चैप्टर 8 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 8 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 8 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

Chapter 8 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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भीगी-भीगी धुंधली सी शाम थी। चारों ओर अंधेरा फैल रहा था। वातावरण सुगंधमयी था।

रशीद ओबेरॉय रॉयल पैलेस के लॉन में बैठा पूनम की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके अभी तक ना आने से रशीद की बेचैनी बढ़ रही थी। बार-बार उसकी दृष्टि मुख्य प्रवेश द्वार तक पर जाती और लौट आती। फिर वह कलाई की घड़ी को देखने लगता। उसे यों अनुभव हो रहा था, जैसे उसकी घड़ी की सुइयाँ एक स्थान पर रुक गई हों…समय की गति थम गई हो।

घड़ी देखते ही उसे अपने हमशक्ल रणजीत की याद आ गई। यह रणजीत की ही घड़ी थी, जो पकड़े जाने के पहले उसकी कलाई पर बंधी थी। रणजीत के भेष में वह हर ऐसा प्रमाण अपने पास रखना चाहता था, जो उसे रणजीत ही सिद्ध कर सके। मानसिक बेचैनी को दूर करने के लिए उससे बैरे को बुलाकर एक लेमन जूस लाने का आर्डर दिया और मुँह में सिगरेट लगाकर उसे सुलगाने के लिए जेब से पूनम वाला लाइटर निकाला।

इससे पहले कि वह अपना लाइटर मुँह तक ले जाता, उसके चेहरे के पास एक दूसरी लौ धधक उठी। रशीद सिगरेट सुलगाने से पहले चौंककर मुड़ा और उस व्यक्ति को देखने लगा, जो जलता हुआ लाइटर उसकी ओर बढ़ाये मुस्कुरा रहा था। एक अजनबी को अपने पास देखकर रशीद को आश्चर्य हुआ।

“प्लीज!” अजनबी ने लाइटर की लौ उसकी सिगरेट से लगाते हुए कहा।

रशीद ने सिगरेट सुलगा लिया और ध्यान पूर्वक उस अजनबी को देखने लगा। उसकी रहस्यमयी मुस्कुराहट उसे उलझन में डाल रही थी।

“हेलो!” अजनबी ने मोटे और भद्दे होंठ हिले।

“हेलो!” रशीद ने उत्तर दिया।

“आपका हमारा टेस्ट मिलता है।” अजनबी ने कहा और जेब से 555 सिगरेट की डिबिया निकाल कर उसको दिखाते हुए बोला – “555 ब्रांड का सिगरेट।”

555 का संकेत सुनकर रशीद चौकन्ना हो गया। उसने सिर से पैर तक एक गहरी दृष्टि अजनबी पर डाली। शायद यही जॉन मिल्ज़ था। उसे झट मेजर सिंधु के ड्राइवर शाहबाद के शब्द याद आ गए – “जॉन मिल्ज़ एंग्लो इंडियन है। आपको हर रात ओबेरॉय पैलेस में मिलेगा।“

अजनबी रशीद के चेहरे पर अंकित उसके मनोभाव पढ़ते हुए धीरे से बोला – “बी इट इज़ मेजर… आई एम जॉन मिल्ज़। आप कैसे हैं?”

“थैंक यू…मैं बिल्कुल मजे में हूँ।” रशीद ने उसे सामने वाली कुर्सी पर बैठने का संकेत किया।

जॉन बैठ गया। इतने में बैरा रशीद के लिए लेमन जूस लेकर आ गया। जॉन ने उसी बैरे को दो बीयर लार्ज का आर्डर दिया और फिर बोला – “देखो सामने ब्लू रूम में रुखसाना मैम साहब डांस बनाता है। उसको बोलो, जॉन साहब इधर बैठा है…समझे!”

“समझ गया सर!” बैरी ने गर्दन छुपाकर कहा और चला गया।

रुखसाना का नाम सुनते ही रशीद को फिर शाहबाद ड्राइवर की बात याद आ गई – “उसके साथ एक लड़की रहती है रुखसाना, जिससे वह शादी करने वाला है।”

रशीद ने जॉन मिल्ज़ से घनिष्ठता जताते हुए पूछा – “शादी कब कर रहे हैं आप रुखसाना के साथ?”

“बहुत जल्द…पहले शादी बनाने का सोचा, तो जंग शुरू हो गया। गोला बारूद में लव करना अच्छा नहीं लगा। अब सीजफायर हुआ है, डिसाइड किया है, जल्दी बना डाले।”

“ओह आई सी! अच्छा, आपको कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?”

