Chapter 12 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel
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फ़रीदी की नाक
अच्छा खासा अंधेरा हो गया था। धर्मपुर की अधूरी और वीरान सड़क पर इंस्पेक्टर फ़रीदी की कार तेज रफ्तार में चली जा रही थी।
“शायद आज की रात फिर खराब हो।” हमीद ने बेदिली से कहा।
“देखा जायेगा। अभी से किस बात की परेशानी है।” फ़रीदी ने धीरे से कहा।
“परेशानी आपको ना होती होगी। यहाँ तो जान निकल कर रह जाती है। समझ में नहीं आता कि यह कौन गधा है, जिसने क़त्ल के लिए ऐसी वीरान जगह चुन रखी है। अरे, कत्ल करना है, तो हमारे घर के आस-पास कहीं कर दिया करें।” हमीद ने बेज़ारी से कहा।
“जी नहीं!” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “यह भी ठीक नहीं। उसे चाहिए कि कत्ल करके लाश आपके घर भिजवा दिया करें।”
हमीद हँसने लगा।
“क्या ज़िन्दगी है हमारी भी….न दिन चैन, न रात आराम…इससे बेहतर तो क्लर्की थी. सुबह दस बजे दफ्तर शाम चार बजे शंस इघर और उसके बाद रात अपनी.” हमीद ने कहा।
“क्या बूढ़ी औरतों की सी बातें कर रहे हो।”
“काश, मैं बूढ़ी औरत ही होता, मगर जासूस ना होता। हर वक्त ज़िन्दगी रिवाल्वर की नाल पर रखी रहती है या फिर जासूसी हो अंग्रेजी तर्ज़ की कि जासूस ने किसी क़त्ल की खबर सुनते ही एक आँख बंद की, कंधों को ज़रा-सा हिलाया, दो चार बार कान हिलाये, एक बार मुँह बिसूरा और अचानक मुस्कुराते हुए कातिल का नाम और पता बताकर अपना फ़र्ज़ पूरा किया और चलता बना। यह काम है कि दिन-रात भूतों की तरह….” हमीद रुक कर कुछ सोचने लगा।
“क्या बकवास लगा रखी है।” फ़रीदी ने उकता कर कहा।
“अरे, बाप रे बाप। देखिए कितना अंधेरा है। क्या आप गीदड़ की लाश भूल गए हैं। मैं तो साहब हर्गिज़ न जाऊंगा। भाड़ में गई नौकरी…मेरे फेफड़े में इतना दम नहीं है कि चीख-चीख कर कह-कहे लगाता फिरूं और फिर बेहोश होकर गिर पडूं।“
“तुम भी अजीब आदमी हो।” फ़रीदी ने कहा, “क्या अभी तक तुम्हारे दिल में भूतों का ख़याल नहीं निकला। अरे बेवकूफ कितनी बार समझाया कि वह इन बोतलों में भरी हुई गैस का असर था।”
“अगर यह सच है तो उस गीदड़ की लाश का क्या मतलब था? उसके मुँह में दबे हुए पाइप का क्या मतलब था और उस शेर की क्या ज़रूरत थी?”
