चैप्टर 2 लंगड़ा खूनी : बाबू नयराम दास का उपन्यास | Chapter 2 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

Chapter 2 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

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दूसरा भेद

महादेव के इजहार की नकल

मैं दुर्घटना के तीन दिन पहले ही गाजीपुर को चला गया था। ठीक उसी दिन अर्थात तीन तारीख को घर लौट आया। घर में आने पर मुझे मालूम हुआ कि मेरा बाप जय गोविंद सिंह के साथ ही बाहर गया हुआ है। थोड़ी देर बाद अपनी गाड़ी पर सवार अहाते में आया, परंतु गाड़ी पर से उतरकर कहीं चला गया। इसके बाद मैं अपनी बंदूक लेकर नदी के किनारे, मुर्गाबी की तलाश में गया। जैसा कि गिरधारी ने अपने साक्षी में लिखवाया है। किंतु उसका यह बयान बिल्कुल सत्य है कि मैं अपने बाप से थोड़ी दूर जा रहा था और मुझे इस बात का गुमान भी ना था कि मेरा बाप आगे-आगे जा रहा है। नदी से जब मैं सौ कदम की दूरी पर था, तो मुझे ‘कूई’ की आवाज सुनाई पड़ी। जो मेरे और मेरे बाप के बीच में बुलाने का एक गुप्त शब्द है। यह आवाज सुनते ही मैं नदी की तरफ दौड़ा और अपने बाप को नदी के किनारे खड़ा देखा। मुझे देखते ही उसने आश्चर्य के चिन्ह प्रकट किया और धीरे-धीरे कहना प्रारंभ किया, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” इसी किस्म की धीमी और कड़ी बातों ने दंगा कुश्ती की नौबत पहुँचाई। यह दशा देखकर कि क्रोधाग्नि धधकना चाहती है, मैं शीघ्र ही घर की तरफ लौटा। लगभग डेढ़ सौ कदम की दूरी पर गया होगा कि पीछे से एक चीज की आवाज सुनाई पड़ी। जिसने मुझे पुनः पीछे लौटने पर बाध्य किया। मैं पहुँचकर क्या देखता हूण कि बाप जमीन पर पड़ा तड़प रहा है और उसके सिर में एक भारी चोट लगी हुई है। मैंने बंदूक को जमीन पर फेंक दिया और पिता को अपने हाथों से उठाने लगा कि उसका दम निकल गया। थोड़ी देर तक मैं मुर्दा बाप के शव के ऊपर झुका हुआ रोता रहा, फिर पास के झोपड़े में (जैसा कि लड़की मैं बयान किया है) सहायता के लिए गया। लौटती बार मैंने किसी आदमी को वहाँ नहीं देखा। इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं जानता।“

पुलिस अफसर – “मरने के पहले विश्वनाथ तुमसे कुछ कहा था।”

महादेव – “उसने कुछ कहा था। पर मैं उनमें से एक का भी मतलब नहीं समझ सका था।”

पुलिस अफसर – “क्या तुमने उनमें से एक शब्द को भी नहीं समझा।”

महादेव – “नहीं! मैं एक लफ्ज़ के भी माने नहीं समझ सका।”

पुलिस अफसर – “तुम्हारे उस झगड़े का क्या अभिप्राय था?”

महादेव – “मैं इसका उत्तर देना उचित नहीं समझता।”

पुलिस अफसर – “तुम्हें जरूरत बतलाना होगा।”

महादेव – “यह संभव ही नहीं। और तुम्हें इस बारे में कुछ पूछना ही नहीं चाहिए क्योंकि खून का इससे कोई संबंध ही नहीं है।”

पुलिस अफसर – “इस बात का खून से कोई संबंध नहीं है, यह बात तो अदालत के सामने मालूम होगी। परंतु हाकिम के किसी प्रश्न का उत्तर ना देना अपने आप मुजरिम को बनाना है।”

महादेव – “क्या मैं आपकी इस धमकी से बतला दूंगा?”

पुलिस अफसर – “अच्छा ना सही! मैं समझता हूँ कि ‘कूई’ तुम लोगों का एक गुप्त शब्द है।”

महादेव – “नि:संदेह!”

पुलिस अफसर – “फ़िर यह कैसे हो सकता है कि उसने बिना देखे या देखने के पहले ही इस शब्द का प्रयोग किया । जबकि उसको मालूम भी ना था कि महादेव गाजीपुर से लौट आया है या नहीं।”

महादेव (जरा ठहरने के बाद) – “मुझे मालूम नहीं।”

पुलिस अफसर – “जब तुमने अपने बाप को उस प्रकार बिगड़े दिल पाया, तो क्या तुम्हें और किसी के उपस्थित होने का ख़याल नहीं आया था।”

महादेव – “मुझे अच्छी तरह मालूम नहीं।”

पुलिस अफसर – “तुम्हारे इस बात का मतलब क्या है?”

महादेव – “मैं उस समय ऐसा बदहवास हो रहा था कि मुझे अपने बाप के अतिरिक्त और किसी का गुमान भी नहीं हुआ और जब मैं लौट आ रहा था, तो मुझे ख़याल आया है कि मैंने अपने बायें तरफ किसी भूरी चीज को पड़ा देखा था और जब वहाँ से उठा, तो कोई चीज नहीं दिखाई पड़ी।”

पुलिस अफसर – “मानो इससे तुम्हारा मतलब है कि तुम्हारे मदद ले जाने के पहले ही चीज गायब हो गई थी।”

महादेव – “हाँ निसंदेह!”

पुलिस अफसर – “तुम्हारी राय में वह क्या चीज रही होगी?”

महादेव – “मैं नहीं कह सकता।”

पुलिस अफसर – “तुम्हारे बाप से वह कितनी दूर पर थी।”

महादेव – “कोई दस-बारह गज की दूरी पर।”

पुलिस अफसर – “नदी से वह कितनी दूर थी?”

महादेव- “लगभग उतना ही जितना कि बाप से।”

पुलिस अफसर – “मानो जिस समय वह चीज गायब हुई थी, तुम उससे दस-बारह गज की दूरी पर थे।”

महादेव – “हाँ किंतु मेरी पीठ उसी तरफ थी।”

जिस समय मैं इजहार को पढ़ चुका, तो अजय सिंह जासूस बोल उठा – “मित्र! वह सब यही है, जो कुछ उन जाहिल अफसरों ने दरयाफ्त किया है।“

मैं – “अजय सिंह! इन इजहारों के पढ़ने से मुझे यह मालूम होता है कि जिस समय उन अफसरों ने अपनी पूछताछ समाप्त की थी, उस समय वह सब उसके विरुद्ध थे। विश्वनाथ का महादेव को बिना देखे बुलाना और महादेव का अफसर पुलिस को अपनी भेद भरी बातों को ना बतलाना। यह सब बातें ऐसी है, जो महादेव के लिए बहुत ही बुरी हैं।”

इस पर अजय सिंह ने अट्टहास लगाकर कहा – “मुझे तुम और उन जाहिल अफसरों पर बड़ी हँसीछूटती है। मैं उसके (महादेव) बयान को ठीक समझकर तहकीकात शुरू करूंगा और देखूंगा कि मेरा विचार कहाँ तक सत्य निकलता है। किंतु अब मैं इस मामले के बारे में एक शब्द ही नहीं कहूंगा, जब तक कि मैं बनारस के स्टेशन पर ना पहुँच जाऊं।”

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