चैप्टर 3 लंगड़ा खूनी : बाबू नयराम दास का उपन्यास | Chapter 3 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

Chapter 3 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

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तीसरा भेद

हरिहर नंदिनी

कोई सवा चार बजे मुगलसराय जंक्शन से होता हुआ मैं बनारस की स्टेशन पर पहुँचा, जहाँ एक ठाठदार आदमी बिल्ली सी आँख लिए प्लेटफार्म पर इंतजार कर रहा था। यद्यपि उसके वस्त्र उसे पहचान ना पड़ने देने के लिए अनेक यत्न कर रहे थे। परंतु इस पर भी मैंने उसे साधारण तौर से पहचान लिया कि यह पुलिस का एक बड़ा अफसर है । इसके साथ मैं और अजय सिंह डाक बंगला में ठहरे। जहाँ मेरे वास्ते एक स्वच्छ कमरा खाली कर दिया गया था।

जलपान इत्यादि कर लेने के बाद उस बड़े अर्थात भेदिया नामधारी अफसर ने कहा – “मुझे पूरी तरह से मालूम है कि जब तक तुम मुकदमे की पूरी तौर से छानबीन नहीं कर लेते, तब तक नहीं मानते। इससे तुम्हारे आने की खबर सुनकर मैं स्टेशन पर गया था और गाड़ी का भी इंतजाम कर रखा है।”

जासूस – “चंद्र देव की तो साफ रोशनी है, क्या पैदल जाने में कठिनाई होगी?”

भेदिया – “यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। परंतु मैं कहता हूँ कि मामला बिल्कुल साफ है। जैसी गहरी दृष्टि से देखो वैसा ही साफ दिखलाई पड़ता है। अब इसमें विशेष की आवश्यकता नहीं है। जमीदार हरिहर सिंह ने तुम्हारा नाम सुना था। इससे वह तुम्हारी सम्मति भी मालूम करना आवश्यकीय समझते हैं। यह लीजिए उनकी गाड़ी भी दरवाजे पर आ गई।”

यह शब्द भेदिया पूरा पूरा कहने भी ना पाया था कि एक नवयौवना बुर्का पहने हुए आई, जिसकी आँखें उसके भीतर से चाँद की तरह चमक रही थी और बोली – “बहादुर अजय सिंह! मुझे तुम्हारे आने से बड़ी खुशी हुई। मेरे देखने में महादेव जी बिल्कुल निरपराध है और मैं चाहती हूँ कि तहकीकात करने से पहले ही तुमको सब बातें बता दी जायें। मैं उसके स्वभाव को बचपन ही से जानती हूँ। वो इतना कोमल भेजे है कि एक मक्खी को भी हानि नहीं पहुँचाना चाहता। भला जब ऐसा है, तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि उससे इतना भयानक काम कैसे हो सकता है। वास्तव में यह सब बिल्कुल झूठ है।“

अजय – “हरिहर नंदिनी! तुम्हें अभी सब कुछ मालूम हो जाता है। घबराओ नहीं, मेरे पर विश्वास रखो।”

हरिहर नंदिनी – “लेकिन अजय सिंह! तुमने सब बातों को सुन लिया ही होगा और उसका परिणाम भी निकाल दिया होगा। क्या वह तुम्हारे देखने में बिल्कुल और अपराध नहीं है।”

अजय सिंह – “क्यों नहीं है? वह बिल्कुल साफ और बरी है।”

इस पर हरिहर सिंह की लड़की प्रसन्नता से उछल पड़ी और कहने लगी, “निःसंदेह तुम्हारा विचार सच और यथार्थ है। उसके और उसके बाप की तकरार होने की सबब मैं जानती हूँ, जिसे वह पुलिस अफसर को नहीं बतला सका क्योंकि वह मेरे संबंध की बात है।”

अजय – “तुम्हारा संबंध? वह कैसा?”

हरिहर नंदिनी – “मुझे तो अब तुमसे कोई बात छुपाने की आवश्यकता नहीं मालूम पड़ती, तो भला मैं क्यों छुपाऊं? विश्वनाथ महादेव में सदा खटपट रहा करती थी। विश्वनाथ चाहता था कि वह मुझसे शादी कर ले, किंतु वह मुझे बहन की भांति चाहता है। मुझे विश्वास है कि खटपट भी किसी ऐसी ही बात की होगी।”

अजय – “क्या तुम्हारा बाप इस संबंध पर राजी था।”

हरिहर नंदिनी – “नहीं विश्वनाथ के अतिरिक्त कोई इस बात पर राज़ी नहीं था।”

यह कहकर हरिहर सिंह की लड़की चुप हो गई क्योंकि जासूस कुछ सोचने लग गया था।

अजय – “तुम्हारे इस प्रकार सूचित करने से मैं बहुत प्रसन्न हुआ। क्या मैं कल तुम्हारे बाप से मिल सकता हूँ।”

हरिहर नंदिनी – “मुझे संदेह है कि डॉक्टर उससे आज्ञा नहीं देगा।”

अजय – “डॉक्टर?”

हरिहर नंदिनी – “हाँ! क्या तुम्हें नहीं मालूम कि बेचारा बाप बहुत दिन से बीमार है।”

अजय – “अच्छा हरिहर नंदिनी! मैं तुमको अत्यंत प्रसन्नता से धन्यवाद देता हूँ कि तुमने मुझे एक आवश्यकीय विषय में सूचित किया।”

हरिहर नंदिनी – “मुझे पूर्ण आशा है कि तुम महादेव सिंह को अवश्य बंदीगृह में देखने जाओगे और उस को सूचित कर दोगे कि तुम बिल्कुल निरपराध हो और शीघ्र छोड़ दिए जाओगे।”

अजय – “निसंदेह! मैं अवश्य उसे सूचित कर दूंगा।”

हरिहर नंदिनी – “अच्छा अब मुझे घर जाना चाहिए क्योंकि बाप बहुत बीमार है। ईश्वर आपकी सहायता करें और आप यश प्राप्त करें।”

इन शब्दों के साथ हरिहर की लड़की एक आह भरकर दरवाजे से निकलकर गाड़ी पर जा बैठी और मुझे उसे गाड़ी के पहियों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ी।

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