“इसका मकसद सिर्फ़ यही था कि उसे देखकर हँसी आ जाये और फिर सबसे बड़ी बात यह है कि अगर वहाँ दूसरे आदमी मौजूद ना होते, तो हमारे इस बयान पर किसी को यकीन ना आता।मुज़रिमों का मकसद यही था कि हम लोग उनकी इस हरकत को शैतानी काम समझ लें और थक हार कर बैठ जायें।”
“साहब, आपकी यह बातें मेरे हलक से नहीं उतरती।”
“अच्छा, अब खामोश रहिये, वरना मेरा गुस्सा आपके हलक से उतर जायेगा।”
“बेबसी की मौत से उसे बेहतर समझूंगा। मैं आपके आपसे सच कहता हूँ कि इस वक्त में मज़ाक के मूड में नहीं हूँ।” हमीद ने कहा, “न जाने क्यों मेरा दिल बैठा जा रहा है।”
“ओ मेरा दिल ना जाने क्यों उठकर टहल रहा है।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “दिल बैठा जा रहा है, बहुत खूब। मैं गलत नहीं कहता कि तुम्हारे अंदर किसी बुढ़िया की रूह घुस गई है। बरखुरदार इस किस्म के मुहावरे की किसी मर्द के मुँह पर अच्छे नहीं लगते।”
“आप बरखुरदार… इस किस्म के मुहावरे…” हमीद जल्दी से बोला।
फरीदी हँसने लगा। उसके बाद खामोशी छा गई। मोटर की आवाज अंदर के सन्नाटे में गूंज रही थी। कभी-कभी हेड लाइट की रोशनी में सड़क पर एक आध गीदड़ या जंगली बिल्ली भागती दिखाई दे जाती थी। हवा बंद थी। आसमान बादलों से ढका हुआ था। हमीद ने सिगरेट से लगाया और हल्के-हल्के कश लेने लगा। अचानक फ़रीदी चौंककर कहने लगा।
“क्यों हमीद…! टेलीफोन पर बातचीत करने के बाद हम लोग कितनी देर में घर से रवाना हो गए होंगे?”
“मुश्किल से दस मिनट के बाद।”
“ताज्जुब है कि अभी तक पुलिस की लॉरी दिखाई नहीं दी। आखिर यह लोग किस रफ्तार से सीधे होंगे?”
“हो सकता है कि वह हम लोगों के बाद रवाना हुए होंगे।”
“तब भी अब तक उन्हें पहुँच जाना चाहिए था। सोचने की बात है कि सुधीर जल्दी की वजह से कोतवाली में मेरा इंतज़ार नहीं कर सकता था , इसलिए उसने सीधे यही आने के लिए कहा । अगर वाकई इतनी जल्दी थी, तो इस सुस्त रफ्तार का क्या मतलब हो सकता है?”
“तो क्या!” हमीद सीट पर उछलते हुए बोला, “हमें किसी ने धोखा दिया।”
“हो सकता है।” फिर वह कुछ सोच कर बोला, “दरअसल मुज़रिम मेरी जान लेना चाहता है, डॉक्टर सतीश भी इसी मकसद से मेरे पीछे लगा था।”
“लेकिन अगर वह आपको कत्ल ही करना चाहता था, तो खामोशी से क्यों ना कर दिया? आखिर छिपाने की क्या ज़रूरत थी?”
“जहाँ तक मेरा ख़याल है, वह मुझे एक बुढ़िया के भेष में देखकर शक में पड़ गया था। इस शक को खत्म करने के लिए उसने यह चाल चली और फिर कुछ देर बाद उसने रिवॉल्वर निकाल लिया था।”
“अच्छा तो क्या बात है, आपने उसे पहचान लिया था?’
“बिल्कुल नहीं…अलबत्ता अंधेरी रात में काली ऐनक ज़रूर शक के घेरे में डाल रही थी।” फ़रीदी ने कहा।
“अरे यह क्या!” हमीद चौंककर बोला।
“क्या बात है?”
“ऊपर बाई तरफ की झाड़ियों में कोई था।” हम इतने अंधेरे में बोलते हुए कहा।
“फ़रीदी ने कार की रफ्तार कम कर दी!
“यह आप क्या कर रहे हैं । रफ्तार तेज रखिये।” हमीद जल्दी से बोला।
“क्यों क्या मरने का इरादा है?”फ़रीदी ने कहा। अगर कोई बड़ा पेड़ अचानक कार के सामने आ गये, तो हम लोग कहाँ होंगे?”
“अरे बाप रे बाप!” हमीद के मुँह से अचानक निकल गया।
“अरे ज़रा को संभाल कर बैठो, कोई हादसा होने ही वाला है।“ फ़रीदी ने कहा, ” रिवाल्वर लाये नहीं।”
“अर्रर… रिवाल्वर….!” हमीद हकलाने लगा।
हमीद को हकेलाते देख फ़रीदी हँसने लगा।
“आप हँस….हँस…. रहे हैं।”
“तुम भी हँसो ना!”
