चैप्टर 6 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 6 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 6 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 6 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

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लाश की पहचान

ड्राइंग रूम में पहुँचकर वे सोफे पर बैठ गए। औरत ने नौकर को बुलाकर पानी लाने को कहा। ड्राइंग रूम को बहुत ही बेहतरीन तरीके से सजाया गया था। फर्श पर भारी और कीमती कालीन बिछा हुआ था। सोफे पर फूलदार रेशमी कपड़े के गिलाफ खड़े हुए थे। दीवारों पर बड़े फ्रेमों में आर्ट के बेहतरीन नमूने नज़र आ रहे थे। फ़रीदी इस देहाती इलाके में यह शानो शौकत देखकर हैरान था। थोड़ी देर के बाद नौकर शीशे के जग में ठंडा पानी लाया।

“मेरे ख़याल से कुछ खा भी लीजिए।” औरत बोली।

“जी नहीं शुक्रिया।” फ़रीदी ने पानी के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा।

दोनों ने जी भर कर पानी पिया। कुछ देर तक इधर-उधर की बातें होती रही।

“वाकई विमला देवी का इस तरह गायब हो जाना हैरतअंगेज है।” फ़रीदी बोला।

हमीद चौक कर उसकी तरफ देखने लगा। उसे हैरत हो रही थी की फ़रीदी चिड़िया से विमला देवी तक क्यों कर जा पहुँचे।

“क्या बताऊं, इंस्पेक्टर साहब कि मुझे कितनी परेशानी है।”

“कुदरती बात है।” फ़रीदी सिर हिलाकर बोला।

“मेरी समझ में नहीं आता कि उसके माँ-बाप को क्या जवाब दूंगी?”

“क्या आपने उन्हें इसकी कोई खबर की।”

“अब तक तो नहीं… समझ में नहीं आता कि उन्हें क्या लिखूं?”

“तो क्या हुआ कहीं दूर रहते हैं?” फ़रीदी ने कहा।

“जी हाँ…कानपुर में…उसके पिता वहाँ रुई के बहुत बड़े व्यापारी हैं। शायद आपने सुना होगा। सेठ करमचंद।”

“ओह अच्छा…. तो वे यहाँ अपने शौहर से लड़कर आई थी।” फ़रीदी बोला।

“नहीं अभी उसकी शादी नहीं हुई है। वह मेरी क्लास फेलो रह चुकी है। यूं ही घूमने के लिए आई थी, तकरीबन एक महीने की बात है।”

“अभी एक महीना और रहने का इरादा था.”

“जी हाँ!”

“क्या यह नहीं हो सकता कि वह किसी वजह से आपको खबर दिए बगैर कानपुर चली गई हो।”

“ऐसी तो कोई वजह नहीं हो सकती कि वह नंगे पैर बगैर सामान लिए यहाँ से चली जाए।”

“नंगे पैर… क्या मतलब?”

“जी हाँ…सारे सैंडल उसके कमरे में मौजूद है और वह सारा सामान भी जो वह अपने साथ लाई थी।”

“हैरत की बात है।” फ़रीदी हमीद की तरफ देखते बोला, “अच्छा यह बताइए इस दौरान उनके पास बाहर से कुछ खत भी आए थे।”

“जी हाँ… ज्यादातर उनके माँ-बाप या मंगेतर की होते थे।”

“हूं..” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा, “क्या आपका इन खतों के देखने का भी इत्तेफ़ाक़ हुआ।”

“जी नहीं!”

“उनके मंगेतर का क्या नाम है?”

“रणधीर सिंह.”

“रणधीर सिंह !” फ़रीदी तकरीबन उछलते हुए बोला, “क्या आपने उसे देखा भी है?”

“कई बार!”

“क्या वो कभी यहाँ आया था?”

“नहीं, मैं उसे कानपुर में मिल चुकी हूँ।”

“तब आपको मेरे साथ कोतवाली तक चलने की ज़हमत करनी पड़ेगी।”

“क्यों…?” औरत ने हैरान होकर पूछा।

“आज जिस शख्स कि लाश धर्मपुर के जंगल में मिली है, उसने भी अपना नाम रणधीर सिंह ही बताया था।”

“अरे! तो क्या…तो क्या!” औरत कांपने लगी।

“घबराने की कोई बात नहीं।” फ़रीदी उठते हुए बोला।

“जल्दी कीजिए।”

अचानक दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनाई दी और एक अधेड़ उम्र का मजबूत आदमी कमरे में आकर खड़ा हो गया।

