Chapter 6 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi
Table of Contents
Chapter | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 |11
हैरत अंगेज़ खुलासा
फ़रीदी की आँखें दबे हुए जोश का इज़हार कर रही थीं. एक बार रुक कर उसने सिगार सुलगाया और दो-तीन लंबे कश लेने के बाद फिर टहलने लगा. खिड़की के क़रीब जाकर उसने इधर-उधर देखा और नवाब रशीदुज्ज़माँ के सामने खड़ा होकर उन्हें घूरने लगा.
“एक बात समझ में नहीं आती कि वह इतनी देर रात गये किताब क्यों ढूंढता रहा. क्या इसके बारे में आपका कोई सख्त हुक्म था.”
“बिल्कुल नहीं.” नवाब साहब बोले, “मैंने उससे शाम को कहा था कि किसी वक़्त किताब ढूंढ लेना. मैंने उस ये नहीं कहा था कि रात को ही ढूंढ ले.”
“क्या आप कल पहले जैसे यहाँ आये थे?”
“नहीं…जब से हादसे होने लगे हैं, मैंने रात में यहाँ बैठना क़रीब-क़रीब छोड़ दिया है. अगर कभी आता भी हूँ, तो दस बजे से पहले-पहले उठ जाता हूँ.”
“कल रात आये थे या नहीं?”
“कल शाम ही से मेरी तबियत भारी थी…इसलिए मैंने पढ़ना मुनासिब नहीं समझा.”
“ठीक…!” फ़रीदी ने कहा और टहलने लगा.
“आप बेकार परेशान हो रहे हैं, यह खुला हुआ शैतानी मामला है.” सब-इंस्पेक्टर ने कहा.
फ़रीदी ने उसे हाथ उठकर चुप रहने का इशारा किया.
पुलिस वाले मुस्कुरा कर रहा गये. सिर्फ़ हमीद और ग़ज़ाला ही ख़ामोशी के साथ फ़रीदी की बदलती हुई हालत का जायज़ा ले रहे थे. तारिक़ के होंठों पर मुस्कराहट नाच रही थी.
फ़रीदी खिड़की के पास खड़ा होकर कुछ देर तक सोचता रहा, फिर नवाब साहब की तरफ़ मुड़ कर बोला.
“अप इसी कुर्सी पर बैठकर पढ़ते हैं?’
“हाँ..!”
“क़रीब-क़रीब हमेशा?”
“नवाब साहब ने सिर हिला दिया. वे फ़रीदी के उल्टे-सीधे सवालों से कुछ उकताये हुए से नज़र आ रहे थे.
“एक बात और…क्या आप पढ़ते वक़्त एक बार पानी पीने के आदी हैं?”
“हाँ…!” नवाब साहब हैरत से बोले, “लेकिन तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ?”
“अभी बताता हूँ.” फ़रीदी ने एक बार फिर खिड़की के क़रीब जाते हुए कहा.उसने खिड़की के बाहर सिर निकाल कर इधर-उधर देखा और नवाब साहब के पास लौट आया.
“आपको एक तकलीफ़ देना चाहता हूँ.”
“हाँ-हाँ, कहो.”
“ज़रा दो मिनट के लिए इस कुर्सी पर बैठ जाइए.” फ़रीदी ने उस लाश के क़रीब वाली कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.
नवाब साहब हैरत से उसका मुँह ताकने लगे.
‘उम्मीद है, आप बुरा न मानेंगे. लें यह ज़रूरी है.”
नवाब साहब कुर्सी पर बैठ गये.
“अब यह टोपी पहन लीजिए.” फ़रीदी ने मेज़ पर पड़ी ही टोपी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.
सब-इंस्पेक्टर हँसने लगा. नवाब साहब भी नाराज़ हुए, लेकिन फ़रीदी की कड़ी नज़रों ने तंज़िया अंदाज़ में मुस्कुराते हुए चेहरों पर एक बार फिर संजीदगी फैला दी.
नवाब साहब ने टोपी पहन ली.
“मैं एक मिनट में आया.” फ़रीदी ने हमीद का हाथ पकड़ कर उसे बाहर ले जाते हुए कहा.
दोनों लाइब्रेरी के पीछे आ कर खड़े हो गये.