“हमको शाहबाज बोला। और फिर हेडक्वार्टर से आपका फोटो भी आया।” जॉन ने कहा और जेब से रशीद का फोटो निकालकर मेज पर रख दिया।

रशीद ने अपनी फोटो पर उचटती सी दृष्टि डाली और उसे झट जेब में रख देने का संकेत किया।

जॉन फोटो को फिर जेब में रखते हुए बोला – “इसी फोटो से हम आपको एकदम पहचान गया।”

“और क्या खबर आई है हेड क्वार्टर से?”

“यही कि आप की हर तरह की मदद की जाये।”

“मैं खुद हेडक्वार्टर से बात करना चाहता हूँ। खान से बात करना होगा।”

“हमारा सब बंदोबस्त है। कभी भी रात को 8:00 बजे से 10:00 बजे तक।”

“ओके तो कल रात को अरेंज कर दो।”

रशीद ने अभी बात पूरी भी बस की थी कि सामने रुखसाना आती हुई दिखाई थी। वे दोनों बातें करते-करते चुप हो गए। रुखसाना निकट आई, तो जॉन ने उठकर मुस्कुराते उसका स्वागत किया। रशीद भी उठ खड़ा हुआ। रुखसाना ने अपना हाथ जॉन के हाथ में दे दिया और जॉन ने उसका गाल चूम लिया, फिर जॉन ने उसका रशीद से कैप्टन रणजीत के रूप में परिचय कराया।

रुखसाना ने बड़े तपाके से रशीद से हाथ मिलाया और उसके गाल पर हल्का सा चुंबन देते हुए बोली – “वेलकम मेजर।”

रुखसाना की जबान से मेजर का शब्द सुनकर चुप आश्चर्य हुआ। उसने पलट कर जॉन को देखा। जॉन मुस्कुरा का अर्थ पूर्ण दृष्टि से रुखसाना को निहारता हुआ बोला – “नथिंग टू वरी  मेजर…आवर पार्टनर!”

रशीद ने संतोष की सांस ली और तीनों एक साथ कुर्सियों पर बैठ गये। तभी बैरा बीयर की बोतलें और दो बड़े जार ले आया। रुखसाना ने बोतल उठाई और ढक्कन खोलकर दोनों गिलास में बीयर उड़ेलती हुई धीरे से बोली – “आप शौक नहीं फ़रमाते?”

“जी नहीं!”

“लेकिन शाहबाद तो कहता था आपने उस रात पी थी।”

“वह मजबूरी थी।”

“और आज अगर हम मजबूर करें तो?” उसने दोनों गिलास भरते हुए पूछा।

“जी नहीं…शुक्रिया! किसी के शौक पर मैं अपने उसूलों को कुर्बान नहीं कर सकता।”

“ओके.. मैं आपके उसूलों की कद्र करती हूँ। चीयर्स..!”

यह कहते हुए रुखसाना ने अपना गिलास जॉन के गिलास से टकराया पर धीरे-धीरे चुस्कियाँ भरने लगी।

रशीद अब इस लड़की की घनिष्ठता से ऊबने लगा था। उसकी आँखें फिर प्रवेश द्वार पर जम गई। पूनम अभी तक क्यों नहीं आई? प्रतिक्षण उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसके मस्तिष्क में कई शंकायें उठने लगी थी। व्याकुलता से वह कुर्सी पर दाएं-बाएं पहलू बदलने लगा।

“आपकी तबीयत तो ठीक है ना मेजर?” रुखसाना ने उसकी बेचैनी अनुभव करते हुए पूछा।

“हाँ हाँ…मैं बिल्कुल ठीक हूँ।” रशीद ने संभालते हुए उत्तर दिया।

“नहीं…लगता है, आप हमसे कुछ छुपा रहे हैं अथवा आपको हमारी कंपनी पसंद नहीं है या आप किसी और से मिलने के लिए बेकरार है।” रुखसाना ने बेधड़क कहा।

रशीद ने देखा, रुखसाना बियर के घूंट गले में उतारती जा रही थी, उसके चेहरे पर चंचलता बढ़ती जा रही थी। वह इस छोटी सी भेंट से ही खुल गई थी। रशीद अधिक देर तक उसकी चंचन नशीली आँखों का सामना नहीं कर सका और अपनी दृष्टि झुकाते बोला – “यू आर राइट रुखसाना!”

