चैप्टर 14 (अंतिम) जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 14 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 14 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 14 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

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गोद में सांप

दूसरे दिन फ़रीदी और हमीद कोतवाली गये। कोतवाली इंचार्ज इंस्पेक्टर सुधीर उनका इंतज़ार कर रहा था। उन्हें देखते ही हाथ बढ़ाकर उनकी तरफ बढ़ा।

“आइये इंस्पेक्टर साहब! मैं आप ही लोगों का इंतज़ार कर रहा था। सुधीर ने फ़रीदी से हाथ मिलाते हुए कहा, “कहिए कोई खास बात।”

“ख़ास बात सिर्फ़ इतनी है कि आप आठ-दस कॉन्स्टेबल लेकर मेरे साथ चलिये।” फ़रीदी ने कहा।

‘खैरियत!” सुधीर ने हैरत से कहा।

“जल्दी कीजिये। आपका शिकार मेरे चूहे दान में फंस गया है।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

“इसलिए हम लोग जल्दी में नाश्तेदान भी साथ ही लेते आये हैं।” हमीद फौरन बोल उठा।

“तो यह क्यों नहीं कहते कि अभी तक आप लोगों ने नाश्ता नहीं किया।” सुधीर ने कहा, “कहिए कुछ मंगवाऊं।”

“नहीं शुक्रिया, इसकी ज़रूरत नहीं है।” फ़रीदी ने कहा, “आप जल्दी से अपने आदमियों को तैयार कर लीजिये।“

“मगर जाना कहाँ है?” सुधीर ने कहा।

“जलालपुर!”

“जलालपुर!” सुधीर ने हैरत से कहा, “आपने कातिल का पता लगा लिया।“

“क़रीब-क़रीब” फ़रीदी ने कहा और सिगार सुलगाने लगा।

सुधीर ने एक दीवान को बुलाकर कुछ कहा और ख़ुद ऑफिस के अंदर चला गया।

थोड़ी देर के बाद असलहे से लैस कॉन्स्टेबल आ गये।

पुलिस की गाड़ी, जिस पर सुधीर हमीद, फ़रीदी और आठ कांस्टेबल बैठे थे जलालपुर की तरफ़ तेजी से भाग जा रही थी।

“ज़रा मुझे कुछ पहले से बता दीजिए, ताकि मैं उसी हिसाब से इंतज़ाम कर सकूं।” सुधीर ने कहा।

“मेरे ख़याल से कुछ ज्यादा परेशानी ना उठानी पड़ेगी।” फ़रीदी ने जवाब दिया।

“फिर भी!” सुधीर ने कहा।

“बस इतना समझ लीजिए कि कातिल का पता चलते ही आपको उसके हाथों में हथकड़ियाँ डाल देनी होंगी।”

“यह तो हो ही जायेगा। यह बताइये कि आखिर कातिल है कौन?” सुधीर ने बेचैनी से कहा।

“घबराइए नहीं, अभी सब कुछ मालूम हो जायेगा।”

“ज़रा होशियारी से रहना।” सुधीर ने अपने सिपाहियों की तरफ़ देख कर कड़ी आवाज में कहा।

“हाँ भाई…यही वक्त होशियारी का है।” हमीद ने हँसकर कहा, “और ज़रा हम लोगों का ख़याल रखना।”

“हमीद साहब! किसी वक्त तो हम गरीबों को माफ़ कर दिया कीजिये।” सुधीर ने कहा।

“अच्छा मैं उसी वक्त उस पर गौर करूंगा।” हमीद ने कहा और गौर से फ़रीदी के जेब की तरफ देखने लगा, जो खुद-ब-खुद फूलकर पिचक रही थी।

“अरे!” हमीद ने उछलकर कहा, “इंस्पेक्टर साहब आपकी जेब…!”

