चैप्टर 4 सूरज का सातवां घोड़ा : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 4 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 4 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti

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दूसरी दोपहर

(घोड़े की नाल)

अर्थात किस प्रकार घोड़े की नाल सौभाग्य का लक्षण सिद्ध हुई?

दूसरे दिन खा-पीकर हम लोग फिर उस बैठक में एकत्र हुए और हम लोगों के साथ श्याम भी आया। जब हम लोगों ने माणिक मुल्ला को बताया कि श्याम जमुना की कहानी को सुनकर रोने लगा था, तो श्याम झेंपकर बोला, “मैं कहाँ रो रहा था।”

माणिक मुल्ला हँसे और बोले कि हमारी ज़िन्दगी में ज़रा सी परतें उखाड़ कर देखो, तो हर तरफ इतनी गंदगी और कीचड़ छिपा हुआ है कि सचमुच उस पर रोना आता है। लेकिन प्यारे बंधुओं! मैं इतना रो चुका हूँ कि अब आँख में आँसू आता ही नहीं, अतः लाचार होकर हँसना पड़ता है। हाँ, एक बात और है – जो लोग भावुक होते हैं और सिर्फ रोते हैं, वे रो-धोकर रह जाते हैं, पर जो लोग हँसना सीख लेते हैं, वे कभी-कभी हँसते-हँसते उस ज़िन्दगी को बदल भी डालते हैं।

फिर खरबूजा काटते हुए बोले, “हटाओ जी इन बातों को। आज जौनपुरी खरबूजे हैं। इसके महक देखो। गुलाब मात है। क्या है श्याम? क्यों मुँह लटकाए बैठे हो? अजी मुँह लटकाने से क्या होता है! मैं अभी तुम्हें बताऊंगा कि जमुना का विवाह कैसे हुआ?”

हम लोग यह सुनना ही चाहते थे, अतः एक स्वर में बोले उठे, “हाँ हाँ आज जमुना की विवाह की ही कहानी रहे।”

पर माणिक मुल्ला बोले, “नहीं पहले खरबूजे के छिलके बाहर फेंक आओ।”

जब हम लोगों ने कमरा साफ कर दिया, तो माणिक मुल्ला ने सबको आराम से बैठ जाने का आदेश दिया, ताख पर से घोड़े की पुरानी नाल उठा लाये और उसे हाथ में लेकर ऊपर उठाकर बोले, “यह क्या है?”

“घोड़े की नाल।” हम लोगों ने एक स्वर में उत्तर दिया।

“ठीक!” माणिक मुल्ला ने जादूगर की तरह नाल को आश्चर्यजनक तेजी से उंगली पर न नचाते हुए कहा, “यह नाल जमुना के वैवाहिक जीवन का एक महत्वपूर्ण स्मृति चिन्ह है, तुम लोग पूछोगे कैसे? वह मैं पूरे विस्तार से बताता हूँ।”

और माणिक मुल्ला ने विस्तार में जो बताया, वह संक्षेप में इस प्रकार है:

जब बहुत दिनों तक जमुना की शादी नहीं हो पाई और निराश होकर उसकी माँ पूजा-पाठ करने लगी और पिता बैंक में ओवरटाइम करने लगे, तो एक दिन उनके घर दूर की एक रिश्तेदार रामो बीबी आई और उन्होंने बीज छीलते हुए कहा, “हरे राम राम! बिटिया की बाढ़ तो देखो। जैसन नाम तैसन करनी। भादो की जमुना असा फाटी पड़त हैं।” और फिर जमुना की माँ के कान में धीमे से बोली, “एकर बियाह- उआह कहूं नाही तय कियो?”

जब माँ ने बताया कि बिरादरी वाले दहेज बहुत मांग रहे हैं, कहीं जात-परजात में दे देने से तो अच्छा है कि माँ-बेटी गले के रस्सी बांधकर कुएं में गिर पड़े, तो रामो बीबी फौरन तमक कर बोली, “ए हे! कैसी कुभागा जिभ्या से निकालत हो जमुना की अम्मा! कहत कुचछो नहीं लगत। और कुएं में गिरे तुम्हारे दुश्मन, कुएं में गिरे अड़ोस पड़ोस वाले, कुएं में गिरे तन्ना और महेसर दलाल, दूसरे का सुख देखकर जिनके हिया फाटत है।”