“देख रहे हो हमीद” फ़रीदी ने कहा, “खिड़की से सिर्फ़ नवाब साहब की टोपी दिखायी से रही है और उनकी पीठ हमारी तरफ़ है और उस खिड़की की ऊँचाई भी तुम देख रहे हो.”
“तो क्या…!” हमीद की आँखों से हैरत की झलकियाँ दिखायी दीं.
“तुम यहीं ठहरो..और उनका ख़याल रखना.” फ़रीदी ने खिड़की के नीचे पड़ी हुई एक टूटी हुई सुराही के ठीकरों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.
हमीद उसे हैरत से देखने लगा.
‘”इन पर नज़र रखना, कोई इन्हें छूने न पाये.” फ़रीदी ने कहा और लाइब्रेरी में चला गया. नवाब साहब उसकी तरफ़ देखने लगे.
“अब उठ जाइये…यहाँ का काम खत्म.” फ़रीदी ने कहा.
नवाब साहब उठ गये. हर एक की हैरान निगाहें फ़रीदी के चेहरे पर लगी हुई थी.
“अब अगर आप लोग एक दिलचस्प तमाशा देखना चाहें, तो मेरे साथ आइये.” फ़रीदी हेड कांस्टेबल की तरफ़ मुड़कर बोला, ”दीवान जी, आप यहीं लाश के आपस ठहरिए.”
हेड कांस्टेबल के अलावा और सब लोग फ़रीदी के साथ लाइब्रेरी के पीछे आ गये. हमीद अभी तक खड़ा ठीकरों की निगरानी कर रहा था. फ़रीदी ने इधर-उधर देखा. एक कमरे की खिड़की में लटके हुए पीतल के बड़े-से गोले में एक भारी-भरकम तोता बैठा ऊंघ रहा था. उसके एक पैर में सुनहरे रंग की एक ज़ंजीर पड़ी हुई थी. ज़ंजीर से दूसरा सिरा गोले में लटका हुआ था.
“बहुत ख़ूबसूरत तोता है.” फ़रीदी ने तारीफ़ करते हुए कहा.
नवाब साहब उसका मुँह देखने लगे.
“क्या आप इसे यहाँ मंगवा सकते हैं.” फ़रीदी ने नवाब साहब से कहा.
“क्यों नहीं.” नवाब साहब ने कहा. लेकिन उनकी नज़रों में नफ़रत की झलकियाँ दिखाई दे रहीं थी. फ़रीदी ने इसे महसूस किया, लेकिन सिर्फ़ मुस्कुराकर रहा गया.
नवाब साहब के इशारे पर एक नौकर तोते को खिड़की से उतार लाया.
फ़रीदी खिड़की के नीचे पड़े हुए ठीकरों की तरफ़ बढ़ा. एक बड़ा-सा ठीकरा जिसमें थोड़ा-सा पानी था, उठाकर तोते के क़रीब लाया और उसकी चोंच से लगा दिया. तोता पानी पीने लगा. अभी वह पानी पी ही रहा था कि तारिक़ का नेवला उछल कर फ़रीदी के हाथ पर आ गिरा. ठीकरा उसके हाथ से छूट गया.
फ़रीदी ने मुस्कुरा कर तारिक़ की तरफ़ देखा.
“मुझे अफ़सोस है जनाब.” तारिक़ ने माफ़ी मांगते हुए नेवले को पकड़ लिया.
“खेल वाक़ई बड़ा दिलचस्प है.” नवाब साहब व्यंग्यात्मक अंदाज़ में बोले.
“देखते जाइये, असल खेल तो अभी शुरू ही नहीं हुआ.” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.
“ज़रा एक खाली बोतल मंगवाइये.” फ़रीदी ने नवाब साहब से खा.
फ़रीदी ने तोते को अपने हाथों में ले लिया. उसके तेज निगाहें तोते का गहरा जायज़ा ले रही थी.
“हमीद! बाक़ी ठीकरों का पानी एहतियात से इस बोतल में डाल लो.” फ़रीदी ने बोतल नौकर के हाथ से लेते लेकर हमीद की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा.
