चैप्टर 13 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 13 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 13 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

Chapter 13 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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“मुझे विश्वास नहीं आ रहा जॉन।” रशीद ने आश्चर्य से दुख भरी आवाज ने कहा।

“लेकिन यह सच है मेजर! गुरनाम का खून कर दिया गया है।” जॉन ने व्हिस्की का एक घूंट गले में उतारते हुए कहा।

“यह अच्छा नहीं हुआ। उसका कोई हमारे रिंग को खतरे में डाल सकता है।”

“लेकिन और कुछ रास्ता भी नहीं था। उसे रास्ते से हटा दिया जाता, तो 555 का भेद खुल जाता है।”

“555 की सरगर्मियों की खबर तो वैसे भी हेड क्वार्टर तक पहुँच चुकी है। तभी तो वह फिल्म उस तक पहुँची थी।”

“लेकिन वह फिर तो ब्लैंक थी। गुरनाम ने हमें चकमा दिया था।” रुखसाना ने पहली बार उनकी बातों में बोलते हुए कहा।

“असली फिल्म होटल के कमरे से पुलिस को मिल चुकी है।” रशीद ने उन दोनों के चेहरे को तेज नज़रों से देखते हुए कहा।

यह सुनते ही जॉन के हाथ से व्हिस्की का गिलास फिसल कर फर्श पर गिर पड़ा और कांच के टुकड़े उसके निश्चय के समान बिखर गया। रशीद उन दोनों के चेहरों का उतार-चढ़ाव देखता हुआ बोला, “अब हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा।”

“उस फिल्म में क्या था?” जॉन ने सूखे होठों को तर करते हुए पूछा।

“शायद हमारे जासूसों की तस्वीरें। दो-एक दिन में पता चल जायेगा।”

“अब हमें क्या करना होगा?” जॉन ने घबड़ा कर पूछा।

“इसके पहले कि पुलिस कोई कदम उठाये, पीर बाबा के डेरे से सब कुछ हटा दिया जाए। कोई निशान वहाँ नहीं रहना चाहिए और तुम दोनों कुछ दिनों के लिए फौरन कश्मीर छोड़कर चले जाओ।”

“कहाँ?” जॉन ने जल्दी से पूछा।

“आजाद कश्मीर….बाकी इंस्ट्रक्शन तुम्हें उस्मान बेकरी वाले से मिल जायेंगे।”

“मुझे भी जॉन के साथ जाना होगा क्या?” रुखसाना नहीं पूछा।

“नहीं….बेहतर होगा तुम कहीं और चले जाओ। कुछ दिनों तक तुम्हें हम सब से अलग रहना होगा।” यह कहते हुए रशीद हाउस बोट के बाहरी दरवाजे तक चला आया और दरवाजा खोलकर बाहर झांकने लगा।

चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। हाउसबोट डल झील में चलते-चलते एक उजाड़, सूने किनारे पर आ लगी थी। दूर-दूर तक कोई आवाज सुनाई नहीं देती थी। रात के सन्नाटे में बस झींगुर की आवाज सुनाई दे रही थी।

तभी पेड़ों के झुंड में से एक शिकारा बाहर निकला और हाउसबोट के किनारे आ लगा। रशीद चुपके से हाउस बोट छोड़कर उस शिकारे में आ बैठा। जॉन और रुखसाना हाउस बोट के जीने तक चले आये। रशीद  ने धीमी आवाज में गुड लक कहा और मांझी ने शिकारा आगे बढ़ा दिया।

जॉन रुखसाना के देखते-देखते शिकारा पेड़ों के उसे झुंड में गायब हो गया, जहाँ से वह निकल कर आया था। रुखसाना ने विहस्की का ताज़ा जाम बनाया और जॉन को देते हुए बोली, “आजाद कश्मीर कैसी जगह है?”

“नॉनसेंस! मेरा तो जी चाहता है कि इस जाल से बाहर निकल जाऊं।”

“अब यह मुमकिन नहीं डियर!”

“क्यों?”

“हिंदुस्तान में रहोगे, तो एक न एक दिन पकड़े जाओगे। पाकिस्तान से दगा करोगे, तो गोली का निशाना बना दिए जाओगे।

“ओह शट अप!” जॉन गुस्से में झुंझलाया और फिर व्हिस्की का एक बड़ा घूंट लेते हुए रुखसाना से पूछ बैठा, “लेकिन तुमने क्या सोचा है?”

