चैप्टर 8 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 8 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 8 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 8 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

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दिलचस्प

दिल्ली एक्सप्रेस पूरी रफ्तार से चीखती-चिंघाड़ती भाग रही थी। इंस्पेक्टर फ़रीदी एक बूढ़े आदमी के भेष में फर्स्ट क्लास में सफर कर रहा था। गर्मी की वजह से उसे नींद नहीं आ रही थी और अगर शायद उस वक्त नींद आती भी, तो नहीं सोता क्योंकि सामने वाली बस लेटे सिख पर उसने नज़र रखी हुई थी।

वह दो-तीन स्टेशन के बाद सवार हुआ था और इस वक़्त अखबार पढ़ रहा था। सबसे ज्यादा दिलचस्प चीज यह थी कि उसने इस वक्त ही काली ऐनक पहन रखी थी। फ़रीदी सोचने लगा कि अगर उसकी आँखें खराब होती, तो इस वक्त अखबार ना पड़ता और अगर आँखें खराब नहीं, तो रात के वक्त काली ऐनक लगाकर पढ़ना, किसी होशमंद आदमी के लिए नामुमकिन है। तो फिर इसका मतलब यह हुआ कि यह या तो पागल है या फिर….अभी वह सोच रहा था कि सिख ने उसकी तरफ रुख किया और मुस्कुराने लगा।

“क्यों साहब, कानपुर किस वक्त आयेगा?” उसने जम्हाई लेते हुए कहा।

“कानपुर नहीं येगा, बल्कि हम लोग 4:00 बजे कानपुर पहुँचेंगे।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

“एक ही बात है।” उसने हँस कर कहा और फिर चौंककर उठ बैठा। लेकिन दूसरे ही पल संभलकर अपना जूता तलाश करने लगा।

जब वह बाथरूम से लौटा, तो फ़रीदी के सामने खड़ा हो गया।

“फ़रीदी साहब, आदाब अर्ज़ है।” उसने मुस्कुराते झुकते हुए कहा।

अगर फ़रीदी की जगह कोई और होता, अचानक तुमने तो ज़रूर बौखला जाता, लेकिन फ़रीदी पर इस बात का कोई असर ना हुआ। सिख ने शायद यही समझा था कि अचानक पहचान ले जाने पर फ़रीदी ज़रूर परेशान हो जायेगा। लेकिन जब उसने यह देखा कि फ़रीदी के इत्मीनान में किसी किस्म का फ़र्क नहीं आया, तो वह ख़ुद बुरी तरह बौखला गया।

“आदाब अर्ज़!” फ़रीदी ने लेटे-लेटे ही कहा और फिर ख़याल में डूबकर सिगार के कश लेने लगा, जैसे कोई बात ही ना हो।

सिख शायद उलझनमें पड़ गया था कि अब क्या कहें। उसकी हालत बिल्कुल उस बच्चे जैसी हो रही थी, जिसकी शरारत से अचानक कार स्टार्ट हो जाये और वह बौखला कर यह सोचने लगे कि अब मशीन किस तरह बंद की जाये। वह घुटी-घुटी आवाज़ में खांसने लगा। फ़रीदी का अंदाज़ ऐसा था, जैसे उसके अलावा कंपार्टमेंट में कोई और ना हो।

“फ़रीदी साहब, कहिए कैसे पहचाना।” वह दोबारा झेंपी हुई हँसी के साथ बोला।

“ऊं!” फ़रीदी चौंककर बोला, “लेकिन मेरी शराफ़त की भी दाद दीजिये कि मैंने आपको पहचानकर भी पहचाने की ज़रूरत नहीं समझी।”

“आप भला मुझे क्या जाने।” वह घबराकर एक कदम पीछे हटते हुए बोला।

“क्यों सरदार जी! क्या अब यह बताने की ज़रूरत रह जाती है कि आपके दाढ़ी और केश दोनों नकली है।” फ़रीदी ने लेटे ही लेटे छत की तरफ देखते हुए कहा।

सिख चुपचाप अपनी बर्थ की तरफ लौट गया। फ़रीदी बदस्तूर उसी तरह लेटे हुए छत की तरफ देख रहा था। हालांकि, चलती हुई ट्रेन के अंदर हवा के झोंके आ रहे थे और पंखा चल रहा था, लेकिन फिर भी सिख के माथे पर पसीने की बूंदे साफ नज़र आ रही थी। उसने सिरहाने रखी हुई छोटी सी अटैची से रिवाल्वर निकाला और फ़रीदी की तरह तान कर कहने लगा।

“बस खबरदार उठने की कोशिश ना करना।”

“अजीब बेवकूफ हो।” फ़रीदी ने हँसकर उसकी तरफ देखते हुए कहा, “तुम्हारे दिल में यह ख़याल कैसे पैदा हुआ कि मैं उठने की कोशिश करूंगा?”

