चैप्टर 12 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 12 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 12 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

Chapter 12 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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रशीद सुबह सवेरे तैयार होकर जब नाश्ते के लिए मेज पर बैठा, तो अपने आपको अकेला पाकर अर्दली से पूछ बैठा, “गुरनाम नाश्ता नहीं करेगा क्या?”

“नहीं वे तो चले गये।” आअर्दली ने प्लेटें साफ करके उसके सामने रखते हुए कहा।

“कहाँ?” रशीद चौंक पड़ा।

“किसी होटल में। कह रहे थे अब मैं वही रहूंगा।”

“लेकिन तुमने उन्हें जाने क्यों दिया?”

“मैंने तो बहुत रोका जनाब, लेकिन वह नहीं रुके। जब आप को जगाने के लिए जाने लगा, तो उन्होंने रोक दिया और बोले साहब को सोने दो, रात देर से लौटे हैं।”

“ओह! लेकिन तुमने उनकी सुनी क्यों? जगा देना था मुझे।”

“क्या करता जनाब! नहीं सुनता, तो गुस्सा करते और फिर उन्होंने कहा रात में आपसे इज़ाजत ले चुके हैं।”

“नॉनसेंस!” वह गुस्से में झुंझलाया और प्लेट में से दो डबल रोटी का पीस लेकर उस पर मक्खन लगाने लगा। अर्दली चाय लेने के लिए किचन में चला गया।

इसी झुंझलाहट में रशीद का हाथ अचानक गले में लटकी उस जंजीर पर पड़ गया, जिसमें ओम का लॉकेट लटक रहा था। उसे झट पूनम की याद आ गई और वह उन भावों का अनुमान लगाने लगा, जो उसे बिछड़ने के बाद उसके मन में उत्पन्न हुए होंगे।

पूनम का हवाई जहाज उड़ने के लिए तैयार हो रहा था। यात्री अपना-अपना सामान जमा करने के बाद श्रीनगर हवाई अड्डे के लॉज में बैठे उड़ान की घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे थे। पूनम भी अपनी आंटी के साथ वही एक सोफे पर बैठी थी। आंटी समय बिताने के लिए कोई पत्रिका पढ़ रही थी और पूनम आते-जाते यात्रियों को देखकर बोर हो रही थी।

इस उकताहट को कम करने के लिए वह उठकर सामने के बुक स्टॉल पर पहुँच गई और वहाँ रखी पत्रिकाओं और पुस्तकों को उलट-पलट कर देखने लगी। जैसे  ही उसने रैक में रखी किसी रोचक पुस्तक को उठाना चाहा, पीछे से आई किसी आवाज में उसे चौंका दिया, “काफ़ी बोर है यह किताब।”

पूनम ने पलटकर देखा, तो उसके पीछे रशीद खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह गुमसुम खड़ी रशीद को देखती रह गई। रशीद ने फिर अपना वाक्य दोहराया, “मैं पढ़ चुका हूँ। काफ़ी बोर है यह किताब।”

“हो सकता है जो चीज आपको बोर लगती हो, मुझे भली लगे।”

“ऐसा नहीं हो सकता!”

“क्यों नहीं हो सकता?”

“मैं तुम्हारी रुचि को भली-भांति जानता हूँ।”

“झूठ।”

“तो सच क्या है, तुम ही बता दो।”

“सच बहुत कड़वा है मिस्टर रणजीत।” पूनम ने रशीद की आँखों में ऑंखें डालते हुए त्योरी चढ़ाकर कहा।

“ओह! मैं तुम्हारा इशारा समझ गया। तुम्हें मेरी रात वाली बात बुरी लगी। वास्तव में मैं उसके लिए क्षमा मांगने आया था।”

“अरे! आप ही घायल कर दिया, तो अब मरहम लगाने से क्या लाभ?”

