चैप्टर 7 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 7 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 7 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 7 Jungle Mein Lash Ibne Safi

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दूसरी लाश

फ़रीदी जब उस औरत को पहुँचा कर वापस आया, तो कोतवाली में सार्जेंट हमीद को अपना इंतज़ार करता पाया। हमीद उसे बुरी तरह घूर-घूर कर देख रहा था ।

“क्यों भई…इस तरह क्यों बोल रहे हो?” फ़रीदी मुस्कुराकर बोला।

“मैं आपके होठों पर लिपस्टिक के धब्बे तलाश रहा था।” हमीद ने सादगी से कहा।

“बड़े गंदे ख़याल हैं तुम्हारे।” फ़रीदी मुँह सिकोड़कर बोला।

“जी नहीं….मैं साफ़ ख़याल का आदमी हूँ। तभी तो मैं यहाँ अकेला छोड़ दिया गया था।”

“ओह…! तो यह कहो। तुम अच्छे खासे गधे हो। अगर तुम मेरे साथ होते, तो मैं कभी इतने काम की बातें ना मालूम कर सकता।”

“जी हाँ. ऐसे मौके पर यही होता है।” हमीद उसी तरह मुँह चलाते हुए बोला।

“भई ख़ुदा के लिए अब तुम जल्दी से शादी कर डालो, वरना अपने साथ मुझे भी ले डूबोगे।” फ़रीदी मुस्कुराकर बोला।

“नहीं साहब! आप इत्मिनान रखिये, मैं अकेला ही डूबूंगा।”

“अच्छा बस चुगतपना खत्म करो। मुझे अभी बहुत कुछ करना है। अभी तक रात का खाना भी नहीं खाया। चलो, अब घर चलें। वही बातें होंगी। तुम्हें एक दिलचस्प खबर सुनाऊंगा। मैं उस अजीबोगरीब चिड़िया की टांगे काट लाया हूँ।”

हमीद हैरत से उसका मुँह देख रहा था।

घर पहुँचकर दोनों ने खाना खाया और एक-एक सिगार सुलगाकर आराम कुर्सियों पर गिर गये। फ़रीदी  दो-तीन लंबे-लंबे कश लेने के बाद बोला, “भई वह औरत…”

“काफ़ी ख़ूबसूरत है।” हमीद ने उसकी बात बीच में ही काटकर कहा।

“फिर वही बेवकूफी की बातें।”

“आखिर आप इस टॉपिक से भागते क्यों हैं?” हमीद ने मुस्कुराकर पूछा।

“इसलिए कि मेरी आदत औरत के बजाय खतरों से खेलने की पड़ी है।” फ़रीदी ने जवाब दिया।

“यह सब फ़लसफ़ा है…या फिर मुमकिन है कि अल्लाह ने आपको किसी ख़ास मूड में बनाया हो।” हमीद ने हँसकर कहा।

“खैर, भाई यह बातें फिर होंगी। मैं यह बताने जा रहा था कि उस औरत का नाम सरोज है। वह अपने शौहर के बड़े भाई के साथ उसी मकान में रहती है। मुझे बंदा ठाकुर दिलबर सिंह संदिग्ध मालूम होता है। सरोज के पति के बारे में बहुत सी बातें मालूम हुई। यह तो तुम जानते ही हो कि वह एक वैज्ञानिक था। आज मैंने उसकी लैब भी देखी, जो अब बहुत खराब हालत में है। उसे अजीबोगरीब चीज़े जमा करने का शौक भी था। मैंने उसके बनाए हुए अजायबघर की भी सैर की। दुनिया भर की अजीबोगरीब चीजें देखने में आई। विमला के कमरे की तलाशी ली; वहाँ कोई खास चीज नहीं मिल सकी। उसके पास जो खत आये थे, उन्हें भी देखा; लेकिन कोई काम की बात न मालूम हो सकी। सरोज और दिलबीर सिंह पर सवालों की बौछार की, लेकिन कोई नतीजा न निकला। दिलबीर सिंह बहुत जिद्दी और चिड़चड़ा आदमी था। उसने किसी बात का भी जवाब शराफ़त से ना दिया। मेरा ख़याल है कि यह लोग काफ़ी दौलतमंद है और उनकी आमदनी का ज़रिया जायदाद है। उनके रिश्तेदार ज्यादा नहीं हैं। दो-तीन आदमी अक्सर उनके यहाँ आकर ठहरा करते हैं और बस…उनमें से एक डॉक्टर है, एक व्यापारी और एक वकील। यह सब यहीं शहर में रहते हैं। इनमें से एक आदमी का कैरेक्टर बहुत ही ज्यादा खराब है और वह हैं डॉक्टर सतीश। लेकिन यह मेरा अपना ख़याल है। शहर वाले तो उसे इज्ज़त की निगाह से देखते हैं। वैसे यह मेरी ब्लैक लिस्ट पर है और शायद मेरे अलावा कोई और उसके कारनामे जानता भी ना हो।”

