चैप्टर 6 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 6 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 6 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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रात के तीन बज रहे थे। सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था। केवल रणजीत अपनी कोठरी में लेटा जाग रहा था। अली अहमद बाथरूम के दरवाजे पर मुसल्ला बिछाए झुका हुआ तस्बीह फेर रहा था। अचानक धीरे से बाथरूम का दरवाजा खुला और सुरंग खोदने वाले साथी ने इशारे से बताया कि सुरंग तैयार हो गई है। अहमद ने इस पाकिस्तानी पहरेदार की ओर देखा कि थोड़ी फासले पर उसकी ओर पीठ के खड़ा बीड़ी पी रहा था और फिर एकाएक खड़े होकर नमाज़ की नीयत बांधते हुए जोर से ‘अल्लाह हू अकबर’ कहा। रणजीत उसी संकेत की प्रतीक्षा में था। आवाज सुनते ही वहाँ से पानी का डिब्बा लेकर अपने कमरे से निकला और इधर-उधर देख कर तेजी से बाथरूम घुस गया।

तभी पहरेदार पलटा और अहमद बे वक्त नमाज पढ़ते देख कर चौंक पड़ा। वह तेजी के साथ उसके पास आया और बोला, “यह इतनी रात में नमाज़ पढ़ने का कौन सा वक्त है।”

अली अहमद ने कोई उत्तर नहीं दिया और निरंतर नमाज़ पढ़ते रहा। तभी बाथरूम में कुछ आहट सुनकर पहरेदार को कुछ संदेह हुआ और वह बाथरूम की ओर झपटते हुए हुए बोला, “कौन है अंदर? खोलो दरवाजा…वरना मैं दरवाजा तोड़ दूंगा।”

अंदर से कोई उत्तर न पाकर उसने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। तब भी उत्तर ना मिलने पर उसने पूरी ताकत से दरवाजे पर जोरदार ठोकर मारी। दो ही ठोकरों से दरवाजे धड़ाक से खुल गया। पहरेदार ने लपक कर बाथरूम में घुसना चाहा, लेकिन अहमद शीघ्रता से उछलकर उसे दबोच लिया। दोनों में हाथापाई होने लगी। अहमद उसकी बंदूक छीन लेना चाहता था। अहमद की पकड़ से छूटने की खींचातानी में पहरेदार का हाथ बंदूक के घोड़े पर पड़ गया..एक धमाका हुआ और वह या अल्लाह कहता हुआ लड़खड़ा कर अहमद जमीन पर गिर गया। उसके सीने से खून का फव्वारा छूट पड़ा। पूरे कैंप में खलबली मच गई। पाकिस्तानी अफसर और सिपाही आवाज की ओर लपकने लगे।

धमाके की आवाज सुनकर रणजीत समझ गया कि अब कुशल नहीं है। उसे जल्दी सुरंग से बाहर निकल जाना चाहिए। मैं तेजी से उस टेढ़ी-मेढ़ी तंग और अंधेरी सुरंग में सांप की तरह रेंगने लगा। उसके मुँह, नाक और कानों में मिट्टी भर गई। कई जगह बदन छिल गया, लेकिन उसे साहस नहीं छोड़ा और वह सुरंग के दूसरे सिरे पर पहुँचने में सफल हो गया। सुरंग के अंदर से ही उसने तारों भरे आसमान की ओर देखा और भगवान का शुक्र बनाया। वो खुशी से उन्मुक्त सोच रहा था कि कुछ ही क्षण में वह पाकिस्तानी कैद से आजाद हो जायेगा और अपने देश में पहुँचकर रशीद को पकड़वा देगा…कितना बड़ा छल किया था इन लोगों ने उससे… उसके बाद ही कैदियों के तीन जत्थे जा चुके थे, लेकिन वह कोठरी में पड़ा सड़ रहा था और व्यर्थ प्रतीक्षा कर रहा था कि उसे भिजवा दिया जायेगा…! लेकिन अब…अब स्वतंत्रता उसके सामने है…बस दो कदम और…

और फिर, उसने अपना सिर सुरंग से बाहर निकाला ही था कि उसे अपने पास ही सुरंग के मुँह पर चार-पांच भारी फौजी बूट दिखाई दिए…तभी एकाएक कई हाथ एक साथ उसकी गर्दन पर पड़े और गंदी गालियों की बौछार के साथ उसे घसीट का सुरंग से बाहर निकाल लिया गया।

