चैप्टर 2 : कुएँ का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का नावेल हिंदी में | Chapter 2 Kuen Ka Raaz Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 2 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi

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भाग २ :  खौफ़नाक आवाज़

नवाब साहब की आवाज़ इतनी डरावनी थी कि ग़ज़ाला एकदम से कोठी की तरफ़ मुड़ गयी.

“अब क्या किया जाये?” तारिक़  बेचैनी से हाथ मलते हुए बोला.

“मेरे तो होश ठिकाने नहीं.” नवाब साहब कुएँ की जगह के क़रीब ही ज़मीन पर बैठते हुए बोले.

“आखिर मामला क्या है?”

“ख़ुदा हे बेहतर जानता है.”

“तो क्या आपकी याददाश्त में इस कुएँ से कभी चिनगारियाँ नहीं निकली?”

“नहीं…!” नवाब साहब बोले, “यह वालिद साहब के बचपन की बात है.”

“तो अपने अपनी ज़िन्दगी में यह पहली बार देखा है?”

नवाब साहब की आवाज़ कांप रही थी. वे इस वक़्त किसी किस्म के सवाल का जवाब देने के मूड में नहीं थे.

तभी कोठी के अंदर से एक अजीबो-ग़रीब किस्म के शोर की आवाज़ सुनाई दी.

“अरे यह क्या…..!” तारिक़ चौंक कर बोला.

नवाब साहब भी हैरान हो कर कोठी की तरफ़ देख रहे थे. शोर बढ़ता ही जा रहा था. ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे कई गीदड़, कुत्ते, उल्लू और न मालूम कौन-कौन-से जानवर एक साथ चीख रहे थे, साथ-ही-साथ आदमियों का शोर भी सुनाई दे रहा था. दोनों दौड़ कर कोठी की तरफ़ लपके. अंदर क़दम रखते ही उन्हें ऐसा महसूस होने लगा, जैसे वे आवाजें दीवारों से निकल रही हों. इतना ज़ोरदार शोर था कि कुछ और सुनाई नहीं दे रहा था. कोठी के सारे लोग कमरों में बंद हो कर तरह-तरह की डरावनी आवाज़ें निकाल रहे थे.   

“ये इतने जानवर यहाँ कैसे घुस आये?” तारिक़ ने कहा. उसका नेवला उछल कर उसके सीने से लिपट गया.

नवाब साहब इस तरह कांप रहे थे, जैसे उन्हें कोई बीमारी हो गयी हो.

   “नन…न….जज….जाने….क्क्या बात है.” नवाब साहब हकलाते हुए बोले.

तारिक़ एक-एक कोना तलाश करता फिर रहा था. लेकिन चीखने वाले जानवरों का कहीं पता नहीं चल रहा था.

तभी नवाब साहब का सौतेला भाई उछलता-कूदता हुआ आ गया. वह उन आवाज़ों को सुन-सुन कर डरावनी हँसी हँस रहा था. उसकी उम्र चालीस साल से किसी तरह कम न थी. उसके हाथ में दूध पीने की शीशी थी. जब वह उछल-कूद कर थक जाता, तो शीशी का दूध चूसने लगता. उसके गले में एक कपड़ा बंधा हुआ था; बिल्कुल वैसा ही जैसा कुछ माएं अपने बच्चों के गले में इसलिए बांध देती हैं, ताकि उनके कपड़े मुँह से बहने वाली लार से बच सकें.

“भाई साहब, टमाशा हो लहा है.” वह तालियाँ बजता हुआ तुतला-तुतला कर बोला.

“चुप रहो…!” नवाब साहब चीख कर बोले, “भाग जाओ यहाँ से.”

वह फिर दूध पीते बच्चे की तरह सहम कर घुटनों के बल चलता हुआ एक कमरे में घुस गया.

धीरे-धीरे शोर कम होता जा रहा था. थोड़ी देर के बाद बिल्कुल सन्नाटा छा गया. तारिक़ और नवाब हैरत से एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे. हालांकि वह संदिग्ध शोर अब खत्म हो चुका था, तो भी कमरों में छिपे हुए लोगों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बाहर निकल आते.