“अभी तक तो इन बातों में मुझे कोई काम की बात नज़र नहीं आई।” हमीद ने कहा, “सरोज के बारे में आपका क्या ख़याल है?”

“कोई बुरा ख़याल तो अभी तक नहीं है।”

“ठीक-ठाक तो मुझे भी नहीं लगती थी।” हमीद ने कहा।

“ठीक-ठाक तो उसे मैं भी नहीं समझता था। लेकिन अब ख़याल बदल देना पड़ा क्योंकि इस चिड़िया की तलाश में उसी ने मेरी मदद की थी।”

“हाँ… वह चिड़िया की टांगों का किस्सा क्या है?”

“किस्सा कुछ नहीं। जो ख़याल मैंने पहले कायम किया था, वह सच निकला। मैंने बातचीत के दौरान सरोज से चिड़िया के पंजों का ज़िक्र किया। सब कुछ सुनकर वह सोचने लगी, फिर अचानक चौंक पड़ी। मैंने उसे वे निशान दिखाये भी। उसका चेहरा उतर गया। वह मुझे अपने शौहर के अजायबघर में ले गई और कहने लगी मुझे ताज्ज़ुब है कि इन्हें किसने इस्तेमाल किया। एक जूते के तले में लोहे के बने हुए चिड़िया के पंजे जड़े हुए थे, उसने मुझे बताया कि उसके शौहर ने वे जूते किसी विदेशी से खरीदे थे और उन्हें अपने अजायबघर में रख दिया था। वह परेशान थी। बार-बार यही कहती थी कि आखिर इन जूतों को किसने इस्तेमाल किया। मैं उन जूतों को अपने साथ लेता आया था और उन्हें फिंगरप्रिंट डिपार्टमेंट के हवाले कर आया हूँ। अगर मुज़रिम ने मोजे भी पहने होंगे, तो उसमें उसके पैरों की उंगलियों के निशान होने ज़रूरी है।” फ़रीदी ख़ामोश हो गया।

हमीद हैरत से मुँह फाड़े सुन रहा था। फ़रीदी के ख़ामोश होते ही बोला, “लेकिन इस बात का क्या सबूत है कि वाकई वह औरत जूतों के इस्तेमाल करने वालों को नहीं जानती।“

“अगर ऐसा होता, तो आप मुझे जूते दिखाने की बजाय उन्हें छुपा देती है।”

“ऐसा भी हो सकता है कि आपकी नज़रों में चिड़िया के पंजों की इतनी अहमियत देखकर उसने यही ठीक समझा कि जूते आप के हवाले करके आपका शक उस मकान में रहने वालों की तरफ़ से दूर कर दे, क्योंकि चिड़िया के पंजों के निशान उसके कंपाउंड में भी पाए गए थे।”

“बहरहाल, इससे उसकी बेगुनाही तो साबित हो ही गई। रह गए उस घर के दूसरे लोग या वहाँ आने जाने वाले, तो उनके अलावा और कौन जूतों को पहन सकता है।”

“कुछ भी हो….मामला बहुत उलझा हुआ है। मेरे ख़याल से तो इस घर भर के लोगों को हिरासत में ले लेना चाहिए।”