“तुमने मेरे हमशक्ल को मेरे स्थान पर हिंदुस्तान भेज कर मेरे वतन को धोखा दिया है… मेरी माँ से… मेरे दोस्तों से और मेरी मोहब्बत से छल किया है…वह सब को धोखा देगा…इतना बड़ा फरेब…भाई के बहाने घर बुलाकर उसने मुझे धोखा दिया… मेरा हर भेद ले लिया…मैं…मैं उसे मार डालूंगा…मार डालूंगा उसे।”

रणजीत सेल के बाहर खड़े पाकिस्तानी अफसरों को चिंगारियाँ उगलती आँखों में देखता हुआ पागलों की भांति चिल्लाया जा रहा था। अफसर मुस्कुरा-मुस्कुरा कर उसके पागलपन का आनंद उठा रहे थे।

“घबराओ नहीं…” एक पाकिस्तानी अफसर व्यंग्य से बोला, “अभी डॉक्टर आता ही होगा…तुम्हारा मिजाज़ ठीक कर दिया जायेगा।”

उसी समय एक सिपाही डॉक्टर को लेकर वहाँ पहुँच गया। वही व्यंग्य उड़ाने वाला अफसर डॉक्टर से बोला, “डॉक्टर! आज उसका पागलपन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। कमबख्त ने चीख-चीख कर नाक में दम कर रखा है। कोई ऐसा इंजेक्शन दीजिए कि दो-चार दिन के लिए तो फुर्सत मिल जाये।”

“यस.. यस…!” कहते हुए डॉक्टर ने बैग से सीरिंज निकाली और उसमें दवाई भरकर पास खड़े हुए सिपाहियों से कहा, “ज़रा मजबूती से पकड़ लो इसे!”

“पकड़ने की क्या ज़रूरत है?” रणजीत ने आगे बढ़ते हुए सिपाहियों को हाथ के संकेत से रोकते हुए कहा, “तुम मुझे बेहोश ही करना चाहते हो ना…लो कर दो बेहोश। लेकिन याद रखो, यूं तो मेरे बदन को बेकाबू कर दोगे. लेकिन मेरी आत्मा को नहीं सुला सकोगे। कभी ना सुला सकोगे।”

यह कहते हुए रणजीत ने अपनी बांह डॉक्टर के सामने कर दी। डॉक्टर ने तेजी से दवाई का भरा सीरिंज उसकी बाहों में खुबो दिया। फिर सीरिंज निकालकर उसकी बांह सहलाता हुआ बोला, “शाबाश…लेट जाओ!”

रणजीत वहीं बैठ गया। उसके सिर में चक्कर सा आने लगा और फिर उसके लेटते ही उस पर गशी छाने लगी।

उधर रात का अंधेरा बढ़ता जा रहा था और रणजीत का मस्तिष्क अंधेरे में गोते खा रहा था उसे यों अनुभव हो रहा था, जैसे वह किसी भारी पत्थर से बंधा हुआ समुद्र की गहराई में उतरता जा रहा हो…एक अजीब सी दुनिया में।

आधी रात के समय मेजर रशीद तंबू का पर्दा हटाकर अंदर प्रवेश हुआ, तो उसके मस्तिष्क को अचानक एक जोरदार झटका लगा…एक सुंदर लड़की हाथों में लाल गुलाब के ताजा फूलों का गुलदस्ता लिए उसकी प्रतीक्षा कर रही थी…पूनम को पहचानने उससे कोई भूल नहीं हुई।

“पूनम.. तुम…इतनी रात गये?” उसने रणजीत के स्वर की नकल करते हुए कहा।

“क्या करती…सुबह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती…तुम मेरी मनौतियों से इतने दिनों बाद लौटे हो।” पूनम ने कहा और भरपूर प्यार से उसकी ओर देखती हुई खड़ी हो गई।

“मुझे तो छुट्टी नहीं मिली…वरना सीधा तुम्हारे पास ही आता।” रशीद ने कहा और आगे बढ़कर उसके कंधों पर हाथ रखना चाहा, तो पूनम झट उसके पैरों में झुकती हुई बोली, “ठहरिये…पहले मैं अपने देवता के चरणों में यह फूल चढ़ा दूं।”