“दिल्ली चले जाऊंगी। शायद पुराना काम मिल जाये।”

“और अगर पुलिस तुम तक भी पहुँच गई तो?”

“तो क्या? मैं मौत से नहीं डरती।” रुखसाना ने लापरवाही से कहा और फिर अपने लिए एक जाम बनाकर जॉन के जाम से टकराया।

जॉनी आगे बढ़ कर उसे आलिंगन में भर लिया और मुस्कुराती नज़रों से देखते हुए बोला, “फॉरगेट इट!”

“लोग भूल गई। चलो मोहब्बत की बातें करो। शायद हम यह दोनों के मिलन की आखिरी रात हो।”

“नहीं डार्लिंग, आखिरी मत कहो। इंशा अल्लाह हम फिर मिलेंगे।” जॉन ने कहा और रुखसाना को खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया। खिड़की से आती चांद की रोशनी में दो जवानियाँ आपस में गले मिलने लगी।

हाउस बोट पल-पल से रखती रात के समान झील के तल पर डोलती आगे बढ़ती गई।

घटना के तीन दिन बाद गुरनाम सिंह की लाश मिली। लाश श्रीनगर से कोई पचास मील दूर कंगन वादी में बहती बर्फीली सिंधु नदी में पाई गई। इस भयानक घटना की चर्चा श्रीनगर के शहरी और फौजी इलाके में जंगल की आग के समान फैल गई।

रशीद को गुरनाम की मौत का दुख था। वह सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना मिलिट्री वालों की छानबीन में सहायता कर रहा था। जब लाश को पहचानने के लिए उसे पुलिस चौकी में बुलवाया गया, तो गुरनाम की लाश देखते ही वह तड़प उठा। कुछ देर के लिए वह भूल गया कि गुरनाम उसका नहीं, बल्कि रणजीत का दोस्त था। उसे लगा जैसे उसका कोई अपना प्रिय मित्र कठोरता से मार डाला गया हो। उसने पूरे जोश के साथ इंस्पेक्टर इंचार्ज से कहा कि इस घटना की पूरी छानबीन की जाये। मिलिट्री स्कूल में पूरा सहयोग देगी।

रशीद की अपनी आत्मा उसे धिक्कारने लगी थी गुरनाम से वह फिल्म उड़ाने का उत्तरदायित्व उसी ने जॉन को सौंपा था। ऐसा करते समय उसने यह बिल्कुल नहीं सोचा था कि इसका परिणाम इतना भयानक होगा। पर लाभ क्या हुआ? वह फिल्म, जो गुरनाम की हत्या करके प्राप्त की गई थी, बिल्कुल ब्लैंक थी।

लाश का पोस्टमार्टम हुआ, तो गुरनाम की मौत का कारण सिर का फट जाना निश्चित हुआ। शायद वह कहीं ऊंचाई से फिर किसी चट्टान पर जा गिरा था, जिस कारण उसका सिर फट गया और वह मर गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हो गया था कि जिस समय उसकी मृत्यु हुई, उसके मेदे में काफ़ी मात्रा में शराब मौजूद थी।

पुलिस चौकी में उसके अतिरिक्त उसके यूनिट का कमांडेंट कर्नल मजुमदार और कुछ दूसरे फौजी अफ़सर भी उपस्थित थे। कर्नल मजुमदार ने बताया कि हेड क्वार्टर से मिली सूचना के अनुसार कैप्टन गुरनाम सिंह को किसी विशेष कार्य से कश्मीर भेजा गया था।जब उन्होंने रशीद से उस विशेष कार्य के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करें चाहे तो रशीद झट कह उठा, ” नो सर! मुझे तो उसने इतना ही बताया था कि वह छुट्टी काटने कश्मीर आया था।”

“लेकिन तुम्हारा मकान छोड़ कर अचानक ही वह होटल में क्यों शिफ्ट कर गया था?” कर्नल ने पूछा।

“मेरी ही भूल से। वास्तव में मुझे उसका शराब पीना पसंद नहीं था। पीने के बाद वह कुछ अधिक ही बहकने लगता था। एक रात मैंने उसे टोका, तो वह सवेरे ही बिना मुझसे कुछ कहे होटल चला गया।”

“ओह! होटल जाने के बाद तुम उससे मिले थे?”

