चैप्टर 19 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 19 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 19 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

Chapter 19 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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विधान अनुसार देश से द्रोह महाअपराध था, जिसकी सजा थी मौत। गिरफ्तार हो जाने के बाद रशीद ने बिना संकोच के अपना अपराध स्वीकार कर लिया। वह एक साहसी और कर्तव्यपरायण अफसर था, जिसे अपने सीनियर अफसरों का पूरा विश्वास प्राप्त था…फिर जिस दुखदाई घटना से वह दो चार हुआ था और विधि के गुप्त हाथों में जिस प्रकार भावुकता से उसे देशद्रोह पर विवश कर दिया था, इसके लिए कई अफसरों के दिल में उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी। कौन बेटा अपनी माँ की कोख उजाड़ सकता है?…कौन भाई अपने सगे भाई का खून बहा सकता है? विधाता के रचाये हुए इस घटना पूर्ण खेल में वह एक पात्र बन गया था। लेकिन कुछ भी हो देश से द्रोह था और इसके लिए उसके दोस्त उसकी कोई सहायता न कर सके।

उसका समरी ऑफ एविडेंस हुआ। ब्रिगेडियर उस्मान, कर्नल रज़ा अली और कैंप के दूसरे अफसरों ने उसके विरुद्ध शहादतें दी। चंद ही दिनों में उसकी चार्जशीट तैयार करके उसे जनरल कोर्ट मार्शल का हुक्म सुना दिया गया। उसे लाहौर के किले में कड़ी फौजी हिरासत में रखा गया। कुछ शुभचिंतकों ने उसे किसी बड़े वकील की कानूनी सहायता लेने का परामर्श दिया। लेकिन रशीद ने अपने मुकदमे की स्वयं ही पैरवी करने का निश्चय कर लिया।

फौजी अदालत में उसे दिल हिला देने वाला भावुकता पूर्ण बयान दिया, लेकिन न्याय के सामने भावना की एक न चली। उसका सबसे बड़ा अपराध यह सिद्ध हुआ कि उसने भारत में रहकर जो सैनिक गुप्त सूचनायें रिकॉर्ड और नक्शे प्राप्त किए थे, उन सबको से नष्ट कर दिया था। यही नहीं बल्कि दुश्मन के एक कैदी को स्वयं जेल से निकालकर सीमा पार पहुँचा दिया था। वतन से गद्दारी के अपराध में फौजी अदालत ने उसे मौत की सजा का हुक्म दिया।

मेजर को यूनिफॉर्म में संगीनें ताने सिपाहियों के साथ मार्च कराकर उसे सबके सामने लाया गया। पहले उससे टोपी और बेल्ट ली गई। फिर यूनिट का नाम और फिर रैंक चिन्ह उसके कंधे से नोंच लिए गये। फिर उसके हाथों में हथकड़ी डाल कर उसे ग्राउंड से शैल की ओर ले जाया गया। इस गंभीर कार्यवाही में वहाँ उपस्थित अफसरों और जवानों की शायद धड़कनें तक बंद हो गई थी, क्योंकि वहाँ इतनी गहरी निस्तब्धता छाई थी कि सांस लेने की आवाज सुनाई दे रही थी…वातावरण उदास और बोझिल था।

जब रशीद को शैल की ओर ले जाया जा रहा था, तो सामने एक कोने में सलमा सफ़ेद वस्त्रों में एक संगमरमर की मूर्ति के समान मौन खड़ी हुई थी। उसकी पलकें भीगी हुई थी और वह पथराई हुई दृष्टि से अपने पति को देखे जा रही थी।

चलते-चलते रशीद पत्नी के पास रूका, लेकिन सलमा टस से मस न हुई, जैसे अदालत के फैसले ने उसके शरीर से आत्मा खींच ली हो और वह केवल एक निष्प्राण मिट्टी का पुतला मात्र रह गई हो या फिर वह पति के आदेश अनुसार एक फौजी अफसर की साहसी और आदर्श पत्नी बनने का प्रयत्न कर रही हो।

“सलमा!” रशीद ने बोझिल और धीमी आवाज में उसे पुकारा।

सलमा के स्थिर शरीर में एक कंपन सी उत्पन्न हुई, लेकिन होंठ फिर भी न खुले और वह उसी प्रकार पथराई हुई नज़रों से उसे देखती रही। रशीद भर्रा यी हुई आवाज़ में बोला –

“अपनी पलकों से आँसू पोंछ डालो सलमा और एक वादा करो मुझसे कि जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान के हालात अच्छे हो जायेंगे, इन दोनों मुल्कों के दरमियान उठी नफ़रत की दीवारें ढह जाएंगी, तो तुम वहाँ जाओगी मेरी माँ से मिलने। देखो कुल्लू की वादी में एक छोटा सा गाँव है मनाली। वहीं तुम्हारी सास, देवर और देवरानी रहते हैं। वह सब तुमसे बहुत प्यार करते हैं और मेरी माँ तो तुम्हें सीने से लगा ने के लिए तड़प रही है। वह अपनी नई बहू को उन्हीं कपड़ों और जेवरों से सजाना चाहती है, जो शादी के दिन तुमने पहने थे। जब उसे मालूम होगा कि तुम्हारा सुहाग उजड़ गया है। उसका बेटा इस दुनिया में नहीं रहा, तो उस पर गम का पहाड़ टूट पड़ेगा। शायद तुम्हें पाकर उसका गम कुछ हल्का हो जाए। इसलिए वादा करो कि उसके ज़ख्मों पर मरहम रखने के लिए तुम ज़रूर जाओगी।”

पलकों में छुपा आँसुओं का निर्झर गालों पर उतर आया और सलमा ने ‘हाँ’ में गर्दन हिला दी। लेकिन इसके साथ ही उसके पैर लड़खड़ा गये। रशीद ने हथकड़ी पड़े हाथों से ही झट बढ़कर उसे थाम लिया और फिर बड़ी निराशा से उसके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला, “आज भी मुझे अलविदा न कहोगी। आज मैं आखिरी सफ़र पर जा रहा हूँ।”

“अलविदा!” सलमा के थरथराते होंठों से बड़ी मुश्किल से निकला। और फिर अचानक वह उसके हाथों में पड़ी लोहे की हथकड़ियों से टकरा-टकरा पागलों की तरह अपना सिर फोड़ने लगी।

सलमा के कुछ रिश्तेदारों ने जो वहाँ उपस्थित थे, बढ़कर उसे थाम लिया और सिपाही उसके रशीद की हमेशा के लिए उससे अलग करके अपने साथ ले गये। जहाँ तक रशीद उसे नज़र आता रहा, वह निराश, दु:ख भरी नज़रों से उसे देखती रही और उसके दिल की गहराइयों से दर्द में डूबी हल्की हल्की आवाज़ उभरती रही – ” अलविदा अलविदा अलविदा!”

** समाप्त**

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