चैप्टर 2 सूरज का सातवां घोड़ा : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 2 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 2 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti

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पहली दोपहर

(नमक की अदायगी)

अर्थात जमुना का नमक माणिक ने कैसे अदा किया

उन्होंने सबसे पहले कहानी एक दिन गर्मी की दोपहर में सुनाई थी, जब हम लोग लू के डर से कमरा चारों ओर से बंद कर के सिर के नीचे भीगी तौलिया रखे चुपचाप लेटे थे। प्रकाश और ओंकार ताश के पत्ते बांट रहे थे और मैं अपनी आदत के मुताबिक कोई किताब पढ़ने की कोशिश कर रहा था। माणिक ने मेरी किताब छीनकर  फेंक दी और बुज़ुर्गाना लहज़े  में कहा, “यह लड़का बिल्कुल निकम्मा निकलेगा। मेरे कमरे में बैठकर दूसरों की कहानियाँ पढ़ता है। छि: बोल कितनी कहानियाँ सुनेगा? सभी उठ बैठे और माणिक मुल्ला से कहानियाँ सुनाने का आग्रह करने लगे। अंत में माणिक मुल्ला ने एक कहानी सुनाई, जिसमें उसके कथन अनुसार उन्होंने इसका विश्लेषण किया था कि प्रेम नामक भावना कोई रहस्यमय, अध्यात्मिक या सर्वथा व्यक्तिक भावना ना होकर वास्तव में एक सर्वमान्य सामाजिक भावना है। अतः समाज व्यवस्था से अनुशासित होती है और उसके लिए आर्थिक संगठन और वर्ग संबंध स्थापित है।

नियमानुसार पहले उन्होंने कहानी का शीर्षक बताया : नमक की अदायगी। इस शीर्षक का पर उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की ‘नमक का दरोगा’ का काफी प्रभाव मालूम पड़ता था, पर कथावस्तु सर्वथा मौलिक थी। कहानी इस प्रकार थी –

माणिक मुल्ला के घर के बगल में एक पुरानी कोठी थी, जिसके पीछे छोटा सा अहाता था। हाथों में एक गाय रहती थी, कोठी में एक लड़की। लड़की का नाम जमुना था, गाय का नाम मालूम नहीं। गाय बूढ़ी थी, लाल रंग था, सींग नुकीले थे। लड़की की उम्र पंद्रह साल की थी। रंग गेहुंआ था (बढ़िया पंजाबी गेहूं) और स्वभव मीठा, हँसमुख और मस्त। माणिक जिनकी उम्र सिर्फ दस बरस की थी, उसे जमुनिया कहकर भागा करते थे और वह बड़ी होने के नाते जब कभी माणिक को पकड़ पाती थी, तो इनके दोनों कान उमेठती और मौके-बेमौके चुटकी काट कर इनका सारा बदन लाल कर देती। माणिक मुल्ला निस्तार की कोई राह न पाकर चीखते थे, माफी मांगते थे और भाग जाते थे।

लेकिन जमुना के दो काम मालिक मुल्ला के सुपुर्द थे। इलाहाबाद से निकलने वाली जितनी सस्ते किस्म की प्रेम कहानियों की पत्रिकायें होती थी, जमुना उन्हीं से मंगवाती थी और शहर के किसी भी सिनेमाघर में अगर नई तस्वीर आई, तो उसकी गाने की किताब भी मलिक को खरीद लानी पड़ती थी। इस तरह जमुना का घरेलू पुस्तकालय दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था।

समय बीतते कितनी देर लगती है। कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते और सिनेमा के गीत याद करते-करते जमुना बीस बरस की हो गई और माणिक पंद्रह बरस के, भगवान की माया देखो कि जमुना का ब्याही कहीं तय नहीं हुआ। वैसे बात चली। पास ही रहने वाले महेसर दलाल के लड़के तन्ना के बारे में सारा मोहल्ला कहा करता था कि जमुना का ब्याह इसी से होगा, क्योंकि तन्ना और जमुना में बहुत पटती थी, तन्ना जमुना की बिरादरी का भी था, हालांकि कुछ नीच गोत्र का था और सबसे बड़ी बात यह थी कि महेसर दलाल से सारा मोहल्ला डरता था। महेसर बहुत ही झगड़ालू घमंडी और लंपट था। तन्ना उतना ही सीधा, विनम्र और सच्चरित्र; और सारा मोहल्ला उसकी तारीफ करता था।

