर आधे घंटे बाद वह टिपटॉप नाइट क्लब में दाखिल हो रहा था, लेकिन दरवाजे में कदम रखते ही इंटेलिजेंट डिपार्टमेंट के एक डिप्टी डायरेक्टर से मुठभेड़  हो गई, जो उसके पापा क्लास फेलो भी रह चुके थे।

“ओहो साहबजादे! तो तुम अब इधर भी दिखाई देने लगे हो!”

“जी हाँ! अक्सर फ्लाश खेलने के लिए चला आता हूँ।” इमरान ने सिर झुकाकर बड़ी आज्ञाकारिता से कहा।

“प्लाश! तो अब क्या फ्लाश भी!”

“जी हाँ! कभी-कभी नशे में दिल चाहता है।”

“ओहो! तो शराब भी पीने लगे हो।”

“वह क्या अर्ज़ करूं…कसम ले लीजिये, जो कभी तन्हा पी हो। अक्सर शराबी तवायफ़ें भी मिल जाती हैं, जो पिलाए बगैर मानती नहीं…”

“लाहौल विला कूवत…तो तुम आजकल रहमान साहब का नाम उछाल रहे हो?”

“अब आप ही फरमाइये।” इमरान मायूसी से बोला, “आपको शरीफ़ लड़की ना मिले, तो क्या किया जाये? वैसे कसम ले लीजिये, जब कोई मिल जाती है, तो मैं तवायफों पर लानत भेजकर ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूँ।”

“शायद रहमान साहब इसकी खबर नहीं…खैर!

“आगर उनसे मुलाकात हो, तो कन्फ्यूशंस का यह कलाम दुहरा दीजियेगा कि जब किसी ईमानदार को अपनी ही छत के नीचे पनाह नहीं मिलती, तो अंधेरी गलियों में भौंकने वाले कुत्तों से दोस्ती कर लेता है।”

डिप्टी डायरेक्टर उसे घूरता हुआ बाहर चला गया।

इमरान ने सीटी बजाने वाले अंदाज़ में होंठ सिकोड़ कर हॉल का अंदाज लिया। उसकी नज़रें एक मेज पर रुक गई, जहाँ एक खूबसूरत औरत अपने सामने पोर्ट की बोतल रखे सिगरेट पी रही थी। गिलास आधे से ज्यादा खाली था।

इमरान उसके करीब पहुँचकर रुक गया।

“क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ, लेडी जहांगीर!” वह ज़रा झुककर बोला।

“ओह तुम!” लेडी जहांगीर अपनी दाहिनी भाव उठा कर बोली, “नहीं हरगिज़ नहीं?”

“कोई बात नहीं!” इमरान मासूमियत से मुस्कुरा कर बोला, “कन्फ्यूशियस ने कहा था…”

“मुझे कन्फ्यूशियस से कोई दिलचस्पी नहीं।” वह झुंझला कर बोली।

“तो डी एच लॉरेंस का एक जुमला सुन लीजिये।“

“मैं कुछ सुनना नहीं चाहती। तुम यहाँ से हट जाओ।” लेडी जहांगीर गिलास उठाती हुई बोली।

“ओह! इसका ख़याल कीजिए कि आप मेरी मंगेतर भी रह चुकी हैं।”

“शट अप!”

“आपकी मर्ज़ी! मैं तो सिर्फ आपको यह बताना चाहता था कि आज सुबह ही से मौसम बहुत खुशगवार था।”

वह मुस्कुरा पड़ी।

“बैठ जाओ!” उसने कहा और एक ही सांस में गिलास खाली कर दी।

वह थोड़ी देर अपनी नशीली आँखें इमरान के चेहरे पर जमाई रही, फिर सिगरेट का एक लंबा कश लेकर आगे झुकते हुए आहिस्ता से बोली, “मैं अब भी तुम्हारी हूँ।”

“मगर सर जहांगीर!” इमरान बड़ी मायूसी से बोला।

“दफ़न करो उसे।”

“हाय तो क्या मर गये?” इमरान घबराकर खड़ा हो गया।

“लेडी जहांगीर हँस पड़ी।

“तुम्हारी हिमाकतें बड़ी प्यारी होती है।” वह अपनी बाईं आँख दबाकर बोली और इमरान ने शरर्म कर सिर झुका लिया।

“क्या पियोगे।” लेडीस जहांगीर ने थोड़ी देर बाद पूछा।

“दही की लस्सी!”