रशीद ने हाथ पकड़ते हुए उसे उठा लिया और अपने निकट खींचते हुए बोला, “नहीं पूनम…प्यार के इन फूलों का अनादर ना करो…इन्हें तो मैं सीने से लगा कर रखूंगा।” और वह फूलों को चूमने लगा।

“कहिए…कभी भूल से भी मुझे याद किया था आपने?” पूनम ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“यह क्या कह रही हो…पाकिस्तानी कैट के अंधेरों में बस एक तुम्हारी याद ही तो जुगनू थी.. तुम्हारी कल्पना ही सहारा था और तुम्हारा प्यार ही पूजा…मैं सोते जागते हर समय मैं तुम्हें अपने पास पाता था…दिल में.. आत्मा में…।”

“जानते हो ऐसा क्यों होता था?”

“क्यों?”

“मैं भी पाकिस्तान गई थी।”

“पाकिस्तान…! क्या कह रही हो?” वह आश्चर्य से उछल पड़ा।

“आप इस तरह चौंक क्यों पड़े? आदमी के शरीर पर पहरा बिठाया जा सकता है… उसे कहीं आने जाने से रोका जा सकता है…लेकिन आत्मा पर कोई पहरा नहीं बैठा सकता..।”

वह बोलती रही और रशीद प्यार भरी दृष्टि से से निहारता रहा।

“क्यों…विश्वास नहीं आया क्या?” पूनम उसकी आँखों में देखते हुए पूछ बैठी।

“नहीं पूनम…मैंने कई बार सच में तुम्हें अपने बहुत निकट अनुभव किया था… बहुत ही निकट। पर शायद यही कारण था कि दुश्मन की कठोर कैद को मैं खुशी से झेल गया। तुम्हीं ने मुझे इस योग्य बना दिया था कि हर पल सरल हो गया। कोई दुख दर्द ना रहा।”

“लाओ…तुम्हारे भी दुख मैं अपने सीने में भर लूं…भूल जाओ अपने जीवन की सारी कड़वाहटें…देखो…मैंने तुम्हारी उन अंधेरी राहों में दीपक जला दिए हैं…पुरानी सब बातें भूल जाओ।”

कहते-कहते पूनम ने अपना सिर रशीद के सीने पर रख दिया और हल्की-हल्की सिसकियाँ लेकर उसकी बाहों में मचलने लगी। रशीद ने अवसर से लाभ उठाया और पूनम की उभरी हुई भावनाओं का वैसे ही उत्तर देने लगा। उसने धीरे-धीरे पूनम की पीठ को सहलाना आरंभ कर दिया। पूनम की व्याकुलता बढ़ने लगी और वह उसकी छाती से अपना चेहरा रगड़ने लगी। रशीद ध्यानपूर्वक उसके दिल की धड़कनों को सुनने लगा…उसके गदराये हुए वक्ष का स्पर्श और बालों की भीनी-भीनी सुगंध उसे दीवाना बना दे रही थी…उस पर एक पागलपन सा सवार होने लगा और वह अनायास पूनम से लिपट गया…”

“नहीं, पूनम नहीं…यह धोखेबाज कपटी है। यह तुम्हारा प्रेमी नहीं…पूनम ये तुम्हारा रणजीत नहीं।”

एक चीख के साथ रणजीत की आँखें खुल गई। वह फर्श पर बिछी चटाई पर लेटा था। उसने यह भयानक सपना देखा था और वह आँखें फाड़े शून्य में देख रहा था। उसकी चीख सुनकर पाकिस्तानी संतरी उसकी कोठरी तक आया और सीखचों के बाहर से बोला, “क्या शोर मचा रखा है?”

