चैप्टर 3 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 3 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 3 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel 

Chapter 3 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel 

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शक का घेरा

इस खुलासे पर दूसरे दिन सारे शहर में हलचल मच गई। अब यह मामला काफ़ी पेचीदा हो गया था। वह शख्स, जिसे लोग मुज़रिम समझ रहे थे, ख़ुद किसी का शिकार साबित हुआ। लाश अभी तक कोतवाली में ही थी। फ़रीदी और कुछ दूसरे जासूस लाश का मुआयना कर रहे थे। मरने वाला एक ख़ूबसूरत नौजवान था। लेकिन उसके पास से ऐसी कोई चीज बरामद न हुई, जिससे उसकी शिनाख्त की जा सके। मोटरसाइकिल का लाइसेंस नंबर और कंपनी का नंबर….. दोनों पहले ही गायब हो चुके थे। फ़रीदी उलझन में पड़ गया था।

“क्यों भाई हमीद, क्या ख़याल है?” फ़रीदी ने सार्जेंट हमीद से कहा।

“अभी तक तो ख़याल का ख़याल भी नदारद है।” हमीद ने कहा, “लेकिन यह आप किस तरह समझे कि आदमी मुज़रिमों का साथी नहीं था?”

“तुम्हारे इस सवाल से ज़ाहिर होता है कि तुम्हारा ज़ेहन किसी खास लाइन पर काम कर रहा है।” फ़रीदी ने कहा।

“क्या यह नहीं हो सकता कि कोतवाली इंचार्ज के निकलने पर मुज़रिमों ने अपने साथी को इसलिए मौत के घाट उतार दिया हो कि कहीं वह पुलिस के हत्थे चढ़ कर सारा राज़ न बता दे।” हमीद ने सिर खुजाते हुए कहा।

“यह तो कोई बात नहीं हुई।” फ़रीदी बोला, “अंधेरे में सही तौर पर भी गोली लग जाने का इमकान है। हाँ, यह भी हो सकता है, लेकिन यह क्यों मान लिया जाये कि कातिल मुज़रिमों का साथी ही था। सिर्फ़ इसलिए कि ऐसी सूरत में उसे दफ़न करने की ज़रूरत नहीं थी। अगर उन्हें इस बात का शक होता कि वे उसकी वजह से पहचान लिए जायेंगे, तो भी उसे कभी कोतवाली ना भेजते हो और अगर उन्हें इसका अंदेशा नहीं था, तो फिर लाश को दफ़न करने की वजह समझ में नहीं आ रही।”

फिर फ़रीदी हमीद को समझाते हुए बोला, “देखो, किसी लाश को दफ़न करना आसान काम नहीं। लाश दफ़न करने के लिए कम से कम तीन घंटे तो चाहिए। अगर वह उनका साथी था, तो इसका मतलब यह हुआ कि वह ख़ुद भी अपनी जान देना चाहते थे या बिल्कुल ही बेवकूफ थे, क्योंकि उन्हें इसका भी ख़याल होगा कि इतनी देर में अगर पुलिस वाले करीब किसी गांव से कुछ आदमी लेकर वापस आ जाए, तो क्या होगा। लाश दफ़न कर देना यकीनन उनके लिए बचाव की सूरत रखता था। तभी उन्होंने इतना बड़ा खतरा मोल लिया। जैसा कि तुम्हारा ख़याल है कि यह किसी बहुत बड़े गिरोह का काम है, तो यह अच्छी तरह समझ लो, ऐसा गिरोह अपने किसी पुराने और आसानी से पहचान लिए जाने वाले आदमी को ऐसे कामों के लिए नहीं चुनता। इसके लिए वह हमेशा किसी नये आदमी को फांसता है, ताकि अगर वह पकड़ लिया जाये, तो किसी किस्म का कोई राज़ ज़ाहिर ना हो सके।

“चलिए, मैंने मान लिया।” हमीद ने कहा, “लेकिन अब यह सवाल पैदा होता है कि अगर मुज़रिमों को ख़ासतौर से उसी आदमी को क़त्ल करना था, तो आखिर इतना हंगामा करने की क्या ज़रूरत थी। इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने पुलिस को बाकायदा चैलेंज कर एक आदमी को क़त्ल किया। इस तरह तो उन्होंने अपने आप एक मुसीबत मोल ले ली। अगर उसे मारना ही था, तो यूं ही मार कर दफ़न कर देते।”