“दही की लस्सी…ही…ही….ही…शायद तुम नशे में हो।”

“ठहरिये! “इमरान बौखला कर बोला, “मैं एक बजे के बाद सिर्फ कॉफ़ी पीता हूँ… छह बजे शाम से बारह रात तक रम पीता हूँ।”

“रम!,” लेडी जहांगीर में मुँह सिकोड़कर बोली, “तुम अपने टेस्ट के आदमी नहीं मालूम होते। रम तो सिर्फ गंवार पीते हैं।”

“नशे में यह भूल जाता हूँ कि मैं गवार नहीं हूँ।

“तुम आजकल क्या कर रहे हो?”

“सब्र!” इमरान ने लंबी सांस लेकर कहा।

“तुम ज़िन्दगी के किसी हिस्से में भी संजीदा नहीं हो सकते।” लेडी जहांगीर मुस्कुरा कर बोली।

“ओह आप यही समझती है।“ इमरान की आवाज बेहद दर्दनाक हो गई।

“आखिर मुझमें कौन से कीड़े पड़े हुए थे कि तुम ने शादी से इंकार कर दिया था।” लेडी जहांगीर ने कहा।

“मैंने कब इंकार किया था?” इमरान रोनी सूरत बना कर बोला, “मैंने तो आपके वालिद साहब को सिर्फ शेर सुनाये थे…मुझे क्या मालूम था कि उन्हें शेरो शायरी से दिलचस्पी नहीं, वरना मैं नस्त्र में गुफ्तगू करता।”

“वालिद साहब की राय है कि तुम परले सिरे के अहमक और बदतमीज़ हो।” लेडी जहांगीर ने कहा।

“और चूंकि सर जहांगीर उनके हम उम्र हैं…लिहाज़ा…”

“शट अप!” लेडी जहांगीर भन्ना कर बोली।

“बहरहाल में यूं ही तड़प-तड़प कर मर जाऊंगा।” इमरान की आवाज फिर दर्दनाक हो गई।

लेडी जहांगीर गौर से उसका चेहरा देख रही थी, “क्या वाकई तुम्हें अफ़सोस है?” उसने आहिस्ता से पूछा।

“यह तुम पूछ रही हो? और वह भी इस तरह से, जैसे तुम्हें मेरे बयान पर शक हो।” इमरान की आँखों में न सिर्फ आँसू छलक आये, बल्कि बहने भी लगे।

“अरे…नो माय डियर…इमरान डार्लिंग! क्या कर रहे हो तुम।” लेडी जहांगीर ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ा दिया।

“मैं इसी गम में मर जाऊंगा।” वह आँसू खुश्क से करता हुआ बोला।

“नहीं! तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए।” लेडी जहांगीर ने कहा, “और मैं…मैं तो हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी।” वह दूसरा गिलास भर रही थी।

“सब यही कहते हैं। कई जगह से रिश्ते भी आ चुके हैं। कई दिन हुए जस्टिस फ़ारुख की लड़की का रिश्ता आया था। घर वालों ने इंकार कर दिया। लेकिन मुझे वह रिश्ता कुछ कुछ पसंद है।”

“पसंद है!” लेडी जहांगीर हैरत से बोली, “तुमने उनकी लड़की को देखा है।”

“हाँ! वही ना जो रीटा हे वर्थ स्टाइल के बाल बनाती है और आमतौर से काला चश्मा लगाए रहती है।”

“जानते हो वह काला चश्मा क्यों लगाती है?” लेडी जहांगीर ने पूछा।

“नहीं! लेकिन अच्छी लगती है।”

लेडी जहांगीर ने कहकहा लगाया, “इसलिए काला चश्मा लगाती है कि उसकी एक आँख गायब है।”