बहरहाल हुआ यह कि रामो बीबी ने फौरन अपने कुर्ती में से अपने भतीजे की कुंडली निकाल कर दी और कहा, “बखत पड़े पर आदमिय आदमी के काम आवत है। जो हारेगाढ़े कबौ काम न आवै ऊ आदमी के रूप में जनावर है। अब ई हमार भतीजा है। घर का अकेला, न सास न ससुर, न ननद न जेठानी, कौनो किचाईन नाही है घर में। नाना ओके नाम जागीर लिख गए हैं। घर में घोड़ा है, तांगा है। पुराना नामी खानदान है। लड़की रानी महारानी अस बिलसिहै।”

जब शाम को जमुना की माँने यह खबर बाप को दी, तो उसने सामने से थाली खिसका दी और कहा, “उसकी दो बीवियाँ मर चुकी है। तेहाजू है लड़का। मुझसे चार पाँच बरस छोटा होगा।”

“थाली काहे खिसका दी? ना खाओ मेरी बला से। क्यों नहीं ढूंढ कर लाते? जब लड़की की उम्र मेरे बराबर हो रही है, तो लड़का कहाँ से इक्कीस साल का मिल जाएगा।” इस बात को लेकर पति और पत्नी में बहुत कहासुनी हुई। अंत में जब पत्नी पान बना कर ले गई और पति को समझा कर कहा, “लड़का तिहाजू है, तो क्या हुआ! मर्द और दीवार, जितना पानी खाते हैं, उतना पुख्ता होते हैं।”

जब जमुना के सामने बारात चढ़ी, तो माणिक मुल्ला ने देखा और उन्होंने उस पुख्ता दीवार का जो वर्णन दिया, उससे हम लोग लोटपोट हो गये। जमुना ने उसे देखा, तो बहुत रोई, जेवर चढ़ा, तो बहुत खुश हुई, चलने लगी, तो यह आलम था कि आँखों से आँसू नहीं थमते थे और हृदय में उमंगे नहीं थमती थी।

जब जमुना लौटकर मैंके आई, तो सभी सखियों के यहाँ गई। अंग-अंग पर जेवर लदा था। रोम-रोम पुलकित था और पति की तारीफ करते जबान नहीं थकती थी। “अरी कम्मो! वह तो इतने सीधे हैं कि जरा सी तीन पाँच नहीं जानते। ऐ जैसे छोटे से बच्चे हों। पहली दोनों के मायके वाले सारी जायजाद लूटकर ले गए, नहीं तो धन फटा पड़ता था। मैंने कहा अब तुम्हारे सारे साली आयेंगे, तो बाहर ही से विदा करूंगी, तुम देखते रहना। तो बोले ‘तुम घर की मालकिन हो। सुबह शाम दाल रोटी दे दो बस। मुझे क्या करना है।’ चौबीसों घंटा मुँह देखते रहते हैं। जरा सी कहीं गई –  बस सुनती हो, ओ जी सुनती हो , अजी कहाँ गई। मेरी तो नाक में दम है कम्मो! मोहल्ला पड़ोस वाले देख-देख कर जलते हैं। मैंने कहा जितना जलोगे उतना जलाऊंगी। मैं भी तब दरवाजा खोलती हूँ, जब धूप सिर पर चढ़ आती है और ख़याल इतना रखते हैं कि मैं आई तो ढाई सौ रुपए जबरदस्ती ट्रंक में रख दिए। कहा, हमारी कसम है, जो इसे ना ले जाओ।”

लेकिन जमुना को जल्दी ही ससुराल लौट जाना पड़ा क्योंकि एक दिन उसके बाप बहुत परेशान हालत में रात को आठ बजे बैंक से लौटे और बताया कि हिसाब में एक सौ सत्ताइस रुपया तेरह आने की कमी पड़ गई है। अगर कल सुबह जाते ही उन्होंने जमा ना कर दिया, तो हिरासत में ले लिए जायेंगे। यह सुनते ही घर में सियापा छा गया और जमुना ने झट से ट्रंक से नोट की गड्डी निकालकर छप्पर में खोस दी और माँ ने कहा, ‘बेटी उधार दे दो!’ तो चाभी माँ के हाथ में देकर बोली, ‘देख लो ना, संदूक में दो-चार दुआनियान पड़ी होंगी।’ लेकिन जब उसने सोचा, आज बला टल गई, तो टल गई। आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी। इतना तो पहले लुट गया है, अब अगर जमुना भी मां-बाप लुटा दे, तो अपने बाल-बच्चों के लिए क्या बचायेगी? और माँ-बाप कै दिन के हैं, उसे सहारा तो उसके बच्चे ही देंगे ना!

