Chapter 7 Nakli Naak Ibne Safi Novel
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आग, खून और गोले
फ़रीदी और हमीद शहर के नजदीक पहुँच रहे थे। शहर की चहल-पहल शुरू हो गई। एक लंबी सांस खींचते हुए हमीद ने कहा, “क्या मुसीबत थी?”
“हूं!” फ़रीदी ने कहा और चुप रहा।
“मैं समझता हूँ, हमें अब रामगढ़ छोड़ ही देना पड़ेगा।” हमीद ने मायूसी से कहा।
फ़रीदी खामोश रहा। “तुम्हें अभी शहर में भी आग मिलेगी।” फ़रीदी कुछ देर रुक कर बोला, “आओ जल्दी करें।”
सामने होटल खुला हुआ था। हमीद से न रहा गया।
“सिर्फ एक प्याला चाय।” हमीद ने घिघिया कर कहा।
दोनों होटल में दाखिल हो गये।
खूबसूरत नौजवान सामने बैठा हुआ चाय पी रहा था।
एक नज़र में फ़रीदी ने उसे पहचान लिया…उसने शायद अभी-अभी सिगरेट जलाई थी। सिगरेट का हल्का-हल्का धुआं उठा रहा था। उसके चेहरे पर घबराहट साफ नज़र आ रही थी। वह फ़रीदी को देखकर उठा और सिगरेट का कश खींचते हुए उसकी तरफ बढ़ा।
फ़रीदी के पास पहुँचते ही वह जमीन पर बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से गला दबाने लगा।
“अरे अरे यह तो रुखसत हुये।” कहता हुआ फ़रीदी उठा। उसकी आँखों में शरारत उबलने लगी।
“बेचारा ज़ाकिर!” फ़रीदी के मुँह से निकला।
हमीद ने पानी का गिलास उठा कर जल्दी-जल्दी छींटे देने शुरू कर दिये। होटल में एक हंगामा हो गया था। लोग जगह छोड़कर वहाँ खड़े हो गए थे। किसी ने फ़रीदी के कंधे पर हाथ रखा, “ये खत्म हो गये। इन्हें सिगरेट में जहर दिया गया है।” कहते हुए वह पीछे मुड़ा।
“तारिक साहब अरे आप?”
“फ़रीदी साहब फौरन चलिये। गज़ाला की हालत नाज़ुक है!”
फोन करने के बाद लाश को पुलिस के हवाले करके और हमीद को हिदायत देकर फ़रीदी तारिक के साथ चला गया।
“वे लोग कहाँ है?”
“सईदा के घर में आग लगा दी गई थी। उसके यहाँ के सारे कबूतर गायब हैं और सिर्फ गज़ाला ज़ख्मी है। वे लोग अभी-अभी यहाँ आए हैं।”
“मगर बाकिर और ज़फर के ताल्लुकात।” फ़रीदी ने पूछा।
“आपको शायद हालात मालूम नहीं। बाकिर साहब और सईदा में समझौता हो गया। अदालत ने बाकिर को शाकिर का भाई मान लिया है, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से जायदाद सईदा के नाम कर दी है। सिर्फ घर उनके कब्जे में है। हालांकि जिस वक़्त आग लगी है, बाकिर साहब वहीं मौजूद थे, बड़ी मुश्किल से उन्होंने सबको निकाला।
फ़रीदी सुनता रहा और थोड़ी देर ख़ामोश रहकर बोला, “मैं नवाब साहब से मिल भी ना सका। बहुत सी बातें मालूम करना थी। मेरा मुकाबला ऐसे आदमी से है, जिसके काम करने के तरीके सबसे अलग हैं। वह ताबड़तोड़ ऐसे हमले करता जाता है कि मुख़ालिफ़ को सोचने का मौका ही ना मिल सके…हाँ गज़ाला का क्या हुआ?”