फ़रीदी ने हमीद का कंधा दबा दिया। हमीद ख़ामोश हो गया। इंस्पेक्टर सुधीर भी चौंक पड़ा।

फ़रीदी ने जल्दी से अपनी हैट इस तरह अपनी टांग पर रख ली कि जेब छिप गई।

“क्या बात है?” सुधीर ने हमीद से पूछा।

“कुछ नहीं…यूं ही ज़रा….!”

“दिमाग का एक स्क्रू ढीला होने लगा था।” फ़रीदी ने जुमला पूरा कर दिया।

दिलबीर सिंह की कोठी के सामने पुलिस की लॉरी रूकती है। सरोज और दिलबीर सिंह बरामदे ही में बैठे थे। फ़रीदी के साथ इतने बहुत से कॉन्स्टेबल देखकर सरोज ने धीरे से कुछ कहा। दिलबीर सिंह उठ कर खड़ा हो गया। इतने में यह लोग बरामदे में पहुँच गये।

“भैया फ़रीदी साहब…कोई ताज़ा मुसीबत…” ठाकुर दिलबीर सिंह ने कहा।

“कोई ख़ास बात नहीं. इधर से गुज़र रहा था, सोचा आपसे मिलता चलूं।”

“खूब…खूब!” ठाकुर दिलबीर सिंह ने ख़ुश होते हुए कहा, “मेरी ख़ुशकिस्मती है कि आप जैसा बड़ा आदमी मुझसे इतनी मोहब्बत रखता है। आप लोग तशरीफ़ रखिये।” फिर अपने नौकरों का आवाज देते हुए कहा, “अरे कोई है? ज़रा कुर्सियाँ लाना।”

“गर्मी बहुत शदीद है।” दिलबीर सिंह ने कहा, “मेरे ख़याल से आप लोग कुछ शरबत पी लीजिये।”

“जी नहीं शुक्रिया!” फ़रीदी ने कहा।

“कहिए, क्या विमला वाले केस की तहकीकात के सिलसिले में कहीं जा रहे थे?” दिलबीर ने पूछा।

“जी हाँ….कुछ कामयाबी हुई तो है।”

“क्या मैं कुछ मालूम कर सकता हूँ।” दिलबीर सिंह ने ख़ुशी का इज़हार करते हुए कहा।

“क्यों नहीं!” फ़रीदी अपने अंदाज़ में बोला, “एक तो यही खबर आपके लिए दिलचस्प होगी कि रणबीर विमला और डॉक्टर सतीश का क़त्ल एक ही आदमी के इशारे पर हुआ है।”

“अच्छा!” दिलबीर सिंह ने हैरत से कहा, “वाक़ई यह ख़बर दिलचस्प और साथ ही साथ हैरतअंगेज़ भी है।

“ठाकुर साहब!” फ़रीदी बोला, “क्या आप मुझे विमला का सही हुलिया बता सकते हैं। मुझे उसकी लाश देखने का मौका भी ना मिल सका था।”

“बहुत खूब!” ठाकुर साहब ने कहकहा लगाकर कहा, “अगर कोई अंधा किसी का हुलिया बता सकता हो, तो ज़रूर पूछिये।”

“तो क्या बात है, अब आपको आँखों से बिल्कुल दिखाई नहीं देता।” फ़रीदी ने पूछा।

ठाकुर दिलबीर सिंह के माथे पर लकीरें पड़ने लगी। शायद उसे फ़रीदी का यह सवाल बुरा लगा था।

“फ़रीदी साहब, मेरा ख़याल है कि मैं आपसे उम्र में बहुत बड़ा हूँ।” दिलबीर सिंह ने कड़क लहज़े में कहा।

“यकीनन!” फ़रीदी ने हाँ में सिर हिलाया।

“तो फिर आपको मुझसे मज़ाक नहीं करना चाहिए।” दिलबीर सिंह ने अपने गुस्से को दबाने की कोशिश करते हुए कहा।

“मेरा ख़याल है कि मैंने कोई गुस्ताखी नहीं की।” फ़रीदी ने कहा, “लेकिन अगर आपको इसे तकलीफ़ पहुँची हो, तो माफ़ी चाहता हूँ।”

