चैप्टर 3 : कुएँ का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का नावेल हिंदी में | Chapter 3 Kuen Ka Raaz Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 3 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi 

Chapter 3 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi 

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चालीस साल का बच्चा

उस रात के बाद से नवाब साहब की कोठी में रोज़ नयी वारदातें होने लगीं. लगभग हर रात को कुएँ से चिंगारी निकला करती थीं और जानवरों की भयानक आवाज़ों से कोठी का चप्पा-चप्पा गूंज उठता था. नवाब साहब के सौतेले भाई परवेज़ की हालत उस वक़्त देखते ही बनती थी. जैसे ही जानवरों की आवाजें सुनाई देतीं, वह उछल-कूद मचा देता. बिल्कुल ऐसा मालूम होता कि वह भी उन चीखने वाले जानवरों में से एक है. तारिक़ का ख़याल था कि परवेज़ पर भी किसी बहुत बड़े जिन्न का साया है. कभी-कभी तो वह यहाँ तक कह देता था कि ख़ुद परवेज़ ही उन सारी मुसीबतों की जड़ है. लेकिन नवाब साहब उस तरफ़ ध्यान ही नहीं देते थे. हालांकि परवेज़ उनका सौतेला भाई था, लेकिन वे उसे बहुत मानते थे. वाकई उन्हीं का दिल-गुर्दा था कि एक पागल आदमी की ज़रूरत का भी बहुत ख़याल रखा जाता था. उन्होंने उसे उसकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया था कि वह जिस तरह चाहे ज़िन्दगी बसर करे. उसके लिए तीन पहलवान नौकर रखे गये थे, जो उसे गोद में उठाये फिरा करते थे. वह शुरू से ऐसा न था, बल्कि आज से आठ साल पहले उसकी यह हालत हो गयी थी. एक बार वह छत से गिर पड़ा….सिर में कुछ ऐसी चोट आयी कि अच्छा हो जाने पर भी दिमागी संतुलन बरक़रार न रह सका, अच्छे हो जाने के बाद काफ़ी दिनों तक कुछ बोला ही नहीं, बस कभी-कभी बच्चे की तरह सिर्फ़ गूं-गां कर लिया करता था. जिस तरह बच्चे धीरे-धीरे बोलना सीखते हैं, उसी तरह वह भी फिर से बोलना सीख रहा था. अब लगभग आठ साल गुजर जाने के बाद वह इस क़ाबिल हुआ था कि टूटी-फूटी ज़बान में तुतला-तुतला कर दूसरों को अपनी बातें समझा सकता था. नवाब रशीदुज्ज़माँ ने उसके इलाज़ में कोई क़सर नहीं उठा रखी थी, लेकिन उसकी दिमागी हालत ठीक न हुई.

पहले हादसे के बाद से ही दिन भर परवेज़ रात की बातें रटता रहता तथा. वह हर शख्स का हाथ पकड़कर बच्चों की तरह उन हादसों को दोहराता. दूसरी रात जब उसने कुएँ से चिनगारियाँ निकलते देखी, उस वक़्त उसकी वही हालत पैदा हुई, जो किसी बच्चे की आतिशबाज़ी देख कर हुआ करती है और फिर तो वह उन तमाशों के इंतज़ार में काफ़ी रात गये तक जागता रहता था. उसके बारे में एक ख़ास बात और थी; और वह यह कि वह तारिक़ और उसके नेवले से बुरी तरह नाराज़ रहता था. तारिक़ के सामने वह उसी तरह दम साध लेता था, जैसे कोई नटखट बच्चा किसी बहुत ही गुस्से वाले बूढ़े के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है. उसके इस रवैये को बहुत ही ताज्जुब की नज़र से देखा जाता था. सिर्फ़ इसी बात पर घर के बहुत से नौकरों का खयाल था कि तारिक़ ही इन सब मुसीबतों के लिए ज़िम्मेदार है, क्योंकि उसके अपने ख़याल के मुताबिक पागल और दूध पीते बच्चों को भूत-प्रेत दिखाई देते हैं और यह एक खुली हुई हकीक़त थी कि उन हादसों का होना उसी दिन से शुरू हुआ था, जिस दिन से तारिक़ ने कोठी में क़दम रखा था. वे तारिक़ को बहुत ही ख़राब किस्म का जादूगर समझने लगे थे, जिसके कब्ज़े में ख़राब रूहें थीं. वे सब-के-सब तारिक़ से बुरी तरह नाराज़ थे और उससे नफ़रत करने लगे थे, लेकिन कोई भी खुल कर अपनी नफ़रत का इज़हार नहीं कर पाता था क्योंकि वह नवाब साहब का ख़ास मेहमान था. किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह एक शब्द भी मुँह से निकालता. कोठी में होने वाले वाक़यात के बारे में आस-पास में काफ़ी दूर तक फ़ैल गयी थी और नवाब साहब का मेहमान भी लोगों के ख़ास चर्चे में आ गया था.