“मैं बता रहा था…वे लोग कुछ आपसे नाराज़ मालूम होते हैं। ख़ासकर कुंवर साहब…जिस वक़्त पर आग लगी है, हमें ऐसा मालूम हुआ जैसे जलती हुई शहतीरों के बीच से आप बच निकलने की कोशिश कर रहे हैं। हम सब बढ़े और गज़ाला भी। मगर इससे पहले कि हममें से कोई हिम्मत कर सके, वह आग में दाखिल हो चुकी थी। जलती हुई आग में से बड़ी मुश्किल से उसे निकाला गया। वहाँ से आने के बाद बाकिर साहब ने मुझे उस होटल में ज़ाकिर को बुलाने के लिए भेजा और यहाँ आप मिल गये। बिचारे बाकिर साहब, उनका यही एक लड़का था।
फ़रीदी और तारिक नवाबजादा शाकिर के मकान पर जब पहुँचे, वहाँ भी आग लग चुकी थी। आग मकान के पिछले हिस्से की तरफ से लगाई गई थी और बाहरी हिस्से तक पहुँचने से पहले उसे बुझाने की कोशिश काफ़ी हद तक कामयाब हो चुकी थी। मकान के सामने बाकिर साहब चीख-चीख कर रो रहे थे। शायद ज़ाकिर के मरने की खबर उन्हें मिल चुकी थी। गज़ाला बाहर ही एक पलंग पर लिटाई गई थी। सिर्फ ज़रा सी खराश थी और पैरों का निचला हिस्सा जला था।
“बिला वजह तारिक ने परेशान कर दिया।” फ़रीदी मिनमिनाया और फिर पलट कर नवाब साहब की तरफ मुड़ा। नवाब रशीदुज्जमा बिल्कुल गुमसुम थे और सईदा, गज़ाला के पास बैठी हुई फटी-फटी आँखों से देख रही थी। कुंवर साहब अली खां का कहीं पता न था।
“जज सिद्दीकी अहमद के यहाँ चोरी हो गई। मगर उनके कबूतरों के अलावा उनकी सब चीजें महफूज़ है।” एक सिपाही ने खबर दी और बाकिर साहब के घर पर तैनात इंस्पेक्टर ने फ़रीदी से कहा, “आग लगाने का मकसद मेरी समझ से बाहर है। नवाबजादा शाकिर के तमाम पुराने कबूतरों के अलावा घर की सारी चीज मौजूद है।”
“मगर आग लगाने वालों में से किसी को आप देख सके?” फ़रीदी ने पूछा।
“एक शख्स गिरफ्तार हुआ है। उसे भागते हुए देखकर गोली चलाई गई थी। उसके बायें कंधे पर गोली लगी है। ये लीजिए उसे ये लोग ले भी आये।”
वह आदमी बेहोश था। फ़रीदी ने रोशनी उठाकर उसके चेहरे को गौर से देखा और चौंककर पीछे हट गया।
“कुंवर ज़फ़र अली खां!”
उसके मुँह से निकला। बाकिर साहब कुंवर को देखते ही चीखने लगे।
“बहन सईदा, देखा तुमने….इसी ने मेरे भाई की जान ली। इसी ने घर में आग लगाई। इसी ने मेरे बेटे को मारा और अब यह मुझे भी मारना चाहता है। अगर यह मुझसे कह देता, तो मैं उसे यूं ही कबूतर दे देता।” उनकी आवाज में औरतों जैसा दर्द झलक रहा था। वे बेतहाशा चीख रहे थे। उनकी आँखों से आँसुओं की धारें बह रही थीं।
“इन्हें हस्पताल भिजवा दीजिये। दुश्मन हम सबको गलतफ़हमी में डालता रहा है। मैं जा रहा हूँ।” फ़रीदी कहता हुआ नवाब साहब के पास रुका, “आप माथुर साहब के यहाँ सईदा, गज़ाला और तारिक के साथ चले जाइए। मगर देखिये?….कल रात तक वहाँ से कहीं और न जाइयेगा।” कहता वह फ़रीदी गायब हो गया।
नवाब साहब फ़रीदी की हिदायत के मुताबिक चले तो गये। मगर दूसरे रोज शाम को गज़ाला की तबीयत संभलने पर बाकिर साहब के बुलाने पर उनके घर चले आये। सईदा अपने मकान पर लौट आई थी और कुंवर ज़फ़र अली खां पर नवाबजादा शाकिर के क़त्ल और उनके भाई लेफ्टिनेंट बाकिर के घर में आग लगाने और चोरी के इलज़ाम में लेफ्टिनेंट बाकिर की तरफ से मुकदमा चला दिया गया था। वे जमानत पर छोड़ दिये गए थे और अस्पताल में थे।
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