“रुखसाना नहीं, रूखी डियर!” जॉन ने बियर का चटकारा लेते हुए अपनी महबूबा का प्यार का नाम दोहराया।

“हाँ तो बताइए किससे मिलने के लिए बेकरार हैं आप?” रुखसाना ने मुस्कुराते हुए रशीद को फिर छेड़ा।

“अपनी महबूबा से।” रशीद ने भी मुस्कुरा कर उत्तर दिया।

“आपकी या रणजीत की?” पूछते हुए रुखसाना की दिल्लगी कुछ और बढ़ गई।

रशीद अचानक गंभीर हो गया और उसे चेतावनी देता हुआ बोला – “बेहतर होगा रुखसाना, अगर आप इन दो नामों को ज्यादा ना दोहरायें।”

“सॉरी सर…मैं तो यह कहना चाहती थी कि आपकी महबूबा कहीं वो तो नहीं?”  रुखसाना ने एक ओर संकेत किया।

रशीद ने घूम कर उधर देखा। उनसे हटकर लोगों से अलग-थलग एक मेज पर अकेले एक सुंदर लड़की बैठी उन्हीं की ओर देख रही थी।

रुखसाना का अनुमान ठीक ही था। वह सचमुच पूनम ही थी, जो ना जाने कबसे वहाँ आकर बैठी थी। रशीद उसे देखते ही रुखसाना से बोला – “आपका अंदाजा ठीक है।”

पूनम को देखकर रशीद की बेचैनी कम हो गई। उसने रुखसाना से नज़र मिलाई और उसकी आँखों में चंचल मुस्कुराहट देख वह कुछ झेंप गया। जॉन ने झट कहा – “जाइए मिल लीजिए अपनी प्रेमिका से।”

रशीद ने उठने से पहले रुखसाना से पूछा – “आप पूनम को जानती हैं?”

“नहीं तो!”

“फिर आपने कैसे जाना वही मेरी महबूबा है?”

“उसकी चाल देख कर। जब मैं आपसे मिलने के लिए बढ़ी, तो यह लड़की इधर आते-आते रुक गई थी। मुझे देखकर वह ठिठकी और फिर पलटकर उस कोने में कुर्सी पर जा बैठी। मेरा अनुमान था कि वह आपको जानती है और मेरा आपके गाल को छूना उससे अच्छा नहीं लगा…इसलिए..!”

“ओह रूखी डियर..!” जॉन उसकी बात काटते हुए बोला – “क्यों इनका टाइम वेस्ट कर रही हो। जाने दो ना!”

रशीद अपने स्थान से उठा और पूनम से मिलने के लिए उसकी और बढ़ा। पूनम ने उसे अपनी ओर आते देखा, तो मुँह फेरकर उस फव्वारे को देखने लगी, जिसका चमकता पानी रंगीन बल्बों के प्रकाश मे सुंदर समां बांधे हुए था।

रशीद तेज कदमों से चलता हुआ उसके पास पहुँचा और उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा होकर प्यार से बोला – “पूनम!”

पूनम ने पलटकर गंभीरता से उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं।

“तुम कब आई?” रशीद ने उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“जब आपको देखने की फुर्सत मिल गई ।” पूनम कुछ रखाई से बोली।

“फुर्सत? यह क्या कह रही हो? मैं तो घंटी पर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।’

“मेरा इंतजार या अपने दोस्तों का मनोरंजन?”

“अरे वह तो पुराने दोस्त थे, आज अचानक बहुत दिनों के बाद मिले, तो बस जम गए मेरी मेज पर आकर।”

“और पुराने दोस्त से चुंबन प्यार करने लगे ।” पूनम ने व्यंग से कहा।

“तुम्हें भ्रम हो रहा है पूनम। वो जॉन और रुखसाना है। दोनों की कोर्टशिप चल रही है।”

“कोर्टशिप उससे चल रही है और चुम्मा-चाटी आपसे? क्या आप भी इस कोर्टशिप में साझीदार है?”

“यह क्या कह रही हो पूनम? क्या हो गया है तुम्हें?” रशीद आश्चर्य से बोला।

“मुझे तो कुछ नहीं हुआ है, आपको जरूर हो गया है। जबसे पाकिस्तान से लौटे हैं, आदतें ही बदल गई है। आवाज तक में अंतर आ गया है…व्यवहार शुष्क हो गया है। शायद जलवायु बदलने से मुस्लिम लड़कियाँ अधिक भाने लगी है।”

“पूनम!!” रशीद झुंझला गया।

“गुस्सा मत कीजिए। अरे यह बात सच न होती, तो रुखसाना के गले का लॉकेट आपके पास क्यों होता?” यह कहते हुए पूनम ने मेज पर रखे हुए हैंडबैग में से सोने का लॉकेट निकालकर मेज पर रख दिया।

अपनी खोज में लॉकेट को देखकर ऐसी कोई झटका सा लगा। वह आश्चर्य से खड़ा पूनम की कांपती उंगलियों में लटका हुआ लॉकेट देखता रहा। यह क्षण भर का मौन बड़ा दुविधाजनक था। लेकिन उसने झट अपने आप को संभाल दिया बोला – “कहाँ मिला तुम्हें?”