“हाय!” इमरान उछल पड़ा।

“और शायद इसी वजह से तुम्हारे घर वालों ने यह रिश्ता मंजूर नहीं किया।”

“तुम उसे जानती हो?” इमरान ने पूछा।

“अच्छी तरह से और आजकल मैं उसे बहुत खूबसूरत आदमी के साथ देखती हूँ। शायद वह भी तुम्हारी तरह अहमक होगा।”

“कौन है वह? मैं उसकी गर्दन तोड़ दूंगा।” इमरान तमक कर बोला, फिर अचानक चौंक कर ख़ुद ही बड़बड़ाने लगा, “लाहौल विला कूवत…भला मुझसे क्या मतलब!”

“बड़ी हैरतअंगेज बात है कि एक इंतहाई खूबसूरत नौजवान कानी लड़की से शादी करें।”

“वाकई वह दुनिया का आठवां अजूबा होगा।” इमरान ने कहा, “क्या मैं उसे जानता हूँ?”

“पता नहीं! कम से कम मैं तो नहीं जानती और जिसे मैं नहीं जानती, वह उस शहर के किसी आला खानदान का आदमी नहीं हो सकता।”

“कब से देख रही हो उसे?”

“यही कोई पंद्रह-बीस दिन से!”

“क्या वे यहाँ भी आते हैं?”

“नहीं मैंने उन्हें कैसे कामीनो में अक्सर देखा है।”

“मिर्ज़ा ग़ालिब ने ठीक ही कहा है – नाला सरमाया यक आलम- ओ – आलम कफे खाक आसमां बैजा – ए – कुमरी नजर आता है मुझे।”

“मतलब क्या हुआ?” लेडी जहांगीर ने पूछा।

“पता नहीं!” इमरान ने बड़ी मासूमियत से कहा और ख़यालोंमें डूबकर मेज पर तबला बजाने लगा।

“सुबह तक बारिश ज़रूर होगी।” लेडी जहांगीर अंगड़ाई लेकर बोली।

“सर जहांगीर आजकल नज़र नहीं आते।” इमरान ने कहा।

“एक माह के लिए बाहर गए हुए हैं।”

“गुड!” इमरान मुस्कुरा कर बोला।

“क्यों?” लेडी जहांगीर उसे अर्थपूर्ण नज़रों से देखने लगी।

“कुछ नहीं! कन्फ्यूशियस ने कहा है…”

“मत बोर करो।” लेडी जहांगीर चिढ़कर बोली।

“वैसे ही…बाय द वे… क्या तुम्हारा रात भर का प्रोग्राम है?”

“नहीं! ऐसा तो नहीं क्यों?”

“मैं अपनी तन्हाई में बैठ कर रोना चाहता हूँ।”

“तुम बिल्कुल गधे हो, बल्कि गधे से भी बदतर।”

“मैं भी यही महसूस करता हूँ। क्या तुम मुझे अपनी छत के नीचे रोने का मौका दोगी? कन्फ्यूशियस ने कहा है…”

“इमरान प्लीज शट अप!”

“लेडी जहांगीर में एक लंडूरे मुर्ग की तरह उदास हूँ।”

“चलो उठो, लेकिन अपने कन्फ्यूशियस को यहीं छोड़ चलो। बोरियत मुझसे बर्दाश्त नहीं होती।”

तकरीबन आधे घंटे बाद इमरान लेडी जहांगीर की ख्वाबगाह में खड़ा उसे आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहा था। लेडी जहांगीर के जिस्म पर सिर्फ नाइट गाउन था। वह अंगड़ाई लेकर मुस्कुराने लगी।

“क्या सोच रहे हो?” उसने भराई हुई आवाज में पूछा।

“मैं सोच रहा था कि आखिर किसी त्रिकोण के तीनों कोणों का जोड़ 90 डिग्री के दो कोणों के बराबर क्यों होता है?”

