चैप्टर 9 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 9 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 9 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 9 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

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तीसरा शिकार

दूसरे दिन फ़रीदी कानपुर से लौट आया। उसके साथ डॉक्टर सतीश भी था, जिसकी निगरानी के लिए कानपुर के दो कांस्टेबल साथ आये थे। हमीद फ़रीदी को लेने के लिए स्टेशन आया था। वह डॉक्टर सतीश को हाल में देखकर हैरान था।

“यह हजरत कहाँ?” उसने फ़रीदी से कहा, “मैं यहाँ परेशान हो रहा था कि आखिर यह कहाँ लापता हो गये।”

“भई, मैं ऐसे दोस्तों को अपने साथ ही रखता हूँ।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

“डॉ. सतीश उससे कहर भरी नज़रों से घूरने लगा।

वे लोग स्टेशन से निकलकर बाहर आये। हमीद फ़रीदी की कार लेकर आया था। फ़रीदी ने डॉक्टर सतीश से कार में बैठने के लिए, लेकिन वह खड़ा रहा। फिर नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि कांस्टेबलों ने उसे जबरदस्ती कार में बिठाना चाहा। तभी एक फायर हुआ और डॉक्टर सतीश चीखकर जमीन पर गिर पड़ा। गोली सिर की हड्डियाँ तोड़ती हुई माथे से निकल गई थी। फ़रीदी और हमीद उस तरह झपटे जिधर से फायर हुआ था। लोग इधर-उधर भागने लगे। देखते ही देखते ऐसी भगदड़ मची, मानो बमबारी होने वाली हो। फ़रीदी बुरी तरह झल्लाया हुआ था।

“बिल्कुल बेकार है, हमीद….इन कम्बख्तों की बदहवासी की वजह से शिकार हाथ से निकल गया। ” उसने रुककर माथे से पसीना पोछते हुए कहा।

“यह आखिर हुआ क्या?” हमीद ने पूछा।

“बहुत बुरा हुआ। अब नये सिरे से काम करना पड़ेगा, सारी मेहनत पर पानी फिर गया।” फ़रीदी ने हाथ मलते हुए कहा। डॉक्टर सतीश की लाश कोतवाली लाई गई। थोड़ी देर बाद इस हादसे की खबर सारे शहर में मशहूर हो गई। फ़रीदी से बयान लिया गया। उसने सतीश की गिरफ्तारी से लेकर मौत तक की सारी कहानी बता दी, लेकिन उसने अपने इस शक़ का खुलासा ना किया कि डॉक्टर सतीश का संबंध रणधीर वाले केस से भी है।

कोतवाली से फुर्सत पाकर जब दोनों घर आये, तो फ़रीदी ने हमीद से पूछा।

“हाँ भई, यह तो बताओ कि वह लाश विमला की ही की थी ना।”

“जी हाँ, विमला!” हमीद ने कहा, “और सरोज हवालात में है “

“क्या मतलब?” फ़रीदी ने चौंककर कहा।

“आपके जाने के बाद मैं सरोज को कोतवाली लाया। हालांकि लाश खराब हो चुकी थी, उसका चेहरा बिगड़ गया, लेकिन सरोज ने उसे पहचान। उसका बयान दोबारा लिया गया। दिलबीर सिंह की जमानत हो, लेकिन सरोज अभी तक हवालात ही में है।”

“यह तो बहुत बुरा हुआ। इन गधों को कभी अक्ल ना आयेगी। सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ दिया कमबख्तों ने। तुम ने उन्हें ऐसा करने से रोका क्यों नहीं?”

“मैंने चीफ इंस्पेक्टर से कहकर रुकवाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने भी कोई ध्यान नहीं दिया।”

“खैर और कोई खबर?”