लेकिन जैसे पहले कहा जा चुका है कि तन्ना थोड़े नीचे गोत्र का था और जमुना का खानदान सारी बिरादरी में खड़े और ऊँचे होने के लिए प्रख्यात था, जमुना की माँ की राय नहीं पड़ी, क्योंकि जमुना के पिता बैंक में साधारण क्लर्क मात्र थे और तनख्वाह से क्या आता जाता था, तीज त्यौहार, मुंडन-देवकाज में हर साल जमा रकम खर्च करनी पड़ती थी। अतः जैसा हर मध्यम श्रेणी के कुटुंब में पिछली लड़ाई में हुआ है, बहुत जल्दी सारा जमा रुपया खर्च हो गया और शादी के लिए कानी कौड़ी नहीं बची।

और बेचारी जमुना तन्ना से बातचीत टूट जाने के बाद खूब रोई, खूब रोई। फिर आँसू पोंछे। फिर सिनेमा के नये गीत याद किए और इस तरह से होते होते एक दिन भी इसकी उम्र बीस को भी पार कर गई। और माणिक का यह हाल कि ज्यों-ज्यों जमुना बढ़ती जाये, त्यों-त्यों वह इधर उधर दुबली मोटी होती जाये और ऐसी कि माणिक को भली भी लगे और बुरी भी। लेकिन एक उसकी बुरी आदत पड़ गई थी कि चाहे माणिक मुल्ला उसे चिढ़ाये न चिढ़ाये, वह उन्हें कोने अतरे में पाते ही इस तरह दबोचती लेती थी कि माणिक मुल्ला का दम घुटने लगता था और इसलिए माणिक मुल्ला उसकी छांह से कतराते थे।

लेकिन किस्मत की मार देखिये, उसी समय मोहल्ले में धर्म की लहर चल पड़ी और तमाम औरतें, जिनकी लड़कियाँ बिन ब्याही रह गई थी, जिनके पति हाथ से बेहाथ हुए जा रहे थे, जिनके लड़के लड़ाई में चले गए थे, जिनके जेवर बिक गए थे, जिन पर कर्ज हो गया था, सभी ने भगवान की शरण ली और कीर्तन शुरू हो गए और कंठिया ली जाने लगी। मणि की भाभी ने भी हनुमान चौतरा वाले ब्रह्मचारी से कंठी ली और नियम से दोनों वक्त भोग लगाने लगी। और सुबह शाम पहली टिक्की गौ माता के नाम से सेंकने लगी। घर में गऊ थी नहीं, अतः कोठी की बूढ़ी गाय को वह दोनों वक्त खिलाई जाती थी। दोपहर को तो माणिक स्कूल चले जाते थे। दिन का वक्त रहता था। अतः भाभी खुद चादर ओढ़ कर गाय को रोटी खिला आती थी। पर रात को माणिक मुल्ला को ही जाना पड़ता था।

गाय के अहाते के पास जाने में माणिक मुल्ला की रूह कांपती थी। जमुना का कान खींचना उन्हें अच्छा नहीं लगता था (और अच्छा भी लगता था) डर डर के मारे राम का नाम लेते हुए खुशी खुशी वे कोठी के अहाते की ओर जाया करते थे।

एक दिन ऐसा हुआ की माणिक मुल्ला के यहाँ मेहमान आये और खाने-पीने में ज्यादा रात बीत गई। माणिक सो गए, तो उनकी भाभी ने उन्हें जगाकर टिक्की दी और कहा, “गैया को दे आओ।” मानिक ने काफी बहानेबाजी की, लेकिन उनकी एक न चली। अंत में आँख मलते-मलते आहाते के पास पहुँचे, तो क्या देखते हैं कि गाय के पास भूसेवाली कोठी के दरवाजे पर कोई बिल्कुल कफन जैसे सफेद कपड़े पहने खड़ी है। इनका कलेजा मुँह को आने लगा, पर इन्होंने सुन रखा था कि भूत प्रेत के आगे आदमी को हिम्मत बांधे रहना चाहिए और उसे पीठ नहीं दिखना नहीं चाहिए, वरना उसी समय आदमी का प्राणांत हो जाता है।

माणिक मुल्ला सीना ताने और कांपते हुए पांवों को संभाले हुए बढ़ते गए और वह औरत वहाँ से अदृश्य हो गई। उन्होंने बार-बार आँखें मल कर देखा, वहाँ कोई नहीं था। उन्होंने संतोष की सांस ली, गाय को टिक्की दी और लौट चलें। इतने में उन्हें लगा कि कोई उनका नाम लेकर पुकार रहा है। माणिक मुल्ला भली प्रकार जानते थे कि भूत प्रेत मोहल्ले भर के लड़कों का नाम जानते हैं, अतः उन्होंने रुकना सुरक्षित नहीं समझा। लेकिन आवाज नजदीक आती गई और सहसा किसी ने पीछे से आकर माणिक मुल्ला का कॉलर पकड़ लिया। माणिक मुल्ला गला फाड़ कर चीखने ही वाले थे कि किसी ने उनके मुँह पर हाथ रख दिया। वे स्पर्श पहचानते थे। जमुना!

