चैप्टर 4 लंगड़ा खूनी : बाबू नयराम दास का उपन्यास | Chapter 4 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

Chapter 4 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

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चौथा भेद
खूनी कौन है?

हरिहर की लड़की के चले जाने के बाद भेदिया कहने लगा, “मिस्टर अजय सिंह ! जैसा मैंने कहा था, वैसा ही तुमने भी अपने कानों से सुन लिया।”

अजय ( बात टालते हुए) – “हाँ, अब मैं कैदी को देखना चाहता हूँ। क्या तुम वहाँ चल सकते हो।”

भेदिया – “हाँ क्यों नहीं पर केवल हमीं और तुम।”

अजय – “अच्छा ऐसा ही सही। विजय सिंह कदाचित यह बात तुम्हें बुरी मालूम हुई हो, पर विश्वास रखो कि मैं दो घंटे में लौट आऊंगा।”

मैं – “अच्छा यही सही है।”

यह कह कर मैंने एक जासूसी उपन्यास उठा लिया और भी लोग चलते बने। इस उपन्यास का प्लॉट ऐसा विचित्र और कहानी ऐसी पेंचीदी और मनोरंजक थी, जो कि इसी मुकदमे से बहुत मिलती थी। इस कहानी के ध्यान ने मुझे ऐसा मुग्ध कर लिया कि मैंने उपन्यास को तो टेबल पर रख दिया और स्वयं इसी बीते हुए मुकदमे पर विचार करने लगा। ‘यदि वास्तव में इस नवयुवक का कहना सत्य है, तो उस समय जब कि वह अपने बाप की चीख सुनकर पीछे को दौड़ा होगा, तो उसके हृदय में एकाएक ऐसे भयानक ध्यान प्रवेश कर गए होंगे। क्या मेरी बुद्धि इन विषयों में पता नहीं लगा सकती?’ यह सोचकर मैंने घंटी बजाई और एक खास नकल के लिए हुक्म दिया, जिसमें इस मामले की कार्यवाही के शब्द लिखे हुए थे।

सर्जन (डॉक्टर) कि जांच में यह घाव बड़ा भारी था, जो सिर के पीछे तरफ था और जिससे साफ-साफ मालूम होता था कि हर घाव पीछे की तरफ से लगाया गया होगा। यही एक साक्षी महादेव के लिए उपयोगी थी, क्योंकि जब महादेव अपने बाप से हाथाबाहीं कर रहा था, तो उसके सामने था ना कि पीछे। किंतु एक बात, यह भी हो सकती है कि शायद उसके बाप ने चोट खाने के पहले ही उसकी तरफ पीठ फेर दी हो। एक और बात महादेव के बयान से ध्यान में आती है कि उसने (महादेव) जो भूरे रंग की चीज दस-बारह गज की दूरी पर देखा था, संभव है कि वह मारने वाले का कोट रहा हो, जो दौड़ने में गिर गया होगा और जब महादेव की पीठ उस तरफ थी, तो वह उसे उठाकर ले गया हो।

इसी प्रकार के अनेक ध्यान उत्पन्न होते और मिट जाते थे। परंतु सत्य तो यह है कि मामला बड़ा पेंचीदा था और आज तक मैंने देखा ही नहीं था।

इन विचारों के उठने और गिरने में बहुत देर लग गई और इतने में अजय सिंह लौट आया। किंतु इस समय वह भेदिया को कहीं छोड़ आया था और बोला – “खबर तो बिल्कुल साफ है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आज की थकावट यहाँ उतार लूं और कल सवेरे जांच को चलूं।”

मैं – “क्या तुमने महादेव को देखा?”

अजय – “हाँ!”

मैं – “उसने कुछ बतलाया भी?”

अजय- “कुछ नहीं!”