“तुम्हारी अक्लमंदी मंदी का कायल हूँ।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “क्या यह नहीं हो सकता कि इस तरह उन्होंने पुलिस को गलत रास्ते पर लगाने की कोशिश की हो। मान लो कि मैं तुम्हारा कत्ल करना चाहता हूँ। अगर मैंने तुम्हें कत्ल करके दफ़न कर भी दिया, तो तुम्हारे गुम हो जाने के बाद लोग तुमको ढूंढगे और अगर उनको मुझ पर थोड़ा सा भी शक होगा कि मैं तुम्हें कत्ल कर सकता हूँ, तो यही चीज मेरे लिए मुसीबत बन जायेगी। लेकिन अगर मैं थोड़ी होशियारी से तुमको खत्म करूं, तो उसके लिए मुझे तुम्हारा खुलेआम कत्ल करना होगा। अब इसका तरीका सुनो। मान लो तुम 2:00 बजे रात को धर्मपुर के जंगलों से गुजर रहे हैं और मुझे मुर्दा समझ कर यकीनन पुलिस को इसकी खबर देने जाओगे और यह भी समझ रखो कि तुम्हारी कब्र मैं पहले से ही तैयार कर रखूंगा। जैसे ही तुम पुलिस को साथ लेकर आओगे, तुम लोगों पर गोलियों की बौछार शुरू हो जाएगी और दूसरों को बचाते हुए सिर्फ तुम निशाना बना दिए जाओगे। गोलियों की अंधाधुन बौछार से घबरा कर दूसरे लोग भाग खड़े होंगे। इसके बाद मैं तुम्हारी लाश पहले से खुदे गड्ढे में दफन कर दूंगा। वापसी में जब पुलिस वाले तुम्हें साथ ना पाएंगे, तो तुम्हारे बारे में उनका शक यकीन में तब्दील हो जाएगा और वह तुम्हें मुज़रिम समझ कर तुम्हारी तलाश शुरू कर देंगे। इस तरह एक तरफ तो मैं तुम्हें कत्ल भी कर दूंगा और तुम्हें मुज़रिम भी बनवा दूंगा और खुद आराम से मजे करूंगा। क्या समझे….! और फिर मैं तुम्हारी मोटरसाइकिल के नंबर भी गायब कर दूंगा। वह भी बीच कोतवाली से…. लेकिन अफ़सोस-सद-अफ़सोस कि मैं इन कमबख्त गीदड़ का कुछ नहीं बिगाड़ सकूंगा और आखिरकार उन्हीं की बदौलत मेरी गिरफ्तारी भी हो जाएगी।”

“मगर साहब! न जाने क्यों मेरा दिल कह रहा है कि यह शख्स मुजरिमों का साथी है।” हमीद ने कहा।

“भाई, यह जासूसी का मामला….इसका मतलब तो है नहीं कि दिल की आवाज पर काम किया जाए। यहाँ तो सिर्फ़ दिमाग की बातें ही मानी जाती है।” फ़रीदी ने बुझे हुए सिगार को सुलगाते हुए कहा।

“खैर, चलिए! अगर मैं इसे मान भी लूं तो पेड़ वाला मामला समझ में नहीं आता। आधे घंटे में इतने मोटे तने वाले पेड़ को काट गिराना नामुमकिन है।”

“तुम्हें कब कहता हूँ यह मुमकिन है। हो सकता है, पेड़ के काटने का काम सुबह ही से शुरु कर दिया गया हो और उसका उतना हिस्सा काट कर छोड़ दिया गया हो, ताकि बाकी का हिस्सा थोड़ी देर की मेहनत से काटकर पेट गिराया जा सके। तुमने शायद गौर नहीं किया….उसी लाइन के कई और पेड़ भी काटे गए हैं। शायद यह काम डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की तरफ से हो रहा है। हालांकि मुझे इसमें शक है। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अलावा कोई और इन पेड़ों को कानूनन कटवा भी नहीं सकता और यह भी नहीं हो सकता कि कोई सरकारी दफ्तर अपनी जिम्मेदारी पर इतने बड़े पेड़ को ऐसी खतरनाक हालत में छोड़ जाये, जो आधे घंटे की मेहनत से गिराया जा सके। क्योंकि इतना भारी भरकम पेड़ ऐसी हालत में तेज हवा का एक झोंका भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