“अपनी लॉज के बगीचे में वही पड़ा था, जहाँ आप पत्तों के बीच खड़े थे।”

“लेकिन पूनम में लॉकेट मेरा है रुखसाना का नहीं!”

“आपको किसने दिया?”

“एक पाकिस्तानी दोस्त ने। उसने कहा, जब तक बॉर्डर क्रॉस नहीं कर लेना इसे गले से ना उतारना। अल्लाह तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा। और मैं यहाँ आकर भी दोस्त की निशानी को खुद से अलग न कर सका।

“तो अपने दोस्त की ये निशानी मुझे दे दीजिए ना!”

“तुम क्या करोगी?”

“उसकी पूजा जिसने आप को सुरक्षित मेरे पास तक पहुँचा दिया।”

रशीद ने लॉकेट को लेकर चूमा, फिर पूनम को लौटते हुए बोला – “लो तुम्हें रखो, लेकिन खो ना देना । मेरी आत्मा से इसका गहरा संबंध है।”

“घबराइए नहीं…मैं इसे अपने पास सुरक्षित रखूंगी।” यह कहकर पूनम ने लॉकेट फिर अपने बैग में रख लिया।

कुर्सियों से उठकर अब वे दोनों उन रंगीन बल्ब की रोशनी में झिलमिलाते फव्वारों के इर्द-गिर्द घूमने लगे। बातों का विषय बदल गया था। पूनम ने विस्तार से अपना दिन भर का कार्यक्रम बताया। रशीद ने अपनी ड्यूटी के मनगढ़ंत किस्से सुना दिए। वह पूनम से प्यार की बातें करने से घबराता था। जब भी पूनम भाव में आकर प्यार की बातें करने लगती, रशीद बड़ी चतुराई से उसे बदल देता।

शाम का धुंधलापन अंधेरे में परिवर्तित होने लगा था। आकाश में चांद निकल आया था। पूनम ने उस झील में शिकारे द्वारा घूमने की इच्छा प्रकट की। परंतु रशीद ने यह कहकर टाल दिया कि उसे 11:00 बजे से पहले ही हेडक्वार्टर लौट जाना है। जब से वह पाकिस्तान से लौटा है, कुछ बंदिशें बढ़ गई हैं।

“तो छुट्टी क्यों नहीं ले लेते?” पूनम ने इठला कर कहा।

“वह तो मिलने ही वाली है।”

“कब?”

“बस कुछ ही दिनों बाद …एक महीने की छुट्टी मिलेगी।”

“तब तक तो मैं यहाँ से जा चुकी होंगी!”

“तू क्या हुआ? मैं तुमसे मिलने दिल्ली चला आऊंगा।”

“सच..!” वह खुश होकर बोली।

“हाँ पूनम..इन सुंदर सुहानी वादियों में तो चंद दिन साथ न गुजार सके। दिल्ली में तुम छुट्टी ले लोगी, तो हम एक साथ ही माँ के पास चलेंगे।”

“तो फिर रहा वचन। दिल्ली पहुंचकर छुट्टी के लिए अप्लाई कर दूं?”

रशीद ने हाँ में सिर हिला दिया और दोनों एक साथ मुस्कुरा पड़े। इससे पहले की भी अगला प्रोग्राम निश्चित करते जॉन और रुखसाना ने उन्हें आकर घेर लिया। रशीद ने उन दोनों का परिचय पूनम से कराया। जॉन ने पूनम को बताया कि वह कश्मीर में रहकर इन लोगों के बारे में एक पुस्तक लिख रहा है। लड़ाई आरंभ होने के कारण उसका यह काम अधूरा रह गया था, अब इसे पूरा कर रहा है। रुखसाना उसकी मंगेतर है और गाँव-गाँव उसके साथ जाकर नारियों के घरेलू जीवन को समझने में उसकी सहायता करती है। इसी संबंध में उसकी रणजीत से दोस्ती हो गई थी।

“लेकिन कश्मीरी लोगों के जीवन से इन फौजियों का क्या संबंध हो सकता है।” पूनम ने अचानक जॉन और रणजीत की दोस्ती पर टिप्पणी करते हुए कहा।

“कश्मीर और मिलिट्री का तो एक ऐसा नाता जुड़ चुका है, जिससे हर कश्मीरी के जीवन पर कुछ असर पड़ा है। यह जंग, बॉर्डर के झगड़े, यूएनओ का बीच बचाओ। इन पॉलिटिकल बातों से इन लोगों का जीवन अलग कैसे किया जा सकता है।” जॉन ने गंभीरता से कहा।

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