“बको मत!” सिख गरज कर बोला।

“देखो भाई, बातचीत के दौरान मेरी एक शर्त है। वरना मुझे कहीं सचमुच न उठना पड़ेगा।” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा, “तुम आखिर चाहते क्या हो? सबसे पहले तुमने मुझे फ़रीदी कहकर पुकारा। हालांकि लोग मुझे मेजर सरदार खां कहते हैं, लेकिन मैंने बुरा ना माना। फिर तुमने मेरा मज़ाक उड़ाने की तरफ से यह कहा कि मैं तुम्हें पहचान गया, लेकिन फिर भी मैं टाल गया। हालांकि मैंने चोरी नहीं की, डाका नहीं डाला कि तुम इस तरह से कहते कि कैसे पहचाना? मैं तो तुम्हारे मज़ाक कर कुछ ना बोला। लेकिन मैंने ज़रा यह कह दिया कि तुम्हारी दाढ़ी और केश नकली है, तो तुम्हें रिवाल्वर निकाल लिया। अजीब आदमी हो। तुम्हें इस अंधेरे में काला चश्मा लगाकर पढ़ते देख कर पहले ख़याल हुआ था कि ज़रूर तुम्हारा दिमाग खराब है। पता नहीं लोग ऐसे आदमियों को अकेले क्यों सफ़र करने देते हैं। माना कि तुम किसी ऊँचे खानदान से ताल्लुक रखते हो। मगर ऐसा भी क्या कि मज़ाक की बात पर रिवॉल्वर निकाल लो और फिर छेड़ पहले तुम्हारी तरफ से हुई थी। तुम मुझसे उम्र में छोटे, इसे नसीहत के तौर पर यह ज़रूर कहूंगा कि अपने ऊपर काबू रखना सीखो और हाँ रिवाल्वर का रौब हर एक पल नहीं पड़ा करता। मैं सन् 1965 की जंग में हजारों को मौत के घाट उतार चुका हूँ, ये 6 इंच का रिवाल्वर मेरा क्या बिगाड़ देगा। मुझे मेजर सरदार खां कहते हैं, सरदार जी!”

सिख रिवाल्वर वाला हाथ बुरी तरह कांप रहा था। धीरे-धीरे उसका हाथ झुक गया। उसका चेहरा पसीने से तर था। थोड़ी देर तक वह चुप रहा, फिर खंखार कर कहने लगा।

“माफ़ कीजियेगा, मेज़र साहब, मुझे धोखा हुआ है। अब आप से क्या परदा। आप सरकारी आदमी है। मैं दरअसल सीआईडी का इंस्पेक्टर हूँ। आज कई दिन से मैं बहुत बड़े बदमाश के चक्कर में हूँ। मुझे दरअसल बहुत बड़ा धोखा हुआ है। क्या किया जाये कि आपकी आँखें उस कमबख्त की आँखों से बहुत मिलती-जुलती है। मैं एक बार फिर माफी चाहता हूँ जनाब।“

“कोई बात नहीं।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “अक्सर धोखा हो ही जाता है। कहाँ जा रहे हैं आप?”

“कानपुर!”

“चलिए, सफ़र मज़े में कटेगा। मैं भी कानपुर जा रहा हूँ।”

“बड़ी ख़ुशी हुई।”

“आप आजकल कहाँ तैनात है?” फ़रीद ने पूछा।

“इलाहाबाद में!”

“तब तो आप बड़े मज़े में होंगे!” फ़रीदी ने हँसकर कहा।

“क्यों मज़े में क्यों?” सिख ने हैरत से कहा।

“अमरूद खाते होंगे।” फ़रीद ने कहकर एक भद्दा सा कहकहा लगाया। सिख भी हँसने लगा।

“आप सिगार पीते हैं?” फ़रीद ने सिगार केस बढ़ाते हुए कहा।

“जी नहीं शुक्रिया!”