“खैर…खैर!” दिलबीर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “कोई बात नहीं।”

फिर थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी छा गई।

“फ़रीदी भाई! मुज़रिमों की गिरफ्तारी कब तक हो जाने की उम्मीद है।” सरोज ने कहा।

“बहुत जल्द” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला।

“खुदा करे ऐसा ही हो…ताकि हम लोगों की तरफ़ से आपका शक खत्म हो।” सरोज ने गमगीन लहज़े में कहा।

“आप लोगों पर शक….अरे! आप ये कैसी बातें कर रही हैं। तौबा तौबा!” फ़रीदी यह कहकर अपने एक स्टाइल में सीटी बजाने लगा। वह दिलबीर सिंह के सामने बैठा हुआ बाग की तरफ़ गर्दन मोड़े कुछ देख रहा था।

“अरे सांप…!” ठाकुर दिलबीर सिंह एकदम से उछलकर बोला।

फ़रीदी के जेब से काला सांप निकल कर उसकी गोद में रेंग रहा था। सब लोग हैरान होते।

“सांप दिखाई देते हैं ठाकुर साहब?” फ़रीदी ने रिवाल्वर निकालकर ठाकुर दिलबीर सिंह की तरफ तानते हुए कहा, “ख़बरदार अपनी जगह हिलने की कोशिश ना करना।”

ठाकुर दिलबीर सिंह के हाथ से उसकी छड़ी छूट गई।

“तुमने उठने की कोशिश की और मैंने गोली चलाई।” फ़रीदी ने तेज लहज़े में कहा, “सुधीर साहब हथकड़ी!”

ठाकुर दिलबीर सिंह के हाथों में हथकड़ी लगा दी गई।

“यह आपने क्या किया फ़रीदी भैया?” सरोज चीख पड़ी।

“इनकी आँखों का इलाज बगैर ऑपरेशन….अब इन्हें अंधेरे में रहने की ज़रूरत नहीं है।” हमीद ने हँसकर कहा, “इंस्पेक्टर साहब आप आँखों के डॉक्टर भी हैं?”

“अरे अरे…यह क्या हो रहा है?” सरोज बेबसी से बोली।

“घबराओ नहीं सरोज बहन। शुक्र करो कि तुम बच गई वरना कुछ दिन बाद तुम भी विमला का साथ देती नज़र आती। अगर कुछ और ज्यादा जानना चाहती हो, तो कल शाम मुझसे मिलना, मैं घर पर ही रहूंगा।”

ठाकुर दिलबीर सिंह सिर झुकाए बैठा था।

“उठिए सरकार!” सुधीर ने उसे ठोकर लगाते हुए कहा।

दिलबीर सिंह झल्ला कर खड़ा हो गया और हथकड़ी में जकड़े हाथ उठाकर इतनी ज़ोर से सुधीर के सिर पर मारा कि सुधीर चकरा कर दीवार से टकरा गया। आठों सिपाही दिलबीर सिंह पर टूट पड़े।

सरोज चीखने लगी।

ठाकुर दिलबीर लॉरी में बेसुध पड़ा हुआ था। उसके कपड़े जगह-जगह से फटे थे और लॉरी शहर की तरफ़ भागी जा रही थी।

उसी शाम को पुलिस ने दिलबीर  सिंह के मकान पर छापा मारा। काफ़ी तलाश के बाद आखिरकार फ़रीदी उसके कारखाने का पता लगाने में कामयाब हो ही गया था, जिसमें दिलबीर सिंह ने कोकीन बनाने का कारखाना कायम कर रखा था, वहाँ से काफ़ी कोकीन बरामद हुई।

इसके बाद वह और हमीद ड्राइंग रूम में आ बैठे। सरोज पहले ही से उसका इंतज़ार कर रही थी।