“डॉक्टर सतीश यहाँ से गायब हो गया था। दिलबीर सिंह और सरोज की गिरफ्तारी के बाद मकान की निगरानी का कोई सवाल ही नहीं रह गया था।”

“हमीद, तुम इतने बेवकूफ क्यों होते जा रहे हो।” फ़रीदी ने अपनी रान पर हाथ मारते हुए कहा, “तुम्हें यह कैसे सूझी कि यही दोनों मुजरिम है। इस किस्म के काम अकेले नहीं किये जाते हैं। शरू ही से चीखता आ रहा हूँ कि इसमें किसी गिरोह का हाथ है। फिर भी तुमने ऐसी बेवकूफी कर डाली, अफ़सोस!”

“अब क्या बताऊं! हो गई, तो हो गई गलती।”

“बस, किस्सा खत्म, उल्लू कहीं के।”

“कानपुर में क्या रहा? “हमें थोड़ी देर खामोश रहने के बाद बोला।

“कानपुर में मैंने यह राय कायम की थी कि डॉ. सतीश इस गिरोह का सरगना है। लेकिन यह ख़याल गलत साबित हुआ। अगर ऐसा होता, तो उसकी मौत इस तरह ना होती। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि वह इस गिरोह के एक मामूली मेंबर की हैसियत से काम कर रहा था। ख़ुद उसने किसी किस्म का बयान नहीं दिया, लेकिन मैंने अपने तरीकों से इस बात का पता लगा लिया था कि वह इस गिरोह से जुड़ा ज़रूर है। एक बात साफ़ ना हो सकी कि वह उस वक़्त भेष बदलकर कानपुर क्यों जा रहा था। अगर उसका मकसद रणधीर सिंह के घर की तलाशी लेना था तो उसने मुझे ट्रेन में छेड़ा क्यों था? चुपचाप निकल क्यों नहीं गया?”

“हाँ वाकई यह चीज अजीबोगरीब है।” हमीद कुछ सोचते हुए बोला।

“मैं एक भतीजे पर और पहुँचा हूँ कि जिस वक्त विमला को गोली लगी, वह रणधीर की मोटरसाइकिल के कैरियर पर बैठी थी। रणधीर सिंह ने यह बयान गलत दिया था कि वह अकेला जलालपुर से आ रहा था और उसने धर्मपुर के जंगल में एक औरत की लाश देखी थी। गोली लगते ही विमला गिर गई थी। उसके गिरने के बाद रणधीर यहाँ कुछ देर रुका भी था।”

“क्या आप किस तरह कह सकते?” हमीद ने कहा।

“यह देखो, यह खत मुझे कानपुर में रणबीर के कमरे की तलाशी लेते वक्त मिला था।”  फ़रीदी ने जेब से ख़त निकालकर हमीद की तरफ बढ़ा दिया।

हमीद खत पढ़ने लगा।

“रणधीर,

मैं एक बहुत बड़ी मुश्किल में फंस गई हूँ। मुझे आकर बचाओ। किसी तरह यहाँ आकर मुझे खामोशी से निकाल ले जाओ। देखो यह बात किसी पर ज़ाहिर ना होने पाये, वरना मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी। मुझे लिखो कि तुम कब आ रहे हो, लेकिन इस तरह आना कि किसी को कानों कान खबर ना होने पाये। यह मेरी ज़िन्दगी का सवाल है। इस ख़त को पढ़कर जला देना।

विमला”

“लेकिन इस खत से आपने उन सब बातों का अंदाज़ा कैसे लगा लिया?’