“फिर बकवास शुरू कर दी तुमने!” लेडी जहांगीर की नशीली आँखों में झल्लाहट नज़र आने लगी।

“माय डियर लेडी जहांगीर! अगर मैं साबित कर दूं कि 90 डिग्री का कोण कोई चीज ही नहीं है, तो दुनिया का बहुत बड़ा आदमी हो सकता हूँ।”

“जहन्नुम में जा सकते हो।”लेडीस जहांगीर बुरा सा मुँह बनाकर बड़बड़ाई।

“जहन्नुम! क्या तुम्हें जहन्नुम पर यकीन है?”

“इमरान मैं तुझे धक्के देकर निकाल दूंगी।”

“लेडी जहांगीर मुझे नींद आ रही है!”

“सर जहांगीर के बेडरूम में उनका स्लीपिंग सूट होगा। पहन लो।”

“शुक्रिया! ख्वाबगाह किधर है?”

“सामने वाला कमरा!” लेडी जहांगीर ने कहा और बेचैनी से टहलने लगी। इमरान ने सर जहांगीर के कमरे में घुसकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। लेडी जहांगीर टहलती रही। दस मिनट गुजर गया। आखिर वह झुंझलाकर सर जहांगीर के ख्वाब गाह के दरवाजे पर आई। धक्का दिया, लेकिन अंदर से चटखनी चढ़ा दी गई थी।

“क्या करने लगे इमरान?” उसने दरवाजे थपथपाना शुरू कर दिया, लेकिन जवाब नदारद। फिर उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे इमरान खर्राटे भर रहा हो। उसने दरवाजे से कान लगा दिया। सच में खर्राटे ही की आवाज थी। फिर दूसरे लम्हे वह कुर्सी पर खड़ी होकर दरवाजे के ऊपरी शीशे से कमरे के अंदर झांक रही थी। उसने देखा कि इमरान कपड़े और जूते पहने हुए सर जहांगीर के पलंग पर पड़ा खर्राटे ले रहा है और उसने बिजली भी नहीं बुझाई थी। वह अपने होठों को दायरे की शक्ल में सिकोड़े इमरान को किसी भूखी बिल्ली की तरह घूर रही थी। फिर उसने हाथ मारकर दरवाजे का एक शीशा तोड़ दिया। नौकर शायद सर्वेंट क्वार्टर में सोये हुए थे, वरना शीशे के छनाके उनमें से एक आध को ज़रुर जगा देते। ये और बात है कि इमरान की नींद पर उनका ज़र्रा बराबर भी असर नहीं पड़ा। लेडी जहांगीर ने अंदर हाथ डालकर चटकनी नीचे गिरा दी। नशे में तो थी ही। जिस्म का पूरा जोर दरवाजे पर दे रखा था। चिटकनी खुलते ही दोनों पट खुले और वह कुर्सी समेत ख्वाबगाह में जा गिरी। इमरान ने उन धीमी आवाज में कराहकर करवट बदली और बड़बड़ाने लगा, “हाँ हाँ! संथेलिक गैस की वह कुछ मीठी-मीठी सी होती है..”

पता नहीं वह जाग रहा था या ख्वाब में बड़बड़ाया था। लेडी जहांगीर फर्श पर बैठी अपनी पेशानी पर हाथ फेर कर बिसूर रही थी।

दो-तीन मिनट बाद वह उठी और इमरान पर टूट पड़ी।

“सूअर कमीने यह तुम्हारे बाप का घर है! फोटो निकलो यहाँ से!” उसे बुरी तरह झिंझोड़ रही थी। इमरान बौखला कर बैठा।

“हाय! क्या सब भाग गये…”

“दूर हो जाओ यहाँ से।” लेडी जहांगीर ने उसका कॉलर पकड़कर झटका मारा।

“हाँ हाँ, सब ठीक है।” इमरान अपना गिरेबान छुड़ाकर फिर लेट गया। इस बार लेडी जहांगीर ने उसे बालों से पकड़कर उठाया।