“मुझे खांसी आ रही है।” हमीद ने ज़बरदस्ती खांसते हुए कहा।
“अरे!” फ़रीदी चौंक कर बोला।
हेड लाइट की रोशनी में सड़क पर एक आदमी पड़ा दिखाई दिया। फ़रीदी ने कार की रफ्तार धीमी कर दी। कार रुक गई। फ़रीदी ने कार पीछे की तरफ लौटानी शुरू की।
“क्यों, यह क्या हुआ?” हमीद जल्दी से बोला।
“खतरा है वापस चलेंगे!” फ़रीदी ने धीरे से कहा।
अचानक कार की खिड़की से कोई चीज फ़रीदी की कनपटी से लगकर रुक गई, ऐसा ही कुछ हमीद के साथ भी हुआ और एक गरजदार आवाज सुनाई दी, “नीचे उतरो।”
दो राइफलें की नाले फ़रीदी और हमीद की कनपटियों से लगी हुई थी। दरवाजे खुले और दोनों नीचे उतार लिए गए। पाँच आदमी थे। उनके चेहरे काले नकाब उसे ढके हुए थे। चार के पास राइफलें ली थी और पाँचवा रिवाल्वर लिए हुए था।
“ले चलो!” रिवाल्वर वाले ने कहा।
दोनों को दो-दो आदमी ने पकड़ लिया और सब झाड़ियों में घुसते चले गये। हमीद और फ़रीदी खामोश थे। रिवाल्वर वाले नकाबपोश के हाथ में टॉर्च थी। वह आगे-आगे रास्ता दिखाता हुआ चला जा रहा था। अचानक फ़रीदी बैठ गया। जिन आदमियों ने उसे पकड़ रखा था, उन्होंने उसे उठाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया। मगर वह टस से मस ना हुआ।
रिवाल्वर वाला पलट पड़ा। उसने हम फ़रीदी के चेहरे पर टॉर्च की रोशनी डाली। फ़रीदी मुस्कुरा रहा था।
“क्यों मक्कार! क्या अब कोई नहीं हरामजदगी सूझी।“ वह गरजकर कर बोला
“मेरा ख़याल है कि मैं आप लोगों को नहीं जानता! इसलिए तो अजीब शर्त है।”फ़रीदी मुँह बनाकर बोला।
“अगर हम खामोशी की जगह गाना गाते हुए चलें, तो कैसा रहेगा?” हमीद ने मजाक में कहा।
“चुप करो चूहे के बच्चे।” रिवाल्वर वाला पैर पटकते हुएबोला।
“आप बड़े बदतमीज मालूम होते हैं।” हमीद ने जमीन पर बैठ ते हुए कहा। लेकिन उसे उठा दिया गया। मगर फ़रीदी जमीन पर बैठ गया।
“उठो!” रिवाल्वर वाले ने फ़रीदी से कहा।
“रुक जा भाई ज़रा सस्ता लेने दो, अगर इज़ाज़त हो, तो मै एक सिगार भी सुलगा लूं।” फ़रीदी ने इत्मीनान से कहा।
“मालूम होता है कि तुम लोगों को यहीं पर खत्म कर देना होगा।” रिवाल्वर वाले ने कहा।
“नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। अगर खत्म ही कर देना है, तो यहाँ क्या बुराई है।” फ़रीदी ने कहा।
“उठो….” फ़रीदी भी उसी अंदाज़ में चीखा।
“अच्छा ठहरो बताता हूँ तुम्हें ।” उसने रिवाल्वर रखते हुए कहा।
“ज़रा हिंदी में बताना…. मुझे अंग्रेजी नहीं आती।” हमीद ने चिल्ला कर कहा।
“चुप रहो!” वह ज़ोर से चीख कर फ़रीदी की तरफ बढ़ा।
फ़रीदी के हाथ अभी तक उन दोनों आदमी ने जकड़ रखे थे। रिवाल्वर वाले ने फ़रीदी के बाल पकड़कर उठाने की कोशिश की, लेकिन वह हिला तक नहीं।
“तुम यू नहीं मानोगे।” रिवाल्वर वाला फ़रीदी की नाक पकड़ कर दबाते हुए बोला।
“फ़रीदी के मुँह से चीख निकल गई। वह चल कर खड़ा हो गया।
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि वे लोग, जो फ़रीदी को पकड़े हुए थे, संभल ना सके। फ़रीदी उनकी पकड़ से आज़ाद होकर उछला और हमीद पर आ गिरा। जिन्होंने हमीद को पकड़ रखा था, वह भी हमीद समेत जमीन पर आ गिरे।रिवाल्वर वाला चीखने लगा।
“खबरदार खबरदार गोली मार दूंगा!”