लेकिन जमुना ने कान नहीं उमेठे। कहा, “चलो आओ!”

माणिक मुल्ला बेबस थे। अब माणिक भी चुप और जमुना भी चुप। माणिक जमुना को देखें, जमुना माणिक को देखें और गाय उन दोनों को देखें। थोड़ी देर बाद माणिक ने घबराकर कहा, “हमें जाने दो जमुना।” 

जमुना ने कहा, “बैठो बातें करो माणिक । बड़ा मन घबराता है।”

माणिक बैठ गये। अब बात करें तो क्या करें? उनकी क्लास में उन दिनों भूगोल में स्वेज नहर, इतिहास में सम्राट जलालुद्दीन अकबर, हिंदी में ‘इत्यादि की आत्मकथा’ और अंग्रेजी में ‘रेड राइडिंग हुड’ पढ़ाई जा रही थी। पर जमुना से इनकी बातें क्या करें? थोड़ी देर बाद माणिक ऊबकर कर बोले, “हमें जाने दो जमुना। नींद लग रही है।”

“अभी कौन रात बीत गई है। बैठो!” कान पकड़कर जमुना बोली।

माणिक के घबराकर कहा, “नींद नहीं लग रही है। भूख लग रही है।”

“भूख लग रही है? अच्छा जाना मत! मैं अभी आई।” कहकर जमुना फ़ौरन पिछवाड़े के सहन में से होकर अंदर चली गई। माणिक की समझ में नहीं आया कि आज जमुना एकाएक इतनी दयावान क्यों हो रही है कि इतने में जमुना लौट आई और आंचल के नीचे से दो चार पुए निकालते हुए बोली, “लो खाओ। आज तो माँ भागवत की कथा सुनने गई है।” और जमुना उसी तरह मानिक को अपनी तरफ खींच कर पुए खिलाने लगी।

एक ही पुआ खाने के बाद माणिक मुल्ला उठने लगे, तो जमुना बोली, “और खाओ।”  तो माणिक मुल्ला ने उसे बताया कि उन्हें मीठे पुए अच्छे नहीं लगते। उन्हें बेसन की नमकीन पुए अच्छे लगते हैं।

“अच्छा कल तुम्हारे लिए बेसन के नमकीन पुए रखूंगी। कल आओगे? कथा तो सात रोज तक होगी।” माणिक ने संतोष की सांस ली। उठ खड़े हुए। लौट कर आए, तो भाभी सो रही थी। माणिक मुल्ला चुपचाप गौ माता का ध्यान करते हुए सो गये।

दूसरे दिन माणिक मुल्ला ने चलने की कोशिश की क्योंकि उन्हें जाने में डर भी लगता था और वे जाना भी चाहते थे। और न जाने कौन सी चीज थी जो अंदर ही अंदर उनसे कहती थी, ‘माणिक! यह बहुत बुरी बात है। जमुना अच्छी लड़की नहीं।’ और उनके ही अंदर कोई दूसरी चीज थी जो कहती थी, ‘चलो माणिक! तुम्हारा क्या बिगड़ता है। चलो देखो, तो क्या है?’ और इन दोनों से बड़ी चीज की नमकीन बेसन का पुआ, जिसके लिए नासमझ माणिक अपना लोक परलोक दोनों बिगाड़ने के लिए तैयार थे।

उस दिन माणिक मुल्ला गए, तो जमुना ने धानी रंग की वाइल की साड़ी पहनी थी, अरगंडी की पतली ब्लाउज पहनी थी, दो चोटियों की थी, माथे पर चमकती हुई बिंदी लगाई थी। माणिक अक्सर देखते थे कि जब लड़कियाँ स्कूल जाती थी, तो ऐसे सज-धज कर जाती थी। घर में तो मैली धोती पहनकर फर्श पर बैठकर बातें किया करती थी। इसलिए उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ। बोले, “जमुना क्या अभी स्कूल से लौट रही हो?”

