चैप्टर 9 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 9 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 9 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 9 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter  1 | 2 | 3 | 45 | | | | | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 

Prev | Next | All Chapters

इमरान फुटपाथ पर तन्हा खड़ा था। राबिया की कार जा चुकी थी। उसे जेब से एक च्यूइंगगम निकाली और मुँह में डाल कर दांतों से उसे कुचलने लगा। चिंतन मनन करते समय च्यूइंगगम उसका बेहतरीन साथी साबित होती थी। जासूसी उपन्यास के जासूसों की तरह उसे सिगार से दिलचस्पी थी ना पाइप से। शराब भी नहीं पीता था। उसके जेहन में उस वक्त कई सवाल थे। फुटपाथ के किनारे वह इस तरह खड़ा हुआ था, जैसे सड़क पार करने का इरादा रखता हो, मगर उसके ज़ेहन में इसका कोई ख़याल नहीं था। वह सोच रहा था कि इन मामलों से सर जहांगीर का क्या ताल्लुक हो सकता है। दूसरी लाश के करीब उसे कागज का टुकड़ा मिला था, वह सर जहांगीर ही के राइटिंग पैड का था। राबिया से रहस्यमय नौजवान की मुलाक़ात सर जहांगीर के यहाँ हुई थी। लेडी जहांगीर ने जिस खूबसूरत नौजवान का ज़िक्र किया था, उसके अलावा कोई नहीं हो सकता था। लेकिन लेडी जहांगीर भी उससे वाकिफ़ नहीं थी। लेडी जहांगीर की यह बात भी सच थी कि अगर वह शहर के किसी अच्छी हैसियत के खानदान का आदमी होता, तो लेडी जहांगीर उसे ज़रूर वाक़िफ होती। फ़र्ज़ किया कि अगर लेडी जहांगीर भी किसी साजिश में शरीक थी, तो उसने उसका ज़िक्र इमरान से क्यों किया। हो सकता है कि वह उसकी दूसरी ज़िन्दगीगी से वाकिफ़ ही न रही हो। लेकिन फिर भी सवाल पैदा होता है कि उसने ज़िक्र किया ही क्यों? वह कोई ऐसी अहम बात न थी। सैकड़ों नौजवान लड़कियों के चक्कर में रहे होंगे। चाहे वह पानी भरने की मशक से भी बदतर क्यों ना हो। फिर एक सवाल उसके ज़ेहन में और उभरा। आखिर उस मुज़ाविर ने पुलिस को राबिया के बारे में क्यों नहीं बताया था? कब्र और लाश के बारे में तो उसने सोचना ही छोड़ दिया था। फ़िक्र इस बात की थी कि वह लोग कौन हैं और इस मकान में क्यों दिलचस्पी ले रहे हैं? अगर वह सर जहांगीर ही हैं, तो उनका इस इमारत से क्या ताल्लुक?

सर जहांगीर से वह अच्छी तरह वाकिफ़ था। लेकिन यूं भी नहीं कि उन पर किसी किस्म का शक कर सकता। सर जहांगीर शहर के इज्जतदार लोगों में थे। ना सिर्फ इज्जतदार बल्कि नेकनाम भी। थोड़ी देर बाद यह बात सड़क पार करने का इरादा कर ही रहा था कि रुकती हुई एक कार उसके रास्ते में आ गई। यह राबिया ही की कार थी।

“ख़ुदा का शुक्र है कि आप मिल गये।” उसने खिड़की से सिर निकालकर कहा।

“मैं जानता था कि आप को फिर मेरी ज़रूरत महसूस होगी।” इमरान ने कहा और कार का दरवाजा खोलकर राबिया के बराबर बैठ गया। कार फिर चल पड़ी।

“ख़ुदा के लिए मुझे बचाइये।” राबिया ने कांपती हुई आवाज में कहा, “मैं डूब रही हूँ।”

“तो क्या आप मुझे तिनका समझती हैं।” इमरान ने कहकहा लगाया।

“ख़ुदा के लिए कुछ कीजिये। अगर डैडी को इसका इल्म हो गया तो…”

“नहीं होने पायेगा।” इमरान ने संजीदगी से कहा, “आप लोग मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर झक मारने मैदान में निकली हैं…मुझे खुशी है, लेकिन आप नहीं जानते कि मर्द ही मैदान में आपको उल्लू बनाता है। वैसे माफ़ कीजिए मुझे नहीं मालूम कि उल्लू की मादा को क्या कहते हैं?”