“कुछ नहीं…मैं एक डरावना सपना देख रहा था।” रणजीत ने हांफते हुए कहा।

“सिपाहियों के सपनों से डरते हो? उंह भारत का वीर सिपाही है।” संतरी ने व्यंग्य से कहा और मुँह में ही कुछ बढ़ाता हुआ वहाँ से चला गया।

रणजीत ने अंधेरे में उसे गायब होते देखा। उस की सांस अभी तक फूली हुई थी। दिल धड़क रहा था और बदन पसीने से तर था, जैसे मीलों यात्रा तय करके आ रहा हो।

श्रीनगर के ऑफिसर्स मेस रणजीत के कैद से सकुशल लौट आने की खुशी में आज एक विशेष पार्टी का प्रबंध किया गया था। स्टेशन कमांडर और अन्य स्थानीय यूनिटों के कई अफसर भी इस पार्टी में आमंत्रित थे। कुछ सुंदर रमणियाँ भी जगमगाती साड़ियाँ पहने, कश्मीरी शॉल ओढ़े पार्टी की शोभा बढ़ा रही थीं। कुछ यू.एन.ओ. के प्रेक्षक अफसर भी आमंत्रित थे। रशीद कैप्टन रणजीत का रूप धारण की बड़ी योग्यता से अफसरों से घुल-मिलकर बातें कर रहा था।

कर्नल बेल्लीअप्पा ने चीफ गेस्ट का स्वागत करते हुए कैप्टन रणजीत की प्रशंसा में कुछ शब्द कहे और उसके सकुशल, स्वस्थ लौट आने की खुशी में टोस्ट पर चीयर्स हुआ। इस अवसर पर अफसरों के दिल से संदेह को दूर रखने के लिए रशीद ने भी हाथ में विहस्की का एक जाम उठा लिया और फिर विवशत: इस जहर को होंठो तक ले ही जाना पड़ा।

दौर चलने लगे…चेहरे दमकने लगे…हँसी के फव्वारे छूटने लगे। वेटर घूम-घूम कर विहस्की के जाम और स्नेक्स मेहमानों को देने लगे। रशीद को रणजीत के पुराने दोस्तों ने घेर लिया और नशे की तरंग में उन्होंने उस पर प्रश्नों की बौछार कर दी। पाकिस्तानी कैदी के नाते वे उसके अनुभव और विचार जानने के लिए उत्सुक थे। रशीद ने बहुत संभलकर इन प्रश्नों के उत्तर दिये। एक अफसर के प्रश्न का उत्तर देते हुए मैं बोला, “भई तो मानना ही पड़ेगा कि जंगी कैदियों के साथ उनका व्यवहार बुरा नहीं था, जेनेवा के नियमों का पूरा पालन हुआ है।”

“लेकिन हमने तो सुना है, कई कैंपों में काफी जुल्म हुए…अफसरों और जवानों को मारा पीटा गया…भूखों रखा गया…अपमानजनक व्यवहार हुये।” मेजर सिंधु ने रशीद को चमकती आँखों से घूरकर पूछा।

“थोड़ी बहुत मजहबी तंग नज़री तो हर इंसान में होती है…लड़ाई में तो ऐसी भावनाओं को खासतौर से हवा दी जाती है। इसी कारण से कुछ घटनायें हो जाती हैं।”

“और हमारे जवानों की बहादुरी के बारे में उनकी क्या विचार है?” कैप्टन राणा ने जरा जोश में आकर पूछा।

इससे पहले की रशीद इस प्रश्न का उत्तर दे, लेफ्टिनेंट रामआसरे गरज़दार आवाज़ में बोल उठा, “यह तो हमारा दुर्भाग्य था, जो इस समय सीज़फ़ायर हो गया, वरना अब तक हमारे फौजी लाहौर में तिरंगा गाड़ चुकी होती। पैटर्न टैंक, अमेरिकन मिसाइल और सेबर जेट का जादू तोड़ कर रख दिया था भारतीय जवानों ने।”

“सियालकोट, लाहौर, सरगोधा और करांची की बमबारी याद रखेंगे पाकिस्तानी नस्लें।” कहीं और से नशे में डूबी आवाज आई।

न जाने कितनी आवाज और प्रश्नों ने रशीद के मस्तिष्क पर एक साथ आक्रमण किये। अपने देश का यह खुला अपमान उसके मन को सहन न था। लेकिन अपने उद्देश्य को दृष्टि में रखते हुए उसने अपने भावों को रोका और संभलते हुए धैर्य से बोला, “वे तो यह कहते हैं कि उन्होंने हिंदुस्तानी फौज को हराकर घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। उनके पास भारत में ज्यादा हथियार हैं.. उनकी फौज हमारी फौजों से बढ़कर ताकतवर है।”

