चैप्टर 13 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 13 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 13 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

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गिलास की चोरी

दूसरे दिन सुबह फ़रीदी हमीद और सरोज ड्राइंग रूम में नाश्ता कर रहे थे। फ़रीदी ने रात वाली बात किसी को नहीं बताई थी, लेकिन हमीद के पेट में चूहे कूद रहे थे। वह अपनी कारगुजारियाँ एक हसीन औरत के सामने दोहराने के लिए बेचैन था। बातचीत के दौरान कई बार उसने इस टॉपिक की तरफ आने की कोशिश की, लेकिन फ़रीदी ने हर बार उसे साफ उड़ा दिया। आखिरकार थोड़ी देर के बाद हमीद भी समझ गया कि फ़रीदी रात वाली बात सरोज के सामने नहीं लाना चाहता। वह अपनी आदत के हिसाब से चहक रहा था। बात-बात पर चुटकुले छेड़ रहा था।

“वाकई साहब! आप बहुत ज़िन्दादिल इंसान है।” सरोज ने कहा।

“मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि आपके ख़याल की तारीफ कर सकूं।” हमीद ने जवाब दिया।

“लेकिन मुझमें हिम्मत है।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला।

“आपकी हिम्मत का क्या कहना… बड़े-बड़े आपका लोहा, तांबा, पीतल, गिलट यानी कि हर किस्म की धातु मानते हैं।”

सरोज हँसने लगी और फ़रीदी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया।

इतने में एक नौकर हाथ में एक लिफाफा लिए हुए कमरे में दाखिल हुआ।

“अभी एक आदमी है लिफाफा दे गया है।” नौकर ने लिफाफा फ़रीदी की तरफ बढ़ाते हुए। फ़रीदी खत निकालकर पढ़ने लगा। फिर उसने वह कागज सरोज़ की तरफ बढ़ा दिया।

यह ठाकुर दिलबीर सिंह का खत है।

आदाब,

मैं शाम को आपका इंतज़ार कर रहा था, लेकिन शायद आप बहुत ज्यादा बिज़ी थे या सरोज यहाँ आने पर रजामंद ना होती होगी।  मुझे बहुत अफ़सोस है। मैं सरोज को अपनी बेटी की तरह मानता हूँ। गुस्से में मैंने उसे वह सब कुछ कह डाला, जो मुझे ना कहना चाहिए था। अगर सरोज बूढ़े ठाकुर के मुँह पर तमाचा मार करके उसकी गलती को माफ़ न कर सके, तो मुझे कोई एतराज़ ना होगा। सरोज को लेकर जल्द आइये, ताकि मैं अपनी ज़िन्दगी में उससे माफ़ी मांग लूं।

आपका

दिलबीर सिंह

सरोज की आँखों में आँसू छलक आये। ठाकुर के खत ने उसके दिल पर गहरा असर डाला था।

“मैं जरूर जाऊंगी फ़रीदी साहब, ठाकुर साहब वाकई परेशान होंगे। सचमुच पर मुझे बेटी की तरह मानते हैं।“ सरोज ने आँसू पोछ कर कहा।

“मुझे क्या एतराज़ हो सकता है।चलिए, मैं आपको पहुँचा आऊं। मैं ख़ुद आज ठाकुर साहब से मिलने का इरादा कर रहा हूँ, वाकई बड़ी खूबियों के बुजुर्ग हैं। उनसे मिलकर मुझे सुकून मिलता है।” फ़रीदी ने सिगार सुलगा कर कश लेते हुए कहा।

“मेरा ख़याल तो है कि…” हमीद ने कहा, लेकिन फ़रीदी की तेज नज़रों से घबराकर अपनी बात पूरी न कर सका।

“हाँ, आपका ख़याल क्या है?” सरोज ने हमीद से पूछा।

“मैं…यानी कि मैं…” हमीद ने फ़रीदी की तरफ देखते हुए कहा, “मेरा ख़याल है कि आप ज़रूर जाइये।”

“थोड़ी देर के बाद फ़रीदी, सरोज, हमीद धर्मपुर की तरफ जा रहे थे।

जैसे ही कार सरोज के मकान की फाटक पर आकर रुकी, उसका ग्रेहाउंड कुत्ता दुम हिलाता हुआ दौड़ा आया।

“जैक जैक!” सरोज उसके सिर पर हाथ फेर कर बोली।

आवाज सुनकर ठाकुर छड़ी टेकते हुए बरामदे में निकल आया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। मोटे-मोटे कतरे…उसका मोहब्बत भरा दिल उमड़ आया था। सरोज उसके सीने से सिर लगा कर सिसकियाँ लेने लगी।

वह उसके सिर पर हाथ फेरता और रोता जा रहा था। कुछ देर तक दोनों रोते रहे। फिर आँसू पोंछ डालें और सब ड्राइंग रूम में आकर बातें करने लगे।

“भाई बहुत गर्मी पड़ रही है। मेरे ख़याल से तो कुछ पीना चाहिए।” ठाकुर ने कहा।

“मैं अभी शरबत बनवा कर लाती हूँ।” सरोज ने उठते हुए कहा और बाहर चली गई। कुछ देर बाद नौकर ट्रेन में शीशे के खाली गिलास लाया। फ़रीदी ने गिलास हाथ में उठा लिया।

“कितना खूबसूरत गिलास है।” फ़रीदी गिलास को अपने रुमाल से साफ करते पर बोला, “अब ऐसी चीजें कहाँ?”

ठाकुर साहब अपने इन खानदानी गिलासों की पुरानी कहानी सुनाने लगे। फ़रीदी उनकी बात तो हो दिलचस्पी से सुन रहा था और साथ ही साथ उन गिलासों को उठा-उठा कर अपने रुमाल से साफ करता जा रहा था।

“बस, जी चाहता है कि इन्हें देखता ही रहूं।” फ़रीदी ने की गिलासों को आस भरी नज़रों से देखते हुए कहा।

ठाकुर साहब की गिलासों की तारीफ़ सुनकर और ज्यादा ख़ुश होते जा रहे थे। सरोज गिलास में शरबत लेकर आई और उसने सबके गिलास भर दये।

शरबत पीने के दौरान इधर-उधर की बातें होती रही। ठाकुर साहब ने धर्मपुर के जंगल के केस के बारे में भी काफ़ी देर तक बातें की। उसके बाद फ़रीदी और हमीद वापस जाने के लिए तैयार हो गये। सरोज ठाकुर उनके साथ फाटक तक आये। फ़रीदी ने कार स्टार्ट कर दी।

“भाई हमीद मुझे वह गिलास बेहद पसंद आये हैं।” फ़रीदी ने थोड़ी दूर चलकर कार रोकते हुए कहा।

“तो गाड़ी क्यों रोक दी?” हमीद ने हैरत को कहा।

“मैं इनमें से एक चुराना चाहता हूँ।” फ़रीदी ने कहा और दरवाजा खोलकर नीचे उतर गया।

“क्या मतलब?” हमीद ने आँखें फाड़ते हुए कहा।

“मैं अभी आया।” फ़रीदी ने कहा।

हमीद कार में बैठकर उसका इंतज़ार करने लगा। उसे हैरत थी कि ये फ़रीदी को हो क्या गया है।

थोड़ी देर बाद फ़रीदी लौट आया। उसके हाथ में एक गिलास था।

“कोई खास परेशानी नहीं हुई। वे लोग गिलास वहीं छोड़ गए थे।” फ़रीदी ने कार में बैठते हुए कहा।

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