बहुत सारे लोगों ने नवाब साहब को राय दी कि वे फ़िलहाल कोठी छोड़ कर कहीं और चले जायें, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. उनकी मजबूरी के चलते दूसरे लोग भी अभी तक जमे हुए थे. लेकिन दूसरों का समझाना ज्यादा दिनों तक क़ायम न रह सका. हुआ यह कि अचानक एक दिन अस्तबल में नवाब साहब का क़ीमती घोड़ा मुर्दा पाया गया. दूसरे दिन एक अच्छी नस्ल का कुत्ता, तीसरे दिन एक गाय मर गयी और फिर तो इसका सिलसिला शुरू हो गया. लगभग रोज़ किसी-न-किसी पालतू जानवर की लाश मिलती. इन हादसों के बाद कई नौकर चुपचाप वहाँ से खिसक गये. उन्हें शायद यह डर था कि कहीं जानवरों के बाद आदमियों का नंबर न आ जाये. हालांकि नवाब साहब अब तक नहीं यकीन कर सके, लेकिन अब उन्हें भी क़रीब-क़रीब यकीन हो गया था कि यह ज़रूर कोई रूहानी मामला है. कुएं के अंदर पायी जाने वाली लाश के बारे में उन्होंने बाद में यह सोचकर तसल्ली कर ली थी कि शायद वह नज़र का धोखा हो, लेकिन जानवरों की लगातार मौतें किसी तरह नज़र-अंदाज़ न की जा सकीं. उसी दौरान बहुत सारे मौलवियों और साधु-महात्माओं की ख़िदमत ली गयी कि वे किसी तरह कोठी पर कब्ज़ा कर लेने वाली ख़राब रूहों को भगायें, लेकिन उनमें से कोई कामयाब न हो सका.

तारिक़ अभी तक उनका मेहमान था. उसकी रहस्य-भरी शख्सियत की बिना पर नवाब साहब को भी उस पर कुछ-कुछ शक होने लगा था, लेकिन वे उससे कुछ कह न सकते थे. उनकी दिली ख्वाहिश थी कि वह किसी तरह चला जाये, जब तक कि नवाब साहब इन मुसीबतों से छुटकारा न हासिल कर लें. नवाब साहब ने दो-एक बार दबी ज़बान में यह कहा भी था कि सिर्फ़ उनकी वजह से तकलीफ़ न उठाये, लेकिन तारिक़ पर इसका कोई असर न हुआ.

शुरू में ग़ज़ाला का भी यही ख़याल था कि यह कोई रूहानी मामला है, लेकिन मौलवियों और साधुओं के थक-हार जाने के बाद उसे यकीन हो गया था कि यह इंसानी साज़िश के अलावा और कुछ नहीं. उसने नवाब साहब से भी इसका ज़िक्र किया और बहुत देर तक अपने अंदाज़े पर बहस करती रही, लेकिन नवाब साहब ने उसकी बातें हँसी में उड़ा दी.

“आखिर ये चीज़ें इंसानी साज़िश का नतीज़ा कैसे हो सकती हैं?” नवाब साहब बोले.

“ऐसे बहुत सारे वाक़यात देखने में आये हैं, जिन्हें बेकार समझा गया, लेकिन बाद में उनमें इंसानी हाथ नज़र आया.”