“जी नहीं! दो एक बार प्रयत्न किया, लेकिन वह मिला नहीं।”

“शराब के अलावा उसकी और भी कोई कमज़ोरी थी?”

“औरत!” रशीद ने झिझकते हुए कहा।

“दैट्स राइट!” पुलिस अफसर ने बीच में कहा, “गुरनाम सिंह के होटल से गायब हो जाने से एक दिन पहले वह होटल में अकेला नहीं था, बल्कि रुखसाना नाम की एक लड़की देर तक उसके साथ शराब पीती रही थी।”

रुखसाना का नाम सुनते ही रशीद के बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई और उसने झट पूछा, “वह लड़की मिली क्या?”

“नहीं वह अपने दोस्त जॉन के साथ कश्मीर छोड़ कर भाग गई है।”

“कहाँ?”

“पुलिस इसकी छानबीन कर रही है।”

“मुझे विश्वास है इंस्पेक्टर!” रशीद के कुछ ऊँचे स्वर में कहा, “मेरे दोस्त की मौत का कारण वे लोग ज़रूर जानते होंगे।”

“यह तुम कैसे कह सकते हो।” कर्नल मजुमदार ने प्रश्न किया।

“उस रात कर्नल चौधरी की विदाई की पार्टी में मेरे दोस्त और जॉन की झड़प हो गई थी। उस समय रुखसाना उसके साथ थी।”

“और दो दिन बाद उसकी मंगेतर गुरनाम के साथ शराब पी रही थी। अजीब बात है!” कर्नल मजुमदार ने आश्चर्य प्रकट किया।

“पीने वालों का क्या भरोसा सर! एक रात उलझते हैं, दूसरी रात दोस्त बन जाते हैं।” रशीद के स्थान पर इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया और रशीद से संबोधित हो कर पूछ बैठा, “क्या आप रुखसाना और जॉन को जानते थे?”

“जी नहीं! बस उसी दिन ऑफिसर्स मैस में सरसरी सी मुलाकात हुई थी।”

“वे लोग किसके गेस्ट थे?” कर्नल ने पूछा।

“मुझे नहीं मालूम सर!” रशीद ने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।

कुछ और पूछताछ तथा पुलिस की कार्रवाई के बाद गुरनाम की लाश फौज के हवाले कर दी गई। रशीद भारी मन के साथ उसकी लाश अपनी यूनिट में ले आया। वैसे भी गैरिजन ड्यूटी पर होने के कारण उसके अंतिम संस्कार का उत्तरदायित्व उन्हीं  पर था।

रशीद ने अपने हाथों से अपने दोस्त की अर्थी सजाई और पूरे फौजी सम्मान के साथ उसका दाह संस्कार हुआ। जब उसने दोस्त की लाश को आग के हवाले किया, तो हवा में फायर हुए और फौजी बिगुल की उदास धुन से सारा वातावरण शोक ग्रस्त हो गया, रशीद की आँखों में अनायास आँसू उमड़ आये। उसे इस बात का बड़ा दुख था कि ड्यूटी निभाते हुए उसने रणजीत के दोस्त की जान ले ली।

गुरनाम का चंद दोस्तों के अतिरिक्त इस दुनिया में कोई ना था। पत्नी शादी के थोड़े दिनों बाद ही मर गई थी। औलाद से वह वंचित रहा। ले-देकर रिश्ते के एक चाचा थे, जिन्होंने उसकी खेती बड़ी संभाली हुई थी। वे उसकी मौत की खबर सुनकर कश्मीर आये और रीति के अनुसार गुलाब के फूल लेकर चले गये। जाने से पहले जब उन्होंने गुरनाम का असबाब मांगा, तो पुलिस ने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब तक पुलिस की कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, वह असबाब पुलिस के अधिकार में रहेगा।