राबिया कुछ ना बोली और इमरान कहता रहा, “खैर भूल जाइए इस बात को। मैं कोशिश करूंगा कि इस ड्रामे में आपका नाम ना आने पाये। अब तो आप बेफ़िक्र हैं ना! गाड़ी रोकिये, अच्छा टाटा!”

“अरे!” राबिया के मुँह से हल्की-सी चीख निकली और उसने पूरे ब्रेक लगा दिये।

“क्या हुआ?” इमरान घबरा कर चारों तरफ देखने लगा।

“वही है!” राबिया बड़बड़ाई, “उतरिये। मैं उसे बताती हूँ।”

“कौन है? क्या बात है?”

“वही, जिसने मुझे इस मुसीबत में फंसाया है।”

“कहाँ है?”

“इस बार में अभी-अभी गया है। वही था, चमड़े की जैकेट और कत्थई पतलून में।”

“अच्छा, तो आप जाइये। मैं देख लूंगा।”

“नहीं मैं भी…”

“जाओ!” इमरान आँखें निकाल कर बोला।

राबिया से सहम गई। उस वक्त उसे इमरान की आँखें उसे बड़ी खौफ़नाक मालूम हुई। उसने चुपचाप कार मोड़ ली। इमरान बार में घुसा। बताए हुए आदमी को तलाश करने में उसे देर न लगी। वह एक मेज पर तन्हा बैठा था। वह गठीले जिस्म का एक खूबसूरत जवान था। चौड़ा माथा चोटों के निशानों से दागदार था। शायद वह सिर को दाईं जानिब थोड़ा सा झुपाए रखने का आदी था। इमरान उसके करीबी मेज पर बैठ गया। ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे उसे किसी का इंतजार हो। कुछ बेचैन भी था। इमरान ने फिर एक च्यूइंगगम निकाल कर मुँह में डाल ली। उसका अंदाजा गलत नहीं था। थोड़ी देर बाद एक आदमी चमड़े की जैकेट वाले के पास आकर बैठ गया। और फिर इमरान ने उसके चेहरे से बेचैनी के लक्षण गायब होते देखे।

“सब चौपट हो रहा है!” चमड़े के जैकेट वाला बोला।

“उस बुड्ढे को खब्त हो गया है।” दूसरे आदमी ने कहा।

इमरान उसकी गुफ्तगू साफ सुन सकता था। चमड़े की जैकेट वाला कुछ देर अपनी ठोड़ी खुजलाता रहा फिर बोला, “मुझे यकीन है कि उसका ख़याल गलत नहीं है। वह सब कुछ वही है। लेकिन हमारे साथी बोदे हैं। आवाज़ें  सुनते ही उनकी रुह फना हो जाती है।”

“लेकिन भई! वे आवाजें हैं कैसी?”

“कैसी ही क्यों ना हो? हमें उनकी परवाह न करनी चाहिए।”

“और वे दोनों किस तरह मरे?”

“यह चीज!” जैकेट वाला कुछ सोचते हुए बोला, “अभी तक मेरी समझ में नहीं आ सकी। मरता वही है, जो काम शुरू करता है। यह हम शुरू से देखते रहे हैं।”

“फिर ऐसी सूरत में हमें क्या करना चाहिए।” दूसरे आदमी ने कहा।

“हमें आज यह मामला तय ही कर लेना है।” जैकेट वाला बोला, “यह बड़ी बात है कि वहाँ पुलिस का पहरा नहीं है।”

“लेकिन उस रात को हमारे अलावा और कोई भी वहाँ था। मुझे तो उस आदमी पर शक है, जो बाहर वाले कमरे में रहता है।”

“अच्छा उठो! हमें वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए।”

“कुछ पी तो लें…मैं बहुत थक गया हूँ। क्या पियोगे, व्हिस्की या कुछ और?