हालांकि यह मामला बहुतों की समझ में नहीं आ रहा था. लेकिन हर एक की नज़र तोते की तरफ़ लगी हुई थी. अचानक तोते ने पंख फड़फड़ाने शुरू किया और देखते ही देखते लुढ़क कट ज़ंजीर में झूल गया.
“अरे…!” नवाब साहब के मुँह से बेअख्तियार निकला और उन्होंने झपट कर फ़रीदी के हाथ से तोता ले लिया.
“अरे यह तो मर गया.” नवाब साहब की आँखें हैरत से फटी हुई थीं.
फ़रीदी उनकी बात सुन-अनसुनी कर सब-इंस्पेक्टर की तरफ़ मुड़ा.
“दरोगा जी…आप सेक्रेटरी की लाश पोस्ट-मॉर्टम के लिए भिजवा सकते हैं और साथ ही…यह मुर्दा तोता भी.”
“तो क्या…तो क्या…” सब-इंस्पेक्टर इसके आगे न कह सका.
“जी हाँ…इस ज़हरीले तोते की भी जाँच की जाये, क्योंकि सेक्रेटरी की मौत का ज़िम्मेदार ज़हर है.” फ़रीदी ने इत्मिनान से कहा.
“ज़हर…” नवाब साहब के मुँह से बेअख्तियार निकला.
“जनाबे आला…!” फ़रीदी ने कुछ झुकते हुए कहा., “और यह भी साफ रहे कि ज़हर देने वाले का निशाना ख़ुद आप थे. वह तो कहिये कि सेक्रेटरी की मौत आ गयी थी.”
“मैं…” नवाब साहब चौंक कर बोले.
“जी हाँ…”
“मगर कैसे?”
“बहुत ही मामूली बात है. आइये, लाइब्रेरी में चल कर आपको समझाऊं.”
फ़रीदी ने तारिक़ की तरफ़ मुस्कुराते ही देखा.
सब लोग फिर लाइब्रेरी में चले आये. फ़रीदी की बात सुनकर ग़ज़ाला की हालत बिगड़ रही थी.
“सेक्रेटरी की मौत की ज़िम्मेदार शायद आपकी टोपी है.” फ़रीदी ने कहा.
“तुम पहेलियाँ बुझवा रहे हो, जो कुछ कहाँ हो, साफ़-साफ़ कहो.” नवाब ने साहब उकता कर कहा, “मैं दिल का मरीज़ हूँ.”
“ठहरिए…अभी आपने मुझे बताया कि आप कोई तेल इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन ज़रा इस टोपी का अंदर का हिस्सा सूंघिए.” फ़रीदी ने टोपी नवाब साहब की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा.
नवाब साहब ने टोपी को लेकर सूंघ और सिर हिलाने लगे.
“ऐसी ही खुशबू उसके सिर में भी मौजूद है.” फ़रीदी ने लाश की तरफ़ इशारा करके कहा, “रात पढ़ते वक़्त शायद उसने आपको टोपी पहन ली थी. मैंने आपको यह टोपी पहना कर उस कुर्सी में बैठने के लिए कहा था. बाहर जा कर देखा, तो उधर से सिर्फ़ आपका सिर नज़र आ रहा था और पीठ मेरी तरफ़ थी. ज़हर देने वाला समझा शायद आप की लाइब्रेरी में बैठे हुए हैं. मैंने आपसे पढ़ते वक़्त बार-बार पानी पीने के बारे में पूछा था.. मेरा ख़याल सही निकला. मैं उस खिड़की पर अनगिनत गोले देख कर इस नतीज़े पर पहुँचा था कि यहाँ सुराही रखी जाती है और गोले उसकी भीगी हुई पेंदों के निशान के अलावा किसी और चीज़ के नहीं हो सकते. क़ातिल शायद आपकी इस आदत को अच्छी तरह से जानता था. उसने पीछे ही से हाथ बढ़ाकर यहाँ रखी हुई सुराही में ज़हर डाल दिया. यह तो अपने देखा ही है ज़हर कितना असरदार साबित हुआ है. सिर्फ़ दो मिनट में तोते की जान निकल गयी. आपका सेक्रेटरी भी शायद बहुत ज्यादा सिगरेट पीता था. जैसा कि मेज़ पर रखी हुई ऐश-ट्रे से मालूम होता है और गर्मियों में सिरगेट पीने के बाद प्यास ज़रूर लगती है. उसन सुराही का पानी पिया और… फिर तो आप जानते ही हैं…क़ातिल बाद में अपनी इस हरक़त को देखने आया और जल्दी में सुराही को हाथ मार कर नीचे गिरा दिया. उसकी यह जल्दबाज़ी किसी गलती के अचानक अहसास ही का नतीज़ा हो सकती है. उसने यह भी न सोचा कि सुराही की टूटने की आवाज़ सुनकर क़रीब के लोग जाग भी सकते हैं.”
