Chapter 5 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel
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अजीबोगरीब चिड़िया
फ़रीदी रुमाल बिछा कर जमीन पर बैठ गया। वह सिगार की लंबे-लंबे कश ले रहा था। उसकी आँखें एकटक गीदड़ की लाश पर जमी हुई थी। कॉन्स्टेबल आपस में खुसर-फुसर कर रहे थे। हमीद गड्ढे से मिट्टी निकाल-निकाल कर एक तरफ ढेर कर रहा था। उसे अभी उम्मीद थी कि जल्दी कोई चीज़ मिल जाएगी, जिसे सुराग लगाने में आसानी होगी। थोड़ी देर बाद बहुत थक कर माथे से पसीना पोंछने लगा। फ़रीदी की निगाहें अब जमीन पर चक्कर लगा रही थी।
अचानक वह चौंक पड़ा और उसकी आँखे चमकने लगी। वह उठकर गड्ढे के पास गया और फिर वहाँ झुक कर कुछ देखते हुए पश्चिम की तरफ बढ़ने लगा। कुछ दूर जाकर बहुत सीधा खड़ा हो गया और तेज आवाज में बोला, “हमीद…. हमीद, यहाँ आओ। तुम्हें एक दिलचस्प चीज दिखाऊं।”
हमीद हाथ की मिट्टी झाड़ता हुआ उसकी तरफ़ लपका।
“यहाँ देखो…!” फ़रीदी अपनी जमीन की तरफ इशारा करते हुए कहा।
“क्या…? मुझे तो कुछ भी नज़र नहीं आता।”
“अरे भाई!” फ़रीदी ने जमीन पर बैठते हुए किसी चीज़ की तफ़ इशारा किया।
“जी हाँ, यह किसी चिड़िया के पंजों के निशान हैं।”
“तो क्या यह अजीब बात नहीं।”
“अजीब बात!” हमीद जोर से हँसते हुए बोला, “इसमें कोई अजीब बात नजर नहीं आती। भला किसी चिड़िया के पंजों के निशान में क्या अजीब बात हो सकती है?”
“भाई मान गया!” फ़रीदी हँसते हुए बोला।
“क्या…?”
“यही कि तुम ज़िन्दगी भर एक कामयाब जासूस नहीं हो सकते।”
“चलिए, मान लेता हूँ। लेकिन आखिर यह तो बताइए कि इस निशान में अजीब बात कौन सी है?”
“जमीन देख रहे हो कितनी सख्त है।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “अभी तक बारिश भी नहीं हुई। ऐसी सूरत में किसी मामूली चिड़िया के पंजे इतने गहरे निशान नहीं बना सकते। तो फिर इसका मतलब यह हुआ कि इसका वजन ढाई-तीन मन से किसी तरह कम ना होगा और इतने वजन की चिड़िया के इतने छोटे-छोटे पंजों का ख़याल हैरत में डालता है। फ़ौरन सोचो, तो बिल्कुल ऐसा ही लगता है ना, जैसे किसी ऊँट को गौरैया के पंजे दे दिए गए हों? और दूसरी बात देखो, यहाँ चार निशानों के बीच का फासला चार-चार अंगुल है। इसका मतलब यह हुआ कि इस जगह चिड़िया के दो कदम पूरे हुये। पहली चीज़ ये कि इतनी वजनदार चिड़िया इतने छोटे पैर रखती है कि वह चार अंगुल से ज्यादा नहीं फैल सकते। यह चारों निशान यहाँ खत्म हो गये। इसके बाद तकरीबन डेढ़ फुट के फैसले पर फिर वैसे ही चार निशान मिलते हैं, इसलिए दूसरी हैरत की बात ये हुई कि चिड़िया हर दो कदम चलने के बाद डेढ़ फुट कूदती है। मेरे पीछे आओ।” फ़रीदी ने आगे बढ़ते हुए कहा, “यह देखो, कहीं भी इसकी चाल में फर्क नहीं आया। दो कदम चलने के बाद उसके लिए डेढ़ फुट उछलना ज़रूरी है। कहो, कभी ऐसी चिड़िया ख्वाब में भी देखी थी। अब बताओ, कैसी रही?”
“फ़रीदी साहब, मैं फिर कहता हूँ कि अब भूत….!”
“ओफ ओ…!” फ़रीदी हमीद की बात काटते हुए बोला, “वही चुगतपने की बातें।”
“तो फिर और क्या किया जाये?”