“भूल का प्रायश्चित तो करना ही पड़ता है। रात में कुछ अधिक ही भावुक हो गया था। लेकिन पूनम तुम इसका अनुमान नहीं लगा सकती। मेरे उस दोस्त ने पाकिस्तान में मेरी कितनी सहायता की थी। उसकी सौगंध का ध्यान आया, तो मैं अपने बस में ना रहा और तुम पर बरस पड़ा। लेकिन बाद में मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ कि दोस्ती को अपने प्यार से कम समझा। अब मैं तुम्हें वचन देता हूँ पूनम कि अपनी हर भावना को तुम्हारे प्यार की भेंट कर दूंगा। मेरा धर्म मेरा ईमान सब कुछ तुम्हारा प्यार होगा।” कहते-कहते रशीद का गला भर आया और उसने अपनी कांपती हुई उंगलियों से टटोलकर उसकी दी हुई निशानी ओम का लॉकेट उसे दिखाने का प्रयत्न किया।

पूनम रशीद की भीगी आँखें देखकर व्याकुल हो उठी। रशीद के दिल की आग ने उसके गुस्से को पल भर में पिघला दिया। वह सोच भी नहीं सकती थी कि रात के अंधेरे में क्रोधित और कठोर दिखाई देने वाला फौजी अफसर दिन के उजाले में एक मोम का पुतला कैसे बन गया।

तभी उनके बीच छाई निस्तब्धता को हवाई उड़ान की घोषणा ने तोड़ा। दिल्ली जाने वाली उड़ान तैयार थी। यात्री लॉज से उठ-उठ कर हवाई जहाज की ओर जाने लगे। समय कम था और दिलों में तूफान उमड़े हुए थे। पूनम ने भाव को नियंत्रित करते पूछा, “दूसरा लॉकेट कहाँ है?”

“मेरे पास है। कल उसे दोस्त को पार्सल करवा दूंगा।” रसीद ने ‘अल्लाह’ वाला लॉकेट जेब से निकाल कर उसे दिखाया।

पूनम ने झट हाथ बढ़ाकर रशीद से उसके दोस्त की निशानी झपट ली और बोली, “लाओ इसे मैं अपने गले का हार बना लूं।”

“तुम?”

“हाँ! आपके दोस्त की दी हुई सौगंध भी ना टूटेगी और मेरा प्यार भी आपके दिल के पास रहेगा।”

“लेकिन?”

“लेकिन वेकिन क्या! आपके लिए दो होंगे, मेरे लिए तो दोनों एक है। ईश्वर, अल्लाह तेरे नाम सबको सम्मति दे भगवान।” यह कहते हुए पूनम ने लॉज की ओर देखा, जहाँ से कमला आंटी बैग हाथ में उठाये उनकी ओर आ रही थी। रशीद  ने आगे बढ़कर उनके पांव छुये और फिर उनके साथ-साथ कदम उठाता हवाई जहाज की ओर चल दिया। पूनम ने उसे जल्दी छुट्टी लेने का अनुरोध किया और रशीद ने वचन निभाने की प्रतिज्ञा की। फौजी अफसर होने के कारण किसी ने उसे दरवाजे पर नहीं रोका और वह उनके साथ-साथ हवाई जहाज की सीढ़ी तक आ गया।

जब पूनम आंटी के साथ सीढ़ियाँ चढ़कर हाथ हिलाती हवाई जहाज के अंदर चली गई, तो रशीद को पहली बार अनुभव हुआ कि पूनम से प्रेम का अभिनय करते-करते उसे सचमुच पूनम से गहरा लगाव हो गया है। वह एक अनोखा अपनापन अनुभव करने लगा। कहीं यह अपनापन उसकी निर्बलता ना बन जाये और उसके माथे पर पाप का कलंक न लगा दे, यह सोचकर वह खड़े-खड़े यों कांप गया, जैसे  सचमुच उससे यह पाप हो गया हो।

सीढ़ी बंद हो गई। हवाई जहाज के पंखे तेजी से घूमने लगे और उनके शोर से वातावरण जैसे थर्रा गया। थोड़ी ही देर में हवाई जहाज रनवे से ऊँचा उठकर आसमान में उड़ता दिखाई दिया। रशीद मौन खड़ा बड़ी देर तक हवाई जहाज को देखता रहा, जो पूनम को लिए दिल्ली की ओर उड़ा जा रहा था।

हवाई जहाज जब दृष्टि से ओझल हो गया, तो वह वापस जाने को पलटा। लेकिन फिर अचानक उसे ठिठककर वहीं रुक जाना पड़ा। वह आश्चर्य से गुरनाम को देखने लगा, जो एक लंबा ओवर कोट पहने उसके पीछे खड़ा था।

“गुरनाम तुम यहाँ!” उसके मुँह से निकला।

“हाँ! अचानक हेड क्वार्टर से फोन मिला कि मेरे नाम एक पार्सल भेजा गया है।” कहते हुए गुरनाम ने एक छोटा सा पार्सल उसे दिखाया और फिर जेब में रखते हुए बोला, “इसे लेने एयरपोर्ट आया था।”

“क्या है इस पर पार्सल में?” रशीद से पूछे बिना ना रहा गया।

“होगी कोई रिपोर्ट, दुश्मन के जासूसों के बारे में कुछ ताजा क्लूज या कुछ तस्वीरें या फिर फिल्म इत्यादि।” गुरनाम लापरवाही से कह गया।

“लेकिन तुम अचानक ऐसे क्यों चले गये?”