फ़रीदी रूककर सिगार सुलगाने लगा.
“लेकिन यह आप कैसे कह सकते हैं कि मरने वाला उस वक़्त भी यह टोपी पहने हुआ था, जब ज़हर देने वाले ने बाहर से देखा.” सब-इंस्पेक्टर ने कहा.
“उसके बारे में तो मैं नहीं कह सकता.” फ़रीदी ने कहा, “यह मेरा अंदाज़ा है, जो ग़लत भी हो सकता है.”
“बहरहाल, नवाब साहब को एहतियात से काम लेना चाहिए. एक सेक्रेटरी की जान लेने के लिए इतना उधम मचाने की क्या ज़रुरत हो सकती है.”
“उधम से क्या मतलब…” नवाब साहब बोले.
“जानवरों की मौतें, दरिंदों की आवाजें और आग उगलता हुआ कुआँ. फ़रीदी ने कहा और सामने की दीवार आर नज़रें गाड़ दे. वह कुछ सोच रहा था.
तारिक़ अपने नेवले को कंधे पर बिठाये बेताबी से टहल रहा था.
ग़ज़ाला के चेहरे के उतार-चढ़ाव से ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे वह क़रीब-क़रीब बेहोश होने वाली है.
“दरोगा जी…इस बोतल को सील कर दीजिए.” फ़रीदी ने बोतल हमीद के हाथ से लेकर सब-इंस्पेक्टर की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा. उसी बोतल में हमीद ने टूटी हुई सुराही के ठीकरों का पानी इकट्ठा किया था.
फ़रीदी नवाब साहब की तरफ़ मुड़ा.
“एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर इतनी रात गये वह लाइब्रेरी में बैठा क्या कर रहा था? डॉक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग दो-ढाई बजे उसकी मौत हुई. क्या वह आपके घर में होने वाले हादसों से परेशान नहीं था. मेरा ख़याल है कि यहाँ रात को तो कोई अपने पलंग से उठने की हिम्मत भी नहीं कर सकता होगा.”
“तुम्हारा ख़याल बिल्कुल सही है.” नवाब साहब बोले.
फ़रीदी फिर ख़यालों में डूब गया.
ग़ज़ाला का दिल चाह रहा था कि वह बता दे कि उसने एक आदमी को एक रत कुएँ में उतरते देखा था, लेकिन तारिक़ सामने ही खड़ा था. उससे आँख मिलते ही उससे अपना खून नसों में मानो जमता हुआ महसूस होने लगा. उसने यह बात फ़रीदी को भी नहीं बताई थी. न जाने क्यों उसका ख़याल आते ही वह खुद से कांपने लगती थी. उसने उस वक़्त तारिक़ के नेवले को फ़रीदी के हाथ से ठीकरा गराते भी देखा था. इस चीज़ ने उसके शक को और ज्यादा बढ़ावा दिया.
फ़रीदी ख़यालों में डूबा हुआ टहल रहा था. तभी सब-इंस्पेक्टर की तरफ़ मुड़कर बोला.
“दरोगा जी, मेरे ख़याल से अब लाश उठवाने का इंतज़ाम किया जाये. बहरहाल, अब आपको दूसरी रिपोर्ट लिखनी पड़ेगी.”
“फ़रीदी साहब, हक़ीक़त में आप जादूगर हैं.” सब-इंस्पेक्टर बोला.
फ़रीदी ने कोई जवाब न दिया.
सब-इंस्पेक्टर लाश उठवाने का इंतज़ाम करने लगा.