“क्यों भाई तारिक़, तुम्हीं कुछ बताओ, यह सब क्या हो रहा है.” नवाब साहब बोले.

“तो क्या शोर भी पहले-पहल….”

“हाँ-हाँ.” नवाब साहब ने बात काटते हुए कहा, “बिल्कुल पहले-पहल. किसी ख़ानदानी रिवायत से भी पता नहीं चलता कि इससे पहले भी कभी इस किस्म का हादसा पेश आया हो.”

“तब तो वाक़ई हैरत की बात है.”

“मगर अब करना क्या चाहिए?” नवाब साहब ने बहुत ही परेशान होकर कहा.

“कर ही क्या सकते हो.” तारिक़ बोला, “मुझे तो यह भूत-प्रेत का मामला मालूम होता है.”

“मगर वह कुआं.” नवाब साहब ने दबी आवाज़ में कहा.

“ऐसे मामले में सब कुछ हो सकता है.”

“तो फिर पुलिस इस मामले में क्या कर सकती है.” ग़ज़ाला ने बैठी हुई आवाज़ में कहा. शोर खत्म होने के कुछ पलों के बाद वह उन्हीं दोनों के पास आ कर खड़ी हो गयी थी.

“जाओ….जाओ…तुम सो जाओ.” नवाब साहब बोले.

“क्या आज की रात किसी को नींद आ सकती है.” ग़ज़ाला ने कहा.

“क्यों नहीं…क्यों नहीं.” तारिक़ ने इत्मिनान से कहा, “कोई ऐसी ख़ास बात नहीं.”

“अच्छा, तो तुम यहीं ग़ज़ाला के पास ठहरो.” नवाब साहब ने तारिक़ से कहा, “मैं थाने जाता हूँ.”

“नहीं, आप किसी और को भेज दीजिये, मैं आपको नहीं जाने दूंगी.” ग़ज़ाला ने कहा, “आप बेकार ही थाने जा रहे हैं. पुलिस इस मामले में कुछ न कर सकेगी.”

“तारिक़ है तो तुम्हारे पास…..डरने की कोई बात नहीं, मैं अभी फ़ौरन वापस आता हूँ.”

“तो किसी और को  भेज दीजिए न.”

“ओह, तुम नहीं समझती कि मेरे गये बगैर काम नहीं बनेगा.” नवाब साहब ने कहा और बाहर निकल गये.

थोड़ी देर बाद कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई.

“आखिर आप बताते क्यों नहीं कि अब्बा जान थाने किस लिए गये हैं.” ग़ज़ाला ने तारिक़ से कहा.

“कोई बात नहीं, तुम जाकर सो जाओ.” तारिक़ ने कहा.

“अगर का भी यही हुआ, तो क्या होगा?”

“कुछ नहीं होगा…सब ठीक हो जायेगा. चलो, तुम अपने कमरे में चलो.”

ववाह ग़ज़ाला का बाज़ू पकड़ कर उसे उसके कमरे की तरफ़ ले जाने लगा.

उसका नेवला अब उसके कंधे पर बैठा अपनी चमकीली नज़रों से चारों तरफ़ देख रहा था.

“अब तुम लेट कर सो जाओ…मैं यहीं बैठा हूँ.” तारिक़ उसे उसके पलंग पर बिठा कर ख़ुद एक कुर्सी पर बैठता हुआ बोला.

“नींद नहीं आयेगी.” ग़ज़ाला ने कहा.

“आयेगी कैसे नहीं….मैं अभी तुम्हें सुलाये देता हूँ.”

ग़ज़ाला ने डरी हुई निगाहों से उसकी तरफ़ देखा.

“डरो नहीं.” तारिक़ हँसकर बोला, “मैं तुम्हें हिप्नोटिज्म के ज़रिये सुला दूंगा.”

“ओह तो क्या आप हिप्नोटाइज़ कर सकते हैं?”

