चैप्टर 6 लंगड़ा खूनी : बाबू नयराम दास का उपन्यास | Chapter 6 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

Chapter 6 Langada Khooni Novel By Babu Nayamdas

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छठवां भेद

विचार का पुष्टिकरण

यह कहकर अजय सिंह और मैं डाकबंगला को लौट आये और भोजन किया गया। अजय सिंह का चेहरा उदास और सोचसागर में डूबा हुआ था। देखने से ऐसा प्रतीत होता था मानव सोच सागर की तरंगे इसे डुबो रही है और बोला – “विजय सिंह! अपनी कुर्सी जरा आगे कर लो। मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूँ। इस समय मैं बड़े सोच सागर में डूबा हुआ हूँ। कुछ समझ में नहीं आता। शायद तुम्हारी परामर्श से कुछ काम निकल जाये।”

मैं – “हाँ हाँ आपके पास पूरा कहें मैं सुनने और उत्तर देने को प्रस्तुत हूँ।”

अजय – “बहुत अच्छा! इस महादेव सिंह के संबंध में जो बड़ा पेचीदा है, मुझे और तुम्हें खूब विचार करना चाहिए। इससे पहले यह भी सोच लेना चाहिए कि तुम इसके विरूद्ध और मैं पक्ष में हूँ। एक बात तो यह है कि विश्वनाथ जी ने महादेव सिंह को देखे बिना जो ‘कूई ‘के शब्द का प्रयोग किया। दूसरा यह कि वह तुरंत चूहे की मौत मर गया। यही दोनों बातें वास्तविक और सत्य प्रतीत होती है और इन्हीं के सहारे वृक्ष रुपी विचार पर चढ़ना चाहिए। मित्र! यह तो स्पष्ट है क्या आवाज उसने अपने लड़के को बुलाने के लिए नहीं प्रयोग किया था। जहाँ तक उसको मालूम था कि महादेव अभी तक नहीं आया है। यह प्रभु की लीला थी कि वह उस आवाज को सुन रहा था। ‘कूई’ के शब्द से वह किसी को बुला रहा था, जिससे वह मिलने गया था। तुम जानते हो कि ‘कूई’ एक रंगुनी शब्द है और इसे वहाँ के रहने वाले प्रयोग करते हैं। इससे यह साफ-साफ मालूम होता है कि जिस आदमी को बुलाना चाहता था, वह रंगून में रह चुका था।”

मैं – “उसके अचानक मर जाने के विषय में तुम्हारी क्या राय है?”

अजय – “मरने के समय विश्वनाथ के मुँह से जो शब्द निकले थे, इससे वह अपने मारने वाले का नाम बतला रहा था, किंतु अत्यंत कष्ट के कारण साफ-साफ ना कह सका।”

मैं – “यह तो बड़ा विचित्र मामला है।”

अजय – “निसंदेह! अब तीसरी बात ध्यान करने योग्य है, जो महादेव ने कहा है कि भूरी चीज वास्तव में वह खूनी का कोट ही था। इसके अतिरिक्त वह मनुष्य वहाँ ही का रहने वाला है क्योंकि वहाँ विदेशी लोग एकाएक नहीं आ सकते।”

मैं – “हना यह बात भी ध्यान देने योग्य है।”

अजय – “इसके बाद मेरी आज की जांच आती है। तुम्हें खूब मालूम है कि मैंने उस जगह के एक-एक तिनके को गौर के साथ देखा है। मुझे इसी से सब बातें मालूम हुई है। तुम मेरे जांच के तरीके को तो जानते ही हो, जो ध्यान पर निर्भर रहती है।”

मैं – “मुझे विश्वास है कि तुमने उसकी लंबाई का पता उसके लंबे पैरों से लगाया होगा और उसके जूतों के चिन्ह भी उसकी लंबाई का पता बतायें होंगे।”

अजय – “हाँ इस विषय की सब बातें उसके जूते ही से मालूम हुई है।”

मैं – “उसके लंगड़ापन को तुमने कैसे जाना?”

अजय – “यह तो पूर्ण रूप से प्रकट है क्योंकि उसके बायें पैर के चिन्ह दाहिने की अपेक्षा कम उगे हुए थे। इससे मालूम होता है कि वह बायें पैर पर कम जोर देता है। इसी से लंगड़ा मालूम हुआ है।”

मैं – “यह किस तरह मालूम हुआ किस का बाया हाथ नाकाम है?”

अजय – “वह चोट, जो विश्वनाथ के सिर पर लगाई गई थी बाई तरफ थी। इसलिए संभव है कि किसी दाहिने हाथ वाले ने लगाया हो। जिस समय बाप बेटे परस्पर वाद-विवाद कर रहे थे, उस समय खूनी पेड़ के नीचे खड़ा हुआ सिगार पी रहा था। मैंने यह बात सिगार की राख से मालूम कर ली और उसी को सूंघकर स्वदेशी और विदेशी का भी निर्णय कर लिया। रात से थोड़ी दूर पर काटा हुआ सिगार भी पड़ा मिला, जिससे मैंने जान लिया कि उसका पीने वाला होल्डर का भी प्रयोग करता है।”

मैं – “तुमने उसकी मोटी धार वाली छोरी का कैसे पता लगाया?”