थोड़ी देर बाद लाइब्रेरी में सिर्फ़ हमीद, फ़रीदी, ग़ज़ाला, नवाब साहब और तारिक़ रह गये. फ़रीदी अभी तक ख़यालों में खोया हुआ था. टहलते-टहलते वह किताबों की अलमारियों का जायज़ा लेने लगा.
“आपकी लाइब्रेरी बहुत शानदार है.” वह नवाब साहब की तरफ़ मुड़कर बोला.
“वह तो सब ठीक है, लेकिन आप नाश्ता कब करेंगे?” ग़ज़ाला ने कहा.
“हाँ भई! लो, नौ बज गये.” नवाब साहब ने चौंक कर कहा.
“अगर नाश्ता यहीं मंगवा लें, तो बेहतर है.” फ़रीदी ने कहा.
नवाब साहब का सौतेला भाई परवेज़ एक पहलवान की गोद में चढ़ा हुआ दूध पी रहा था और साथ-ही-साथ तुतला-तुतला का कुछ कहता भी जा रहा था.
“यह तमाशा नहीं मेरी बदनसीबी है.” अन्वाब साहब बोले.
“क्या मतलब…?”
“मेरा छोटा भाई परवेज़…..लगभग आठ साल हुए सिर में चोट लगने की वजह से इसका दिमाग ख़राब हो गया है. कभी मुझे उस पर फ़ख्र था. आज भी जब मैं उसकी लाइब्रेरी में जाता हूँ, तो आँसू निकल आते हैं. इतना क़ाबिल और पढ़ा-लिखा और उसका यह अंज़ाम. बर्लिन यूनिवर्सिटी से उसने फ़िलॉसफ़ी में डॉक्टरेट की डिग्री ली थी. अब बिल्कुल बच्चों की तरह ज़िन्दगी बसर करता है.
फ़रीदी गौर से सुन रहा था. अचानक हमीद हँसने लगा. परवेज़ पहलवान की गोद से उतर कर एक तितली के पीछे घुटनों के बल दौड़ने लगा.
हमीद के इस हँसने पर फ़रीदी ने उसे घूरकर देखा. वह नहीं चाहता था कि नवाब साहब का दिल दुखे.
“अपने इन्हें किसी साइकियैंट्रिस्ट को दिखाया?” फ़रीदी ने नाब साहब से पूछा.
“सब कुछ करके थक-हार गया हूँ.”
“वाक़ई बड़े अफ़सोस की बात है.” फ़रीदी ने कहा और उसके बाद ख़ामोशी छा गई.
थोड़ी देर बाद नाश्ते का सामान आ गया. सब लोग एक बड़ी मेज़ पर बैठ गये.
“समझ में नहीं आता कि ज़हर किसने दिया.” नवाब साहब बोले.
“परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.” फ़रीदी ने कहा, “लेकिन एहतियात ज़रूरी है. आप और ग़ज़ाला काफ़ी होशियार रहिए…मुझे सौ फ़ीसदी यक़ीन है कि यह हमला आप ही पर हुआ था.”
“आखिर क्यों…और वह कौन हो सकता है?” नवाब साहब बेचैनी से बोले.
“वही जिसने यह सब स्वांग रचाया है. इस ख़याल में न रहिए कि यह कोई शैतानी मामला है. ग़ज़ाला ने जिस वक़्त जानवरों की मौत के बारे में बताया था, उसी वक़्त मैंने कह दिया था कि अब किसी आदमी का नंबर आने वाला है.”
नवाब साहब हैरान नज़रों से फ़रीदी की तरफ़ देखने लगे.
“जनाबे आला आपका नेवला मुझे बहुत पसंद है.” फ़रीदी तारिक़ से बोला.
“शुक्रिया…” तारिक़ मुस्कुरा कर बोला.
“जिस वक्त यह उछला था, मुझे यक़ीन हो गया था कि ज़रूर उस पानी में ज़हर मिला हुआ है.”
“मैं आपका मतलब नहीं समझा.” तारिक़ चौंक कर बोला.
“”इसकी इसी ख़ासियत पर शदागा कबीले के लोग इसे देवता समझते हैं.” फ़रीदी सिगार सुलगता हुआ बोला, “इस किस्म के ख़तरे की बू सूंघ लेना इसकी मामूली-सी ख़ासियत है.”