“तो फिर कुछ बातें कीजिए, ताकि रास्ता कटे। अब तो नींद आने से दूर रही। दीवार पर देखते ही रफूचक्कर हो गई।”

“जी, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।” सिख ने हँसकर दांत निकाल दिये।

“कोई बात नहीं, कोई बात नहीं।” फ़रीदी ने कहा।

थोड़ी देर तक खामोशी रही, फिर बोला, “देखिए, वह बदमाश कब तक हाथ आता है।”

“कौन बदमाश?” फ़रीदी चौंक कर बोला।

“वही फ़रीदी।” सिख ने कहा, “जिसके धोखे में आपको परेशान किया।”

“देखिए, अगर आप इसी तरह धोखा खाते रहे, तो मुश्किल ही से उस पर हाथ पड़ सकेगा।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “हाँ यह तो आपने बताया नहीं कि उसका ज़ुर्म क्या है।”

“अरे साहब, मामूली ज़ुर्म नहीं है।” सिख बोला “आपने इलाहाबाद के कनाडा बैंक की चोरी का हाल ज़रूर सुना होगा। इस चोरी में उसी का हाथ था। उसके साथियों ने एक चौकीदार को भी जान से मार डाला।”

“तब तो बड़ा खतरनाक आदमी मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा, “और आप उसे अकेले गिरफ्तार करने निकले हैं।”

“जी नहीं हम कई हैं।”

“अच्छा!” फ़रीदी ने कहा।

“मुझे उम्मीद है कि वह जल्द ही गिरफ्तार हो जायेगा।” सिख ने अपना चश्मा उतारने की तैयारी करते हुए कहा।

फ़रीदी उसकी आँखें देखते ही चौंक पड़ा और फिर दिल ही दिल में हँसने लगा।

“अच्छा भाई मेज़र साहब, अब तो नींद आ रही है। नमस्कार।” सिख ने जम्हाई लेते हुए कहा।

“अच्छा साहब गुड नाइट!” फ़रीदी ने जला हुआ सिगार खिड़की से बाहर फेंकते हुए कहा।

रात के तकरीबन 3:00 बज रहे होंगे, सिख खर्राटे ले रहा था। फ़रीदी धीरे-धीरे उठा और अचानक सोये हुए सिख पर टूट पड़ा। सिख ने घबरा कर उठने की कोशिश की, लेकिन वह फ़रीदी की गिरफ्त में बुरी तरह जकड़ा हुआ था। कुछ नींद का ख़ुमार, कुछ इस अचानक हमले की बौखलाहट। इन सब चीजों ने मिलकर उस में मुकाबला करने की ताकत ना रहने दी। फ़रीदी ने उसकी टाई से उसके दोनों हाथ उसकी पीठ पर जकड़ दिए। अब बर्थ पर बेबस पड़ा हुआ गालियाँ बक रहा था। फ़रीदी खड़ा मुस्कुराता रहा। वह हमेशा ऐसे मौकों पर अपने शिकार की फड़फड़ाहट से काफी खुश हुआ करता था। अब मैं अपने प्यारे सीआईडी इंस्पेक्टर के दर्शन करना चाहता हूँ।” फ़रीदी ने झुककर सिख की दाढ़ी नोंचते हुए कहा। मुट्ठी में बहुत से बाल उखड़ आये और उसकी मुड़ी हुई ठोड़ी साफ दिखाई देने लगी। फ़रीदी ने दाढ़ी के बाल नोच लिए और उसकी पगड़ी उतार दी।

“ओ हो! डॉक्टर सतीश। तुमसे इतनी जल्दी मिलने की उम्मीद ना थी।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

वह बराबर गालियाँ बके जा रहा था।

“शोर मत मचाओ सतीश!” फ़रीदी गरज कर बोला।

“आज ही तो तुम मेरी गिरफ्त में आये हो। देखता हूँ, अब कैसे बच निकलते हो। काफ़ी दिनों से मेरी निगाहें तुम पर थी। मैं तुम्हारी करतूतों से वाकिफ़ था, लेकिन तुम कानून की गिरफ्त से हमेशा बच निकलते थे।”