“वे और वाक़यात होंगे…..भला कोई इंसान दर-ओ-दीवार से जानवरों को आवाज़ें किस तरह पैदा कर सकता है?”

“फ़िलहाल मैं इसका कोई ठीक-ठाक जवाब नहीं दे सकती, लेकिन मेरा दावा है कि इसमें किसी आदमी का हाथ है.”

“क्या तुम्हारा इशारा तारिक़ की तरफ़ है.” नवाब साहब बोले.

“मेरा इशारा उसकी तरफ़ नहीं है.” ग़ज़ाला ने कहा, “लेकिन क्या यह नहीं हो सकता कि वही इन सारी मुसीबतों का ज़िम्मेदार हो. हमें तो यह तक नहीं मालूम कि वह रहने वाला कहाँ का है, उसकी कमाई-धमाई क्या है और आप यह भी जानते हैं कि वह कई अजीबो-ग़रीब हरक़तें करता है. मैंने उसकी हिप्नोटिज्म वाली बात आपसे बतायी थी.”

“किसी के बारे में बेकार ख़याल रखना ठीक नहीं.” नवाब साहब बोले.

“आप बेकार की बातें कर रहे हैं.” ग़ज़ाला बोली, “मुझे सौ फ़ीसदी यकीन है.”

नवाब साहब ख़ामोश हो गये.

“मैं सोच रही हूँ कि इस मामले में फ़रीदी साहब की मदद ली जाये.”

नवाब साहब के मुर्झाये हुये चेहरे पर अचानक रौनक आ गयी. लेकिन फिर फ़ौरन ही उस पर नाउम्मीदी की धूल की तहें चढ़ गयीं.

“भला फ़रीदी इस मामले में क्या कर सकेगा?” नवाब साहब ने कहा, “बिला वजह उसे बुलाने से क्या फ़ायदा?”

“अगर वे कुछ न भी कर सके, तो भी कम-से-कम कोई अच्छी राय ही दे सकेंगे.”

“मगर वे आयेंगे ही क्यों?”

“आयेंगे क्यों नहीं….मैंने सुना है कि आजकल वे और उनका असिस्टेंट तीन महीने की छुट्टी पर हैं. मेरा ख़याल है कि अगर मैं उनसे कहूंगी, तो वे इंकार नहीं करेंगे.”

“खैर, कोशिश करो; अगर आ जाये, तो अच्छा ही है. लेकिन मैं यही कहूंगा कि वह इस मामले में कोई मदद न कर सकेगा.”

“खैर, अगर कुछ न हो सका, तो कम-से-कम इतना तो हो ही जायेगा कि अगर इसमें किसी आदमी का हाथ है, तो वह कुछ दिनों के लिए अपनी हरकतें शायद छोड़ ही दे.”

“आदमी का हाथ.” नवाब साहब तंग आ कर बोले, “भला कोई आदमी दीवारों से जानवरों की आवाज़ें कैसे निकाल सकता है…और फिर यह कि आये दिन जानवरों की मौत की क्या वजह हो सकती है?”

“कुछ भी हो, लेकिन मुझे सौ फ़ीसदी उम्मीद है कि फ़रीदी साहब इस मामले में कुछ-न-कुछ रोशनी ज़रूर डालेंगे.”

नवाब साहब ख़ामोश हो गये.

अंधेरी रात अपने काले पंख फैलाये धीरे-धीरे पश्चिम से पूरब की तरफ़ तैर रही थी. लगभग दो बज गये थे. आज भी पहले की तरह ही कुएं से चिनगारियाँ निकली थीं और जानवरों की आवाजें भी सुनाई दी थीं, लेकिन कोठी के लोग कुछ इस तरह इन चीज़ों के आदी हो गये थे, जैसे यह उनके लिए कोई अनोखी बात ही न हो, वैसे उनके दिलों को एक खटका लगा हुआ था कि देखें सुबह किसी जानवर की लाश से वास्ता पड़ता है या आदमी की लाश से.

