चैप्टर 11 जंगल में लाश : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 11 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 11 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 11 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel

Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7  | 8| 9| 10 | 11 | 121314 |

Prev | Next | All Chapters

चौथा हादसा

4:00 बजे शाम को फ़रीदी दिन भर का थका-मांदा घर आया था।

आज मैं दिन भर ठाकुर दिलबीर सिंह के दोस्तों को टटोलता रहा था। डॉक्टर सतीश के घर की तलाशी तो उसने उसी दिन ले ली थी, जिस दिन उसका कत्ल हुआ था। मामूली नाश्ते के बाद वह अपने कुत्तों की देखभाल में लग गया। उसके पास एक दर्जन कुत्ते थे और हर कुत्ता अपनी मिसाल था। उसके बहुत सारे शौक अजीबोगरीब थे। उसे अजायबघर में अलग-अलग किस्म के जानवर, परिंदे और कीड़े-मकोड़े जमा करने का भी शौक था। उसकी कोठी का एक कमरा दुनिया की अजीबोगरीब चीजों के लिए था। उसमें सबसे ज्यादा अजीबो गरीब चीज अलग-अलग किस्म के साँप थे। वह साँपों के बीच माहिर सपेरा लगता था।उनमें से कई ऐसे भी थे, जिनके जहर की थैली वह ख़ुद निकाल चुका था। उसकी इस हरकत पर उसके सारे साथी उसका मज़ाक उड़ाते थे। उनका ख़याल था कि वह अपनी शौहरत के लिए इस किस्म की अजीबोगरीब हरकतें किया करता है।

कुत्ते को खाना खिलाने के बाद फ़रीदी अपने अजायबघर की तरफ गया। जैसे ही वह दूसरे बरामदे की तरफ बढ़ा, उसे सरोज दिखाई दी, जो अजायबघर से निकल रही थी।

“तो आपको भी इसका शौक है?” वह मुस्कुरा कर बोली।

“क्यों? क्या हुआ? तुम डर ही तो नहीं। वहाँ कई बहुत ही खौफ़नाक चीजें भी है।”

“आखिर आपने इतने सारे साँप क्यों जमा कर रखे हैं।”

“पता नहीं क्यों मुझे साँपों से इश्क है।” फ़रीदी ने कहा।

“लेकिन फ़रीदी भैया, यह शौक खतरनाक भी है।”

“लेकिन ये मेरे लिए पालतू कुत्तों की तरह बेज़रर है।”

“तो फिर आपने इनका जहर निकाल दिया होगा।”

“नहीं, ऐसा तो नहीं…इनमें से बहुत सारे ऐसे भी हैं, जिनका जहर आज तक निकाला ही नहीं गया।”

“इन्हें खिलाता-पिलाता कौन है?”

“मैं ख़ुद!” फ़रीदी ने कहा, “और तुम्हें तमाशा दिखाऊं।”

दोनों कमरे में दाखिल हुए, फ़रीदी एक अलमारी के करीब पहुँच कर खड़ा हो गया। अलमारी के दरवाजों में नीचे की तरफ बहुत सारे छोटे-बड़े छेद थे।

फ़रीदी ने एक अलग तर्ज़ की सीटी बजाई। अचानक सरकारों की आवाजें सुनाई दी और अलमारी के छेदों दो साँप निकलने लगे। सरोज चीखकर पीछे हट गई।

“डरो नहीं, ये केंचुओं से भी बदतर है, इनमें जहर नहीं।”

फ़रीदी ने मेज पर से दूध का बर्तन उठाकर जमीन पर रख दिया। सारे साँप उस पर टूट पड़े। फ़रीदी ने दूसरा बर्तन भी उठाकर उसी के करीब रख दिया। लेकिन यह सब पहले बर्तन पर पिले पड़ रहे थे। वह उन्हें हाथ से हटा हटा कर दूसरे बर्तन के करीब लाने लगा। यह देखकर सरोज फिर चीख पड़ी।

फ़रीदी हँसने लगा।

“डरो नहीं सरोज बहन , ये सब मेरे दोस्त है!”

“मुझे यह तमाशा बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। मैं ड्राइंग रूम में आपका इंतज़ार करूंगी।” सरोज यह कहकर बाहर चली गई।

दोनों बर्तन साफ कर लेने के बाद सारे साँप धीरे-धीरे अलमारी के छेदों में वापस चले गए। फ़रीदी ने थोड़ी देर ठहर कर चारों तरफ नज़रें  दौड़ाई और कुछ कुछ गुनगुनाता हुआ बाहर निकल आया।

सार्जेंट हमीद तेज कदमों से अजायबघर के कमरे की तरफ आ रहा। फ़रीदी उसे देख कर रुक गया।

“कहो भई, क्या खबर है?”

“कोई खास खबर नहीं! कोतवाली से आ रहा हूँ! अभी-अभी दिलबीर सिंह का नौकर आपके नाम एक खत दे गया है।”

फ़रीदी खत पढ़ने लगा।

“फ़रीदी साहब,

आदाब!

