चैप्टर 11 सूरज का सातवां घोड़ा : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 11 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 11 Suraj Ka Satvan Ghoda Novel By Dharmveer Bharti

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अनध्याय

यद्यपि मेरा हाज़मा भी दुरुस्त है और मैंने दांते की डिवाइन कॉमेडी अभी नहीं पढ़ी है, फिर भी मैं एक सपना देख रहा हूँ।

चिमनी से निकलने वाले धुएं की तरह एक सतरंगा इंद्रधनुष धीरे धीरे उग रहा है। आकाश के बीचो बीच आकर वह इंद्रधनुष टंग गया है।

एक जलता हुआ होंठ कांपता हुआ दाई ओर से इंद्रधनुष की ओर खिसक रहा है।

दाई और माणिक का होंठ, बाईं ओर लीला का होंठ। खिसकते-खिसकते इंद्रधनुष के नजदीक आकर दोनों रुक जाते हैं।

नीचे धरती पर महेसर दलाल एक गाड़ी खींचते हुए आते हैं। गाड़ी चमन ठाकुर की भीख मांगने वाली गाड़ी है, उसमें छोटे-छोटे बच्चे बैठे हैं, जमुना का बच्चा, तन्ना का बच्चा, सत्ती का बच्चा। चमन ठाकुर का एक कटा हुआ हाथ अंधे अजगर की तरह आता है। बच्चों की गर्दन से लिपट जाता है और उन्हें मरोड़ने लगता है, उनका गला घुटता है यह क्या।

इंद्रधनुष के दोनों प्यासे होंठ और नजदीक आ जाते हैं।

तन्ना के दोनों कटे हुए पैर राक्षसों की तरह झूमते हुए आते हैं। उनमें नई लोहे की नाली जड़ी है। बच्चे उन से कुचल जाते हैं। हरी घास दूर-दूर तक बरसात से साइकिल से कुचली हुई बीरबहूँटियाँ फैली हैं। रक्त सूख कर गाढ़ा काला हो गया है। इंद्रधनुष की छाया तमाम पहाड़ और मैदानों पर तिरछी होकर पड़ती हैं, मातायें सिसकती हैं – जमुना, लिली, सत्ती।

दोनों होंठ इंद्रधनुष के और समीप के खिसकने लगते हैं। और समीप और समीप।

एक काला चाकू इंद्रधनुष को रस्से की तरह काट देता है। दोनों होंठ गोश्त के मुर्दा लोथड़ों की तरह गिर पड़ते हैं।

चीलें….चीलें…चीलें…टिड्डियों की तरह अनगिनत चीलें।

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