“अरे जाओ…ताकतवर है…” मेजर सिंधु ने अपने गिलास में और विहस्की उड़ेलते  हुए कहा, “अगर सरकार सीजफ़ायर स्वीकार करके हमारे हाथ न रोक देती, तो हम उनका सारा घमंड तोड़ कर रख देते।”

तभी कर्नल बेलीअप्पा ने बीच में आते हुए कहा, “नाउ लीवर इट ब्वॉयज.. ये लड़ाई तो चलती रहेगी। जब युद्ध नहीं होता, फिर की तैयारी होती है..इसी तैयारी को राजनीति में शांति कहते हैं और इसी शांति के नाम पर चीयर्स…बॉटम अप प्लीज….!”

पार्टी समाप्त हुई, तब आधी रात हो चुकी थी। हाल अभी तक जगमगा रहा था। लड़ाई के ब्लैक आउट के बाद यह उजाला बड़ा भला लग रहा था। अधिकांश लोग घरों को लौट गए थे। जो बच गए थे, वे इस आशा से बार-बार घड़ी की दुनिया देख रहे थे कि शायद समय की गति रुक जाए और वह इसी उन्माद में सारी दुनिया से बेखबर अनंत काल तक यहीं बैठे रहे।

रशीद दोस्तों की नज़रों से बचता हुआ मैस से बाहर आ गया। आसमान में घटाओं ने समा बांध रखा था। वातावरण काफ़ी ठंडा हो गया था। डललेक का किनारा शांत और सुनसान था। डल का पानी एक विशाल काली चादर प्रतीत हो रहा था। वह सुनसान सड़क पर धीरे-धीरे पैदल चलने लगा। उसका यूनिट अधिक दूर नहीं था।

अभी कुछ दूर ही चला था कि पीछे से अचानक एक जीप गाड़ी आकर उसके पास रुक गई। रशीद चौंककर खड़ा हो गया और तिरछी दृष्टि से जीप के ड्राइवर को देखने लगा। ड्राइवर ने जेब से सिगरेट निकाला और लाइटर से जलाया। रशीद यह देखकर चौंक पड़ा कि सिगरेट जलाने से पहले ड्राइवर ने दो बार लाइट जलाकर बुझाया था। यह हिंदुस्तान में पाकिस्तानी जासूसी का विशेष संकेत था। फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए वह जीप गाड़ी के पास जाते हुए बोला, “कौन सा सिगरेट पीते हो?”

“फाइव…फाइव…फाइव” ड्राइवर ने धीरे से कहा।

“जीप का नंबर?”

“एक्स फाइव…फाइव…फाइव…एक्स 555।” ड्राइवर ने कहा और साथ ही जेब से एक कार्ड निकाल कर रशीद के हाथ में रख दिया। कार्ड पर भी एक्स 555 लिखा हुआ था।

रशीद ने अभी संदेहमयी दृष्टि से ड्राइवर को देखा, तो वह झट बोल उठा, “किसी को शक ना होजाये, मेजर जल्दी लिफ्ट ले लीजये।”

रशीद झट उचककर ड्राइवर के साथ वाली सीट पर आ बैठा। ड्राइवर ने गाड़ी चला दी और धीमे स्वर ने बोला “आपके आने से पहले हमें हिदायत मिल गई थी कि आप पहुँचने वाले हैं और आपकी हर मुमकिन मदद की जाये।”

“यहाँ पर एक्स ट्रिपल फाइव का इंचार्ज कौन है?” रशीद ने कुछ सोचते हुए पूछा।

“आपको हर रात होटल ओबराय पैलेस में मिल सकता है।”

“नाम?”

“जान मिल्ज़…एंग्लो इंडियन है…और उसके साथ एक लड़की रहती है रुखसाना, जिससे वह शादी करने वाला है।”

“तुम्हारा नाम और ठिकाना?”