“क्या आप कभी ब्राज़ील गये हैं.” तारिक़ बोला.
“हाँ..एक ज़माने में मुझे पुराने ख़जानों की तलाश का ख़ब्त था.” फ़रीदी ने कहा.
“अच्छा….” तारिक़ दिलचस्पी ज़ाहिर करते हुए बोला.
“इसी सिलसिले में ब्राज़ील भी जाना हुआ था.” फ़रीदी लापरवाही के साथ बोला, “लेकिन अफ़सोस है कि मानाओज़ से सौ मील भी आगे न जा सका,”
“मानओज़…मानाओज़…..” तारिक़ बेचैनी से बड़बड़ाता हुआ कुर्सी पर पहलू बदलने लगा.
“मानओज़ से सौ मील के फ़ासले पर पश्चिम की तरफ़….अमेज़न नदी के उत्तरी किनारे पर काले पहाड़ों का सिलसिला…जहाँ…” मगर यह सब मैं क्यों बक रहा हूँ?”
“कोई हर्ज़ नहीं…मैं काफ़ी दिलचस्पी ले रहा हूँ.” तारिक़ ने नेवले को कंधे से उतारकर गोद में बिठाते हुए कहा.
“फिर किसी वक़्त बताऊंगा…क्या आपको भी ख़ज़ानों से दिलचस्पी है?”
“नहीं, कोई ऐसी ख़ास दिलचस्पी तो नहीं…अलबत्ता, मुझे सैर करने का ज़रूर शौक़ है.” तारिक़ ने कहा.
“खैर, यह शौक़ भी बुरा नहीं.” फ़रीदी ने नवाब साहब की तरफ़ अचानक मुड़ते हुए कहा, “मैं आपके स्वर्गीय सेक्रेटरी के बारे में कुछ मालूमात करना चाहता हूँ.”
“किस किस्म की मालूमात….?” नवाब साहब ने पूछा.
“पहली बात यह कि वह आपके यहाँ कितने दिन से नौकरी कर रहा था?”
“उसकी परवरिश ही इस घर में हुई थी.”
“उसका कोई रिश्तेदार…?”
“कोई नहीं….बहुत पहले मुझे एक पुराने मंदिर के पास पड़ा मिला था. उस वक़्त उसकी उम्र दो साल से ज्यादा न थी.”
“हूँ….” फ़रीदी ने सिर हिलाते हुए कहा, “उसका कोई दुश्मन?”
“मेरा ख़याल है कि कोई नहीं, क्योंकि वह एक बहुत ही अच्छा आदमी था.”
“क्या आप बता सकते हैं कि वह किस किस्म की कताबें पढ़ा करता था?’
“यह बताना मुश्किल है.”
“अपने कौन-सी किताब ढूंढने के लिए उसे भेजा था?”
“एक किताब, जो इसी इमारत के बारे में थी.”
फ़रीदी अचानक उछल पड़ा.
“इस इमारत के बारे में…क्या अपने उस पढ़ा था?”
“हाँ, एक बार दो-एक पन्ने को पढ़ने का इत्तेफ़ाक़ हुआ था.”
“कोई ख़ास बात थे उसमें?”
“ज़ाहिर ही कि अगर कोई ख़ास बात होती, तो दो ही एक पन्ने पढ़कर क्यों रह जाता.”
“ओह…ख़ास बात ज़रूर थी…मगर खैर…यह बताइए कि अचानक आपको उसे तलाश कराने की कौन-सी ज़रुरत पड़ गयी थी?” फ़रीदी ने कहा.
नवाब साहब फिर कुछ उकताये हुए से नज़र आने अलगे.
“इन सवालों का इस हादसे से क्या ताल्लुक?” नवाब साहब ने कहा.
“बहुत बड़ा ताल्लुक है…मेरे सवाल आपको बेकार मालूम हो रहे हैं, लेकिन मेरा काम करने क तरीका कुछ इसी तरह का है.”
“मैंने उस किताब का बयान तारिक़ से यूं ही बातचीत के दौरान किया था. उन्होंने उसे देखने की ख्वाहिश ज़ाहिर की.”