अजय – “उसका इस प्रकार पता चला कि काटा हुआ टुकड़ा साफ नहीं था। इससे मालूम हुआ कि चाकू तेज नहीं बल्कि मोटे धार का है।”

मैं – “मेरे प्यारे मित्र! तुमने उसके (खूनी के) चारों तरफ ऐसा जाल फैला दिया है कि उसका बचना असंभव है और एक बंदी को ऐसा बचाया कि मानो उसके गले से फांसी की रस्सी काट दी। मैं समझ…”

मैं अपनी बात पूरी भी नहीं करनी पाया था कि बंगला का एक आदमी एक व्यक्ति को अपने साथ लिए हुए आया और बोला – “यही है मिस्टर हरिहर सिंह!”

जो मनुष्य भीतर आया था, वह अनजान मालूम होता था। उसके सुस्त लगड़ाते हुए पैर, झुके हुए कंधे साफ साफ बतला रहे थे कि इसकी विशेष आयु बीत चुकी है। उसके बेतरीके की चाल से मालूम होता था कि वह भी एक खास तबियत का आदमी है। उसकी बेकायदे की दाढ़ी भूरे बाल, झुकी हुई भौहों से उसके बल और बुद्धि का पता लगता था। किंतु उसके मुँह की रंगत उदास और चेहरा पीलापन से बदल गया था। उसके नाक के अगल-बगल के स्थान नीले हो गए थे। इन सब बातों से मुझे मालूम हो गया कि यह किसी भयानक रोग से ग्रसित है।

अजय – “कृपा पूर्वक फर्श बैठ जाइये। मेरा पता तो आपको मिल गया होगा।”

हरिहर – “जी हाँ मुझे आपका पत्र मिला जिसमें लिखा था कि तुम यहाँ आकर मिलो।”

अजय – “मैं तुम्हारे यहाँ से इसलिए नहीं आया कि लोग किसी बात का संदेह करेंगे।”

हरिहर – “तुमने मुझे देखने की चाह की।”

यह सब उसके मुँह से धीरे-धीरे निकल रहे थ। उसकी थकी और कमजोर ऑंखें जासूस अजय सिंह के चेहरे पर फिर रही थी।

इसका विशेष उत्तर अजय सिंह ने मुँह से ना कहकर इशारे ही से दिया कि मैं विश्वनाथ सिंह के खूनी के विषय में सब कुछ जानता हूँ।

बूढ़े हरिहर सिंह का सिर आप ही से आप पृथ्वी की तरफ झुक गया और स्वयं उसके मुंह से यह शब्द निकलने आराम हो गए, “हे परमात्मा! मुझे बचाओ!! मैं निरपरा युवा को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाना चाहता। मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि जिस समय उसको किसी प्रकार की हानि पहुँचती संभव होगी, उसी समय मैं सब सत्य सत्य कह दूंगा।”

अजय – “तुम्हारे मुँह से ऐसे शब्द सुनने से मुझे बड़ी प्रसन्नता प्राप्त हुई।”

हरिहर – “हाय जगदीश्वर! यदि मेरी बेटी ने मेरी गिरफ्तारी का हाल सुना तो उसके प्राण उसी वक्त निकल जायेंगे।”

अजय – “नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा।”

हरिहर – “क्यों?”

अजय – “मैं कोई सरकारी तौर पर तो नहीं आया हूँ। मैं समझता हूँ कि मुझे यहाँ बुलाने वाली तुम्हारी बेटी है, जिसने मेरा सब खर्च सरकार में दाखिल करके मुझे यहाँ बुलवाया है। किंतु महादेव को अवश्य निर्दोषी ठहराना मेरा काम है।”

हरिहर – “मैं कई वर्षों से एक भयानक रूप से ग्रसित हूँ। डॉक्टर मेरी जिंदगी केवल एक महीना और बतलाता है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे मकान के छत ही तले मरने दे।”

जासूस उठकर मेज पर जा बैठा और हाथ में कलम कागज लेकर बोला –

“अब मुझे तुम सत्य सत्य बतला दो। मैं तुम्हारे सवालों को लिखूंगा और इस पर तुम हस्ताक्षर करोगे और विजय सिंह साक्षी के लिए उपस्थित ही है। मैं तुमसे प्रतिज्ञा करता हूँ कि इसको उस समय न्यायालय में पेश करूंगा, जब वह किसी प्रकार से ना छूटेगा।”

हरिहर – “ईश्वर तुम्हें प्रसन्न रखें। अब मैं थोड़े दिन का मेहमान हूँ, परंतु यह नहीं चाहता कि मेरी प्यारी मनोहर लता (उसकी बेटी का नाम था ) को किसी प्रकार का दुख पहुँचे। अब मैं सब बातों को आपके सामने विस्तार पूर्वक सुनाता हूँ। लिखिये।”

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