“हाँ..लेट जाओ. हाँ, इस तरह. ठीक. मेरी तरफ़ देखो, मेरी आँखों में देखो, सो जाओ…तुम सोती जा रही हो, तुम्हें नींद आ रही है. तुम्हारी आँखें बंद हो रहीं हैं.”

ग़ज़ाला को ऐसा मालूम हो रहा था जैसे तारिक़ की आँखों से बिजली की लहरें निकल कर उसके जिस्म में चली गयी हों. ज़ेहन सुस्त होता जा रहा है…पलकें बोझिल…अंधेरा…और अब उसे ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे तारिक़ की आवाज़ बहुत दूर से आ रही हो, “तुम्हारी नींद गहरी होती जा रही है. तुम्हारी नींद गहरी होती जा रही है.” और धीरे-धीरे आवाज़ आनी बंद हो गयी. चारों तरफ़ अंधेरा-ही-अंधेरा था. वह गहरी नींद सो गयी थी.

तारिक़ थोड़ी देर तक बैठा उसकी तरफ़ देखता रहा, फिर उठ कर बाहर चला गया. उसके माथे की नसें उभरी हुई थीं, आँखों और कनपटियों से ऐसा मालूम हो रहा था कि वह किसी गहरी सोच में है.

कमरों में घुसे हुए लोग इस तरह बातें कर रहे थे कि जैसे वे तहखानों में दुबके हुए बमबारी का इंतज़ार कर रहे हों. तारिक़ फिर बाग़ में आ गया. वह थोड़ी देर तक खड़ा कुछ सोचता रहा, फिर धीरे-धीरे चलता कुएं के क़रीब गया. उसके हाथ में दबी हुई टॉर्च की रोशनी कुएँ में पड़ रही थी. तभी उसके होंठों पर एक भेद-भरी मुस्कान आई और वह फिर कोठी की तरफ़ रवाना हो गया.

लगभग आधे घंटे के बाद नवाब साहब एक सब-इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबलों के साथ वापस लौटे. कुएं में कई टॉर्चों की रोशनी एक साथ पड़ी और नवाब साहब के मुँह से चीख निकल गयी. सब-इंस्पेक्टर ने सवालिया निगाहों से उनकी तरफ़ देखा.

“तो क्या सचमुच मैं पागल हो जाऊंगा.” नवाब साहब इस तरह बोले, जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रहे हों.

“आपने तो कहा था.” सब-इंस्पेक्टर बोला.

“हाँ, मैंने बिल्कुल ठीक कहा था.” नवाब साहब बेचारगी के साथ बोले, “और आप जो कुछ देख रहे हैं, वह भी ठीक है.”

सब-इंस्पेक्टर हँसने लगा और नवाब साहब के चेहरे पर झल्लाहट पैदा हो गई.

“आपने तो फ़रमाया था औरत की लाश…..” सब-इंस्पेक्टर ने कहा.

“मैंने ग़लत नहीं कहा था.” नवाब बोले, “सिर्फ़ मैंने ही नहीं, बल्कि मेरे एक मेहमान ने भी देखी थी.”

इतनी देर में दो-तीन नौकर भी आ गये थे, लाश का ज़िक्र सुनकर बुरी तरह कांपने लगे. एक घंटे के अंदर-अंदर उन्हें कई अजीबो-ग़रीब बातों से वास्ता पड़ा था.

“ज़रा तारिक़ साहब को बुलाओ.” नवाब साहब ने एक नौकर की तरफ़ देखकर कहा.

तारिक़ को देखकर सब-इंस्पेक्टर ने अजीब-सा मुँह बनाया. तारिक़ से ज्यादा वह उसके काले नेवले को घूर रहा था, जो अभी तक तारिक़ के कंधे पर बैठा हुआ था.

“आपने भी औरत की लाश देखी थी.” नवाब साहब ने तारिक़ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.

“और अब मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आपको क्या बयान दूं.” तारिक़ ने सब-इंस्पेक्टर से कहा.