नवाब साहब ग़ज़ाला के कमरे से उठकर अपने कमरे में चले गये. ग़ज़ाला ने सोने की कोशिश की, लेकिन नींद न आयी. आखिर वह थक-हार कर खिड़की के क़रीब आ कर बैठ गयी. उसके कमरे में नीले रंग का बल्ब जल रहा था. कमरे की ख़ामोश फ़िज़ा में नीले रंग की बोझिल रोशनी कुछ अजीब-सी मामूल हो रही थी. ग़ज़ाला जिस खिड़की के क़रीब बैठी थी, उसका रूख बाग़ की तरफ़ था. वह बैठे-बैठे अचानक चौंक पड़ी. एक अंधेरा आया धीरे-धीरे कुएं की तरफ़ रेंग रहा था. ग़ज़ाला का दिल धड़कने लगा. उसका दिन चाहा कि वह शोर मचाकर घरवालों को जगा दे, लेकिन फिर कुछ सोच कर ख़ामोश हो गयी. वह इंसानी साया कुएं के क़रीब जाकर रुक गया. उसने अपने कंधे से कोई चीज़ उतारी और कुएँ की जगत के नज़दीक जा पहुँचा. फिर वह पास में क़रीब उगे हुए पेड़ के तने से टेक लगाकर बैठ गया. फिर उसने कोई चीज़ कुएं में फेंकी. अब वह कुएँ में सिर लटकाये कुछ देख रहा था. तभी टॉर्च की रोशनी में वह कुछ देखने लगा. ग़ज़ाला के मुँह से चीख निकल जाती, लेकिन उसने बड़ी हिम्मत से काम लिया. टॉर्च की रोशनी में उसे उस संदिग्ध आदमी के चेहरे की हल्की-सी झलक दिखायी दी. यह तारिक़ के अलावा और कोई न था. वह शायद पेड़ की टहनियों से रस्सी बांधकर उसी के सहारे कुएँ में उतरने जा रहा था. ग़ज़ाला बुरी तरह कांप रही थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आवाज़ बैठ गयी हो और अब वह कभी न बोल सकेगी. तारिक़ कुएँ में उतर गया. उसे तारिक़ की खौफ़नाक़ आँखें याद आ गयीं और उस वक़्त वह कितनी भयानक थी, जब वह उसे हिप्नोटिज्म से सुलाने की कोशिश कर रहा था.

ग़ज़ाला की आँखें बोझिल होने लगीं. एक अजीब सी सनसनाहट उसे अपने सारे जिस्म में दौड़ती लग रही थी. जिस्म में हिलने की ताक़त नहीं रह गयी थी. वह वहीं कुर्सी से टेक लगकर गहरी नींद में सो गयी. न जाने वह कब तक उसी हाल में सोती रही. अचानक शोर की आवाज़ सुनकर वह जाग उठी. सुबह हो गयी थी, लेकिन सूरज अभी तक नहीं निकला था. पूरब में लाली छा गयी थी. शोर की आवाज़ बाग़ की तरफ़ से आ रही थी. उसने खिड़की से देखा. कुएँ के पास लोगों की भीड़ लगी ही है. ग़ज़ाला झपट कर बाहर निकली. अभी वह कुछ ही कदम गयी होगी कि उसने देखा दो नौकर परवेज़ को उठाये हुए कोठी की तरफ़ ला रहे थे. उनके पीछे नवाब साहब और तारिक़ थे.

“क्या हुआ…” ग़ज़ाला एकदम से बोल उठी.

“न जाने कब से कुएँ के क़रीब बेहोश पड़ा था…!

नवाब साहब घबराहट में बोले.

अचानक ग़ज़ाला को रात की बातें याद आ गयीं. उसने तारिक़ की तरफ़ देखा. वह कुछ कहने वाली थी कि तारिक़ ने अपनी झुकी हुई आँखें ऊपर उठायीं. ग़ज़ाला कांप गयी. तारिक़ से आँखें मिलते ही ऐसा मालूम हुआ, जैसे किसी ने उसकी ज़बान पकड़ ली हो. उसके सारे जिस्म में थर-थरी सी पैदा हो गयी. उसकी बदलती हुई हालात का एहसास क़रीब-क़रीब सबको हो गया.