“हाय! क्या अभी नहीं गया?” इमरान झल्ला कर उठ बैठा। हम नहीं आदमकद आईना रखा हुआ था।

“ओह तो आप हैं!” आईने में अपना अक्स देख कर बोला। फिर इस तरह मुक्का बना कर उठाया जैसे उस पर हमला करेगा। वह ज़रा आहिस्ता-आहिस्ता आईने की तरह बढ़ रहा था, जैसे किसी दुश्मन से मुकाबला करने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रहा हो। फिर अचानक सामने से हटकर एक किनारे पर चलने लगा। आईने के करीब पहुँचकर दीवार से लग कर खड़ा हो गया। लेडी जहांगीर की तरफ देखकर इस तरह होठों पर उंगली रख ली, जैसे वह आईने के करीब नहीं बल्कि किसी दरवाजे से लगा खड़ा हो और इस बात का इंतज़ार कर रहा हो कि जैसे ही दुश्मन दरवाजे में कदम रखेगा, वह उस पर हमला कर बैठेगा। लेडी जहांगीर हैरत से आँखें फाड़े उसकी यह हरकत देख रही थी। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहती, इमरान ने पैंतरा बदल कर आईने में घूंसा रसीद कर दिया। हाथ में जो चोट लगी, तो ऐसा मालूम हुआ जैसे वह यकायक होश में आया हो।

“लाहौल विला कूवत!” वह आँखें मलकर बोला और खिसियानी हँसी हँसने लगा। और फिर लेडी जहांगीर को भी हँसी सी आ गई। लेकिन वह जल्दी ही संजीदा हो गई, “तुम यहाँ क्यों आये थे?”

“ओह! मैं शायद भूल गया, मैं शायद उदास था।लेडीस जहांगीर तुम बहुत अच्छी हो। मैं रोना चाहता हूँ।”

“अपने बाप की कब्र पर रोना, निकल जाओ यहाँ से!”

“लेडी जहांगीर… कन्फ्यूशियस…”

“शट अप!” लेडीस जहांगीर इतनी जोर से चीखी कि उसकी आवाज भर्रा गई।

“बहुत बेहतर!” इमरान आज्ञा कारिता के अंदाज में सिर हिला कर बोला। गोया लेडी जहांगीर ने बहुत संजीदगी और नरमी से उसे कोई नसीहत की थी।

“यहाँ से चले जाओ।”

“बहुत अच्छा!” इमरान ने कहा और उस कमरे से निकलकर लेडी जहांगीर के ख्वाबगाह में चला गया। वह उसकी मसहरी पर बैठने ही जा रहा था कि लेडी जहांगीर तूफान की तरह उसके सिर पर पहुँच गई, “अब मजबूरन मुझे नौकरों को जगाना पड़ेगा।” उसने कहा।

“ओ हो! तुम कहाँ तकलीफ करोगी। मैं जगा देता हूँ। कोई खास काम है?”

“इमरान मैं तुम्हें मार डालूंगी!” लेडी जहांगीर दांत पीसकर बोली।

“मगर किसी से इसका ज़िक्र मत करना। वरना पुलिस…खैर मैं मरने के लिए तैयार हूँ। अगर छुरी तेज ना हो, तो तेज कर दूं। अगर रिवाल्वर से मारने का इरादा है, तो मैं उसकी रायन दूंगा! सन्नाटे में आवाज दूर तक फैलती है। अलबत्ता जहर ठीक रहेगा।”

“इमरान ख़ुदा के लिए!” लेडी जहांगीर बेबसी से बोली।

“ख़ुदा क्या मैं इसके गुलामों के लिए भी अपनी जान कुर्बान कर सकता हूँ, जो मिजाज ए यार में आये।”

“तुम चाहते क्या हो?” लेडी जहांगीर ने पूछा।

“दो चीजों में से एक…”

“क्या?”

“मौत या सिर्फ दो घंटे की नींद!”

“क्या तुम गधे हो?”

“मुझसे पूछती, तो मैं पहले ही बता देता कि बिल्कुल गधा हूँ।”

“जहन्नुम में जाओ!” लेडी जहांगीर और न जाने क्या बकती हुई सर जहांगीर की ख्वाबगाह में चली गई। इमरान ने उठकर अंदर से दरवाजा बंद कर दिया, जूते उतारे और कपड़ों समेत बिस्तर में घुस गया।

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Ibne Safi Novels In Hindi :

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