“क्यों…”

“इसलिए कि मैंने नवाब साहब के जाने के बाद फिर उस कुएं में झांका था. इस बार मैंने औरत के बजाय मर्द की लाश देखी.”

“अरे….” नवाब साहब ने मुँह से अचानक निकला.

“जी हाँ.”

“और अब यहाँ कुछ भी नहीं है.” नवाब साहब ने बेताबी से कुएं की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.

“अच्छा….!” तारिक़ ने कहा और कुएं की तरफ़ बढ़ा. दूसरे पल में उसकी टॉर्च की रोशनी कुएँ में पड़ रही थी.

तारिक़ ने एक ज़ोरदार कहकहा लगाया और सब लोग हैरत से उसे देखने लगे.

“ग़ज़ाला तुम्हें पहले ही मना कर रही थी.” तारिक़ बोला, “भला भूतिया मामले में पुलिस क्या कर सकती है.”

“क्या इसी कुएँ से चिंगारी भी निकली थी.” सब-इंस्पेक्टर ने पूछा.

;हाँ….!”

“तब तो यह खुला हुआ मामला है. हम लोग भला इसमें क्या कर सकेंगे और कुछ आवाज़ का भी तो अपने ज़िक्र किया था.”

“जी हाँ….आवाजें कोठी के अंदर सुनाई दी थी.” तारिक़ बोला.

“शायद मैं आपसे पहली बार मुलाक़ात कर रहा हूँ.” सब-इंस्पेक्टर ने उसकी बात पर ध्यान न देते हुए कहा.

“मैं पहली बार यहाँ आया हूँ.”

सब-इंस्पेक्टर अब तक नेवले को घूर रहा था.

“यह मेरा पालतू नेवला है.”

“बहुत ही अजीबो-ग़रीब है.” सब-इंस्पेक्टर ने कहा, “अच्छा तो नवाब साहब, अब इज़ाज़त चाहूंगा.”

“क्या बताऊं भई, मैंने बेकार ही में आपको तकलीफ़ दी.” नवाब साहब ने हाथ मलते हुए कहा.

“कोई बात नहीं, मैं तो आपका ख़ादिम हूँ. अलबत्ता, इस बात का ज़रूर अफ़सोस है कि मैं इस मामले में आपकी कोई ख़िदमत न कर सकूंगा.”

पुलिस वाले नवाब साहब की कार से वापस चले गये.

नवाब साहब, तारिक़ और कुछ नौकर अभी तक कुएँ के पास खड़े हुए थे, जहाँ नौकरों के सामने लाश के बारे में बातें हुई थीं, इसलिए कुछ ही पलों में यह  ख़बर सारी कोठी में फ़ैल गयी.

“भाई तारिक़….मेरा दिमाग काम नहीं करता.” नवाब साहब ने कहा.

“मैं ख़ुद हैरान हूँ.” तारिक़ ने कहा. उसके आँखों की चमक अचानक पहले से ज्यादा बढ़ गयी.

“एक बार मैं भी मिस्र में ऐसे ही वाक़यात से दो-चार हुआ हूँ.’ तारिक़ फिर बोला.

“अगर वाकई ये भुतहा ही मामला है, तो इससे किस तरह छुटकारा मिल सकेगा?”

“बहुत ही आसानी से.” तारिक़ बोला, “क्या आपको कोई ऐसा आदमी नहीं मिल सकता, जो ख़राब रूहों को भागने का काम जानता हो.”

नवाब साहब कुछ सोचने लगे.

“बहुत परेशान हूँ.” नवाब साहब बोले, “भई, बात दरअसल यह है कि मैं इन चीज़ों को नहीं मानता. मगर हादसे ऐसे पेश आये हैं कि कुछ कहते-सुनते नहीं बन पड़ती.”

“नहीं, आपको इन चीज़ों को मानना चाहिए, क्योंकि ख़राब रूहों का वजूद है.” तारिक़ ने अपने नेवले को कंधे से उतारते हुये कहा.

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