“भई अचानक क्यों? स्नान किया, नाश्ता दिया और तुम्हारे अर्दली को समझा कर आया था कि तुम सुबह उठो, तो मेरे लिए परेशान ना हो जाओ।”

“यह तुमने अच्छा नहीं किया।”

“नहीं यार! अच्छा ही हुआ, जो मैं अपने होटल में चला गया, वरना अगर हेडक्वार्टर का यह संदेश मुझ तक ना पहुँचता, तो मेरे विरुद्ध जरूर कोई एक्शन ले लिया जाता।”

“कहाँ ठहरें रहे हो?”

“अभी तो ओबेरॉय पैलेस में!”

“अभी क्यों?”

“दुश्मन को झांसा देने के लिए अड्डा बदलते रहना पड़ेगा। कभी इस होटल में, कभी उस होटल में। कभी किसी सराय में, तो कभी हाउसबोट में। लेकिन घबराओ नहीं, हर शाम व्हिस्की तुम्हारे ही यहाँ पियूंगा।”

“जरूर तो फिर आज आ रहे हो ना?”

“आज नहीं कल से! आज मेरा अपॉइंटमेंट है एक लड़की से।” गुरनाम ने जबान होठों पर फेरते हुए कहा और फिर कुछ रुककर बोला, “अमां यार रात में हमसे कोई बदतमीजी तो नहीं हुई थी, व्हिस्की पीने के बाद?”

“नहीं तो!”

“न जाने क्यों रात भर सिर बोझिल रहा। कुछ ऐसा याद आता रहा, जैसे मैंने अकारण किसी को गालियाँ दी हो। मेरे साथ ये बड़ी कमजोरी है कि शराब पीने के बाद लड़कियों को छेड़ बैठता हूँ।”

रशीद ने गुरनाम की बातचीत को और ना बढ़ने दिया और उसे अपने साथ लेकर वहाँ से चल पड़ा। फिर उसने उसे चौक बाजार में छोड़ दिया, जहाँ से गुरनाम को कुछ चीजें खरीदनी थी। रशीद को स्वयं भी दफ्तर जाने की जल्दी थी।

लेकिन दफ्तर जाने से पहले रशीद जॉन के नये ठिकाने पर पहुँचा। इस ठिकाने का पता जॉन ने उसे पिछली रात बताया था। वहाँ उसने जॉन को गुरनाम के होटल के ठिकाने की सूचना दी और उस पार्सल के बारे में बताया, जो वह एयरपोर्ट से साथ ले गया था। उसने जॉन पर अपनी इस शंका को भी व्यक्त किया कि हो सकता है भारत सरकार को उसी पर शक हो और गुरनाम को रणजीत का घर घनिष्ठ मित्र होने के नाते उसके पीछे लगा दिया गया हो।

“नहीं! यह मुमकिन नहीं। आप पर शक करने की कोई वजह नहीं।” जॉन ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

“सोच रहा हूँ, जल्दी छुट्टी ले लूं और कुछ दिनों के लिए माँ के पास चला जाऊं।”

“इरादा बुरा नहीं, लेकिन वहाँ भी काफ़ी होशियारी बरतनी पड़ेगी।”

“उसका सब प्रबंध कर लिया है। लच्छू राम सिपाही, जो अपने रिंग के लिए काम करता है, उसी गाँव का रहने वाला है। वह जाकर मुझे सब खबर ला देगा। घर का पूरा पता और माँ की आदतों की पूरी जानकारी लेकर आयेगा।”

“अब बताओ उस पार्सल का क्या होगा? कैसे पता चले कि उसमें क्या है?”

“मैंने तो कोशिश की थी कि वह आज शाम मेरे यहाँ गुजारे। लेकिन वह कल पर टाल गया। मैंने जोर देना मुनासिब न समझा कि कहीं उसे शक ना हो जाये।”

“वैसे आपकी दोस्ती कमजोरी क्या है?” जॉन ने सिगरेट का एक लंबा कश लेकर धुआं छोड़ते हुए पूछा।

“व्हिस्की और औरत!”

