चैप्टर 7 लंगड़ा खूनी : बाबू नयराम दास का उपन्यास | Chapter 7 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

Chapter 7 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

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सातवां भेद

हरिहर सिंह का जीवन रहस्य

तुम उसमें तक को नहीं जानते। वह बड़ा भयंकर, कुटिल और दगाबाज आदमी था। हे परमात्मा! ऐसे मनुष्य के हाथों से तू सबको बचा। बीस साल से वह मुझ पर अधिकार रखता था और उसी ने मेरे जीवन को आपदा पूर्ण बना दिया था। सबसे पहले मैं तुम्हें यह बतलाता हूँ कि मैं किस प्रकार उसके अधिकार में आ गया था।

जवानी के समय में मैं बड़ा बलिष्ठ और साहसी मनुष्य था। बुरी संगत ने मुझे अव्वल दर्जे का शराबी और ऐय्याश बना दिया था। मेरे पास तो कोई जायजाद थी ही नहीं। अंत में मैंने बुरे ढंग से धन कमाना आरंभ किया और थोड़े ही दिनों में प्रसिद्ध ‘कज्जाक’ बन गया। मेरे पास छः आदमी और थे। मेरा प्रधान लक्ष्य स्वतंत्रता से जीवन निर्वाह करने का था। मेरा काम सड़क पर के लड़कों, सवारों और पथिकों को लूटने का था। उस समय मेरा नाम शेर सिंह था।

एक दिन आधी रात के समय मैं और मेरे साथियों ने सोने और चांदी से भरी हुई एक गाड़ी पर आक्रमण किया, जिसके छः सिपाही रक्षक थे। उधर मैं भी छही था। दोनों तरफ के लोग बराबर थे, परंतु मैंने पहले ही आक्रमण में चार सिपाहियों को गिरा दिया। इसके पहले कि मैं इतने धन से अपने डेरे को पवित्र करूं कि मेरे तीन साथी भी मारे गये। मैंने अपना पिस्तौल गाड़ीवान के सिर पर लगा दिया। ईश्वर की सौगंध! कि उस गाड़ीवान अर्थात विश्वनाथ सिंह को मार दिया होता, पर मैंने उसे छोड़ दिया। मैं देख रहा था कि वह मेरे मुख मंडल को पहचान रहा है कि समय पड़ने पर पहचान सकूं। इतने में वह मेरे कहने से राजी हो गया और संपूर्ण धन मेरे हाथ आया। मैंने निर्भयता से बनारस की तरफ लौटा। बनारस में पहुँचने पर मैंने अपना हिस्सा अपने साथियों में बांट लिया और निष्कंटक जीवन निर्वाह करने के लिए यहाँ के जमीदार से जमींदारी खरीद ली और आनंद से रहने लगा। यहाँ पर मैंने अपना विवाह भी किया। यद्यपि मेरी स्त्री ने शीघ्र ही मृत्यु पाई, किंतु मुझे दिल बहलाने के लिए प्यारी मनोहर लता को छोड़ दे। मैं निष्कंटक और निर्भयता के साथ अपना जीवन निर्वाह कर रहा था कि कहीं से विश्वनाथ सिंह आ धमके।

इक दिन में शहर को गया था कि विश्वनाथ से मुझसे मिला। ना उसके शरीर पर कोर्ट और ना पाव में जूता था। उसने मुझसे कहा – “प्यारे मित्र मुझ पर दया करो। मैं और मेरा बेटा तुम्हारे घर में दासों की तरह रहेंगे। यदि तुम मुझको कष्ट दोगे और मेरा कहना ना मानोगे, तो जान रखो कि यह बनारस है। पुलिस प्रत्येक समय मुजरिमों की ताक में लगी रहती है। कुशल ना होगा।”