“लेकिन मैं इसे ठीक नहीं समझता। मैंने सरोज को समझा दिया है कि वह उन जूतों के बारे में किसी से बात ना करें और दिलबीर सिंह को भी यह बात ना मालूम होने पाये। इन लोगों पर शक ज़ाहिर करने से कातिल बहुत ज्यादा होशियार हो जायेगा।”

“खैर अब आपने क्या सोचा है?” हमीद ने जम्हाई लेते हुए कहा।

“मैं ग्यारह बजे की गाड़ी से कानपुर जा रहा हूँ।”

“क्यों…वहाँ जाने की क्या ज़रूरत है? विमला और रणधीर के माँ-बाप को तार दे दिए गए हैं।”

“मुझे उनके माँ-बाप से कोई मतलब नहीं है। मैं तो जानना चाहता हूँ कि रणधीर यहाँ आया क्यों था। बहरहाल मै कल रात तक यहाँ वापस आ जाऊंगा। सरोज के मकान की निगरानी के लिए बता चुका हूँ और तुम खासतौर पर रोरज पर नज़र रखना।”

“अजीब मामला है।” हमीद उकताकर बोला, “कभी आप कहते हैं कि मेरा शक उस पर नहीं हो और कभी उसकी निगरानी का हुक्म फ़रमाते हैं।”

“अगर इतना ही समझते होते, तो मेरी जगह पर होते।” फ़रीदी ने बुरा सा मुँह बना कर कहा, “बरहाल, जो मैं कहता हूँ, उस पर अमल करना और हाँ, निगरानी से मेरा यह मतलब नहीं कि आप उसे इश्क शुरू कर दें। आपको तो बस मौका मिलना चाहिए।”

“आप परेशान ना हो। मैं पराई बहू-बेटियों को अपना ही समझता हूँ।” हमीद मैं मुस्कुराकर कहा।

“बेहतर है कि आप उन्हें परायी ही रहने दे। खैर, मज़ाक छोड़ो। हाँ, इस बात का ख़ास ख़याल रखना कि किसी पर यह ज़ाहिर ना होने पाये कि मकान की निगरानी हो रही है। निगरानी के लिए मैंने अनवर, कुमार और वहीद को भेज दिया है और तुम उनके इंचार्ज हो। उनसे जो खबरें मिले, उनका रिकॉर्ड रखना और हाँ, डॉक्टर सतीश की डिस्पेंसरी के पास एक फ़कीर बैठा है। उससे तुम्हें डॉक्टर सतीश के बारे में खबरें मिलेंगी। उसका भी ध्यान रखना।”

फ़रीदी खामोश हो गया। उसके सिगार का धुआं फिज़ा में छल्ले बना रहा था। थोड़ी देर तक वह चुपचाप रहा, फिर धीरे से बोला, “अभी तक फिंगरप्रिंट डिपार्टमेंट से कोई खबर नहीं आई। मुझे तो उम्मीद नहीं कि जूते में किसी किस्म के निशान मिलेंगे। कातिल बहुत चालाक है। उसने ऐसी बेवकूफी न की होगी।”

“हो सकता है।” हमीद ने कहा, “उसके फरिश्तों के ज़ेहन में भी यह बात नहीं आ सकती थी कि आपका हाथ जूते तक पहुँच जायेगा।”

“बरहाल अभी थोड़ी देर में मालूम हो जायेगा।”

फिर खामोशी छा गई।

थोड़ी देर बाद बरामदे में कदमों की आहट सुनाई दी।

एक आदमी अंदर दाखिल हुआ। वह फ़रीदी के हाथ में कागज देकर खामोशी से एक तरफ खड़ा हो गया।

“लो देखो, रिपोर्ट आ गई।” फ़रीदी ने कागज हमीद की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘किसी किस्म के निशान नहीं मिल सके। हालांकि निशान होने चाहिए थे, क्योंकि आजकल गर्मियों में आमतौर पर सबके पैर कुछ ना कुछ ज़रूर पसीजते हैं। खैर, देखा जाएगा।”