“देखा जायेगा….इस वक्त तुमने कौन से कानून के तहत मुझे बांध रखा है। तुम मेरा कुछ नहीं कर सकते।” सतीश तेजी से बोला।

“भेष बदलकर लोगों को धोखा देना।” फ़रीदी ने मुस्कुराकर कहा, “कम से कम छ: महीने के लिए तो ज़रूर जाओगे।”

“तुम मुझे खोल दो, वरना अच्छा न होगा।” डॉक्टर सतीश ने चीख कर कहा।

“और तुम्हें खोली देने पर क्या अच्छा होगा?” फ़रीद ने हँसकर कहा, “तुम्हें खोल दूं, ताकि तुम मुझे अपने बिना लाइसेंस के रिवाल्वर का निशाना बना लो। क्यों, है ना यही बात?”

“देखो, मैं फिर कहता हूँ कि मुझे खोल दो, वरना कहीं तुम्हें अपनी नौकरी से हाथ धोने पड़े।”

“मैं पानी से हाथ धोने का आदी हूँ। उसकी आप फ़िक्र न करें।”

“तो तुम नहीं खोलोगे?”

“हरगिज़ नहीं”

“अच्छा, देख लूंगा?”

“जी भर कर देख लेना, कहीं बाद में पछताना पड़े। बहुत हो सकता है कि विमला और रणधीर भी अपना ज़ोर लगाकर तुम्हें ज्यादा दिनों के लिए भिजवा दें।” फ़रीदी  ने मुस्कुरा कर कहा।

विमला और रणधीर का नाम सुनकर डॉक्टर सतीश के मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही थी। वह फ़रीदी को हैरान आँखों से घूर रहा था।

“क्यों, चुप हो गए।” फ़रीदी ने अपना कंधा उचकाते हुए कहा, “क्या गलत कह रहा हूँ? सचमुच बताना डॉक्टर, आखिर इस भेष में तुम कहाँ और क्या करने जा रहे थे?”

“फ़र्ज़ करो कि मैं यह ना बताऊं तो?” डॉक्टर सतीश ने तेजी से कहा।

“तुम्हारी मर्ज़ी….मैं किसी को किसी बात पर मजबूर करने का आदी नहीं, लेकिन उस वक्त से डरो, जब सिविल पुलिस के रंग-रूट तुम्हारी पोजीशन का ख़याल किए बिना तुम्हारी सारी बातें उगलवाना शुरू कर देंगे। अगर सीधे-सीधे मुझ बता दोगे, फिर उस अजाब से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा…वरना!’

फ़रीदी थोड़ी देर तक रुककर डॉक्टर सतीश के चेहरे के उतार-चढ़ाव को गौर से देखता रहा, फिर अचानक बोला, “शाम वाली लाश विमला की की थी ना?”

“हाँ आँ, क्या मतलब!” डॉक्टर सतीश चौंक कर बोला, “तुम न जाने क्या उल्टी-सीधी हांक रहे हो।”

“खैर, मेरा मकसद हल हो गया और मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम आसानी से यह सब कुछ ना बताओगे। खैर, फिर सही। अच्छा, इतना तो बता ही दो कि जब तुम मुझे पहचान गए थे, तो मुझे छेड़ने की ज़रूरत ही क्या थी।”

डॉक्टर सतीश मुस्कुराने लगा। अचानक उसकी आँखें चमकने लगी, उसने हँसकर कहा, “वाह फ़रीदी साहब, आप कैसे जासूस हैं, इतना भी नहीं समझे। भाई, आपको 10:00 बजे रात स्टेशन की तरफ आते देखा, तो मुझे मजाक सूझा। मैंने सोचा कि क्यों ना आपसे इसी तरह पहचान कराई जाये। मैंने सिख का भेष बदला और कार में बैठकर फौरन अगले स्टेशनों की तरफ रवाना हो गया। वहाँ इत्तेफाकन मुझे उसी डिब्बे में आना पड़ा, जहाँ आप थे। यह इत्तेफाक नहीं तो और क्या है।” डॉक्टर सतीश हँसने लगा।