फिर दोनों पीते रहे और इमरान उठकर करीब ही के एक पब्लिक टेलीफोन बूथ में चला गया। दूसरे लम्हे वह फैयाज़ के निजी को नंबर डायल कर रहा था।

“हेलो सुपर हाँ मैं ही हूँ! खैरियत कहाँ…ज़ुकाम हो गया है। पूछना यह है कि मैं जोशांदा पी लूं। अरे, तो इसमें नाराज़ होने की क्या बात है? आगे हाल यह है कि एक घंटे के अंदर अंदर उस इमारत के गिर्द पहरा लग जाना चाहिए। बस बस आगे मत पूछो! अगर इसके खिलाफ़ हो, तो आइंदा शेरलॉक होम्स डॉक्टर वॉटसन की मदद नहीं करेगा।” टेलीफोन बूथ से वापस आकर इमरान ने फिर अपनी जगह संभाल ली। जैकेट वाला दूसरे आदमी से कह रहा था, “बूढ़ा पागल नहीं है। उसके अंदाजे गलत नहीं होते।”

“ऊंह होगा!” दूसरा मेज पर खाली गिलास पटकता हुआ बोला, “सही हो या गलत। सब जहन्नुम में जाये, लेकिन तुम अपनी कहो। अगर उस लड़की से फिर मुलाकात होगी, तो क्या करोगे?”

“ओह!” जैकेट वाला हँसने लगा, “माफ़ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं!”

“ठीक! लेकिन अगर वह पुलिस तक पहुँच गई तो?”

“वह हरगिज़ ऐसा नहीं कर सकती…बयान देते वक्त उसे यह भी बताना पड़ेगा कि वह एक रात मेरे साथ उस मकान में गुज़ार चुकी है। मेरा ख़याल है कि शायद उसका ज़ेहन उस कुंजी तक पहुँच ही ना सके।”

इमरान कॉफ़ी का ऑर्डर देकर दूसरी च्यूइंगगम चबाने लगा। उसके चेहरे से ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे वह सारे माहौल से कतई बेतकल्लुफ़ हो। लेकिन हकीकत ये थी कि दोनों की गुफ्तगू का एक-एक लफ्ज़ उसकी याददाश्त हज़म करती जा रही थी।

“तो क्या आज बूढ़ा आयेगा?” दूसरे आदमी ने पूछा।

“हाँ! आज फैसला हो जाये।” जैकेट वाले ने कहा।

दोनों उठ गये। इमरान ने अपने हलक में बची-खुची कॉफ़ी उड़ेल ली। बिल वह पहले ही अदा कर चुका था। वे दोनों बाहर निकलकर फुटपाथ पर खड़े हो गए और फिर उन्होंने एक टैक्सी रुकवाई। कुछ देर बाद उनकी टैक्सी के पीछे एक दूसरी टैक्सी भी जा रही थी, जिसकी पिछली सीट पर इमरान उकडू बैठा हुआ सिर खुजा रहा था। बेवकूफी भरी हरकतें उससे अक्सर अकेले में भी हो जाती थी। अगले मोड़ में पहुँचकर पहली टैक्सी रुक गई और दोनों उतरे और एक गली में घुस गये। यहाँ इमरान ज़रा-सा चूक गया। उसने उन्हें गली में घुसते ज़रूर देखा, लेकिन जितनी देर में वह टैक्सी का किराया चुकाता, वे दोनों आँखों से ओझल हो चुके थे।