“वाकई मानता हूँ।” हमीद ने हैरत से फ़रीदी को देखते हुए कहा, “वल्लाह आपको तो स्कॉटलैंड यार्ड में होना चाहिए था। यह आपकी कोई कदर नहीं है। अब इसी को देख लीजिए कि आप आज तक चीफ इंस्पेक्टर ना हो सके।”

“तो मैं चीफ इंस्पेक्टर होना कब चाहता हूँ।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा, “चीफ इंस्पेक्टर होने के बाद मेरी हैसियत एक क्लर्क सी हो जाएगी और यह तो तुम जानते ही हो कि मैं इस लाइन में पैसा पैदा करने नहीं आया और ना मुझे ओहदों  का लालच है। मेरे पास इतना पैसा मौजूद है कि बेकार बैठकर भी शहजादों की सी ज़िन्दगी गुजार सकता हूँ। अगर हिंदुस्तान में प्राइवेट जासूसों के लिए कानूनन कोई जगह होती, तो मुझे इतना सिरदर्द मोल लेने की कोई ज़रूरत ना थी।”

“आप कहेंगे मैं चापलूसी कर रहा हूँ।” हमीद ने कहा, “लेकिन मैं कहे बगैर नहीं रह सकता कि आप जैसा आदमी आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुजरा। कभी-कभी तो मैं यह सोचने लगता हूँ कि शायद आप लोहे के बने हैं।’

“और बहुत से लोग मुझे लोहे का चना भी समझते हैं।” फ़रीदी ने हँसकर कहा।

“लेकिन यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर आप औरतों से क्यों दूर भागते हैं शादी क्यों नहीं करते…”

“फिर वही औरत…?” फ़रीदी ने हमीद को घूरते हुए कहा, “अभी तुम्हारे सिर पर औरत क्यों सवार है। कहीं से बात शुरू हो, तुम्हारी तान हमेशा औरत ही पर टूटती है। यह क्या बेवकूफी है।”

“आप इसे बेवकूफी कहते हैं।” हमीद ने संजीदगी से कहा।

“अच्छा, बको मत…. अभी बहुत काम करना है। चलो डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के दफ्तर चले।”

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के दफ्तर में इन दोनों की आमद से भूचाल सा आ गया। मामूली से चपरासी से लेकर चेयरमैन तक खुद को चोर महसूस करने लगे। लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के किसी भी डिपार्टमेंट के दफ्तर में किसी जासूस के आ जाना वहाँ के पूरे स्टाफ के लिए झटके से कम नहीं होता। उनकी सारी पिछली धांधली-बाजियाँ उनकी आँखों के सामने नाचने लगती है। और हर शख्स को लगता है कि आज वह पकड़ लिया जावेगा। लेकिन यहाँ फ़रीदी अपने किसी दूसरे काम से आया था। दफ्तर में जब यह मालूम हुआ कि वह उन मजदूरों से मिलना चाहता है, जो धर्मपुर के जंगलों में पेड़ काट रहे थे, तो उनकी जान में जान आई। धर्मपुर के जंगलों का हादसा काफ़ी मशहूर हो चुका था। इसलिए सभी यही समझे, ये लोग थोड़ी छानबीन के सिलसिले में आये हैं। वहाँ के मजदूरों में से सिर्फ़ दो उस वक्त मौजूद थे। फ़रीदी उन्हें अलग ले गया।

“तुम लोगों ने एक खतरनाक गलती की है।” फ़रीदी ने धीरे से कहा।

दोनों के चेहरे पर फ़क्क थे और वे एक-दूसरे की तरफ अजीब तरह से देखने लगे।

“तुमने वह पेड़ सड़क की तरफ क्यों गिराया था….?”