“तब मुझ पर छोड़ दो!” जॉन ने मुस्कुराते हुए कहा और किसी सोच में पड़ गया।

रशीद उसको सोचो में डूबा देखकर उठ खड़ा हुआ। बाहर निकलकर वह अपनी जीप में आ बैठा और तेज गति से चलाता हुआ अपने ऑफिस की ओर रवाना हो गया।

उसी शाम ओबरॉय पैलेस के बार में गुरनाम बैठा व्हिस्की पी रहा था कि अचानक एक सुरीली आवाज ने उसे छेड़ दिया। यह रुखसाना थी। यौवन की बिजलियाँ गिराती उसके सामने वाली सीट पर बैठने की अनुमति मांग रही थी। गुरनाम ने नशीली आँखों से उस सुंदरी को देखा, जो हाथों में जाम लिए उसी से संबोधित थी। इस सर्द रात में भी रुखसाना का लगभग आधा शरीर खुला था, जिससे हुस्न की छलकती शराब किसी को भी बहकाने के लिए पर्याप्त थी। गुरनाम थोड़ा चौकन्ना हो गया, तो रुखसाना ने फिर प्रार्थना दोहराई, “मैंने कहा हुजूर, इज़याजत हो, तो आपके पास बैठ जाऊं?”

“ज़रूर ज़रूर आप…”

“शायद हम पहले मिल चुके हैं, यही कहना चाहते हैं ना आप!”

“हाँ तो….”

“कल रात ऑफिसर मैस में मुलाकात हुई थी।”

“ओह…हाँ याद आया। जॉन साहब कहाँ हैं?”

“आज नहीं आये….दो दिन के लिए बाहर गये हैं।”

“आप अकेली हैं?”

“जी नहीं! जब आप जैसे दोस्तों का साथ मिले, तो मैं अपने आप को अकेले कैसे समझ सकती हूँ?” रुखसाना ने आखरी घूंट पीते हुए अपना गिलास खाली करके कहा।

“इस अपनत्व के लिए शुक्रिया!” और फिर उसका गिलास अपने हाथ में लेकर लेते हुए बोला, “लार्ज या स्मॉल?”

“व्हिस्की नहीं, जिन विथ कोक।”

‘व्हिस्की के बाद!”

“मुझे ड्रिंक्स मिक्स करने का शौक है।”

गुरनाम ने उसकी बात सुनकर उसके जवान बदन को एक बार नीचे से ऊपर तक निहारा और उसका गिलास लिए बार तक चला आया। जब जिन और कोक लेकर लौटा, तो रुखसाना मुँह में सिगरेट दबाये उसे सुलगाने में लगी थी। गुरनाम को देखती हुए वह बोली, “आपको बुरा तो नहीं लगता?”

“क्या?”

“मेरा यू आपके सामने बेझिझक सिगरेट पीना!”

“बिल्कुल नहीं! आप शौक से कर सकती हैं।”

रुखसाना ने सिगरेट सुलगाकर एक लंबा कश लिया और नथुनों से धुआं निकालते हुए बोली, “कल रात आप ज्यादा ही मूड में आ गए थे।”

“मूड में नहीं, बदतमीजी पर उतर आया था।”

“बदतमीजी कैसी? गलती तो जॉन की ही थी, जो बेकार आप उलझ बैठा। दरअसल वह हर ऐसे आदमी से जलने लग जाता है, जो जरा भी मुझसे हँसकर बात करे।”

“मर्द होते ही शक्की है।” गुरनाम ने एक लंबा घूंट कंठ से नीचे उतारते हुए कहा।

“लेकिन मैं ऐसे मर्दों को पसंद नहीं करती।”

“तो जॉन के साथ ज़िन्दगी कैसे कटेगी?”

“उसे मेरे इशारों पर चलना होगा। मेरी आजादी में दखल नहीं देना होगा।”

“और अगर उसने ऐसा ना किया?”

“तो शादी के फ़ौरन बाद डाइवोर्स!”