“तुम बहुत ज्यादा परेशान नज़र आ रही हो।” फ़रीदी ने सरोज से कहा, “हालांकि तुम्हें ख़ुश होना चाहिए कि तुम इस जाल में फंसने से बच गई। अगर दिलबीर सिंह को कभी तुम पर ज़रा सा भी शक हो जाता कि तुम उसका राज जान गई हो, तो तुम्हारा भी वही अंजाम होता, जो विमला का हुआ।”

“लेकिन आपको इन सब बातों का पता कैसे चला?” सरोज बोली।

“जब मुज़रिम मेरी गिरफ्त में आ जाता है, तो जिस तरह चाहता हूँ, आसानी से सब उगलवा लेता हूँ। दिलबर सिंह ही इस कैद में नहीं, बल्कि उसके साथी भी उसका साथ दे रहे हैं। ये सब शहर ने छटे हुए शरीफ़ बदमाश हैं।“

“आखिर विमला इन लोगों के जाल में कैसे फंस गई।” सरोज ने कहा।

“इसी वक्त सुनोगी।” फ़रीदी ने सिगार सुलगाते हुए कहा, “खैर सुनो! एक दिन जब तुम घर पर नहीं थी, तब विमला ने दिलबीर सिंह को कुछ लिखते हुए देख लिया। उसे हैरत हुई होगी और हैरत की बात भी है क्योंकि अंधे लिखा नहीं करते। दिलबीर सिंह का एहसास हो गया। उस वक़्त उसे यही समझ में आया कि विमला को ले जाकर तहखाने में कैद कर दे। दिलबीर विमला की तहरीर लेकर उसे तहखाने में बंद कर के चला आया। यह फ़ौरी काम उसने इसलिए किया था, ताकि अपने दूसरे साथियों से राय लेने के बाद वो दूसरी कार्रवाई कर सकें। तुम्हारे आने पर उसने विमला का खत तुम्हें दे दिया था और तुम मुतमईन हो गई थी। क्यों, है ना यही बात! दिलबीर सिंह ने अपने साथियों से राय-मशवरा किया, जिसमें डॉ. सतीश भी शामिल था। डॉ. सतीश ने जो राय दी, उस पर सब राजी हो गये। इसलिए वहीँ तहखाने में तेज रोशनी का इंतज़ाम कर विमला और सतीश की एक तस्वीर खींची गई। वह तस्वीर मुझे मिल गई, लेकिन वह ऐसी नहीं कि तुम्हें दिखला सकूं। बहरहाल विमला से कहा गया कि उसने दिलबीर सिंह का राज़ किसी को ज़ाहिर किया, तो वह तस्वीर इसके घरवालों और उसके मंगेतर के पास भेज दी जायेगी। इतना कुछ कर लेने के बाद भी उन लोगों को इत्मीनान नहीं हुआ। किसी तरह उनके हाथ में विमला के मंगेतर का एक खत लग गया। जिससे ज़ाहिर हुआ कि शायद इन दोनों की माँ-बाप में कुछ झगड़ा हो गया है और वह लोग शादी करने पर रज़ामंद नहीं। इस खत को देखते ही दिलबीर सिंह ने एक स्कीम बनाई। वह यह थी कि अगर उस दौरान यदि रणधीर और विमला कहीं गायब कर दिए जायें, तो उनेक माँ-बाप ताहि समझेंगे कि शायद रणधीर विमला को कहीं भगा ले गया। इस स्कीम को शुरू करने के लिए डॉक्टर सतीश विमला का हमदर्द बन गया। उसने वह खत उसी के सामने जला दिया और उससे कहा कि तुम रणधीर को एक खत लिखो कि वह तुम्हें यहाँ से आकर निकाल ले जाये। डॉ. सतीश ने विमला को अच्छी तरह इत्मीनान दिलाया कि वह उसकी पूरी पूरी मदद करेगा। रणधीर का जवाब आने पर उन्हें मालूम हो गया कि वह कब आ रहा है। जहाँ तक दोनों को क़त्ल कर