मैं – “तुम क्या कुछ भी नहीं मालूम कर सके।”

अजय – “मालूम करना क्या? पहले मैं यह समझता था कि खूनी उन दोनों (आदमी औरत) में से कोई होगा, परंतु मेरा विचार भी असत्य निकला क्योंकि वह भी और लोगों की तरह संदेह ही की दशा में है। भाई! बात असल में यह है कि महादेव हरिहर सिंह की लड़की से असीम प्रेम रखता है, किंतु उससे वह शादी करना नहीं चाहता। परंतु विश्वनाथ सिंह सदा से यह चाहता था कि महादेव उससे विवाह कर ले और जब हरिहर सिंह मरे, तो उसके अपार धन और संपत्ति का मालिक बन बैठे । इसी कारण से विश्वनाथ सिंह के अतिरिक्त कोई इस विवाह से प्रसन्न नहीं था। अंत में जब मैं इन बातों को बीच में रखा परिणाम निकलता हूँ, तो महादेव को निरअपराध पाता हूँ।

मैं – “भाई महादेव खूनी नहीं है, तो कौन है?”

अजय – “खूनी कौन है इस प्रश्न के उत्तर के लिए मैं तुम्हारा ध्यान उस तरफ (जहाँ खून हुआ है) दौड़ता हूँ कि पहले वह (विश्वनाथ ) नदी के किनारे अवश्य किसी से मिलने गया था, जैसे कि पहले बयान हो चुका है और उसका मुलाकाती उसका बेटा नहीं था क्योंकि उसे तो खबर भी न थी कि महादेव गाजीपुर से लौट आया है या नहीं। दूसरे यह कि उसके मुँह से कोई के शब्द निकले थे, इससे परिलक्षित होता है कि उसकी अपने लड़के के लौट आने की बिल्कुल खबर ना थी। यह दो बातें ऐसी है कि जिस पर मुकदमा का पूरा पूरा भार है। अब हम लोगों को कोई दूसरी बात करनी चाहिए, जिससे दिल बहले।”

दूसरे दिन सवेरे कोई नई खबर नहीं सुनाई पड़ी। लगभग नौ बजे भेदिया हम लोगों के लिए गाड़ी लेकर आया, जिस प्रकार इस पर सवार होकर हम लोग कपिलधारा के लिए रवाना हो गये।

भेदिया – “आज प्रात:काल एक बड़ी बुरी खबर आई है कि मिस्टर हरिहर से बहुत बीमार हो गए हैं और अब उनके जीने की आशा नहीं है।”

अजय – “अच्छा कोई परवाह नहीं, वह एक बुड्ढा आदमी है।”

भेदिया – “हाँ उसकी अवस्था तो साठ वर्ष के लगभग की होगी किंतु जीवन कई बीमारियों के कारण सदा दुखित रहा करता है। उसके और विश्वनाथ सिंह में पहले दर्जे की मित्रता थी और मैं कह सकता हूँ कि वह उस पर बड़ा दयालु था क्योंकि उसने अपनी जिम्मेदारी का बहुत बड़ा हिस्सा विश्वनाथ सिंह को मुफ्त दे दिया था।“

अजय – “यह बातें उसकी योग्यता प्रकाशित करती है।”

भेदिया – “यही नहीं! किंतु उसने विश्वनाथ के साथ और भी बहुत से काम किए हैं, जिसको सब कोई जानता है।”

अजय – “भाई तब तो बड़े आश्चर्य की बात है कि हरिहर सिंह के इतना कर देने पर भी विश्वनाथ यही चाहता था कि महादेव उसकी लड़की से विवाह करके सब मायाजाल का मालिक बन बैठे। दुनिया बड़ी मतलबी और लालची होती जाती है । भेदिया क्या तुम इन बातों से कुछ पता नहीं लगा सकते।”

भेदिया – “कुछ भी नहीं! मुझे इससे मतलब ही क्या है, मैंने तो पता लगा लिया है कि अपने बाप का खूनी महादेव ही है और कोई नहीं।”

अजय – “खैर कुछ ही क्यों ना हो? यदि मैं भूलता नहीं हूँ, तो यही मकान विष्णु सिंह का है।”

भेदिया – “जी हाँ यही है।”

इतने में सब लोग मकान के दरवाजे पर पहुँच गए और अजय सिंह की आज्ञा से मृतक (विश्वनाथ सिंह) और कैदी (महादेव सिंह) के जूते लाये गये। जासूस (अजय सिंह) ने सात आठ जगहों से बूटों को ध्यान पूर्वक नापा तदनंतर सब लोग नदी की तरफ चल दिये।

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