चैप्टर 5 सूरज का सातवां घोड़ा : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 5 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 5 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti

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अनध्याय

जमुना की जीवन गाथा समाप्त हो चुकी थी और हम लोगों को उसके जीवन का ऐसा सुखद समाधान देखकर बहुत संतोष हुआ। ऐसा लगा जैसे सभी रसों की परिणिति शांत या निर्वेद में होती है, वैसे ही उस अभागिन के जीवन के सारे संघर्ष और पीड़ा की परिणति मातृत्व से प्लावित, शांत, निष्कम्प दीपशिखा के समान प्रकाशमान, पवित्र, निष्कलंक वैधव्य में हुई।

रात को जब हम लोग हकीम जी के चबूतरे पर अपनी अपनी खाट और बिस्तरा लेकर एकत्र हुए, तो जमुना की जीवन गाथा हम सबों के मस्तिष्क पर छाई हुई थी और उसको लेकर जो बात चीत तथा वाद विवाद हुआ, उसका नाटकीय विवरण इस प्रकार है :

मैं : (खाट पर बैठकर, तकिए को उठाकर गोद में रखते हुए) भाई कहानी बहुत अच्छी रही।

ओंकार : (जम्हाई लेते हुए) रही होगी।

प्रकाश : (करवट बदल कर) लेकिन तुम लोगों ने उसका अर्थ भी समझा?

श्याम : (उत्साह से) क्यों उसमें कौन कठिन भाषा थी?

प्रकाश : यही तो मानिक मुल्ला की खूबी है। अगर जरा सा सचेत होकर उनकी बातों समझते नहीं गए, तो फौरन तुम्हारे हाथ से तत्व निकल जायेगा, हल्का फुल्का भूसा आ जायेगा। अब यह बताओ की कहानी सुनकर क्या भावना उठी तुम्हारे मन में तुम बताओ।

मैं : (यह समझ करके ऐसे अवसर पर थोड़ी आलोचना करना विद्वता का परिचायक है) भाई मेरे तो यही समझ में नहीं आया कि मणिक मुल्ला ने जमुना जैसी नायिका की कहानी क्यों कही? शकुंतला जैसी भोली-भाली या राधा जैसी पवित्र नायिका उठाते हैं या बड़े आधुनिक बनते हैं, तो सुनीता जैसी साहसी उठाते या देवसेना शेखर की शशि वशी तमाम टाइप मिल सकते थे।

प्रकाश : (सुकरात की सी टोन में) लेकिन यह बताओ कि ज़िन्दगी में अधिकांश नायिका जमुना जैसी मिलती है या राधा और सुधा और गेसू और सुनीता और देवसेना जैसी।

मैं : (चालाकी से अपने को बचाते हुए) पता नहीं! मेरी नायिकाओं के बारे में कोई अनुभव नहीं। यह तो आप ही बता सकते हैं।

श्याम : भाई हमारे चारों ओर दुर्भाग्य के 90% लोग तो जमुना और रामधन की तरह के होते हैं। पर इस से क्या? कहानीकार को शिवम का चित्रण करना चाहिए।

प्रकाश : यह तो ठीक है। पर अगर किसी जमी हुई झील पर आधा इंच बर्फ और नीचे अथाह पानी और वही एक गाइड खड़ा है, तो उस पर से आनेवालों को आधा इंच की तो सूचना दे देता है और नीचे के अथाह पानी की खबर नहीं देता, तो राहगीरों को धोखा देता है या नहीं?

मैं : क्यों नहीं?

प्रकाश : और अगर वे राहगीर बर्फ टूटने पर पानी में डूब जाये, तो इसका पाप गाइड पर पड़ेगा ना!

श्याम : और क्या?

प्रकाश: बस, मणिक मुल्ला भी तुम्हारा ध्यान उस अथाह पानी की ओर दिला रहे हैं, जहाँ मौत है, अंधेरा है, कीचड़ है, गंदगी है। या तो दूसरा रास्ता बनाओ, नहीं तो डूब जाओ। लेकिन आधा इंच ऊपर जमी बर्फ कुछ काम ना देग। एक ओर नये लोगों का यह रोमानी दृष्टिकोण, यह भावुकता, दूसरी और बूढ़ों का यह थोथा आदर्श और झूठी अवैज्ञानिक मर्यादा सिर्फ आधा इंच बर्फ है, जिसने पानी की खूंखार गहराई को छुपा रखा है।

मैं और ओंकार : (ऊब जाते हैं, सोचते हैं कब ये लेक्चर बंद हो)

प्रकाश : (उत्साह से कहता जाता है) जमुना निम्न मध्यम पर की भयानक समस्या है। आर्थिक नींव खोखली है। उसकी वजह से विवाह, परिवार, प्रेम सभी की नींव हिल गई है। अनैतिकता छाई हुई है। पर सब उस ओर से आँखें मूंदे हैं। असल में पूरी ज़िन्दगी की व्यवस्था बदलनी होगी।

मैं : (ऊब कर जमाई लेता हूँ)

प्रकाश : क्यों? नींद आ रही है तुम्हें? मैंने कई तुमसे कहा कि कुछ पढ़ो लिखो। सिर्फ उपन्यास पढ़ते रहते हो। गंभीर चीजें पढ़ो। समाज का ढांचा, उसकी प्रगति, उसमें अर्थ, नैतिकता, साहित्य का स्थान…

मैं : (बात काटकर) मैंने क्या पढ़ा नहीं? तुम ही ने पढ़ा है। (यह देखकर कि प्रकाश की विद्वता का रौब लोगों पर जम रहा है, मैं तो पीछे रहूं) मैं भी इसकी मार्क्सवादी व्याख्या दे सकता हूँ –

प्रकाश : क्या? क्या व्याख्या दे सकते हो?

मैं : (अकड़ कर) मार्क्सवादी!

ओंकार : अरे या रहने भी दो!

श्याम : मुझे नींद आ रही है।

मैं : देखिए, असल में इसकी मार्क्सवादी व्याख्या इस तरह हो सकती है। जमुना मानवता का प्रतीक है, मध्यवर्ग (मणिक मुल्ला) तथा सामान्य वर्ग (जमीदार) उसका उद्धार करने में असफल रहे, अंत में श्रमिक वर्ग (रामधन) ने उसको नई दिशा सुझाई।

प्रकाश : क्या? (क्षणभर स्तब्ध। फिर माथा ठोक कर) बेचारा मार्क्सवादी ऐसा अभागा निकला कि तमाम दुनिया में जीत के झंडे गाड़ आया और हिंदुस्तान में आकर इसे बड़े-बड़े राहु ग्रस गये। तुम ही क्या, उसे ऐसे व्याख्याकार कहाँ मिले हैं कि वह भी अपनी किस्मत को रोता होगा (जोरों से हँसता है, मैं अपनी हँसी को उसे देख कर उदास हो जाता हूँ।)

हकीम जी की पत्नी : ( नेपथ्य से) मैं कहती हूँ यह चबूतरा है या सब्जी मंडी। जिसे देखो खाट उठा चला रहा है। आधी रात तक चख-चख चख-च! कल से सब को निकालो यहाँ से।

हकीम जी : ( नेपथ्य से कांपती हुई बूढ़ी आवाज) हँस-बोल लेने दे। तेरे अपने बच्चे नहीं है, फिर दूसरों को क्यों खाने दौड़ती है…(हम सब पर सकता छा जाता है, मैं बहुत उदास होकर लेट जाता हूँ। नीम पर से नींद की परियाँ उतरती हैं, पलकों पर छम छम छम छम नृत्य कर)

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