देने की स्कीम का सवाल है, इन लोगों ने बड़ी चालाकी से काम किया, लेकिन और ज्यादा होशियार बनने के चक्कर में पुलिस को भी इसमें उलझा लेने की स्कीम बना कर धोखा खा गये, हालांकि उनकी स्कीम थी बड़ी शानदार। उनका ख़याल था कि विमला और रणधीर के इस तरह गायब हो जाने से विमला के माँ-बाप इन दोनों का हुलिया जारी करेंगे। जब पुलिस को मालूम होगा कि धर्मपुर के जंगल इमं लाश देखने वाला रणधीर था, तो पुलिस और ज्यदा सरगर्मी से उसकी तालश शुरू कर देगी और शायद ऐसा होता भी। अगर ठीक वक्त पर जंगली गीदड़ हमारी मदद ना कर बैठते हैं। मैंने तुम्हें गीदड़ की लाश के बारे में बताया था। वह भी दिलबीर सिंह की हरकत थी। डॉक्टर सतीश कानपुर जा रहा था रणबीर के घर की तलाशी लेने, ताकि विमला का खत ढूंढ कर उसे जला सके। रास्ते में मुझसे मुठभेड़ हो गई। वह गिरफ्तार हो गया। उसके साथ और आदमी भी थे, जो उसे गिरफ्तार होने के बाद रास्ते ही से पलट आये। उन्होंने इसकी खबर दिलबीर सिंह को दी। दिलबीर सिंह ने सोचा कि अब उसे भी ठिकाने लगा देना चाहिए, वरना हो सकता है कि पुलिस वाले उससे उगलवा लें। फिर दिलबीर सिंह ने मुझ पर और हमीद पर भी हमला किया था, लेकिन तुम अभी तक नहीं जानती कि मुझे यह कैसे मालूम हुआ कि दिलबीर सिंह ही मुज़रिम है। जिन लोगों ने मुझ पर हमला किया था, उनमें से एक की टॉर्च मेरे हाथ लग गई। उसकी उंगलियों के निशान इस टॉर्च पर बाकी रहे, जिन्हें मैंने कागज पर उतरवा लिया। मुझे दिलबीर सिंह पर शुरू ही से शक था। हालांकि वह एक अंधे का पार्ट बड़ी सफ़ाई से अंज़ाम दे रहा था। लेकिन….हाँ, तो जब मैं तुम्हें यहाँ छोड़ने आया था, तो तुम्हें याद होगा कि तुम ने हम लोगों को शरबत पिलाया था। मैंने वह गिलास चुरा लिया, जिसमें दिलबीर सिंह ने शरबत पिया था। उसमें दिलबीर सिंह की उंगलियों के निशान थे। उस गिलास के निशान और टॉर्च के निशान में कोई फर्क ना निकला और आपके ठाकुर साहब आखिरकार धर लिए गये।”

“अच्छा यह बताइए कि मेरा क्या हश्र होगा?” सरोज ने परेशान होकर पूछा।

“कुछ भी नहीं! तुम्हें सिर्फ़ सरकारी गवाह बनना पड़ेगा। मैं तुमसे पहले ही वादा कर चुका हूँ कि तुम्हें कोई नुकसान ना पहुँचेगा। अब तुम इतनी बड़ी जायदाद की अकेली मालकिन हो। दिलबीर सिंह तो फांसी से बच नहीं सकता।”

“मैं आपका शुक्रिया किस ज़ुबान से अदा करूं। मेरा कोई सगा भाई भी होता, तो मेरे लिए इतना ना कर सकता।”

“अच्छा तो मुझे सगा भाई नहीं समझती।” फ़रीदी ने रूठ जाने वाले अंदाज़ में कहा।

“मेरे भैया!” सरोज ने कहा और उसकी आँखों में मोहब्बत के आँसू उमड़ आये।

इन भाई-बहन की मोहब्बत देख हमीद भी अपने आँसू रोके बिना नहीं रह सका।

** समाप्त **

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