Chapter 5 Kuen Ka Raaz Novel In Hindi
Table of Contents
Chapter | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 |11
लाइब्रेरी में लाश
ग़ज़ाला स्टेशन पर दोनों का इंतज़ार कर रही थी. फ़रीदी और हमीद वक़्त पर पहुँच गये. उनका सामान फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में रख दिया गया.
ट्रेन पर ग़ज़ाला ने फिर वही बात छेड़ दी. हमीद को इस बारे में अभी तक कुछ भी मालूम नहीं था. बस, उसको चूंकि जाना ही पड़ रहा था, इसलिए उसने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए फ़रीदी से यह भी न पूछा था कि आखिर दाराब नगर जाने की वजह क्या है. लेकिन ट्रेन पर जब इसकी बात चलने लगी, तो उसकी दिलचस्पी भी बढ़ गई. उसकी फ़ितरत भी अजीब थी, काम के मौकों पर वह हमेशा ऐसी बात करने लगता, जैसे वह बहुत ही निकम्मा और कामचोर आदमी हो, लेकिन हक़ीक़त में ऐसा नहीं था. जब वह किसी काम में लग जाता था, तो उसे पूरी ज़िम्मेदारी के साथ निभाता था. ख़तरनाक मौकों पर देखने में वह एक डरपोक किस्म का मज़ाकिया बंदा लगता था, लेकिन ख़ुद उसके दिल की गहराइयों में खौफ़ की एक छोटी-सी भी लहर न होती थी.
फ़रीदी उसकी फ़ितरत को अच्छी तरह से जानता था और यह भी कि उससे किस तरह काम लिया जा सकता है.
ग़ज़ाला ने तारिक़ और उसके अजीबोग़रीब नेवले का ज़िक्र छेड़ रखा था. मालूम नहीं क्यों, फ़रीदी की मौजूदगी में उसे तारिक़ की खौफ़नाक आँखें नहीं याद आयी.
“आइने बहे ऐसा नेवला आज तक नहीं देखा.” हमीद ने कहा.
“यकीनन वह एक अजूबा चीज़ है. ब्राज़ील के पुराने लोग उसे शाकी कहते हैं और बहुत अदब से उसका नाम लेते हैं, क्योंकि वह उनका एक देवता है. एक ख़ास त्यौहार के मौके पर वे उसकी ख़ूब पूजा करते हैं. यकीनन तारिक़ को उसे पाने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना होगा.” फ़रीदी सिगार का कश लेकर ख़ामोश हो गया.
“मेरा ख़याल है कि आप इस नेवले के बारे में तारिक़ से भी ज्यादा जानते हैं.” ग़ज़ाला ने कहा.
फ़रीदी ने कोई जवाब न दिया. वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था. तभी उसने चौंक कर कहा, “क्या यह वही तारिक़ तो नहीं, जो दुनिया की बहुत सी भाषाएं जानता है.”
“हाँ….लेकिन क्या आप उसे जानते हैं?”
फ़रीदी ने कोई जवाब न दिया. उसकी आँखें ट्रेन के बाहर फैले हुए अंधेरे में घूर रही थी.
हमीद अच्छी तरह जानता था कि फ़रीदी ऐसे मौकों पर बात करना पसंद नहीं करता, जब वह किसी गहरी सोच में हो. इसलिए उसने ग़ज़ाला को अपनी बातों में लगा लिया.
वह उससे सारी जानकारी लेता रहा.
फ़रीदी फिर चौंका.
“हमीद क्या तुम्हें धर्मपुर के जंगलों के भूत याद नहीं.”
“याद है, लेकिन यह मामला उससे अलग मालूम होता है.” हमीद ने कहा.
“”क्यों….?”
“इसलिए कि हम यह सारे वाक़यात शायद अपनी आँखों से देख सकें. भला दीवारों से जानवरों की आवाजें आने का क्या मतलब हो सकता है और फिर जानवरों की मौतें. कुएं से चिनगारियों का निकलना तो खैर, कोई ऐसी बात नहीं.”
“सब कुछ हो सकता है.” फ़रीदी नी धीरे से कह और बुझा हुआ सिगार सुलगाने लगा.
“जानवरों के बाद अब आदमियों का नंबर आने वाला है.” फ़रीदी ने सिगार का एक लंबा कश लेकर कहा.
ग़ज़ाला चौंक पड़ी.
“क्या मतलब….?”
“घबराइए नहीं….आप बिल्कुल ठीक वक़्त पर मेरे पास पहुँची.” फ़रीदी ने कहा, “नवाब साहब पुराने ख़याल एक आदमी हैं. उनका ज़ेहन भूतों से आगे नहीं बढ़ सकता. वे क्या जानें कि साइंसी दौर में एक मामूली आदमी भी इस किस्म के चमत्कार दिखा सकता है.”