गली सुनसान पड़ी थी। आगे बढ़ा, तो दाहिनी तरफ एक दूसरी गली दिखाई थी। अब इस दूसरी गली को तय करते वक्त उसे एहसास हुआ कि वहाँ तो गलियों का जाल बिछा हुआ था। लिहाजा सिर मारना फिज़ूल समझकर वह फिर सड़क पर आ गया। उस गली के सिरे से थोड़ा ही फ़ासले पर रुककर एक बुक स्टॉल के शोकेस में लगी हुई किताबों के रंगारंग कवर देखने लगा। शायद पाँच ही मिनट बाद एक टैक्सी ठीक उसी गली के सामने रुकी और एक बूढ़ा आदमी उतरकर किराया चुकाने लगा। उसके चेहरे पर भूरे रंग की दाढ़ी थी। लेकिन इमरान उसके माथे की बनावट देख कर चौंका। जैसे ही वह गली में घुसा इमरान ने भी अपने कदम बढ़ाये। कई गलियों से गुजरने के बाद वह एक दरवाजे पर दस्तक देने लगा। इमरान काफ़ी फ़ासले पर था और अंधेरा होने की वजह से उसे देख लिए जाने का भी डर नहीं था। एक दीवार से चिपक कर खड़ा हो गया। इधर दरवाजा खुला और बूढ़ा कुछ बड़बड़ाता हुआ अंदर चला गया। दरवाजा फिर बंद हो गया। इमारत दो मंजिला थी। इमरान सिर खुजाकर रह गया। लेकिन वह आसानी से पीछा नहीं छोड़ सकता था। अंदर दाखिल होने की संभावनाओं पर गौर करता हुए दरवाजे तक पहुँच गया। फिर उसने कुछ सोचे समझे बगैर दरवाजे से कान लगाकर आहट लेनी शुरू कर दी, लेकिन शायद उसका सितारा ही गर्दिश में आ गया था। दूसरे ही लम्हे में दरवाजे के दोनों पट खुले और दोनों आदमी उसके सामने खड़े थे। मध्यम सी रोशनी में उनके चेहरे तो ना दिखाई दिये, लेकिन वह काफ़ी मजबूत हाथ पैर के मालूम होते थे।

“कौन है?” उनमें से एक हुक्म देने वाले लहज़े में बोला।

“मुझे देर तो नहीं हुई!” इमरान तड़ से बोला।

दूसरी तरफ से फौरन ही जवाब नहीं मिला। शायद ख़ामोशी हिचकिचाहट की वजह से ही थी।

“तुम कौन हो?” दूसरी तरफ से सवाल फिर दोहराया गया।

“313!” इमरान ने अहमकों की तरह बक दिया। लेकिन दूसरे लम्हे उसे होश नहीं था। अचानक उसे गरबान से पकड़ कर अंदर खींच लिया गया। इमरान ने विरोध नहीं किया।

“अब बताओ तुम कौन हो?” एक ने उसे धक्का देकर कहा।

“अंदर ले चलो।” दूसरा बोला।

वे दोनों उसे धक्के देते हुए कमरे में ले आये। यहाँ सात आदमी एक बड़ी मेज के गिर्द बैठे हुए थे और वह बूढ़ा, जिसका पीछा करता हुआ इमरान यहाँ तक पहुँचा था। शायद वह मुखिया की हैसियत रखता था क्योंकि वह मेज के आखिरी सिरे पर था। वह सब इमरान को हैरान नज़रों से देखने लगे। लेकिन इमरान दोनों आदमियों के दरमियान खड़ा चमड़े के जैकेट वाले को घूर रहा था।

“आहां!” यकायक इमरान के कहकहा लगाया और अपनी गोल-गोल आँखें फिराकर फिर उससे कहने लगा, “मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा। तुमने मेरी महबूबा की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी।”

“कौन हो तुम? मैं तुम्हें नहीं पहचानता।” उसने हैरान लहज़े में कहा।

“लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ। तुमने मेरी महबूबा पर डोरे डाले हैं। वह कुछ नहीं बोला। तुमने एक रात उसके साथ गुज़ारी है। फिर भी ख़ामोश रहा। लेकिन मैं यह किसी तरह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि तुम उससे मिलना जुलना छोड़ दो।”

“तुम यहाँ क्यों आए हो?” अचानक बूढ़े ने सवाल किया और उन दोनों को घूरने लगा, जो इमरान को लाए थे। उन्होंने सब कुछ बता दिया। इस दौरान में इमरान बराबर अपने मुखातिब को घूरता रहा। ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे दूसरे लोगों से उसे वाकई कोई सरोकार ना हो। फिर अचानक किसी का घूंसा इमरान के जबड़े पर पड़ा और वह लड़खड़ाता हुआ कई कदम पीछे खिसक गया। उसने झुक कर अपनी फेल्ट हैट उठाई और उसे इस तरह झाड़ने लगा, जैसे वह यूं ही उसके सिर से गिर गई हो। वह अब भी जैकेट वाले को घूरे जा रहा था।

“मैं किसी इश्किया नावेल के आज्ञाकारी रकीब की तरह तुम्हारे महकने में अपनी दावेदारी छोड़ सकता हूँ।” इमरान ने कहा।

“बकवास मत करो।” बूढ़ा चीखा, “मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ। क्या उस रात को तुम ही वहाँ थे?”