“घबराओ नहीं…अभी यह होश में आ जायेगा. कोई ख़तरे की बात नहीं.” तारिक़ उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

अचानक उसके जिस्म की थर-थरी हट गयी और उसे ऐसा लगा, जैसे वह एक पत्थर के बुत की तरह ख़ामोश हो गयी हो. हालांकि उसे अपने दिल की धड़कन पर भी शक होने लगा कि कहीं अचानक बंद तो नहीं हो गयी. वह कंधा जिस पर तारिक़ ने हाथ रखा था, बिल्कुल सुन्न हो कर रह गया था.

तारिक़ के कंधे पर उसका अजीबो-ग़रीब नेवला बैठा अखरोट कुतर रहा था.

परवेज़ को सोफ़े पर लिटा दिया गया. वह गहरी-गहरी सांसे ले रहा था. वह होश में ज़रूर आ गया था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसकी ज़बान बंद हो गयी हो. फ़ौरन ही एक डॉक्टर को बुलाया गया, जिसने दिलासा दिया कि घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ देर बाद वह बोलने के काबिल हो गया.

 “परवेज़ मियां…!” नवाब साहब बोले, “तुम कुएँ के पास क्यों गये थे?”

”तितली पकलने…!” परवेज़ तुतला कर बोला, “उसके पल्लू में चाँद-सितारे टंके थे.”

“या अल्लाह! इसके हाल पर रहम कर.” नवाब साहब रूआंसे हो कर बोले.

“मंगा दीजिए भाई जान, मेली तितली.” परवेज़ बच्चों की तरह ठनक कर बोला.

“हाँ-हाँ, मंगा देंगे.” तारिक़ मुस्कुरा कर बोला, “तुम चुपचाप लेटे रहो.”

तारिक़ की आवाज़ सुनकर परवेज़ ने नफ़रत से होंठ सिकोड़ लिये. लेकिन उसकी आँखों में नफ़रत के बजाय खौफ़ झांक रहा था. उसने बहुत कोशिश की कि वह रात का वाक़या बयान कर दे, लेकिन हिम्मत न पड़ी. मालूम नहीं कि वह कौन सी ताक़त थी, जो हर बार उसकी ज़बान रोक देती थी.

अभी तक सब परवेज़ के सोफ़े के पास खड़े थे.

“मेरी दूध पीने की छीछी.” परवेज़ अचानक उठ कर बैठते हुए बोला.

“अभी मंगवाये देता हूँ.” नवाब साहब बोले.

परवेज़ की दूध पीने की शीशी कुएँ की जगत के क़रीब टूटी ही पड़ी थी.

“तुम किस वक़्त वहाँ गये थे.” तारिक़ ने परवेज़ से पूछा.

“जब काली बिल्ली पर ऊँट बैठा पानी पी रहा था.” परवेज़ ने जवाब दिया.

“मालूम होता है, रात इन्हें किसी ख़बीस ने घेर लिया था.” तारिक़ कुछ सोचते हुए बोला.

“ऐ ग़ज़ाला इसे यहाँ से हटा दो.” परवेज़ ने अपनी आँखें बंद करते हुए ग़ज़ाला से कहा, “नहीं तो यह माल डालेगा.”

ग़ज़ाला के रहे-सहे शक भी परवेज़ के इस जुमले पर साफ़ हो गये और उसे यकीन हो गया कि इन शैतानी हरक़तों में तारिक़ का हाथ है, जिस तरह वह अनजाने में उसके ख़िलाफ़ कह नहीं सकती. इसी तरह शायद परवेज़ भी डरता है.

उसी दिन शाम को ग़ज़ाला कुछ ऐसे इंतज़ाम में लग गयी, जैसे उसे सफ़र करना है. नवाब साहब के पूछने पर उसने बताया कि वह अपने मामू के यहाँ शहर जा रही है. नवाब साहब ने इत्मिनान की साँस ली. वे पहले से ही चाहते थे कि वह कुछ दिन के लिए किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाये. उन्होंने उससे कहा भी था, लेकिन वह उस पर तैयार नहीं थी.

ग़ज़ाला शाम के सात बजे की गाड़ी से शहर रवाना हो गयी.

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