“आपका काफ़ी ज़िन्दादिल औरत हैं।”

“औरत नहीं लड़की! शादी हो जाने के बाद मुझे यह दर्जा दीजियेगा।”

“ओह! आई एम सॉरी।”

धीरे-धीरे जाम पर जाम खाली होते रहे और फिर भरते रहे। ठंडे सीने में चिंगारियाँ भड़कने लगी थी। दोनों अपने-अपने गिलास थामें होटल के हरी लॉन में निकल आये। ठंडी हवा में दिल और गर्म होने लगे। कुछ देर बाद दोनों वहाँ से उठकर गुरनाम के कमरे में आ गये।

गुरनाम ने खाने के लिए पूछा, तो रुखसाना ने झट उसकी बात काट दी और बोली, “खाना तो हम हर रोज खाते हैं।”

“लेकिन पीना भी तो हर रोज हो जाता है।”

“हाँ लेकिन आपके साथ पहली बार हुआ है।” रुखसाना ने बड़े मन मोह लेने वाले भाव से कहा और फिर गुरनाम के गाल से गाल मिलाकर इठलाती हुई बोली, “आप कितने अच्छे हैं सरदार जी!”

“सच! तो फिर एक बात मानो हमारी।”

“क्या? हुक्म दीजिये।”

“अब पीना बंद कर दो।”

“क्यों?”

“हमें नशा हो गया है। अगर नशे में हम कोई गुस्ताखी कर बैठे तो!”

“क्या होगा?” रुखसाना ने अदा से झूमते हुए उसी का प्रश्न दोहराया।

“जॉन हमसे जल उठेगा।”

“जलने दो उसे। आज की रात तो हम चाहते हैं कि कोई हमसे गुस्ताखी करें।” रुखसाना ने मुस्कुराकर कहा और साथ ही पलट कर कमरे की लाइट ऑफ कर दी।

गुरनाम रुखसाना का यह बेबाक वाक्य सुनकर क्षण भर के लिए तो झेंप गया, लेकिन फिर अंधेरे में ही उसके अर्धनग्न शरीर को घूरने लगा, जो पहले से और अधिक आकर्षक हो गया था। शराब के उन्माद से रुखसाना की आँखों में लाली उतर आई थी। वह गुरनाम के पहल करने की प्रतीक्षा कर रही थी। किंतु जब वह उसी प्रकार अपने स्थान पर खड़ा उसे घूरता रहा, तो वह स्वयं ही उछलकर उसकी बाहों में आ गई।

गुरनाम तो मर्द था। औरत को भी वह शराब के समान एक नशा ही समझता था, जो बस उन्माद देकर झोंके के समान चली जाये और लौटकर ना आये। रुखसाना के कोमल शरीर की तपन ने उसकी धमनियों में दौड़ते हुए खून को खौला दिया। दिल की धड़कन तेज हो गई और उसने दीवानगी ने रुखसाना को अपनी बाहों में भींच लिया। वह एक नागिन के समान उसकी बाहों में मचली, सरसराई और धीरे-धीरे उसने गुरनाम के सारे शरीर को अपनी लपेट में ले लिया।

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। गुरनाम नंग-धड़ंग बिस्तर पर औंधा लेटा हुआ था। उसके भारी खर्राटों की आवाज कमरे में गूंज रही थी। रुखसाना गुरनाम के साथ अर्धनग्न अवस्था में लेटी अभी तक जाग रही थी और आँखें खोले छत को घूर रही थी। गुरनाम का दांया हाथ अभी तक उसकी कमर में था, जैसे सोते में भी वह उसे अपने पास से अलग न करना चाहता हो।

रुखसाना ने एक दृष्टि उसके चेहरे पर डाली और उसकी गहरी नींद की ओर से संतुष्ट होकर धीरे से अपनी कमर पर से उसका हाथ हटाया और खिसककर बिस्तर से नीचे उतर गई। फर्श पर पड़ी अपनी मैक्सी उठाकर उसके गुरनाम को देखा, जिसके मुँह से निकलते खर्राटे उसकी गहरी नींद का प्रमाण दे रहे थे। रुखसाना ने जल्दी-जल्दी मैक्सी पहनी और दोनों हाथों से अपने बिखरे बाल संवारे। फिर सिरहाने रखे अपने हैंडबैग में से एक छोटी सी पेंसिल टॉर्च निकाली और उसकी रोशनी कमरे में इधर-उधर फेंकी। पतली सी रोशनी की रेखा एक बार गुरनाम के नंगे स्वस्थ शरीर पर पड़ी और वह मुस्कुरा दी। उसने आगे बढ़कर उसके नंगे शरीर को एक चादर से ढक दिया।