“खैर यह तो मैं भी यकीन से कह सकती हूँ कि यह साइंस का करिश्मा है. अलबत्ता, यह ज़रूर यक़ीन रखती हूँ कि इसमें किसी आदमी का हाथ है, जो अपनी ख़तरनाक ताक़तों से काम ले रहा है.”
“शायद आपका इशारा तारिक़ की तरफ़ है.” फ़रीदी ने उसे घूरते हुये कहा.
ग़ज़ाला ने कोई जवाब नहीं दिया.
इस बातचीत के बाद फिर ख़ामोशी छा गयी और फ़रीदी आसमान की तरफ़ घूरने लगा. कुछ अजीब-सा समां था. ठंडी हवा के झोंके सुबह होने की ख़बर दे रहे थे. हमीद ऊंघने लगा था. ग़ज़ाला की ख़ूबसूरत आँखें भी नींद के दबाव से बोझिल हो रही थीं. सिर्फ़ फ़रीदी के चेहरे पर ताज़गी नज़र आ रही थी, जैसे वह रात भर सोते रहने के बाद सूरज निकलने से पहले उठ गया हो. थकान के आसार भी नहीं मालूम होते थे. अलबत्ता, उसकी आँखें गहरे सोच-विचार का पता दे रही थी.
लगभग छः बजे वे लोग दाराब नगर पहुँच गए. कोठी के गेट में दाखिल होते ही ग़ज़ाला का दिल बुरी तरह धड़कने लगा. पोर्टिको में दो-तीन कांस्टेबल खड़े थे और कुछ इस किस्म की परेशान-सी आवाज़ें सुनाई दे रहीं थीं, जैसे कोई हादसा हो गया हो.
फ़रीदी और हमीद को पीछे छोड़ कर ग़ज़ाला एकदम से भागी.
वव दोनों टैक्सी पर से सामान उतरवा ही रहे थे कि ग़ज़ाला दौड़ती हुई वापस आयी.
“लाश, लाइब्रेरी में लाश.” वह हांफती हुई बोली.
“किसकी लाश….” फ़रीदी ने इत्मिनान से पूछा.
“अब्बा जान के प्राइवेट सेक्रेटरी की.”
“और आखिर वही हुआ…जिका खटका था.” फ़रीदी ने सामान वहीँ छोड़ कर आगे बढ़ते हुए कहा. ग़ज़ाला उसका हाथ पकड़े हुए तेज़ क़दमों से कोठी की तरफ़ जा रही थी.
कई कमरों से गुज़रते हुए वे लाइब्रेरी के बरामदे में पहुँचे.
यहाँ घर के सारे नौकर इकट्ठा थे और दोनों को आता देख कर इधर-उधर हट गये.
लाइब्रेरी में दो सब-इंस्पेक्टर, एक हेड-कांस्टेबल, तारिक़ और नवाब साहब खड़े थे. खिड़की के क़रीब रखी हुई कुर्सी के पास एक आदमी इस तरह पड़ा हुआ था, जैसे वह उसी कुर्सी पर बैठे-बैठे ज़मीन पर लुढ़क गया हो. उसका हाथ अभी तक कुर्सी ही पर था.
“अरे फ़रीदी मियां….” नवाब साब उसकी तरफ़ बढ़ते हुए बोले, “भई, ठीक वक्त पर आये.”
“यह वाक़या कब हुआ?”
“मालूम नहीं….लेकिन सुबह मुझे एक नौकर ने आकर इसकी ख़बर दी.”
“हूँ….!” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए सिर हिलाया.
“मैं क्या बताऊं कि मैं किन मुसीबतों में फंस गया हूँ.” नवाब साहब ने कहा.
“मुझे ग़ज़ाला साहिबा की ज़बानी सब कुछ मालूम हो चुका है.”
“तो क्या ग़ज़ाला तुम्हारे ही पास गयी थी?” नवाब साहब बोले, “उसने बड़ी अक्लमंदी से काम लिया. मेरी तो अक्ल ही मारी गयी थी.”
“आपकी तारीफ़…” एक सब-इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ कर पूछा.
“अरे आप इन्हें नहीं जानते.” नवाब साहब ने हैरत जताते हुए कहा, “ये डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन के इंस्पेक्टर फ़रीदी हैं.”
“ओह….” सब-इंस्पेक्टर ने फ़रीदी से हाथ मिलाते हुये कहा, “तब तो फिर हम लोगों की कोई ज़रूरत ही नहीं रह जाती.”