“साहब सड़क की तरफ़ तो हम दोनों ने कोई पेड़ नहीं गिराया।” उनमें से एक बोला।

“याद करो वह पीपल का पेड़, जो चौराहे से कुछ दूर हटकर था।”

“नहीं साहब! हम ऐसी गलती नहीं कर सकते।”

“खैर, अगर तुमने गिराया नहीं था तो उसे ऐसी हालत में छोड़ दिया था कि पेड़ तेज हवा चलने पर अपने आप गिर जाए।”

“नहीं तो… मगर साहब।”

“साफ-साफ बताओ।” फ़रीदी तेज आवाज में बोला।

“मुझसे सुनिये साहब….” दूसरा बोला, “अब तो गलती हो ही गई है और सजा भुगतनी होगी।”

“हाँ हाँ, डरो नहीं… हम गरीबों का ख़ासतौर पर ध्यान रखते हैं। मगर सच्चाई शर्त है।” फ़रीदी उसका कंधा थपथपाते हुए बोला।

“ख़ुदा आपको ख़ुश रखे… हम लोग बिल्कुल बेकसूर है। हमारी गलती बस…!”

“हाँ हाँ कहो।”

“साहब हुआ यह कि हम चार आदमी उस पेड़ को काट रहे थे। शाम हो गई थी और पेड़ इतना काट दिया था कि उस की डालो पर रस्सी फंसा कर उसे आसानी से दूसरी तरफ़ गिराया जा सकता था। हम लोग सुस्ताने लगे थे और इरादा था कि अब उसे दूसरी तरफ़ गिरा दे कि अचानक किसी के चीखने की आवाज आई। हम लोग चौंक पड़े। एक आदमी हमें अपनी तरफ़ दौड़ता हुआ दिखाई दिया। वह ‘हाय मार डाला… हाय लूट लिया’ कहता हुआ हमारे करीब गिर पड़ा। हम लोगों के पूछने पर उसने बताया कि वह जिलेदार है, गांव से रुपए वसूल करके ला रहा था कि अचानक दो आदमियों ने उसे मारपीट कर रुपए छीन लिए। उसके बयान के मुताबिक हादसा करीब ही हुआ था, इसलिए हम चारों शोर मचाते हुए उसके बताए हुए रास्ते पर दौड़ने लगे। वह भी हमारे साथ था। एक जगह पर रुक गया और एक झाड़ी से एक खाली उठाकर हमें दिखाएं और कहा कि इसी थैली में रुपए है। शायद घबराहट में या उन बदमाशों के हाथ से गिर गई। उसने वह थैली जमीन पर उलट दी और बैठकर रुपए कितने लगा। वाकई उस थाली में हजारों रुपए थे। उसने हम लोगों से कहा कि हम उसके साथ शहर चलें, क्योंकि वह पुलिस में रिपोर्ट करना चाहता था और उसे यह डर था कि कहीं रात में भी बदमाश फिर मैं मिल जाएं। हम लोगों ने इंकार किया, लेकिन उसने हमें हजार रुपए देने का वादा करके राजी कर लिया। हम लौट आए और कुल्हाड़ी वगैरह संभाल कर शहर की तरफ चल पड़े। हजार रुपयों के लालच में हमें यह भी ना सोचने दिया कि पेड़ को खतरनाक हालत में छोड़कर जा रहे हैं। शहर पहुँच कर उसने कहा कि अब पुलिस में रिपोर्ट करना बेकार ही है क्योंकि रुपए तो मिल गए हैं। फिर वह हमें एक शराब खाने में ले गया। हम लोग कभी कभी देसी शराब पी लेते हैं, वहाँ अंग्रेजी शराब देख कर हमारे मुँह में पानी भर आया। हमें से एक ऐसा भी था, जो शराब नहीं पीता था, लेकिन और दूसरे खाने-पीने की अच्छी-अच्छी चीजें देखकर वह भी तैयार हो गया। हमें कुछ अच्छी तरह याद नहीं कि हमने कितने पी। बहरहाल, जब हमें होश आया, तो हमने ख़ुद को एक वीरान कब्रिस्तान में पाया। शायद उस वक्त रात के 3:00 बज रहे होंगे। यह सरकार हमारी राम कहानी। अब आप जो सजा चाहे दे।’