“क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आप उसे क्यों देखना चाहते थे.” फ़रीदी अचानक तारिक़ की तरफ़ मुड़ कर बोला.
“बात यह है कि मुझे पुरानी इमारतों में दिलचस्पी है.” तारिक़ ने जवाब दिया, “मैंने सोचा हो सकता है, इसमें कोई बात मेरी मालूमात में इज़ाफ़ा करने वाली हो.”
“वह कितनी पुरानी रही होगी?” फ़रीदी ने पूछा.
“ठहरो….मैं अभी दिखाता हूँ.” नवाब साहब ने उठते हुए कहा.
“बेकार…” फ़रीदी ने उन्हें बैठने का इशारा करते हुए कहा, “वह अब यहाँ मौजूद नहीं.”
“क्या मतलब…?”
“मेरा ख़याल ग़लत था.” फ़रीदी ने कहा, “दरअसल वह किताब ही आपके सेक्रेटरी की मौत की ज़िम्मेदार है.”
फ़रीदी तारिक़ की तरफ़ देखने लगा, वह फ़रीदी को घूर रहा था. आँखें मिलते ही वह दूसरी तरफ़ देखने लगा.
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा.”
“आप कह रहे थे कि वह किताब इस इमारत के बारे में थी.” फ़रीदी ने नवाब साहब के सवाल को नज़र-अंदाज़ करते हुआ कहा, ”क्या आप अंदाज़े से भी उसकी तारीख मुझे नहीं बता सकते.”
“वह किताब तीन सौ साल पुरानी रही होगी.” नवाब साहब बोले.
“तीन सौ साल….” फ़रीदी ने हैरत का इज़हार करते हुये कहा, “मगर यह इमारत तो नये तर्ज़ की है.”
“जिस हिस्से में आप बैठे हुए हैं, उसे बने ज्यादा दिन नहीं हुए. पुरानी इमारत तो कभी की ख़त्म हो चुकी है. उसके कुछ खंडहरों का हिस्सा अभी तक बाकी है.”
“ओह…तब तो मैं सौ फ़ीसदी यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि सेक्रेटरी की मौत किताब की वजह से ही हुई है.”
“मगर कैसे…?” नवाब साहब बेचैनी से बोले.
“इस किताब में उस इमारत के बारे में कोई गहरा राज़ लिखा था.” फ़रीदी ने कहा, “यही वजह है कि वह निडर होकर रात को भी लाइब्रेरी में बैठा रहा, जबकि दूसरे अपने कमरों से निकलने की भी हिम्मत नहीं कर सकते. क्या आप बता सकते हैं कि इस वक़्त और कौन-कौन मौजूद था, जब आपने उसे किताब तलाश करने की हिदायत दी थी.”
“शायद मेरे और तारिक़ के अलावा और कोई भी नहीं था.”
“हूँ…” फ़रीदी ने सिर हिलाते हुए कहा.
“मगर वह राज़ क्या हो सकता है?”
“वह राज़….” फ़रीदी कुछ सोचता हुआ बोला, “अगर वह राज़ आपको मालूम हो जता, तो आपके घर में होने वाले हादसे आपको नज़रों में खेल-कूद से ज्यादा हैसियत नहीं रखते.”
“यानी…”
“अभी फ़िलहाल मैं इस चीज़ पर ज्यादा रोशनी नहीं डाल सकता. लेकिन आप इत्मिनान रखिए. यह सब हक़ीक़त में खेल-तमाशे से ज्यादा कुछ भी नहीं है.”
नवाब साहब ख़ामोश हो गये, लेकिन उनके बेचैनी आँखों से ज़ाहिर हो रही थी.
“चलिए! मैं आप लोगों की आपके कमरे दिखा दूं.” ग़ज़ाला ने उठते हुये कहा.
“मेरी समझ में नहीं आता कि अब मैं क्या करूं?” नवाब साहब भी उठते हुये बोले.
“अब यह मुझे समझने दीजिए.” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा.
“मुझे तुम्हारी बात से ऐसी ही उम्मीद है…ख़ुदा हमारी परेशनियाँ दूर करे.”
नवाब साहब ने कहा और बाहर चले गये.
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