“बहुत अच्छे!” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “मेरी छुरी से मुझे ही मार रहे हो। डॉक्टर मेरे लिए तुम्हारी यह बातें किसी 6 महीने के बच्चे की गा-गा से ज्यादा नहीं मायने रखती। ज़रा यह तो बताओ कि तुम्हें इन बातें का कैसे यकीन हो गया था कि मैं कानपुर ही की तरह सफ़र करूंगा, जबकि 11:00 बजे दूसरी तीन गाड़ियाँ अलग-अलग तरफ जाती हैं।”

डॉ. सतीश खामोश हो गया। उसके चेहरे पर परेशानी साफ़ झलक रही थी।

“खैर, तो तुम यह भी नहीं बताना चाहते कि तुमने मुझे क्यों छेड़ा था।” फ़रीदी ने सिगार सुलगाते हुए कहा।

“देखो, मैं फिर कहता हूँ कि मेरे हाथ खोल दो।” डॉ. सतीश ने गुस्से में कहा।

“और मैं तुमसे हाथ जोड़कर कहता हूँ कि बार-बार तुम यही एक जुमला दोहराते जाओ।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

“तुम अजीब गधे के बच्चे हो।” डॉ. सतीश ने चीख कर कहा।

“ज़रा इस बात को साफ कर दो कि मैं गधे का बच्चा होने की वजह से अजीब हूँ या अजीब होने की वजह से गधे का बच्चा हूँ….या…फिर!” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा।

“तुम्हारा सिर!” डॉ. सतीश ज़ोर से चीखा।

“हाँ हाँ, मेरा सिर!” फ़रीदी ने घबराहट में अपना सिर टटोलते हुए कहा, “क्या हुआ मेरे सिर को…मौजूद तो है।”

“चुप रहो, उल्लू के पट्ठे।” डॉक्टर सतीश परेशान होकर ज़ोर से चीखा।

“अच्छा, चुप हो गया उल्लू का पट्ठा।” फ़रीदी ने उसी अंदाज़ में चेक कर कहा और छत की तरफ देखने लगा।

डॉक्टर सतीश में झुंझलाहट में अपना सिर दीवार से टकराया।

“अरे-अरे, यह क्या कर रहे हो! अपने साथ मुझे भी फंसवाओगे क्या? अगर दीवार टूट गई तो…” फ़रीदी ने उसकी तरफ़ झुकते हुए कहा।

“खुदा के लिए मेरा पीछा छोड़ दो।” सतीश से तंग आकर कहा।

“लेकिन ख़ुदा ने ही कहा है कि मैं तुम्हारा पीछा ना छोडूं।”

“ओ यू ब्रूट!” डॉक्टर सतीश इस पर बुरी तरह चीखा कि उसकी आवाज भर्रा गई  और वह बेतहाशा हँसने लगा।

फ़रीदी ने भी कहकहा लगाया।

“खूब दिल खोल कर हँस ले, लेकिन इतना याद रखो कि मैं तुम्हें ज़िन्दा ना छोडूंगा।” सतीश ने गुस्से से हांफते हुए कहा।

“क्या करूं डॉक्टर, जब से उस बोतल वाली गैस का असर दिमाग पर हुआ, कभी-कभी बेवजह भी हँसी आने लगती है।” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा।

डॉक्टर सतीश का मुँह उतर गया। वह फ़रीदी को गौर से देख रहा था।

“डॉक्टर, सच में बताना वह किसका एक्सपेरिमेंट है। तुमसे तो उसकी उम्मीद नहीं… तुम तो ठहरे घामड़ आदमी।”

“तुम मुझे क्या समझे हो?” डॉक्टर सतीश संभल कर बोला, “तुम ना जाने क्या बक रहे हो। कैसी गेम्स, कैसा एक्सपेरिमेंट…घामड़ तुम खुद होगे।”

डॉ. सतीश खामोश हो गया। इतनी देर तक चीखते रहने से वह निढाल सा हो गया था। एक हारे हुए ना उम्मीद जुआरी की तरह उसने हाथ पर डाल दिये।

फ़रीदी अब भी उसे छेड़ रहा था, लेकिन वह बिल्कुल खामोश। न जाने वह क्या सोच रहा था। फ़रीदी ने घड़ी देखी। गाड़ी 15 मिनट के बाद कानपुर पहुँचने वाली थी।

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