“स्कूल? स्कूल जाना तो माँ ने चार साल से छुड़ा दिया। घर में बैठी-बैठी या तो कहानियाँ पढ़ती हूँ या फिर सोती हूँ।” माणिक मुल्ला की समझ में नहीं आया कि जब दिन भर सोना ही है, तो इस तरह सज-धज की क्या जरूरत है। माणिक मुल्ला आश्चर्य से मुँह खोले देख ही रहे थे कि जमुना बोली, “आँख फाड़ कर क्या देख रहे हो। असली जरमनी की अरगंडी है। चाचा कोलकाता से लाए थे। ब्याह के लिए रखी थी। यह देखो छोटे-छोटे फूल भी बने हैं।”

माणिक मुल्ला को बहुत आश्चर्य हुआ उस अरगंडी को छूकर, जो कोलकाता से आई थी। असली जरमनी की थी और जिस पर छोटे-छोटे फूल बने थे।

माणिक मुल्ला जब गाय को टिक्की खिला चुके, तो जमुना ने बेसन के नमकीन पुए निकाले। मगर कहा, “पहले बैठ जाओ तब खिलायेंगे।” माणिक चुपचाप चलने लगे। जमुना ने छोटी सी बैटरी जला दी। पर माणिक मारे डर के कांप रहे है। उन्हें हर क्षण यही लगता था कि भूसे में से अब सांप निकला, अब बिच्छू निकला, अब कांतर निकली। रूंध्ते गले से बोले , “हम खायेंगे नहीं। हमें जाने दो।”

जमुना बोली, “कैथी की चटनी भी है।” अब माणिक मुल्ला मजबूर हो गये। कैथा उन्हें विशेष प्रिय था। अंत में सांप बिच्छू के भय का निरोध करके किसी तरह वह बैठ गये। फिर वही आलम था कि जमुना को माणिक चुपचाप देखें और माणिक को जमुना और गाय इन दोनों को।

जमुना बोली, “कुछ बात करो माणिक।”

जमुना चाहती थी कि माणिक कुछ उसके कपड़े के बारे में बातें करें, पर जब माणिक नहीं समझे, तो वो खुद बोली, “माणिक यह अच्छा है?”

“बहुत अच्छा है जमुना!” माणिक बोले।

“पर देख तन्ना है ना! वही अपना तन्ना! उसी के साथ जब बातचीत चल रही थी तभी चाचा कलकत्ते जाया करते थे, यह सब कपड़े लाए थे। पाँच सौ रुपये  के कपड़े थे। पंचम बनिया से एक सेट गिरवी रख के कपड़े लाए थे। फिर बात टूट गई। अभी तो मैं उसी के यहाँ गई थी। अकेले मन घबराता है। लेकिन अब तो तन्ना बात भी नहीं करता। इसलिए कपड़े भी बदले थे।”

“बात क्यों टूट गई जमुना?”

“अरे तन्ना बहुत डरपोक है। मैंने तो माँ को राजी कर लिया था, पर तन्ना को महेसर दलाल ने बहुत डांटा। तब से तन्ना बहुत डर गया और अब तो तन्ना ठीक से बोलता भी नहीं।”

माणिक के कुछ जवाब नहीं दिया, तो फिर जमुना बोली, “असल में तन्ना बुरा नहीं है, पर महेसर बहुत कमीना आदमी है और जब से तन्ना की माँ मर गई है, तब से तन्ना बहुत दुखी रहता है।” फिर सहसा जमुना से ने स्वर बदल दिया और बोली “लेकिन फिर तन्ना ने मुझे आशा में क्यों रखा? माणिक अब ना मुझे खाना अच्छा लगता है ना पीना। स्कूल जाना छूट गया। दिन भर रोते रोते बिकता है। हाँ, माणिक।” और उसके बाद वह चुपचाप बैठ गई। माणिक बोले, “तन्ना बहुत डरपोक था। उसने बड़ी गलती की।”

तो जमुना बोली, “दुनिया में यही होता आया है।” और उदाहरण स्वरूप उसने कई कहानियाँ सुनाई, जो उसने पढ़ी थी या चित्रपट पर देखी थी।

माणिक उठे, तो जमुना ने पूछा कि ‘रोज आओगे ना?’ मानिक ने आनाकानी की तो जमुना बोली, “देखो माणिक! तुमने नमक खाया है और नमक खाकर जो अदा नहीं करता, उस पर बहुत पाप पड़ता है, क्योंकि ऊपर भगवान देखता है और सब बही में दर्ज करता है। माणिक विवश हो गए और उन्हें रोज आना पड़ा। और जमुना होने बिठाकर रोज़ तन्ना की बातें करती रही।