पुलिस की छानबीन की रशीद पूरी जानकारी रखता था। जब टैक्सी ड्राइवर का बयान पुलिस में रिकॉर्ड हुआ, तो उन्हें गुरनाम की मृत्यु के कारण पर संदेह होने लगा। ड्राइवर ने बताया कि वह एक लड़की का पीछा करता हुआ पीर बाबा के डेरे तक गया था। जब उसकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहा था, तो बहुत देर बाद एक आदमी उसके पास आया और उसका किराया चुकाकर बोला था कि सरदारजी को थोड़ा समय लगेगा, इसलिए वह चला जाये। फिर जैसे-जैसे छानबीन आगे बढ़ती रही, उसके संदेह दृढ़ होता गया कि गुरनाम की मौत नदी में गिरने से नहीं हुई, बल्कि पीर बाबा के डेरे पर हुई थी। उसके कमरे से मिली फिल्म की रील को जब प्रोजेक्टर पर चढ़ाया गया, तो उसमें जॉन और पीर बाबा के चेहरे स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

यह रहस्य पाते ही पुलिस ने पीर बाबा के अड्डे पर छापा मारा। पीर बाबा और उसके चेलों को पकड़ लिया गया। लेकिन उन्हें वहाँ ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिल सका कि जिससे वे इस अड्डे को दुश्मनों का अड्डा सिद्ध कर सके या यह प्रमाणित कर सके कि गुरनाम की हत्या वहीं पर हुई है। फिर उन्होंने बयान और गवाहों के आधार पर जॉन और रुखसाना के वारंट जारी कर दिये।

रशीद को यह जान कर संतोष हुआ कि 555 के मामले में उसका कहीं वर्णन नहीं है। इसका अर्थ था कि उस पर किसी को संदेह नहीं था और वह संतोष से इस देश में रहकर अपना निश्चित कार्य कर सकता था। लेकिन इस घटना को दृष्टि में रखते हुए कुछ समय के लिए उसे अपना कार्य बंद कर देना चाहिए।

तभी उसे रणजीत की माँ की याद आ गई, जो अपने बेटे से मिलने के लिए तड़प रही होगी। हर चार दिन बाद उसका एक पत्र आता था। उन पत्रों से उसकी उनकी बेचैनी झलकती थी। पिछले पत्र में तो उसने यहाँ तक लिख दिया था कि अगर वह तुरंत छुट्टी लेकर आया, तो वह स्वयं ही श्रीनगर पहुँच जायेगी।

माँ कहीं अपने इकलौते बेटे से मिलने के लिए मूर्खता ना कर बैठे, यह सोचते ही वह घबरा गया। अब उसके पास टालमटोल का कोई बहाना नहीं था। उसने सोचा कि हो सकता है अधिक टालने पर किसी को उस पर संदेह ना हो जाये। यह बात पहले ही उसकी दृष्टि में थी और इससे निपटने के लिए उसने अपनी रिंग के एक आदमी को इस गाँव में भेज दिया था। अब उसे छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र देना ही पड़ा।

अगले दिन उसकी छुट्टी की प्रार्थना स्वीकार हो गई। उसने घर आकर अलमारी में से वह पत्र निकाला, जो आज उसे प्राप्त हुआ था और उसके जासूस साथी ने मनाली से भेजा था। इस पत्र में रणजीत की माँ की तस्वीर थी। उसकी आदतों, व्यवहार संबंधियों इत्यादि का पूरा ब्यौरा था।

आराम कुर्सी पर बैठे न जाने कितनी देर तक वह उस वृद्धा की तस्वीर देखता रहा। इस महिला के चेहरे से एक विशेष तेज झलकता था। रशीद की अपनी माँ बचपन ही में ख़ुदा को प्यारी हो चुकी थी। ममता की मिठास का उसे ज़रा भी अनुभव नहीं था। वह महिला उसकी माँ नहीं थी। रणजीत की माँ थी और न जाने क्यों उसे कुछ ऐसा अनुभव हो रहा था कि रणजीत की माँ की कोख उजाड़कर वह कोई बहुत बड़ा पाप कर रहा था। माँ तो फिर माँ ही है…चाहे किसी की भी हो। इस विचार के आते ही उसका सारा शरीर कांपकर रह गया। उसके दिल में एक अनोखी पीड़ा उठी और जैसे उसका सारा शरीर ही बोझल हो गया हो। वह सुस्ताने के लिए उसी कुर्सी पर टांगे पसारकर लेट गया। उसने आँखें बंद कर ली और थोड़ी देर के लिए अपने शरीर ढीला छोड़ दिया।