“शाहबाज…मेजर सिंधु का ड्राइवर।”

थोड़ी ही देर में गाड़ी वहाँ पहुँच गई, जहाँ रशीद रहता था। उसके नीचे उतरने से पहले ड्राइवर ने दबी आवाज में कहा, “इस वक्त तो आपको बस यही इत्तला देनी थी कि किसी भी मदद की ज़रूरत हो, तो हम हाजिर हैं खिदमत के लिये।”

रशीद ने हाँ में गर्दन हिला दी और गाड़ी से नीचे उतर गया। शाहबाद से तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी और रशीद कुछ देर वहीँ जीप को अंधेरे में गुम होता देखता रहा।

जॉन मिल्ज़ और रुखसाना का नाम मन में दोहराता रशीद अपने कमरे में दाखिल हुआ। वह अर्दली को पुकारता हुआ आगे बढ़ा, परन्तु काएक चौंककर वह वहीं खड़ा हो गया। सामने मेज पर ताजा गुलाब के फूलों का बड़ा-सा गुलदस्ता रखा था। रशीद धीरे-धीरे मेज के पास आया और ध्यानपूर्वक गुलदस्ते को देखने लगा। फूलों के साथ एक कागज का पुर्जा पड़ा था।

“मेरे रणजीत!

तुम सकुशल लौट आये, यूं लगा, जैसे मेरे जीवन में बहार लौट आईं।

मैं आज ही कमला आंटी के साथ कश्मीर आई थी और आते ही तुमसे मिलने आ गई, लेकिन पता चला तुम मैस में हो और बहुत देर बाद लौटोगे। कल तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी। चश्मा शाही के नंबर 4 टूरिस्ट लॉज में सुबह दस से ग्यारह बजे तक।”

तुम्हारी पूनम

रशीद ने कांपते होठों से पूनम का नाम दोहराया। एक बार फिर उस संक्षिप्त संदेश को पढ़ा। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। पूनम के साथ मुलाकात के विचार से नहीं बल्कि इस कड़ी परीक्षा से…। सैनिक जीवन उससे बड़ी-बड़ी विपदाओं का सामना किया था, किंतु रंरणजीत की पूनम से मिलने की कल्पना से ही उसके हाथ पांव कांपने लगे थे। डर इस बात का था कि कहीं इस प्रेम के नाटक में वह पकड़ा ना जाये। अगर पूनम को आभास भी हो गया कि वह उसके रणजीत का डुप्लीकेट है, तो उसकी सारी योजना पर पानी फिर जायेगा।

तभी’ किसी आहट ने चौंका दिया और वह उछलकर अपनी जगह पर घूम गया। सामने उसका नौकर रसूल खड़ा था और उसके हाथ में फूलों का गुलदस्ता देखकर वह लड़खड़ाते हुए बोला, “साहब वह आई थीं आपसे मिलने।”

“कौन?”

“एक लड़की।”

“कुछ कह भी गई है?”

“काफ़ी देर तक बैठी इंतज़ार करती रही…मैंने चाय के लिए पूछा, लेकिन इंकार कर दिया। बस यह पत्र को छोड़ कर चली गई।”

“ठीक है…जाओ, जल्दी से एक कप कॉफ़ी बना लाओ।”

“अभी लाया हुजूर!” यह कहते हुए रसूल बाहर निकल गया।

रशीद ने उन फूलों को सुनना और सामने रखी फूलदान में लगा दिया। उसने वर्दी का कोर्ट उतारकर कुर्सी पर बैठा। सहसा कोट की जेब में से रणजीत का लाइटर निकल कर फर्श पर गिर पड़ा। इसी लाइटर में पूनम की आवाज भरी हुई थी। रशीद ने वह लाइटर उठा लिया और उसे जलाकर पूनम की रिकॉर्डिंग आवाज सुनने लगा। वह कह रही थी – “तुम जा रहे हो रणजीत….मुझे प्रतीक्षा का लंबा समय देकर…लेकिन याद रखना, इस समय का हर क्षण मुझे प्रिय होगा क्योंकि इन क्षणों में मेरा मन अपने प्रीतम की प्यार की माला जपेगा। मुझे विश्वास है कि तुम सकुशल लौट आओगे और जब लौटोगे, तो मुझे अपनी प्रतीक्षा में आँखें बिछाए पाओगे।

उस रात में जाने कितनी बार रसहीद ने बिस्तर पर लेटे-लेटे पूनम की आवाज को सुना। लेकिन जब भी वह इस अजनबी लड़की की कल्पना करता, सलमा का चेहरा उभरकर उसके सामने आ जाता। वह सलमा, जो सीमा पार उसकी याद में खोई उसकी कुशलता की दुआयें मांग रही होगी।

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