चैप्टर 3 सूरज का सातवां घोड़ा : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 3 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 3 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti

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अनध्याय

इस कहानी ने वास्तव में हम लोगों को प्रभावित किया था। गर्मी के दिन थे। मोहल्ले के जिस हिस्से में हम लोग रहते, उधर छाते बहुत तपती थी। अतः हम सभी लोग हकीम जी के चबूतरे पर सोया करते थे।

रात को जब हम लोग लेटे, तो नींद नहीं आ रही थी और रह-रह कर जमुना की कहानी हम लोगों के दिमाग में घूम जाती थी और कभी कलकत्ते की अरगंडी और कभी बेसन के पुए की याद करके हम लोग हँस रहे थे।

इतने में श्याम भी हाथ में एक बसखट लिए और बगल में दरी-तकिया दबाय हुए आया। वह दोपहर की मजलिस में शामिल नहीं था। अतः हम लोगों को हँसते देख उत्सुकता हुई और उसने पूछ लिया कि माणिक मुल्ला ने कौन सी कहानी हम लोगों को बताई है। जब हम लोगों ने जमुना की कहानी उसे बताई, तो आश्चर्य से देखा गया कि बजाय हँसने के बजाय वह उदास हो गया। हम लोगों ने एक स्वर में पूछा कि ‘कहो श्याम इस कहानी को सुनकर दुखी क्यों हो गये? क्या तुम जमुना को जानते थे?” तो श्याम रुंधे हुए गले से बोला, “नहीं मैं नहीं जानता, लेकिन आज नब्बे प्रतिशत लड़कियाँ इसी परिस्थिति में है। वे बेचारी करें क्या? तन्ना से उसकी शादी हो नहीं पाई और मीठी कहानियाँ, सच्ची कहानियाँ और रसभरी कहानियाँ तो बेचारी और कर ही क्या सकती थी? यह तो रोने की बात है, इसमें हँसने की क्या बात है? दूसरे पर हँसना नहीं चाहिए। हर घर में मिट्टी के चूल्हे होते हैं; आदि आदि।

शाम की बात सुनकर हम लोगों का जी भर आया और धीरे-धीरे हम लोग सो गये।

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