मुझे अपने कल के रवैये पर सख्त अफ़सोस  है। कल शायद ज़िन्दगी में पहली बार मुझे गुस्सा आया था। सरोज को समझाने की कोशिश कीजियेगा। ख़ुदा करे कि वह मुझे माफ़ कर। मैंने उसकी शान में बहुत ही बुरी अल्फाज़ इस्तेमाल किए हैं, जिसके लिए मेरा ज़मीर मुझे दुत्कार रहा है। जब तक वो यहाँ ना आ जायेगी, मुझे सुकून नहीं मिल सकता। ख़ुदा मेरे हाल पर रहम करे।

आपका,

ठाकुर दिलबीर सिंह”

“तो होशआ आया ठाकुर साहब को।” फ़रीदी ने कहा।

“और यह बहुत बुरा हुआ।” हमीद मुस्कुरा कर बोला।

“क्यों?”

“मैं क्या जानू? लेकिन सरोज से इस खत के बारे में ना बताइएगा।”

“आखिर क्यों?” फ़रीदी ने ताज्जुब से पूछा।

“अरे, तो क्या वाकई आप…!” हमीद अधूरी बात करके चुप हो गया।

“अजीब आदमी हो। साफ-साफ क्यों नहीं कहते। आखिर क्या बात है?”

“क्या आप सचमुच सरोज को वापस भेज देंगे?”

“इसमें ताज्जुब की क्या बात है?” फ़रीदी ने ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ते हुए कहा।

“सुनो तो सही!” हमीद उसे रोकते हुए बोला, “क्या वाकई आप सीरियसली कह रहे हैं।”

“कहीं मैं तुम्हारी पिटाई ना कर दूं।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “बेकार ही भेजा चाटे जा रहे हो।”

“सिर्फ एक बात और पूछूंगा।”

“फरमाइये!” फ़रीदी रुकते हुए हँसकर बोला।

“तो वाकई क्या आप सरोज…”

“बकवास बंद!” फ़रीदी झल्लाकर बोला।

सरोज डाइनिंग से निकल आई, फ़रीदी कुछ कहते-कहते खामोश हो गया। हमीद खिसियानी हँसी हँसने लगा।

“क्या बात है?” सरोज ने दोनों को गौर से देखते हुए कहा।

“कोई बात नहीं है!” फ़रीदी कहता हुआ अंदर चला गया।

सरोज ने हमीद पर एक उचटती सी नज़र डाली और वह भी चली गई। हमीद थोड़ी देर तक खड़ा सिर खुजाता रहा। अचानक उसके होठों पर शरारती मुस्कुराहट खेलने लगी। उसने इधर उधर देखा और जोर से चीखा। चीख की आवाज सुनकर फ़रीदी और सरोज बरामदे में निकल आये।

“अरे अरे, क्या हुआ?” फ़रीदी हमीद की तरफ से बढ़ते हुए बोला।

“हमीद हमीद…” वह उसे झंझोड कर पुकारने लगा।

“अभी तो अच्छे भले थे।” सरोज ने कहा।

“न जाने क्या हो गया।” फ़रीदी ने हमीद के चेहरे पर झुकते हुए कहा।

“तो क्या आप वाकई सरोज…!” हमीद धीरे से बोला।

फ़रीदी ने झुंझलाकर उसका मुँह दबा दिया।

“चुप रहो।” फ़रीदी उसका मुँह दबाये हुए चीखा।

” अरे अरे…!” सरोज कहती हुई आगे बढ़ी, “यह आप क्या कह रहे हैं?”

“तुम इसे नहीं जानती। मालूम नहीं कौन सा शैतान इसके अंदर घुस गया है।”

“आपकी तो कोई बात ही मेरी समझ में नहीं आती।” सरोज ने कहा।

“और मेरी बात!” हमीद उठते हुए जल्दी से बोला।

“अरे!” सरोज घबराकर पीछे हट गई।

“हमीद, अगर तू अपनी शरारती से बाज ना आये, तो अच्छा ना होगा।” फ़रीदी ने नाराज़ होते हुए कहा।

“आप बहरहाल मेरे अफसर है।”

“आखिर बात क्या है?” सरोज ने कहा।

“सरकारी मामले हैं।” हमीद मुस्कुरा कर बोला।

फ़रीदी उसे अब तक घूर रहा था।

“आओ चले इसका दिमाग खराब हो गया है।” फ़रीदी ने सरोज से कहा। हमीद बाहर खड़ा रहा और वे दोनों चले गए।

“आखिर बात क्या है?” सरोज ने फिर पूछा।

“कुछ नहीं, यूं ही मुझे तंग कर रहा है।”

“इसलिए कहा जाता है कि मातहतों को ज्यादा सिर में नहीं चढ़ाना चाहिए।” सरोज ने कहा।

“मुश्किल तो यही है कि उसे मैं मातहत समझता ही नहीं और उसकी वजह यह है कि अपने साथियों में सबसे ज्यादा अकलमंद है। खैर छोड़ो लो, यह खत दिलबीर सिंह ने मुझे भिजवाया है।”

सरोज खत लेकर पढ़ने लगी।

“तो फिर आप क्या कहते हैं?” सरोज खत पढ़कर बोली।

“इस सिलसिले में भला मैं क्या कह सकता हूँ?”