थोड़ी ही देर में उसने पेंसिल टॉर्च के सीमित प्रकाश में सारा कमरा छान मारा। जल्दी-जल्दी उसने गुरनाम के सूटकेस, अलमारी और मेज के सभी खाने देख डाले। किंतु उसे काम की कोई विशेष चीज उपलब्ध नहीं हुई। वह कुछ निराश सी हो गई। फिर एकाएक उसकी दृष्टि पलंग के पास रखी छोटी सी साइड टेबल पर पड़ी और वह उधर लपकी।

साइड टेबल का पहला खाना खोलते ही उसकी आँखें खुशी से चमकने लगी। वहाँ वह फिल्म पड़ी थी, जिसके बारे में गुरनाम ने रशीद से कहा था। फिल्म के साथ ही गुरनाम का आईडेंटिटी कार्ड भी रखा हुआ था, जिसे पढ़ते हुए रुखसाना को इस बात का प्रमाण मिल गया कि वास्तव में गुरनाम मिलिट्री इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट का आदमी है। उसके होठों पर मुस्कुराहट उभर आई और उसने वह कार्ड अपने बैग में रखना चाहा। किंतु फिर कुछ सोचकर उसने कार्ड वहीं छोड़ दिया और केवल फिल्म की रील सावधानी से बैग में रख ली। फिर उसने टॉर्च बुझा दी। अंधेरे में ही अपनी सैंडल टटोली और उन्हें हाथों में उठाये दबे पांव दरवाजे तक चली आई, जो बरामदे में खुलता था। उसने धीरे से चटकनी खोली, पलटकर एक नज़र नींद में डूबे हुए गुरनाम के बदन पर डाली और चुपके से कमरे से बाहर चली गई।

रुखसाना ने कमरे से बाहर कदम निकाला ही था कि गुरनाम के खर्राटों को जैसे ब्रेक लग गये। वह तड़प कर बिस्तर पर उठ बैठा और झट उछलकर उस दरवाजे तक जा पहुँचा, जिससे अभी-अभी रुखसाना बाहर निकली थी। उसने दरवाजे का पर्दा हटाकर बाहर झांका, तो रुखसाना तेजी से होटल का लॉन पार कर रही थी। गुरनाम ने फुर्ती से कपड़े पहने, ओवरकोट पहनकर जेब में पिस्तौल टटोला, अपना कार्ड लिया और लपककर बाहर निकल आया।

रुखसाना होटल से निकलकर बाहर सड़क पर आ रूकी। गुरनाम उसका पीछा करता हुआ पेड़ों के एक झुंड तले आ ठहरा और अंधेरे में घूरकर उसे देखने लगा, जो थोड़ी दूर खड़ी बेचैनी से इधर-उधर देख रही थी, जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रही हो। तभी गुरनाम ने देखा, उसने अचानक अपने मुँह में एक सिगरेट लगाया और लाइटर से उसे सुलगाने से पहले दो बार लाइटर जलाकर बुझाया। उसी समय एक पुराने मॉडल की काले रंग की गाड़ी आकर उसके पास खड़ी हो गई। रुखसाना झट गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी चल पड़ी।

गुरनाम गाड़ी के आगे बढ़ते ही लपक कर होटल के बाहर वाले भाग में आया और एक टैक्सी में बैठकर ड्राइवर को काली कार का पीछा करने को कहा। टैक्सी वाले ने मामला समझना चाहा, तो गुरनाम ने झट उसकी हथेली सौ के नोट से गर्म कर दी। ड्राईवर ने सौ का नोट देख शांति से टैक्सी की गति बढ़ा दी। कुछ दूर जाने के बाद गुरनाम ने ड्राइवर को अपनी गाड़ी की बत्तियाँ बुझा देने को कहा और उसे निर्देश दिया कि वह उस गाड़ी की टेल-लाइट के सहारे उसका पीछा करें, ताकि उस गाड़ी वालों को पीछा किए जाने का अंदेशा न हो पाये।

काली गाड़ी शहर की सीमा पार करके पीर बाबा के डेरे वाले टीले के पास पहुँची। गुरनाम ने अपनी टैक्सी काफ़ी पीछे रुकवा ली। उसने देखा रुखसाना ने वहीं गाड़ी से उतरकर ड्राइवर को कुछ समझाया और वह गाड़ी आगे बढ़ाकर ले गया। रुखसाना टीले की ओर जाने वाली पगडंडी की ओर हो ली।

“खतरों से खेलने का शौक है तुम्हें?” गुरनाम ने अचानक टैक्सी ड्राइवर से पूछा।

“कैसा खतरा सरदार जी?” ड्राइवर ने घबराकर पूछा।

“मैं उस छाया का पीछा कर रहा हूँ। जब तक ना लौटूं, यही मेरी प्रतीक्षा करोगे क्या?”