“बहुत आसानी से।” फ़रीदी ने कहा, “अगर मुझे या खत ना मिलता, तो मुझे न जाने कितना और भटकना पड़ता।”

“मैं आपका मतलब नहीं समझा।”

“यह कोई नई बात नहीं।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा, “तुम कभी मतलब नहीं समझते। खैर सुनो! जब यह खत रणधीर को मिला होगा, तो उसने उसके जवाब में विमला को लिखा होगा कि वह उसे निकाल ले जाने के लिए आ रहा है और उसने उसे तमाम सवाल भी पूछे होंगे। हो सकता है कि अगर ख़त उन लोगों के हाथ लग गया हो, जिनके चंगुल से बाहर निकल जाने की कोशिश वह कर रही थी। उन्होंने यही ठीक समझा हो कि रणधीर को यहाँ आने दिया जाये और इस तरह विमला और रणबीर दोनों को खत्म कर दिया जाये कि किसी को कानों कान खबर तक ना हो। रणधीर यहाँ आया, उसने मोटरसाइकिल हासिल की और विमला को उस पर सवार करके ले भागा। कातिलों ने अपना प्लान पहले ही से तैयार कर रखा था। पहले उन्होंने विमला को खत्म किया। जब रणधीर यहाँ से पुलिस ले गया, तो उन्होंने गोलियाँ चलाकर पुलिस वालों को तो भगा दिया और रणधीर को वही ढेर करके दफन कर दिया। इस तरह उन्होंने रणधीर को पुलिस की निगाहों में मुज़रिम बनाकर विमला के गायब हो जाने का जिम्मेदार भी बना दिया।”

“लेकिन जब उन्होंने रणधीर को दफन कर दिया था, तो इस बात का कैसे पता चलता कि वह यानी रणधीर विमला का मंगेतर था। आखिर इसका इज़हार भी तो ज़रूरी था, वरना विमला की फ़रारी की जिम्मेदारी उस पर क्यों लग गई होती।” हमीद ने कहा।

“बहुत आसानी से…विमला ने रणधीर को लिख दिया था कि वह किसी से इस बात का ज़िक्र ना करें। इसलिए उसकी रवानगी की खबर किसी को ना हो सकी। यह ज़रूरी बात है कि रणबीर के अचानक इस तरह गायब हो जाने से लोगों को यही ख़याल होता कि वह दोनों कहीं फ़रार हो गए हैं, जबकि लोग पहले से ही जानते थे कि दोनों एक दूसरे के मंगेतर है।”

“हूं!” हमीद ने सोचते हुए कहा, “फिर मोटरसाइकिल का नंबर मिटाने की क्या ज़रूरत थी?”

“यह तो मामूली सी बात है। अगर मोटरसाइकिल का नंबर ना मिटाया जाता, उसके मालिक का पता बहुत आसानी से चल जाता और रणधीर की लाश दफन कर देने का मतलब ही यह था कि पुलिस इधर-उधर अंधेरे में सिर फोड़ते रहते। वह तो दुआ दो गीदड़ों को कि रणधीर की लाश बरामद हो गई, वरना अभी पहला दिन होता।”

“अब आपने क्या सोचा है?” हमीद ने कहा।

“अभी कुछ नहीं सोचा। अभी तो फिलहाल मुझे सरोज को रिहा कराके जलालपुर पहुँचाना है।”

“हे हे इश्के-अव्वल दर्दे दिल…ले लिया!” हमीद ने कव्वाली की तर्ज़ पर झूमते हुए कहा।

“क्या बकते हो!” फ़रीदी बेचैन होकर बोला।

“अरे, क्या पूछते हैं हुजूर…बस यह समझ लीजिए कि पुराने लेखको के शब्दों में वह कहते हैं ना हसीना, नाज़नीना, मलायक फरेब, परी, महजबीं, सरापा खांसी-ओ-बुखार की घड़ियाँ कभी गिनती होंगी ..ओ …हो… ओ…..हो…..”

“बस बस, बकवास बंद…. वरना!”

“वरना आप मेरा हक भी मार लेंगे। बहुत-बहुत शुक्रिया।” हमीद ने हँसकर कहा।

“तुम तो अच्छे खासे गधे हो।” फ़रीदी ने उक्त आकर कहा पर आँखें बंद करके आराम कुर्सी पर टेक लगाकर बैठ गया।

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