“बहरहाल!” फ़रीदी लंबी सांस लेकर बोला, “मैं कोशिश तो करूंगा कि तुम लोगों पर कोई आँच ना आने पाये। अच्छा यह तो बताओ कि तुमने उस जिलेदार को उससे पहले भी कहीं देखा था।”

“जी नहीं… हमने पहले उसे कभी नहीं देखा था।”

“अगर तुम उसे देखो ,तो पहचान लोगे।”

“अच्छी तरह सरकार… अच्छी तरह।” दोनों एक साथ बोले।

“अच्छा उसका हुलिया तो बताओ।”

“हुलिया क्या बताऊं सरकार… अच्छा खासा, लंबा तगड़ा आदमी था। बड़ी-बड़ी काली मूंछें थी, आँखों पर चश्मा लगाया था। रंग गोरा था। अंग्रेजी कपड़े पहने हुए था। बात-बात पर बच्चों की तरह ठहाका मार कर हँसता था। मगरमच्छ से दांत बड़े चमकीले थे। मुझे उसके दांत बिल्कुल भेड़िये की तरह मालूम हो रहे थे। हँसमुख आदमी ज़रूर था, लेकिन दांतों की वजह से उसकी हँसी भी बड़ी भयानक मालूम होती थी।”

फ़रीदी ने दोबारा पूछा, “तुम उसे देखकर पहचान लोगे?”

“बराबर सरकार…!” दोनों एक साथ फिर बोल उठे।

“अच्छा देखो… अभी तुमने जो कहानी मुझे सुनाई है, उसको किसी और को ना सुनाना, वरना मैं तुम्हें ना बचा सकूंगा। अपने उन दोनों साथियों को भी समझा देना, इस कहानी को भी किसी को ना सुनायें।”

“मजाल सरकार कि आपके बातों के खिलाफ़ जायें। हम लोग बिल्कुल चुप रहेंगे।”

“कहो भाई, अब क्या ख़याल है?” फ़रीदी ने हमीद से कहा।

“भला आपसे गलती हो सकती है?” हमीद बोला, “लेकिन अब क्या करना चाहिए?”

“बस, देखते रहो… अब चुटकी बजाते मुज़रिम हमारी गिरफ्त में होंगे।” फ़रीदी ने सिगार-केस से सिगार निकालते हुए कहा।

“मगर यह औरत की लाश वाला मामला अभी तक समझ में नहीं आया….” हमीद ने अपना सिर खुजाते हुए कहा।

“यह कोई मुश्किल काम नहीं है….एक औरत की लाश बहुत आसानी से तैयार कर सकते हो। वह लाश यकीनन नकली होगी।”

“मोटरसाइकिल का नंबर वाला मामला भी अजीब है।खैर, नंबर प्लेट निकाल देना तो मुश्किल काम नहीं। कंपनी का नंबर देखने के लिए काफ़ी वक्त दरकार होता है और हैरत इस पर है कि किसी ने रेती चलने की आवाज भी ना सुनी।“

फ़रीदी कुछ सोचते सोचते चौंक पड़ा।

“हमीद! मैं दरअसल इसलिए तुम्हें अपने साथ रखता हूँ, तुम्हारे सवाल ने अचानक यह  मामला भी हल कर दिया। तो सुनो, क्या तुम्हें याद नहीं कि सुपरिटेंडेंट साहब की कार बिगड़ गई थी और ड्राइवर बार-बार इंजन स्टार्ट कर रहा था। उस इंजन के शोर में भला रेती की आवाज कैसे सुनी जा सकती है। लगभग दो घंटे के बाद कार बन सकी थी। अब मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि मोटरसाइकिल का नंबर इसी बीच रेता गया था, लेकिन रेतने वाला कौन हो सकता? किसी बाहरी आदमी की हिम्मत तो नहीं पड़ सकती।”

“तो फिर आपका शक किस पर है?”

“अभी फिलहाल है बताना जरा मुश्किल है।” फ़रीदी में सिगार मुँह से निकालते हुए कहा, “क्यों ना हम लोग धर्मपुर के जंगल का एक चक्कर और लगा आयें। मुझे एक ज़बरदस्त गलती हुई है। मुझे उस गड्ढे का, जिससे लाश मिली थी, ठीक तरह जायज़ा लेना चाहिए था। हो सकता है, कोई काम की बात मालूम हो जाती।”

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