“अभी कुछ किया ही क्यों जाये?” फ़रीदी ने कहा, “और दूसरी बात यह देखो कि यह चिड़िया उस तरफ़ से आई, गड्ढे तक गई और फिर उसी तरफ से वापस चली गई।”
“वाकई बड़ी अजीब बात है।” हमीद ने फ़रीदी की आँखों में देखते हुए कहा।
“और दिलचस्प भी!” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा, “ऐसी अजीबोगरीब चिड़िया का शिकार भी दिलचस्प होगा। क्या तुम अपना पिस्तौल साथ लाए हो?”
“पिस्तौल तो है मेरे पास… मगर… मगर…!”
“घबराओ नहीं… मेरी मौजूदगी में यहाँ के भूत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आओ, मेरे साथ चलो।” फ़रीदी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“क्या उन लोगों को साथ में चलिएगा?” हमीद ने कॉन्स्टेबलों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
“अजीब डरपोक आदमी हो…इतने आदमी देखकर अगर चिड़िया उड़ गई तो…तुम्हें तो कोई कहानी सुनाने वाली दादी अम्मा होना चाहिए। मर्द बनो बरखुरदार…..!”
“चलिए साहब।” हमीद मुर्दा सी आवाज में बोला।
दोनों उन अजीबोगरीब निशानों को देख कर आगे बढ़ने लगे। आगे चलकर फिर झाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया। झाड़ियों के बीच बलखाती हुई एक पगडंडी दूर तक चली गई थी।
“देखो मियां हमीद, यह चिड़िया हम लोगों की तरह अक्लमंद मालूम होती है कि झाड़ियों में घुसने की बजाय पगडंडियों पर ही चलती है। बहुत मुमकिन है कि यह काफ़ी पढ़ी-लिखी भी हो…क्या ख़याल है…”
“मैं क्या बताऊं… आप भूत-भूतनियों को तो मानते नहीं। खैर, कभी ना कभी तो मानना पड़ेगा। हो सकता है कि इसी केस के सिलसिले में आपको अपने ख़याल बदलने पड़े।”
“भाई तुम्हें जासूसी करने के लिए किसने कहा था। मैं तुम्हें तुम्हारे साथियों में सबसे ज्यादा होशियार समझता था। लेकिन तुम निकले नहीं निरे गंवार।”
“आप जो चाहे कहे, मगर मुझे पूरा यकीन है कि यह सब किसी इंसान का काम नहीं।”
“अच्छा चलो, वह भूत ही सही। लेकिन साफ़ रहे कि मैं अपने इलाके में भूत का वजूद ही बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
“देखिए, ऐसा ना कहिये…!” हमीद जल्दी से बोला।
“क्यों… क्या भूत तुम्हारे को रिश्तेदार है। अगर ऐसा है तो मैं अपने अल्फाज़ वापस लेता हूँ।”
“आप तो समझते नहीं।” हमीद बुरा मान कर बोला।
“क्या नहीं समझता…?”
“खैर होगा… हटाइए… मुझे क्या?”
“आखिर कुछ कहो भी तो।”
“अब ज्यादा बेवकूफ बनना नहीं चाहता।”
“क्या तुम बुरा मान गए? अरे भाई, रास्ता काटने के लिए भी तो कुछ होना चाहिए। मालूम नहीं, अभी और कितनी दूर चल ना होगा।”
“मेरा ख़याल है कि क्यों ना इस केस को मामूली छानबीन के बाद टाल दिया जाए। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि यह किसी इंसान का काम नहीं।” हमीद ने संजीदगी से कहा।
“भाई, बहुत अच्छे! क्या बात कही आपने?” फ़रीदी ने हमीद की पीठ ठोकते हुए कहा, “लेकिन हमीद साहब यह पहला केस है जिसने मुझे सही मायने में मजा आ रहा है।”
वे दोनों चिड़िया के पंजों के निशान पर चलते हुए अब लगभग एक मील निकल आए थे। यहाँ आकर वह पगडंडी एक कच्ची सड़क में मिल गई थी। सड़क के उस पार फिर घनी झाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया था। यहाँ निशान भी मिट गए थे। सड़क की दूसरी तरफ की निशानात ना मिले। फ़रीदी कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा, फिर चुटकी बजाकर बोला।
“तो हमीद साहब, वह चिड़िया यहाँ तक पैदल आई। इसके बाद से मोटर पर बैठकर उत्तर की तरफ रवाना हो गई।”
हमीद यह सुनकर हँसने लगा।
“इस वक्त मुझे अपना बचपन याद आ रहा है।” हमीद हँसी रोकते हुए बोला।
“तुम शायद मज़ाक समझ रहे हो।” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा, “यह देखो, मोटर के पैरों के निशान दक्षिण की तरफ कहीं नज़र नहीं आ रहे। कोई मोटर यहाँ तक ले आया। उसके बाद फिर बस मील की तरफ़ से उत्तर की तरफ घुमाया। यहीं से चिड़िया के पंजों के निशान भी गायब है।”
“हो सकता है कि चिड़िया मोटर की आवाज सुनकर उड़ गई हो।” हमीद बोला।
“फिर भाई बचपने की बातें। अरे मियां, अगर वह ढाई-तीन मन की चिड़िया उड़ सकती होती, तो इतनी दूर पैदल क्यों आती?”