“क्यों नहीं बाबूजी? लेकिन वह पीर बाबा के डेरे की ओर जा रही हैं।”

“हाँ, मैं जानता हूँ।” गुरनाम ने कहा और तेजी से नीचे उतर गया। फिर अंधेरे का सहारा ले रुखसाना के पीछे हो लिया। टैक्सी ड्राइवर अपने आप बड़बड़ाया, “यों पीछा करने से बीवी को थोड़ी काबू में रखा जाता है औरत बिगड़ जाये, तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं संभाल सकती।”

वातावरण में सर्वत्र धुंध छाई हुई थी, जिससे अंधेरा कुछ अधिक ही बढ़ गया था। लेकिन उस अंधेरे में रुखसाना बेधड़क अपनी जाने पहचाने रास्ते पर बढ़ती चली जा रही थी और यह घना अंधेरा उसका पीछा करने में गुरनाम की सहायता कर रहा था। गुरनाम अनुभव कर रहा था कि वह किसी बहुत बड़े खतरे के मुँह में फंसने जा रहा था, लेकिन अब यहाँ से लौट जाना भी बहुत बड़ी कायरता थी। उसे मालूम नहीं था कि उसे किस खतरे का सामना करना होगा, लेकिन उसका कर्तव्य उसे बड़े से बड़े खतरे में जाने के लिए पुकार रहा था।

रुखसाना पीर बाबा के डेरे के बाहर थोड़ी देर रुकी और इधर-उधर देखकर झट अंदर प्रविष्ट हो गईं। गुरनाम भी उस दरवाजे तक आ पहुँचा। दरवाजे पर बैठे एक आदमी ने उसे रोकना चाहा, तो गुरनाम ने झट आगे जाती रुखसाना की उंगली से संकेत कर दिया और लपककर इस प्रकार रुखसाना के पीछे हो लिया, जैसे वह उसी के साथ अड्डे में आया हो।

गुरनाम जिस कमरे में रुखसाना के पीछे आया, वहाँ तेल का एक चिराग जल रहा था। जिसके प्रकाश से कमरे की हर चीज देखी जा सकती थी। इस समय वहाँ कोई और व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था। रुखसाना ज्यों ही कमरे की दाईं ओर गुफा में घुसी, गुरनाम भी दबे पांव उसके पीछे था। अपने पीछे कुछ आहट सुनकर पहली बार रुखसाना ने पलटकर देखा और रिवाल्वर की नाल अपनी ओर तनी पाई। रिवाल्वर के पीछे गुरनाम की मोटी लाल खूंखार आँखें देखकर वह डर से कांप गई और उसके मुँह से एक चीख निकलते-निकलते रह गई।

“अगर आवाज मुँह से निकाली, तो यही ढेर कर दूंगा।” गुरनाम ने दबी आवाज में धमकी दी, “इस रिवाल्वर में साइलेंसर लगा है।” इसके साथ ही रिवाल्वर की नाल उसकी कनपटी में आ लगी।

क्षणभर घूरकर रुखसाना को देखकर उसने गुर्राकर कहा, “और कौन-कौन है इस अड्डे में इस वक्त?”

“कोई भी नहीं!” रुखसाना के मुंहफट से भिंची-भिंची आवाज निकली।

“सच बता कौन है? नहीं तो देशद्रोही पर दया करना मैंने नहीं सीखा।” गुरनाम ने खूंखार स्वर में कहा और रुखसाना ने कनपटी पर रिवाल्वर की नाल का दबाव अनुभव किया। वह डर कर कह उठी, “जॉन है, जॉन है।”

“और कोई भी है?’

“नहीं, कसम से नहीं!”