मिस्टर अजय सिंह! जब यहाँ इनको कोई बात पूछने वाला भी नहीं था, तबसे आज तक मेरी जमींदारी पर मुफ्त के मालिक रहे। जब उन्होंने देखा कि मैं इनके दम में आ गया, तो वे मुझे और भी दबाने लगे। निदान जो चीजें मांगते, मुझे अवश्य लाचारी की दशा में देनी पड़ती थी। जमीन घर धन दौलत इत्यादि से इन्हें परिपूर्ण कर दिया। अंत में इन्होंने मुझसे एक ऐसा पदार्थ मांगा, जो मुझे देने का अधिकार न था। वह चीज यही मेरी प्यारी मनोहर लता थी।

महादेव उसका लड़का भी नव युवा, इधर मेरी प्यारी मनोहर लता भी किशोर अवस्था को प्राप्त कर चुकी है। जब विश्वनाथ ने देखा कि मेरा पैर दिन-ब-दिन घसका का चला जा रहा है, तो उसने मेरे संपूर्ण वैभव को अपनाने के लिए यही उपाय उत्तम समझा कि महादेव का विवाह मनोहर लता से हो जाये। किंतु मैं इसके बिल्कुल विरुद्ध था। मैं नहीं चाहता था कि एक दरिद्र और मेरे ही द्वारा पोषित मनुष्य मेरे संपूर्ण वैभव का मालिक बने। अंत में तमाम बातों को निर्णय करने के लिए वरुणा नदी वाला ही स्थान स्थित किया क्योंकि वह दोनों के पास में स्थित है।

जब मैं वहाँ पहुँचा, तो विश्वनाथ अपने बेटे महादेव को विवाह करने के लिए विवश कर रहा था। इसी कारण दोनों में खूब वाद-विवाद हो रहे थे। मैं सिगार में दियासलाई लगाकर वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया और उनकी बातों को सुनने लगा। अंत में उनकी बातों से मुझे अत्यंत क्रोध हो आया और मैं अपने मन में सोचने लगा कि मानो उसने मेरी प्यारी मनोहर लता को बाजारी औरत समझ लिया है। इन बातों से मुझे इतना दुख हुआ कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। मुझे अपने जीवन का कुछ परवाह ही न था, मैंने तुरंत उस पर एक वार कर दिया और वह बेतरह मर गया। उसकी चीख को सुनकर उसका लड़का लौटा, जो चला जा रहा था। उसको देखकर मैं एक वृक्ष के नीचे छिप गया था।

महानुभाव! यही सब सच्च-सच्ची बातें थी जिनको मैंने आपसे वर्णन कर दिया है। अब आप जो चाहे सो करें।”

इस पर अजय जी ने अपना लिखा कागज दिया और उस पर बुड्ढे हरिहर सिंह ने हस्ताक्षर करके कहा – “आप इस आदेश को क्या करोगे?”

अजय – “यदि तुम्हारी अवस्था स्वास्थ की तरफ ध्यान दिया जाये, तो मुझे कुछ करना ना चाहिए और मैं ऐसा ही करूंगा भी। किंतु तुम समझ रखो कि मुझे तुम्हें इस मामले का जवाब सर्वश्रेष्ठ न्यायालय में देना पड़ेगा। जिसके सामने यहाँ की न्यायालय तुच्छ भी तुच्छ है। मैं तुम्हारे इस दसखती इजहार को अपने पास रख लूंगा। यदि महादेव किसी प्रकार से ना छूट सका, तो लाचारी से ये कचहरी में पेश करने पड़ेंगे। यदि महादेव बच गया, तो संभव नहीं कि कोई जीवधारी व्यक्ति इसे देख सके। तुम्हारा वृतांत मेरे पास सदा रखा रहेगा, चाहे तुम जीवित रहो या मर जाओ।”

इस पर खूनी बुड्ढे ने अत्यंत खुशी से झुक झुक कर सलाम किया और कहने लगा कि ईश्वर तुम्हें इस उपकार और दयालुता के बदले में उन्नति के शिखर पर चढ़ा देगा और सदा प्रसन्न रखेगा।

यह कहकर बुड्ढा और पुनः एक बार अपने सिर को पृथ्वी में लगाकर प्रणाम किया था और लंगड़ाता हुआ चला गया।

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