यहाँ पर माणिक मुल्ला कहानी कहते-कहते रुक गए और हम लोगों की ओर देखकर बोले , “प्यारे मित्रों ! हमेशा याद रखो कि नारी पहले माँ होती है तब और कुछ। इसका जन्म इसलिए होता है कि वह माँ बनेगी। सृष्टि का क्रम आगे बढ़ावे।  यही उसकी महानता है। तुमने देखा कि जमुना के मन में पहले अपने बच्चों का ख़याल आया।”

अस्तु! जमुना अपने भावी बाल-बच्चों का ख़याल करके अपने ससुराल चली गई और सुख से रहने लगी। सच पूछो तो यहीं जमुना की कहानी का खात्मा होता है।

“लेकिन आपने तो घोड़े की नाल दिखाई थी, इसका तो ज़िक्र आया ही नहीं?”

“ओह! मैंने सोचा देखूं तुम लोग कितने ध्यान से सुन रहे हो।” और तब उन्होंने उसने नाल की घटना भी बताई।

असल में जमुना के पति तिहाजू यानी पुख्ता दीवार, पर उनमें और जमुना में उतना ही अंतर था जितना पलस्तर उखड़ी हुई पुरानी दीवार और लिपि पुती  तुलसी के चौतरे में। इधर-उधर के लोग इधर-उधर की बातें करते थे, पर जमुना तन मन से पति परायण थी। पति भी जहाँ उसके गहने कपड़े का ध्यान रखते थे, वहीं उसके भजनामृत गंगा-महात्म्य, गुटका रामायण आदि ग्रंथ रत्न ला कर दिया करते थे। और वह भी उसमें उत्तम से ‘अस बस मन माही’ आदि पढ़कर लाभान्वित हुआ करती थी। होते-होते क्या हुआ कि धर्म का बीज उसके मन में जड़ पकड़ गया और भजन कीर्तन, कथा सत्संग में उसका चित्र रम गया। और ऐसा रमा कि सुबह शाम दोपहर रात वह दीवानी सी घूमती रहे। रोज उसके यहाँ साधु संतों का भोजन होता रहे और साधु संत भी ऐसे तपस्वी और रूपवान की मस्तक से प्रकाश फूटता था।

वैसे उसकी भक्ति बहुत निष्काम थी, किंतु जब साधु-संतों उसे आशीर्वाद दे कि ‘संतान वती भव’ तो वह उदास हो जाया करें। उसके पति उसे बहुत समझाया करते थे, ‘अजी या तो भगवान की माया है इसमें उदास क्यों होती हो?’ लेकर संतान की चिंता उन्हें भी थी क्योंकि इतनी बड़ी जागीर के जमीदार का वारिस कोई नहीं था। अंत में एक दिन वे और जमुना दोनों एक ज्योतिषी के यहाँ गए, जिसने जमुना को बताया कि उसे कार्तिक भर सुबह गंगा नहाकर चंडी देवी को पीले फूल और ब्राह्मणों को चना, जौ और सोने का दान करना चाहिए।

जमुना इस अनुष्ठान के लिए तत्काल राजी हो गई। लेकिन इतनी सुबह किसके साथ जाये। जमुना ने पति (जमीदार साहब) से कहा कि वे साथ चला करें, पर वे ठहरे बूढ़े आदमी। सुबह जरा सी ठंडी हवा लगते ही उन्हें खासी का दौरा आ जाता था। अंत में यह तय हुआ कि रामधन तांगेवाला शाम को जल्दी छुट्टी लिया करेगा और सुबह चार बजे आकर तांगा जोत दिया करेगा।

जमुना नित्य नियम से नहाने जाने लगी। कार्तिक में काफी सर्दी पड़ने लगती है और घाट से मंदिर तक उसे केवल एक पतली रेशमी धोती पहनकर फूल चढ़ाने जाना पड़ता था। वह थर-थर थर-थर कांपती थी। एक दिन मारे सर्दी के उसके हाथ पैर सुन्न पड़ गया और वह वही ठंडी बालू पर बैठ गई और यह कहा कि रामधन अगर उसे समूची उठाकर तांगे पर ना बैठा देगा, तो वह वहीं बैठी-बैठी ठंड से गल जायेगी।

अंत में रामधन से ना देखा गया। उसने एक दिन कहा, “बहूजी आप काहे जान दे को उतारू हो। ऐसन तपस्या तो गौरा माईयो नै करिन होई है। बड़े-बड़े जोतसी का कहा कर लियो, अब एक गरीब मनई का भी कहा कै लेव।’

जमुना के पूछने पर उसने बताया, जिस घोड़े के माथे पर सफेद तिलक हो, उसके अगले बायें पैर की घिसी हुई नाल चंद्र ग्रहण के समय अपने हाथ से निकाल कर उसकी अंगूठी बनवाकर पहन ले, तो सभी कामनायें पूरी हो जाती है।

लेकिन जमुना को यह स्वीकार नहीं हुआ क्योंकि पता नहीं चंद्रग्रहण कब पड़ेगा। रामधन ने बताया कि चंद्रग्रहण तीन दिन बाद ही है। लेकिन कठिनाई यह है कि नाल अभी नया लगवाया है। वह तीन दिन के अंदर कैसे घिसेगा और नया कुछ प्रभाव नहीं रखता।

“तो फिर क्या हो, रामधन तुम ही कोई जुगत बताओ।”

“मालकिन एक ही जुगत है।”

“क्या?”