उसने पतलून-कमीज पहन रखी थी। बड़े से लंबूतरे चेहरे पर उसकी बड़ी-बड़ी वीरान आँखें बहुत ही अपना को मालूम हो रही थी। दहाना काफी फैला हुआ था और दोनों कानों पर घने बालों की लकीरें थी। चेहरा इस तरह साफ था, जैसे उसने अभी-अभी शेव की हो। साँस के साथ साथ उसकी फूली हुई नाक के नथुने फूल-पचक रहे थे। बाजू की ऊपरी मछलियाँ आस्तीन के ऊपर से साफ ज़ाहिर हो रही थी।

“यह कौन है?” वह गरज कर बोला।

औरत घबरा कर खड़ी हो गई।

“जी, डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन के इंस्पेक्टर फ़रीदी साहब है, विमला वाले केस की तहकीकात के सिलसिले में आए हैं।” वह बोली।

“अच्छा…!” वह छड़ी से जमीन पर टटोलते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़कर एक सोफे पर बैठते हैं बोला, “इंस्पेक्टर साहब कुछ पता चला?”

“अभी तक तो कुछ नहीं मालूम हो सका।” फ़रीदी ने कहा।

“यह मुझे अपने साथ कोतवाली ले जाना चाहते हैं।” औरत बोली।

“क्यों…?” उसने तेज आवाज में कहा।

“यहाँ कहीं कोई कत्ल हो गया है।”

“तो फिर इस क़त्ल से तुम्हें क्या लेना देना!” बूढ़े के लहजे में हैरत थी।

“मेरा ख़याल है कि मरने वाला विमला देवी का मंगेतर है।” फ़रीदी ने कहा।

“चलिए, एक न सही, दो सही।” वह झुंझलाकर बोला, “अभी विमला ने ही ने नाक में दम कर रखा था । अब उनके मंगेतर भी अल्लाह को प्यारे हो गए…जाओ भाई, जाओ…जल्दी लौट आना। लेकिन खबरदार! अब तुम्हारी कोई मनहूस सहेली इस घर में कदम रखने पाये।”

बेटी ने उठकर बाहर आये। औरत ने ड्राइवर से कार आने को कहा और तीनों शहर की तरफ रवाना हो गये।

“मोहतरमा! एक बात?” फ़रीदी ने कहा, “ये साहब कौन थे?”

“ठाकुर दिलबीर सिंह….मेरे मरहूम शौहर के बड़े भाई।”

“तो क्या यह अंधे है?”

“जी हाँ…दो बरस में इनकी आँखों की रोशनी खत्म हो गई।”

“अगर कुछ हर्ज़ ना हो, तो अपने खानदान के बारे में भी कुछ बता दीजिए।” फ़रीदी ने कहा।

“मैं आपका मतलब नहीं समझी।” औरत फ़रीदी को घूरते हुए बोली।

“मैं आपके खानदानी हालात मालूम करना चाहता हूँ।”

“ओह…क्या आपने मशहूर साइंसदा प्रकाश बाबू का नाम नहीं सुना। वे मेरे शौहर थे। तीन साल पहले उनका इंतकाल हो गया।”

“प्रकाश बाबू!” फ़रीदी ने धीरे से दोहराया, ” वही तो नहीं जो झील में डूब गए थे।”

“जी हाँ वही! उनके बाद से उनके बड़े भाई ठाकुर दिलबीर सिंह मेरी देखभाल करते हैं। उन्होंने मुझे पिताजी के घर नहीं जाने दिया। मेरे पिता खुले दिमाग के आदमी है। वे मेरी दूसरी शादी करना चाहते थे। लेकिन मैंने इंकार कर दिया। मगर मैं यह सब कुछ क्यों कह रही हूँ। आपको मेरी खानदानी हालत से क्या सरोकार है…?”

“अगर इससे आपको कोई तकलीफ पहुँची हो, तो माफी चाहता हूँ।”

“कोई बात नहीं…यह बयान मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक होता है।”

कोतवाली पहुँचकर इंस्पेक्टर फ़रीदी उसे लाश वाले कमरे में ले गया। लाश को देखकर औरत बुरी तरह कांपने लगी। वह सचमुच विमला के मंगेतर ही की लाश थी। इस नये खुलासे पर कोतवाली में हलचल मच गई। रणधीर सिंह और विमला के माँ-बाप को सरकारी तौर पर तार दिए गए, औरत बुरी तरह नाराज़ थी। अफसरों की बातचीत से उसने यह अंदाज़ा लगाया कि शायद उसे हिरासत में ले लिया जाए।

“फ़रीदी साहब! मैं तो बड़ी परेशानी में फंस गई।” औरत परेशान लहज़े में बोली।

“घबराइए नहीं! चलिए, मैं आपके घर छोड़ आऊं।”

फ़रीदी, हमीद को कोतवाली में छोड़कर खुद उस औरत के साथ चल दिया।

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