चैप्टर 9 : कुएँ का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का नावेल हिंदी में | Chapter 9 Kuen Ka Raaz Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 9 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi

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Chapter 9 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi

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हमला

अंधेरी रात थी. आसमान काले बादलों से ढंका हुआ था. गरज और चमक से मालूम हो रहा था कि अभी बारिश होने वाली है. फ़रीदी ने अपना पलंग बरामदे में निकलवा लिया था. उस वक़्त सर्दी बढ़ जाने की वजह से उसने चादर ओढ़ ली थी. सोते वक़्त उसने बरामदे की बिजली बुझा दी थी. सारी कोठी पर सन्नाटा छाया हुआ था. तभी एक तरफ़ अंधेरे में एक साया चलता हुआ नज़र आया. वह धीरे-धीरे फ़रीदी के पलंग की तरफ़ बढ़ रहा था. वह पलंग के क़रीब पहुँचकर रुक गया. उसका एक हाथ ऊपर उठा और बड़ा-सा खंज़र सोने वाले की जिस्म में घुस गया. साथ ही किसी तरफ़ से एक दूसरा साया झपट कर पहले साये पर आ गिरा. दोनों गुंथ गये. इस टकराव में दोनों के मुँह से हल्की-हल्की चीखें निकल जाती थी. तभी एक साया दूसरे की पकड़ से निकल कर भागा. दूसरा साया उसका पीछा करने लगा और अंधेरे ने दोनों को अपने दामन में छुपा लिया.

शोर सुनकर लोग जाग उठे. कमरों और बरामदों के बल्ब जला दिए गये. हमीद भी जाग उठा था. वह भाग कर फ़रीदी के कमरे की तरफ आया. उसे मालूम था कि फ़रीदी बरामदे में ही सोया है. जैसे ही उसने टॉर्च जलाई, उसके मुँह से चीख निकल गयी. फ़रीदी ने माथे तक चादर ओढ़ रखी थी और उसके काले बाल तकिये पर बिखरे हुए थे और सीने पर एक खंज़र, जिसका सिर्फ़ हत्था नज़र आ रहां था. हमीद बेतहाशा चीखने लगा.

“दौड़ो…दौड़ो….क़त्ल…क़त्ल…”

नींद से चौंके हुए लोग, जो मामले को अच्छी तरह समझ न पाये थे, उस बरामदे की तरफ़ दौड़े. इनमें से एक ने बरामदे का बल्ब जलाया.

“क्या हुआ….” ग़ज़ाला आगे बढ़ कर बोली, “अरे…या क्या?”

“फ़रीदी साहब.”

“उफ़ मेरे ख़ुदा….यह क्या हुआ…अब्बा जान….अब्बा जान…”

“ओह, शायद सो रहे हैं.” किसी ने कहा.

“जाओ..जाकर जगा दो.”

“उफ़ मेरे ख़ुदा….मैंने उन्हें क्यों रोक लिया था.” ग़ज़ाला सिसकियाँ लेकर रोने लगी.

इस दौरान बारिश होने लगी थी और इतनी तेज हो रही थी कि कम पड़ी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी.

तभी किसी ने कहकहा लगाया. सब लोग चौंक गये. फ़रीदी पानी में सराबोर लड़खड़ाता हुआ बरामदे में दाखिल हुआ.

“अरे आप….” सब ने मुँह से एक साथ निकला.

“या अल्लाह…तेरा शुक्र है..” ग़ज़ाला अपने आप बोल उठी. उसकी आँखों में अभी तक आँसू निकल रहे थे.

“अरे आप रो क्यों रही हैं?” फ़रीदी ने हँसकर कहा.

“पहले यह बताइए कि यह कौन है.” हमीद ने लाश की तरफ़ इशारा करके कहा.

“चादर उलट कर देखो.”

जैसे ही हमीद ने चादर उलटी, उसके मुँह से हैरत से चीख निकल गई.

चादर के नीचे तीन-चार तकिये रखे हुए थे और सिरहाने वाले तकिये पर दफ्ती का बना हुआ एक सिर रखा हुआ था, जिस पर काले रंग के बड़े-बड़े बाल चिपके हुए थे.

“मुझे पहले ही से मालूम था कि आज रात को मुझ पर ज़रूर हमला होगा. इसलिए मैं यहाँ से चला जाना चाहता था. लेकिन ग़ज़ाला खानम की ज़िद के आगे एक न चली और मजबूरन मुझे यह इंतज़ाम करना पड़ा.”

“मुझे शर्मिंदगी है.” ग़ज़ाला ने कहा.

“इअकी बिल्कुल ज़रूरत नहीं. अगर मैं आज चला गया होता, तो मुझे ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहता.”

“हुज़ूर बड़े सरकार कमरे में नहीं हैं.” उस नौकर ने लौट कर कहा, जो नवाब साहब को बुलाने गया था.

“क्या कह, कमरे में नहीं.” ग़ज़ाला ने हैरत से पूछा.

“कौन..?” फ़रीदी ने पूछा.

“अब्बा जान…” ग़ज़ाला परेशान होकर बोली.

“ओह…!” फ़रीदी तेजी से नवाब साहब के कमरे की ओर रवाना हो गया.

नवाब साहब का कमरा खाली था. बिस्तर की सिलवटें बता रही थीं कि कोई उस पर सोया ज़रूर है. कोठी का कोना-कोना छान डाला गया. जवाब साहब का कहीं पता न था. ग़ज़ाला बुरी तरह परेशान थी. फ़रीदी सोच में डूबा हुआ था. तारिक़ धीरे-धीरे हमीद से बातें कर रहा था.

“तो आखिर इसमें परेशानी की कौन सी बात है. आप लोग जाकर आराम कीजिये.” फ़रीदी ने कहा, “नवाब साहब जहाँ गये होंगे, वापस आ जायेंगे.”

“आखिर इस वक़्त कहाँ गये होंगे.” ग़ज़ाला बेचैनी से बोली.

“हो सकता है, रोज़ाना वे इस वक़्त कहीं जाते हो. आप उनके पीछे-पीछे तो घूमती नहीं है.” फ़रीदी ने कहा.

“अरे, यह आपके माथे से खून कैसा निकल रहा है.” ग़ज़ाला फ़रीदी की तरफ़ देखकर बोली.

“भाग-दौड़ में कहीं चोट आ गयी थी.” फ़रीदी ने लापरवाही से कहा, “मुझे अफ़सोस है कि वह कमबख्त बच कर निकल गया.”

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