“आप लोग बेकार में मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं.” फ़रीदी ने कहा और लाश की तरफ़ देखने लगा.
“कोई ज़ख्म नहीं…कोई निशान नहीं. गर्दन भी हमने गौर से देख ली है. समझ में नहीं आता कि मौत कैसे हुई?” सब-इंस्पेक्टर ने कहा.
“ज़रा मैं भी देख लूं.” फ़रीदी ने लाश के क़रीब झुकते ही कहा, वह बड़ी देर तक अपने आतशी शीशे से लाश का मुआयना करता रहा.
“आप ठीक कहते हैं.” फ़रीदी ने सब-इंस्पेक्टर की तरफ़ मुड़ते हुए कहा, “कोई निशान नहीं, आपने अभी तक किसी डॉक्टर को नहीं बुलाया.”
“आ ही राह होगा.” सब-इंस्पेक्टर ब्बोला.
“क्या यह रात में बाहर बैठा करता था.” फ़रीदी ने नवाब साहब से पूछा.
“नहीं…कल ही मैंने उसे एक किताब तलाश करने के लिया यहाँ भेजा था और इत्मिनान हो गया था कि वह किताब तलाश करके अपने कमरे में आ गया होगा.”
“शायद वह इस कुर्सी पर बैठकर कुछ पढ़ने लगा होगा.” फ़रीदी ने कहा.
“और अचानक कोई खौफ़नाक चीज़ देखकर दिल की हरक़त बंद हो गयी.” तारिक़ ने कहा.
फ़रीदी उसे घूरने लगा.
“और वह खौफ़नाक चीज़ क्या हो सकती है….” फ़रीदी ने ऐसी आवाज़ में कहा कि तारिक़ हड़बड़ा गया.
“अभी आप ही ने फ़रमाया है कि आपको सब हाल मालूम हो चुके हैं.” तारिक़ ने अपने नेवले को कंधे से उतार गोद में लेते हुए कहा.
“यह शाकी आपको कहाँ से मिला?” फ़रीदी ने पूछा.
“ओह…” तारिक़ ने चौंक कर कहा, “तो आप इसका नाम जानते हैं.”
“इन देवता महाराज को कौन नहीं जानेगा.”
तारिक़ फ़रीदी को हैरत से देखने लगा.
इतने में डॉक्टर आ गया.
डॉक्टर काफ़ी देर तक लाश का मुआयना करता रहा.
“मौत हुए लगभग चार या पाँच घंटे हो चुके हैं.” डॉक्टर ने सिर उठाकर कहा.
“मौत की वजह…” फ़रीदी ने पूछा.
“अचानक दिल की हरक़त बंद हो गयी.” डॉक्टर ने कहा.
“देखा आपने…” तारिक़ बोला.
“क्या इसे दिल की कोई बीमारी थी?” फ़रीदी ने तारिक़ की बात को नज़र-अंदाज़ करके नवाब साहब से पूछा.
“हाँ…उसे काफ़ी दिनों से दिल की बीमारी थी.”
“तब तो मेरे ख़याल से हमें वापस ही चलना चाहिए.” सब-इंस्पेक्टर बोला.
“ठहरिए..अभी शक खत्म नहीं हुए.” फ़रीदी कुर्सी से उठते हुए बोला.
वह खिड़की के क़रीब खड़ा होकर कुछ सोचने लगा.
“नवाब साहब क्या यहाँ रोज़ रात को कोई बैठा करता है.” फ़रीदी ने पूछा.
“मैं ख़ुद रोज़ाना दो-तीन घंटे यहाँ बैठ कर पढ़ता हूँ.”
“ठीक…” फ़रीदी ने मेज़ पर पड़ी ट्रे जिसे टोपी उठाते हुये कहा.
“यह शायद इसी की टोपी है.”
“नहीं, मेरी है.”
“आपकी?” वह खिड़की के बाहर देखते हुए बोला.
“हाँ…इसमें ताज्ज़ुब की कौन-सी बात है.” नवाब साहब हैरत से बोले.
“आप सिर में कौन सा तेल लगाते हैं.” फ़रीदी ने अचानक पूछा.
“कोई नहीं.” नवाब साहव अपने गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए झेंपते हुए बोले.
“माफ़ कीजिएगा….एक बहुत ज़रूरी सवाल था.” फ़रीदी ने मेज़ पर टोपी रखते हुये कहा.
वह बेचैनी से कमरे में टहलने लगा. ऐसा मालूम हो रहा था कि वह कमरे में दूसरों की मौजूदगी भूल गया हो.
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