“फिर क्या हुआ?” जब हम लोगों ने पूछा तो माणिक बोले, “एक दिन वह तन्ना की बातें करते-करते मेरे कंधे पर सिर रखकर खूब रोई, खूब रोई और चुप हुई, तो आँसू पोंछे और एकाएक मुझसे वैसी बातें करने लगी, जैसी कहानियों में लिखी होती है। मुझे बड़ा बुरा लगा और सोचा अब कभी उधर नहीं जाऊंगा। पर मैंने नमक खाया था और ऊपर भगवान सब देखता है। हाँ यह जरूर था कि जमुना के रोने पर मैं चाहता था कि उसे अपने स्कूल की बातें बताऊं, अपनी किताबों की बातें बताकर उसका मन बहलाऊं। पर वह आँसू पोंछकर कहानियाँ जैसी बातें करने लगी। यहाँ तक कि एक दिन मेरे मुँह से भी वैसी बातें निकल गई।”

“फिर क्या हुआ?” हम लोगों ने पूछा।

“अजब बात हुई। असल में इन लोगों को समझना बड़ा मुश्किल है। जमुना चुपचाप मेरी ओर देखती रही और फिर रोने लगी। बोली, “मैं बहुत खराब लड़की हूँ। मेरा मन घबराता था इसलिए तुमसे बात करने आती हूँ, पर मैं तुम्हारा नुकसान नहीं चाहती। अब मैं नहीं आया करूंगी।” लेकिन दूसरे दिन जब मैं गया, तो देखा फिर जमुना मौजूद है।

फिर माणिक मुल्ला को रोजा जाना पड़ा। एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन, यहाँ तक कि हम लोगों ने ऊबकर पूछा कि अंत में क्या हुआ? तो माणिक मुल्ला बोले, “कुछ नहीं…होता क्या? जब मैं जाता, तो मुझे लगता कि कोई कह रहा है माणिक उधर मत जाओ और यह बहुत खराब रास्ता है। पर मैं जानता था कि मेरा कुछ बस नहीं है। और धीरे-धीरे मैंने देखा कि ना मैं वहाँ जाये बिना रह सकता था, ना जमुना आये बिना।”

“हाँ यह तो ठीक है, पर इसका अंत क्या हुआ?”

“अंत क्या हुआ?” माणिक मुल्ला ने ताने के स्वर में कहा, “तब तो तुम लोग खूब नाम कमाओगे। अरे क्या प्रेम कहानियों के दो-चार अंत होते हैं। एक ही तो अंत होता है – नायिका का विवाह हो गया, माणिक मुँह ताकते रह गये। अब चाहे जितने भी ढंग से कह लो।”

बरहाल इतने दिलचस्प कहानी का इतना साधारण अंत हम लोगों को पसंद नहीं आया। फिर भी प्रकाश ने पूछा, “लेकिन इससे यह कहाँ साबित हुआ कि प्रेम भावना की नींव आर्थिक संबंधों पर है और वर्ग संघर्ष उसे प्रभावित करता है।”

“क्यों? यह तो बिल्कुल स्पष्ट है।” माणिक मुल्ला ने कहा, “अगर हर एक के घर में गाय होती, तो यह स्थिति कैसे पैदा होती है? संपत्ति के विषमता ही इस प्रेम का मूल कारण है। न उनके घर गाय होती, न मैं उनके घर वहाँ जाता, न नमक खाता न नमक का क़र्ज़ अदा करना पड़ता।”

“लेकिन फिर इसे सामाजिक कल्याण के लिए क्या निष्कर्ष निकला।” हम लोगों ने पूछा।

“बिना निष्कर्ष के मैं कुछ नहीं कहता मित्रों! इससे यह निष्कर्ष निकला कि हर एक घर में गाय होनी चाहिए, जिससे राष्ट्र का पशुधन भी बढ़े, संतानों का स्वास्थ्य बने। पड़ोसी का उपकार हो और भारत में फिर से दूध घी की नदियाँ बहे।”

यद्यपि हम लोग आर्थिक आधार वाले सिद्धांत से सहमत नहीं थे। पर यह निष्कर्ष हम सबको पसंद आया और हम लोगों ने प्रतिज्ञा की कि बड़े होने पर एक एक गाय अवश्य पालेंगे।

इस प्रकार माणिक मुल्ला की प्रथम निष्कर्षवादी प्रेम कहानी समाप्त हुई।

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