“चलो तो जहाँ चलना है, तुम् चलती रहो।”

रुखसाना वहीँ जमी खड़ी रही। गुरनाम ने रिवाल्वर की नाल उसकी कनपटी से हटाकर उसके पेट से लगा दी और उसे आगे धकेलता हुआ बोला, “चलो आगे बढ़ो। जरा भी होशियारी दिखाने की कोशिश की, तो गोली अंदर और दम बाहर होगा।”

विवश होकर रुखसाना आगे बढ़ी और एक दीवार तक पहुँच कर उस पर लगा एक बटन दबाया। दीवार में लगा एक लाल बल्ब एकाएक जल उठा और साथ ही दीवार में एक दरार उत्पन्न हो गई। एक गुप्त जीना उस दरार के बीच दिखाई दिया और गुरनाम रुखसाना के पीछे वह जीना उतरने लगा।

नीचे तहखाने में जॉन एक कुर्सी पर बैठा ट्रांसमीटर ऑन किए कुछ सिग्नल दे रहा था। अपने पीछे आहट सुनते ही उसने पलटकर पूछा, “मिल गई वह फिल्म?”

यह वाक्य जॉन की जबान पर लड़खड़ा कर ही रह गया, जब उसने रुखसाना के पीछे गुरनाम को उसकी पीठ पर रिवाल्वर जमाये देखा। वह आश्चर्यचकित उसे देखता ही रह गया।

“ओह तो आप है, जिन्होंने यह फिल्म मेरे कमरे उड़वाई है। आपकी मंगेतर तो काफ़ी वफादार लगती है, आपकी मदद करते-करते अपना तन मन सब कुछ गंवा बैठती है।” गुरनाम ने व्यंग्य से कहा।

“कौन है तुम?” जॉन जानते हुए भी अनजान बनकर पूछ बैठा। उसने जेब में हाथ डालकर अपना रिवाल्वर निकालना चाहा। गुरनाम ने झट गोली चला दी, जो उसके बाजू की खाल को छूती हुई दीवार से जा टकराई। उसके मुँह से एक कराह निकली और झट उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये। गुरनाम ने रुखसाना का बाजू बाएं हाथ से पकड़कर एक झटके के साथ उसे जॉन के साथ खड़ा किया और उनकी आँखों के सामने रिवॉल्वर हिलाता हुआ जॉन से बोला, “मैं कौन हूँ, यह तो तुम अच्छी तरह जानते हो, वरना अपनी इस फुलझड़ी को मेरे पीछे ना लगाते। इस वक्त मैं तुम्हारा असली रूप जाना चाहता हूँ। तुम्हारे और कितने साथी हैं इस फुलझड़ी के अलावा? 555 रिंग का चीफ कौन है? अब तक तुमने क्या-क्या जासूसी की है? साफ बता दोगे, तो जान से नहीं मारूंगा यह वादा रहा…नहीं तो मैं दस तक गिनती गिनूंगा। इस बीच में अगर तुम्हारी जुबान ना खुली, तो मेरे रिवाल्वर की दो गोलियाँ और खर्च होंगी। जब तक तुम्हारे गुरगों को पता चलेगा, तुम्हारी लाश बिना कफन यहीं सड़ती रहेगी। बोलो बताते हो नाम या शुरू करूं गिनती?”

वे दोनों उसकी धमकी सुनकर भी चुप रहे, तो गुरनाम में गिनती आरंभ कर दिया और उनके चेहरे की बदलती रंगत को देखने लगा। अभी वह पाँच तक ही गिन  पाया था कि अचानक जॉन फुर्ती से उछला और अपने पीछे दीवार से जा टकराया। इसके साथ ही गुरनाम की उंगली ट्रिगर पर दब गई। कमरे में एक जोरदार धमाका हुआ, लेकिन बजाय इसके कि गोली किसी को निशाना बनाती गुरनाम स्वयं ही लड़खड़ा गया। उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई। फर्श में एक खाई उत्पन्न हुई और वह जमीन के नीचे उस खाई में समा गया।

जॉन रुखसाना ने उस अंधेरे कुएं में झांका, जिसकी गहराई में गुरनाम समा गया था और नीचे अंधकार में उसकी चीख की अंतिम गूंज सुनाई दे रही थी।

जॉन ने आगे बढ़कर दीवार पर लगे एक बटन को दबाया। खाई की जमीन फिर बराबर हो गई और वह माथे का पसीना पोंछता हुआ रुखसाना की ओर बढ़ा, जो अभी तक स्थिर खड़ी थी और उसके होंठ कंपकंपा रहे थे।

उसने जॉन से नजरें मिलाई। कुछ कहने को उसके होठ खुले, लेकिन फिर अचानक एक चीख उसके मुँह से निकली और वह जॉन के पास जाकर उसके सीने से लग गई। फिर उसके सीने में मुँह छुपाकर सिसक-सिसक कर रोने लगी।

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