बहुत थोड़ी देर तक वह सोचता रहा, फिर आने वाले की तरफ देखकर बोला, “अब तुम जा सकते हो।”

उस आदमी के जाने के बाद फ़रीदी हमीद की तरफ मुड़ा, “अच्छा भाई, अब मैं जाने की तैयारी करूं।” वह बोला, “देखो, बहुत ज्यादा होशियार होने की ज़रूरत है। ज़रा भी चूके नहीं कि काम बिगड़ा।”

“आप इत्मिनान रखिये। अब मैं पूरा पूरा एहतियात बरतूंगा।” हमीद ने उठते हुए कहा।

“इस वक्त नौ बजे हैं, लाश की शिनाख्त के वक्त से लेकर ग्यारह बजे तक के बीच में एक के अलावा और कोई ट्रेन कानपुर नहीं जायेगी।”

“मैं आप का मतलब समझ गया, लेकिन दूसरा कोई कार से भी जा सकता है।” हमीद ने मुड़कर कहा।

“हो सकता है कि ऐसा हो भी गया हो, लेकिन बेकार। रणधीर सिंह के मकान के करीब परिंदा भी पर न मार सकेगा। मैंने इसकी तैयारी पहले ही कर दी है। लाश की शिनाख्त के बाद ही मैंने कानपुर के डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन को तार के जरिये खबर कर दी थी। इस वक्त रणधीर सिंह के मकान के हर कमरे में पुलिस के आदमी तैनात होंगे।”

“तो फिर अब आपसे जाने की क्या ज़रूरत है?” हमीद ने कहा।

“भाई, हर एक के काम करने का तरीका अलग होता है। अच्छा, अब मैं जरा अपने सामान दुरुस्त कर लूं।” फ़रीदी ने यह कह कर मुड़ने का इरादा ही किया था कि एक आदमी कमरे में दाखिल हुआ।

“वहीद…” फ़रीदी ने चौंका, “क्या बात?”

वहीद की साँस फूली हुई थी। रुक-रुक कर बोला, “एक…लाश…और….!”

“क्या मतलब…” हमीद जल्दी से बोला।

“मैं इंस्पेक्टर साहब की हिदायत के मुताबिक उस मकान की निगरानी के लिए जा रहा था। जब मैं उस जगह पर पहुँचा, जहाँ से रणधीर सिंह की लाश बरामद हुई थी, तो मुझे सड़ी बदबू महसूस हुई। अंधेरा फैल चुका था। मैंने टॉर्च की रोशनी में एक औरत की लाश देखी। ऐसा मालूम होता था, जैसे वह कहीं से खोदकर निकाली गई है।”

“तो फिर तुमने क्या किया?” फ़रीदी ने जल्दी से कहा।

“मैं करीब के देहात से चार-पाँच आदमियों का इंतज़ाम करके लाश कोतवाली उठवा कर लाया हूँ।”

“यह तुमने बहुत अच्छा किया। हमीद, मेरा जाना नहीं रुक सकता। यह लाश दरअसल मुझे रोकने के लिए ही निकाली गई है। अच्छा बताओ, यह लाश किसकी हो सकती है?”

“भला मैं क्या बता सकता हूँ?” हमीद ने कहा।

“यह उसी औरत की लाश है, जिसका बयान रणधीर ने कोतवाली इंचार्ज से किया था। यानी विमला की लाश।”

“अरे…!” हमीद ने चौक कर पीछे हटते हुए कहा, “लेकिन आप दावे के साथ किस तरह कह सकते हैं?”

“अभी तुम्हें यकीन आ जाएगा। तुम सीधे सरोज के यहाँ चले जाओ और उसे लेकर कोतवाली आओ। दिलबीर सिंह अगर उसे अकेले ना आने दे तो उसे भी लेते आना, और हाँ, देखो, सबकाए एहतियात करना। मुमकिन है कि वापसी में मुझसे मुलाकात ना हो सके। इसलिए गुड नाईट!” फ़रीदी यह कहते हुए कमरे में चला गया।

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