“यह रही बेपर की।” हमीद जोर से हँस कर बोला।
“खैर, ख़ुदा का शुक्र है कि तुम हँसे तो।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा, “अच्छा आओ… अब इस मोटर के पीछे चलें।”
“तो आप साफ़ निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाली मिसाल पर काम करेंगे।” हमीद जमीन पर बैठकर बोला, “अब तो चला नहीं जाता। पहले आप यह तो बताइए कि आप इस प्लान पर काम कर रहे हैं। तभी चलूंगा।”
“बच्चे मत बनो… चलो उठो… गर्मी के मारे बुरा हाल हो रहा है! खैरियत यही है कि अब लू नहीं चल रही।”
“तो क्यों ना हम लोग अपनी कार यहां ले आयें… और फिर..!”
“अच्छा बको मत, हमें पैदल ही चलना है।” फ़रीदी ने सख्त लहजे में कहा।
“तो मैं कब कहता हूँ कि पैदल न चलूंगा” हमीद ऐसे बचकाना अंदाज़ में कहा कि फ़रीदी को हँसी आ गई।
दोनों फिर मोटर के पहियों के निशान देखते हुए उत्तर की तरफफ़रवाना हो गये। आगे चलकर झाड़ियाँ कम हो गई। वहाँ से कुछ दूर चलने के बाद एक छोटा सा गांव दिखाई दिया। कच्ची सड़क इस गांव के बाहर से होती हुई आगे बढ़ रही थी। दोनों चलते रहे। एक पक्की और नई स्टाइल की ईमारत दूर से ही दिखाई दे रही थी।”
यह शायद इस गांव के जमीदार का मकान मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा।
दोनों इमारत के करीब पहुँच चुके थे। यह नई स्टाइल की एक बड़ी इमारत थी जिसके आगे चारदीवारी में घिरा हुआ भाग था।
“देखिए, मोटर के पहियों के निशान कहाँ ले जाते हैं?”
“ठहरो…!” फ़रीदी हमीद की बात का काटता हुआ जमीन पर झुक गया।
हमीद बुरा सा मुँह बनाये हुए दूसरी तरफ देखने लगा।
“यह देखो…शायद वह चिड़िया यहीं पर मोटर से उतरी है।” फ़रीदी ने चिड़िया के पंजों के निशान की तरफ इशारा करते हुए कहा, जो कहीं-कहीं नज़र आ रहे थे। फ़रीदी निशान को देखता हुआ फाटक की तरफ़ बढ़ रहा था। दोनों बाग में घुस गये।
अचानक एक बड़ा कुत्ता गुर्राता हुआ उनकी तरफ़ लपका।
“जैक जैक…” एक औरत जैसी आवाज आई और कुत्ता दम हिलाता हुआ लौट गया।
“आप लोग कौन है और यहाँ क्या कर रहे हैं?” औरत करीब आकर तेज आवाज में बोली।
वो ख़ूबसूरत जवान औरत थी। कपड़ों और बातचीत के अंदाज़ से यह मालूम हो रहा था कि वह इस घर की मालकिन है। उसने प्याजी रंग की जॉर्जेट की साड़ी पहन रखी थी। बाल पीठ पर बिखरे हुए थे। आँखों में अजीब किस्म की कशिश थी। सार्जेंट हमीद एक ख़ूबसूरत जवान औरत को अपनी तरफ़ देख कर कुछ बौखला सा गया। लेकिन फ़रीदी के अंदाज़ में कोई बदलाव नहीं आया। आराम से बोला, “मोहतरमा! हम लोग डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन से आए हैं।”
“खैर,! ख़ुदा का शुक्र है कि आप लोग आये तो!” उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।
“मैं आप का मतलब नहीं समझा।” फ़रीदी ने हैरान होकर कहा।
“बहुत खूब…तो आप लोग इस बाग में सैर करने के लिए आए हैं?”
“जी नहीं… हम लोग तो…!”