“तांगा रोज कम से कम बारह मील चले। लेकिन मालिक कहीं जाते नहीं। अकेले मुझसे तांगा ले जाने नहीं देंगे। आप चलें, तो ठीक रहे।”

“लेकिन हम बारह मिल कहाँ जायेंगे?”

“क्यों नहीं सरकार! आप सुबह ज़रा और जल्दी दो-ढाई बजे निकल चले। गंगा पार पक्की सड़क है। बारह मील घुमाकर ठीक टाइम पर हाजिर कर दिया करूंगा। तीन दिन की ही तो बात है।”

जमुना राजी हो गई और तीन दिन तक रोज तांगा गंगा पार चला जाया करता था। रामधन का अंदाज ठीक निकला और तीसरे दिन चंद्र ग्रहण के समय नाल उतरवाकर अंगूठी बनवाई गई और अंगूठी का प्रताप देखिए कि जमीदार साहब के यहाँनौबत बजने लगी और नर्स के पूरे एक सौ रुपए की बख्शीश ली।

जमीदार बेचारे वृद्ध हो चुके थे और उन्हें बहुत कष्ट था, वारिस भी हो चुका था। अतः भगवान ने उन्हें अपने दरबार में बुला लिया। जमुना पति के बिछोह में दहाड़े मार-मार कर रोई, चूड़ी कंगन फोड़ डालें, खाना-पीना छोड़ दिया। अंत में पड़ोसियों ने समझाया कि छोटा बच्चा है, उसका मुँह देखना चाहिए। जो होना था, तो हो गया। काल बली है। उस पर किसका बस चलता है। पड़ोसियों के बहुत समझाने पर जमुना ने आँसू पोंछे। घर-बार संभाला। इतनी बड़ी कोठी थी, अकेले रहना एक विधवा महिला के लिए अनुचित था, अतः उसने रामधन को एक कोठरी दी और पवित्रता से जीवन व्यतीत करने लगी।

जमुना की कहानी खत्म हो चुकी थी, लेकिन हम लोगों की शंका थी कि मणिक मुल्ला को यह घिसी नाल कहाँ से मिली,  उसकी तो अंगूठी बन चुकी थी। पूछने पर मालूम हुआ कि एक दिन कहीं रेल सफर में माणिक मुल्ला को रामधन मिला। सिल्क  का कुर्ता, पान का डब्बा, बड़े ठाट थे उसके। मणिक मुल्ला को देखते ही उसने अपने भाग्योदय की सारी कथा सुनाई और कहा कि सचमुच घोड़े की नाल में बड़ी तासीर होती है और फिर उसने एक नाल मणिक मुल्ला के पास भेज दी थी, यद्यपि उन्होंने उसकी अंगूठी ना बनवाकर उसे हिफाजत से रख लिया।

कहानी सुनाकर मणिक मुल्ला श्याम की ओर देखकर बोले, “देखा श्याम भगवान जो कुछ करता है भले के लिए करता है । आखिर जमुना को कितना सुख मिला! तुम व्यर्थ में दुखी हो रहे थे? क्यों? “

श्याम ने प्रसन्न होकर स्वीकार किया कि वह व्यर्थ में दुखी हो रहा था, अंत में मणिक मुल्ला बोले, “लेकिन अब बताओ कि इससे निष्कर्ष क्या निकला?”

हम लोगों में से जब कोई नहीं बता सका, तो उन्होंने बताया, “इससे यह निष्कर्ष निकला कि दुनिया का कोई भी काम बुरा नहीं। किसी भी काम को नीची निगाह से नहीं देखना चाहिए, चाहे वह तांगा हांकना ही क्यों ना हो?

हम सबों को इस कहानी का यह निष्कर्ष बहुत अच्छा लगा और हम सभी ने शपथ ली कि कभी किसी प्रकार के ईमानदारी के श्रम को नीची निगाह से ना देखेंगे, चाहे वह कुछ भी क्यों ना हो।

इस तरह मणिक मुल्ला की दूसरी निष्कर्ष वादी कहानी समाप्त हुई।

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