तभी एकाएक किसी आहट ने उसे चौंका दिया। उसे लगा कमरे में अकेला नहीं था। कोई छाया उसके पास से गुज़र कर चली गई थी। अपनी सांस रोक, टेबल लैंप के धुंधले प्रकाश में वह कमरे में इधर-उधर देखने लगा। उसे यों प्रतीत हुआ, जैसे कोई सामने लटके पर्दे के पीछे से छिपने का प्रयत्न कर रहा है। रशीद ने कुर्सी से उठने का प्रयास किया, लेकिन भय से उसका शरीर कुर्सी से चिपक कर रह गया।

“कौन हो तुम?” बड़ी मुश्किल से फटी आवाज में वह चिल्लाया।

कुछ क्षण तक कमरे में मौन रहा। फिर वह छाया पर्दे के पीछे से निकलकर मेज के पास रोशनी में आ गई। रशीद के मुँह से अनायास एक भयभीत चीख निकल गई। उसने कांपती दृष्टि से देखा, तो सामने रणजीत खड़ा मुस्कुरा रहा था। अपनी आँखों पर विश्वास न करते हुए वह फिर चिल्लाया, “कौन हो तुम?”

“ओ हो! अपने हमशक्ल को इतनी जल्दी भूल गए हो।” रणजीत एक विषैली हँसी हँसता हुआ बोला।

“लेकिन तुम तो कैंप में कैद थे।” रशीद घबराकर बोला।

“कैद था, लेकिन फ़रार होकर यहाँ वापस आ गया हूँ।”

रणजीत ने कहा और फिर उसके पास आकर उसकी आँखों में झांकता हुआ बोला, “और अब मैं तुम्हें कैदी बनाऊंगा….गिन गिन कर तुमसे बदले लूंगा।”

“मुझसे?”

“हाँ तुमसे! ठीक उसी तरह तड़पाऊंगा, जैसे तुमने मुझे तड़पाया है। तुम मेरी माँ की ममता को घायल करके उसकी आत्मा को दुख पहुँचाना चाहते थे ना! इतने दिनों तो तुम्हें मेरी मंगेतर की भावनाओं से खेलकर उसे अपने दिल बहलाने का खिलौना बना रखा था, अब मैं तुमसे सारा हिसाब चुकता करूंगा। तुम्हें अपनी कैद में रखकर प्रतिशोध की बरछी से तुम्हारा कलेजा छलनी कर दूंगा। जो काम तुमने अधूरा छोड़ा है, उसे मैं पूरा करूंगा। मैं तुम्हारे स्थान पर मेज़र रशीद बनकर पाकिस्तान जाऊंगा। वहाँ के सब सैनिक भेद चुराकर अपने देश भेजूंगा और तुम्हारी सुंदर पत्नी सलमा को आलिंगन में लेकर अपने दिल की प्यास बुझाऊंगा। कहो कैसा लगेगा यह सब तुम्हें?”

“ओ शट अप…यू रास्कल!” रशीद गुस्से से चीख पड़ा और एक झटके से कुर्सी छोड़कर रणजीत के सामने आ खड़ा हुआ। रणजीत उसकी कंपन और उसके चेहरे का उतार-चढ़ाव देखकर अनायास हँसने लगा और फिर ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगा। उसके ठहाके रशीद के कानों में जैसे-जैसे ज़हर टपका ने लगे। और फिर जब यह ठहाके उसकी सहनशक्ति की सीमा पार कर गये, तो उसने लपककर रणजीत के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया।

रशीद के बदन को सहसा जैसे किसी भूकंप ने झिंझोड़ कर रख दिया। उसने संभलने का एक और असफ़ल प्रयत्न किया, तो अपने आपको उस टेबल लैंप से उलझा हुए पाया, जो मेज़ पर गिरकर औंधा हो गया था।

लैंप के गिरने से कमरे में अंधेरा हो गया। धुंधलके में उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई, तो वहाँ कोई भी नहीं था। झट ही नींद की झोंक से उसका मस्तिष्क साफ हो गया और उसे पता चला कि यह केवल एक भयानक सपना था। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ था।

सपने का प्रभाव बहुत देर तक उसके मस्तिष्क पर बना रहा। अपने बिस्तर पर लेटा न जाने वह कब तक वह करवटें बदलता रहा और अपने अशांत दिल की धड़कनें सुनता रहा।

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