“खैर छोड़िए इन बातों को…कुछ सुराग मिला…मैं बहुत परेशान हूँ।” वह बोली।
फ़रीदी और हमीद हैरत से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।
“मोहतरमा! मैं कुछ समझ नहीं सका।” फ़रीदी ने कहा।
“तो.. आप लोग यहाँ क्या करने आए हैं?” वह गुस्से से बोली।
“देखिए, साफ-साफ बात कीजिए। हम लोग कत्ल की छानबीन कर रहे हैं।” फ़रीदी ने कहा।
“क़त्ल !” वह चौंक कर एक कदम पीछे हटते बोली, “किसका कत्ल…!”
“एक गुमनाम आदमी का।”
“देखिए साहब, बेकार दिमाग मत खराब न कीजिए। आपको एक औरत से मजाक करने की अच्छी खासी सजा मिल सकती है।”
“लीजिए, देख लीजिए।” फ़रीदी ने अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा।
“इंस्पेक्टर ए.के. फ़रीदी।” औरत ने धीरे से कहा, “फ़रीदी साहब! माफ़ कीजिएगा, मैं बहुत परेशान हूँ। परसों रात से मेरी सहेली विमला गायब है। वह 2 महीने के लिए यहाँ आई थी। मेरी समझ में नहीं आता कि मैं उसकी माँ-बाप को क्या जवाब दूंगी। मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस वक्त समझी कि शायद आप लोग उसी के सिलसिले में कोई खबर देने आए हैं।”
“मोहतरमा, हमें इसका कोई इल्म नहीं। हम तो इस वक्त एक अजीबोगरीब चिड़िया का पीछा करते हुए यहाँ आए हैं।” फ़रीदी ने कहा, “हमें आपकी सहेली की कोई खबर नहीं।”
“मुझे सख्त अफ़सोस है…अगर शाम को यहाँ की पुलिस ने कोई खबर ना दे, तो मैं यकीनन इस मामले को आगे बढ़ा दूंगी।”
“अगर आप मुझे उस चिड़िया की तलाश में मदद दे सके, तो शुक्रगुजार होऊंगा। आप इत्मीनान रखिए। मैं आपकी सहेली का पता लगाने की कोशिश करूंगा। मैं वादा करता हूँ।”
“भला मैं क्या बता सकती हूँ। इस बाग में दिनभर अंदर में परिंदे आते होंगे।” वह मुस्कुरा कर बोली।
“नहीं, यह परिंदा अपनी तरह का एक ही मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा।
“मैं आपका मतलब नहीं समझी।”
“यही कि इसका वजन दो-ढाई मन से किसी तरह कम ना होगा।” हमीद ने जल्दी से कहा।
“आप तो तिलस्मी बातें कर रहे हैं।” हँसते हुए बोली।
“यह सार्जेंट हमीद है।” फरीदी ने हमीद की तरफ इशारा करते हुए कहा, “बहुत दिलचस्प आदमी है। आप इनकी बातों का कुछ ख्याल ना कीजिएगा।”
“ओह, कोई बात नहीं।” औरत मुस्कुरा कर बोली।
फ़रीदी को अपनी बेवकूफी पर अफ़सोस हो रहा था कि उसने चिड़िया का राज इतनी जल्दी क्यों कह दिया। अपनी गलती का एहसास होते हैं वह फौरन संभल कर बोला।
“मोहतरमा, बात दरअसल गया है कि हम लोग आप ही के मामले की छानबीन कर रहे हैं। अभी-अभी हमें मालूम हुआ कि यहाँ से तीन मील के फासले पर किसी गड्ढे से एक लाश बरामद हुई है। लेकिन वह किसी मर्द की है, आप परेशान न हो।”
“आपकी तो कोई बात समझ ही नहीं आ रही है, अभी तो आप चिड़िया..!”
“ठीक है… ठीक है…” वह उसकी बात काटते को बोला। हम जासूसों के काम करने का तरीका जनता की समझ में नहीं आता। बहरहाल, अगर तकलीफ़ ना हो, तो पहले हमें थोड़ा सा पानी पिलायें। आप देखती है, कितनी सख्त धूप है।”
“ज़रूर… ज़रूर… अंदर आ जाइये।” वह बरामदे की तरह मुड़ती हुई बोली।
बरामदे में पहुँचकर दोनों ने अपनी कोट उतार कर कुर्सियों पर डाल दिये और रुमाल से चेहरों का पसीना पोछते हुए आराम से कुर्सी पर गिर गये.
“यहाँ भी काफी गर्मी है।” औरत बोली, “मेरे ख़याल से अंदर ठीक रहेगा।”
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