इमरान ने उसकी तरफ देखने का भी कष्ट नहीं किया।

“यह ज़िन्दा बचकर ना जाने पाये।” बूढ़ा खड़ा होता हुआ बोला।

“मगर शर्त यह है!” इमरान मुस्कुरा कर बोला, “मैहर की बेज्जती ना होने पाये।” उसके बेफ़िक्री भरे इत्मीनान में ज़र्रा बराबर भी फ़र्क न होने पाया था।

तीन-चार आदमी उसकी तरफ लपके। इमरान दूसरे ने डपट कर बोला, “हैंड्स अप!” साथी उसका हाथ जेब से निकला। उसकी तरह से बढ़ने वाले पहले तो ठिठके, लेकिन फिर उन्होंने बेतहाशा हँसना शुरु कर दिया। इमरान के हाथ में रिवाल्वर के बजाय रबड़ की एक गुड़िया थी। फिर बूढ़े की गरजदार आवाज ने उन्हें ख़ामोश कर दिया और वे फिर इमरान की तरफ बढ़े। जैसे ही उसके करीब पहुँचने, इमरान ने गुड़िया का पेट दबा दिया। उसका मुँह खुला और पीले रंग का गहरा गुबार उसमें से निकलकर तीन-चार फुट के दायरे में फैल गया। वह चारों बेतहाशा खांसते हुए वहीं ढेर हो गये।

“जाने ना पाये।” बूढ़ा फिर चीखा।

दूसरे लम्हे इमरान ने काफ़ी भारी चीज इलेक्ट्रिक लैंप पर खींच मारी। एक जोरदार आवाज के साथ बल्ब फटा और कमरे में अंधेरा फैल गया। इमरान अपने नाक पर रूमाल रखे हुए दीवार के सहारे मेज के सिरे की तरफ खिसक रहा था। कमरे में अच्छा खासा हंगामा बरपा हो गया था। शायद वह सब अंधेरे में एक-दूसरे पर घूंसेबाजी की मशक करने लगे थे। इमरान का हाथ आहिस्ता से मेज के सिरे पर रेंग गया और उसे नाकामी नहीं हुई। जिस चीज पर शुरू ही से उसकी नज़र रही थी, उसके हाथ आ चुकी थी।

उसके हाथ बूढ़े का चमड़े का हैंडबैग था। वापसी में किसी ने कमरे के दरवाजे पर उसकी राह में आने की कोशिश की, लेकिन अपने सामने के दो तीन दांतों को रोता हुआ ढेर हो गया। इमरान जल्द से जल्द कमरे से निकल जाना चाहता था क्योंकि उसकी आँखों में भी जलन होने लगी थी। गुड़िया के मुँह से निकला हुआ गुबार अब पूरे कमरे में फैल गया था। खांसी और गालियों का शोर पीछे छोड़ता हुआ वह बाहरी दरवाजे तक पहुँच गया। गली में निकलते ही वह करीब की दूसरी गली में घुस गया। फिलहाल सड़क पर निकलना खतरनाक था। काफ़ी देर तक गलियों में चकराता हुआ अंदर ही अंदर दूसरी सड़क पर आ गया। थोड़ी देर बाद और टैक्सी में बैठा हुआ इस तरह अपने होंठ रगड़ रहा था, जैसे सचमुच अपनी किसी मेहबूबा से मिलने के बाद लिपस्टिक के धब्बे छुड़ा रहा है।

Prev | Next | All Chapters

Chapter  1 | 2 | 3 | 45 | | | | | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 

Ibne Safi Novels In Hindi :

कुएं का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

जंगल में लाश ~ इब्ने सफ़ी का ऊपन्यास

नकली नाक ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

Leave a Comment