अब बिल्कुल अंधेरा था। इस कशमकश में रिवाल्वर वाले के हाथ से टॉर्च गिर गई थी। रिवाल्वर वाले ने हवाई फायर करने शुरू कर दिये। शायद उसे डर था कि अंधेरे में उसी के हाथ ना ज़ख्मी हो जाए। तकरीबन पंद्रह-बीस मिनट तक अंधेरे में जद्दोजहद होती रही। रिवाल्वर वाले की आवाज बराबर सुनाई दे रही थी।
फ़रीदी और हमीद एक-दूसरे का हाथ पकड़कर पंजों के बल सड़क की तरफ भाग रहे थे। कार वहीं खड़ी थी। दोनों कार में बैठ गये। फ़रीदी ने कार स्टार्ट कर दिया। झाड़ियों के अंदर शोरगुल की आवाजें सुनाई देने लगी, तो धीरे-धीरे करीब आती जा रही थी। फ़रीद ने कार घुमाई और वे दोनों बहुत ज्यादा तेज रफ्तार से शहर की तरफ भाग खड़े हुए। फायर अभी हो रहे थे, जिनकी आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी।
“क्यों मियां हमीद…. हो गई ना अच्छी खासी मरम्मत!” फ़रीदी ने कहा, “वह तो उसके हाथ से टॉर्च गिर गई, वरना इस वक्त हम कहीं और होते।”
“बस अब मत बोलिए… खामोशी से चलिए।” हमीद ने कांपते हुए कहा।
“अरे वाह मेरे शेर… बस इतने ही में हांफने लगा।” फ़रीदी ने कहकहा लगाया।
“आप ठहरे पहलवान… भला मैं आप का मुकाबला कब कर सकता हूँ।” हमीद ने कहा, “देखिये मैंने पहले ही कह दिया था कि लौट चलिये।”
“अगर मैं लौट जाता, तो मुझे ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहता।” फ़रीदी ने कहा।
“क्यों?”
“इसलिए कि यहाँ आने से मुज़रिमों का कुछ ना कुछ सुराग मिल गया।”
“वह कैसे?”
“इसका जवाब यह टॉर्च देगी।”
“टॉर्च!” हमीद ने हैरत से कहा, “वह कब से बोलने लगी।”
“उसी वक्त से।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “इस वक्त या टॉर्च बहुत कीमती है।”
“ज़रा देखूं तो।”
“हो हो…. छूना मत उसे!” फ़रीदी ने उसे हटाते हुए कहा।
“यह बड़ी मेहनत तो उसे हासिल हुई है। इतनी कुश्ती लड़ने के बावजूद मैंने इसकी काफ़ी हिफाज़त की है।”
“आखिर क्यों?”
“इस पर मुज़रिम की उंगलियों के निशान है। इसको मैं अभी फिंगरप्रिंट डिपार्टमेंट में दूंगा।”
हमीद हैरत से फ़रीदी का मुँह देख रहा था।
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