“मैंने तो फैसला कर लिया है कि अब उस घर में कदम ना रखूंगी।”

“और मैं आपकी फैसले की कद्र करता हूँ।” हमीद ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा।

फ़रीदी ने झल्लाकर मेज पर रखा हुआ रुमाल उठा लिया और हमीद सहम जाने की एक्टिंग करता हुआ खामोशी से एक तरफ बैठ गया।

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें होती रही। उसके बाद फ़रीदी और हमीद में केस के सिलसिले में बहस छिड़ गई और सरोज उकता कर बाहर चली गई।

“यह क्या बेवकूफी थी?” सरोज के चले जाने के बाद फ़रीदी बोला।

“कैसी बेवकूफी है?”

“देखो, सरोज मेरी मेहमान है।तुम्हें इस किस्म की बातें नहीं करनी चाहिए कि उसे दु;ख पहुँचे।”

“तो यह कहिए कि आप गलतफहमी में है। अरे यह सब कुछ ना आप ही के लिए कर रहा हूँ।”

“मैं समझा नहीं!”

“मोहब्बत करने वालों के पास समझ होती कहाँ है।”

“फिर वही बकवास!” फ़रीदी ने झुंझलाकर कहा, “तुम्हें आखिरी बार समझाता हूँ कि अब तुम इसके बारे में कभी कुछ ना कहना। क्या तुम अपनी तरह सबको गधा समझते हो।”

“जी नहीं मैं अपने अलावा सब को समझता हूँ।”

“देखो मियां हमीद! तुम्हारी बौखलाहट बहुत ज्यादा बढ़ गई है। मैं अब तुम्हारे अब्बा हुजूर को लिखने वाला हूँ कि जल्द से जल्द तुम्हारा कोई अच्छा रिश्ता कर दे।”

“आपको गलतफहमी हुई है। मैं पिछले दो माह से बिल्कुल आशिक नहीं हुआ।”

“अच्छा भाई, अब खत्म करो यह किस्सा।” फ़रीदी ने कहा, “कोई कायदे की बात करो।”

“मेरे ख़याल से सिविल मैरिज ही ज्यादा कायदे की बात रहेगी।”

“तुम ज़िन्दगी भर संजीदा नहीं हो सकते।”फ़रीदी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।

“सच में बताइएगा, आपका इश्क किन मंजिलों पर है?” हमीद ने मुस्कुराकर कहा।

“किसी परेशान हाल औरत को सहारा देना भी सितम हो जाता है। हत्तेरी किस्मत की ऐसी की तैसी।”

“आप बेकार में परेशान है। मैं आपके लिए जान की बाजी लगा दूंगा।”हमीद ने अपने सीने पर हाथ मारते हुए कहा।

“अच्छा मेरे भाई, अब चुप हो जाओ, वरना मैं तुम्हारा गला घोट दूंगा।” फ़रीदी ने उकता कर कहा।

“तो इस तरह यह शहर में चौथा क़त्ल होगा।” हमीद चेहरे पर उदासी पैदा करते हुए बोला।

उसकी मजाकिया सूरत देखकर फ़रीदी को हँसी आ गई।

इतने में टेलीफोन की घंटी बजी। फ़रीदी ने रिसीवर उठा लिया।

“हलो!”

“ओह फ़रीदी साहब! मैं सुधीर बोल रहा हूँ। धर्मपुर के जंगल में फिर एक हादसा हो गया है।”

“क्या कहा? हादसा?”

“जी हाँ…क़त्ल… हम लोग जा रहे हैं। आप और हमेशा आप सीधे वही पहुँच जाइये।”

“लो भाई… चौथा क़त्ल भी आखिर हो ही गया।”फ़रीदी ने रिसीवर रखते हुए हमीद की तरफ मुड़ कर कहा।

“कहाँ?”

“वहीं. धर्मपुर के जंगल में.. जल्दी तैयार हो जाओ. अरे लो.. बातों में अंधेरा हो गया। अपनी टॉर्च जरूर ले लेना। जल्दी करो, वरना कहीं ये लोग कुछ गड़बड़ ना करें।”

“अब तो जनाब मेरा दिल चाहता है कि आप सच में मुझे कत्ल कर देते , तो अच्छा था। यह नौकरी क्या है आफ़त है।” हमीद ने  उठते हुए कहा।

दोनों कमरे से बाहर निकल गए।

Prev | Next | All Chapters

Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7  | 8| 9| 10 | 11 | 121314 |

पढ़ें : कुएँ का राज़ इब्ने सफ़ी का नावेल जासूसी दुनिया सीरीज़

पढ़ें : नकली नाक इब्ने सफी का नावेल जासूसी दुनिया सीरीज

Leave a Comment