चैप्टर 7 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल | Chapter 7 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

चैप्टर 7 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल, Chapter 7 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

Chapter 7 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

Chapter 7 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance

‘कोई प्यार के लिए जान दे देता है और कोई प्यार के लिए जान ले लेता है। कैसा होता है ये प्यार? कैसी होती है प्यार की ये कहानी?’ उस ख़ूबसूरत बेजान चेहरे को देखकर यही बात मुकेश के ज़ेहन में तैर रही थी।

‘कितनी ख़ूबसूरत हो तुम? तुम्हारा प्यार भी उतना ही ख़ूबसूरत रहा होगा। मगर वो कहानी अब वक़्त की कब्र में दफ्न हो चुकी है। उस कब्र को खोदने से तबाही आ जायेगी और कहीं न कहीं मैं भी उस तबाही का ज़िम्मेदार होऊंगा। मुझे उसे रोकना होगा, मगर कैसे? कैसे निकलूं यहाँ से?”

मुकेश के खीझकर चट्टान पर मुक्का मारा और ख़ुद दर्द से तड़प उठा। अचानक वहाँ एक आहट सी हुई और वह चट्टान के नीचे बने एक बड़े से गड्ढे में घुस गया। साँस रोककर वह कुछ सुनने की कोशिश करने लगा, मगर उसे सिसकियों के सिवाय कुछ सुनाई नहीं दिया।

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रात के बारह बज रहे थे। कमरे में नाइट बल्ब की हल्की रोशनी बिखरी हुई थी। दर्पण बिस्तर पर करवट लिए लेटी गहरी नींद के आगोश में समाई हुई थी। जी भरकर रो लेने के बाद वह काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी। यही वजह थी कि इतने दिनों बाद वह बेखबर होकर ऐसी गहरी नींद सो पाई थी।

अचानक कमरे का दरवाज़ा खुला और एक साया सा उभरा। उसकी दो आँखें अंधेरे को टटोल रहे थीं, दो पांव बिना आहट के दर्पण की तरफ बढ़ रहे थे और हाथ में काले धागे में बंधा एक ताबीज़ झूल रहा था।

दर्पण ने करवट बदली। अब वो आँखें दर्पण को देख रही थीं, बड़े ही प्यार से।

“आज तुझे जी भरकर देखना चाहती हूँ बेटा! कल तू मुझसे दूर चली जायेगी। फिर तुझे देखने को तरस जाऊंगी।” ये और कोई नहीं, बल्कि शालिनी थी, जो चोरी-छुपे दबे पांव दर्पण के कमरे में दाखिल हुई थी। अपनी इस मजबूरी पर उसका दिल रो रहा था, मगर क्या करती? दूर जाने के पहले ही दर्पण उससे दूर हो चुकी थी। शालिनी उसके क़रीब भी जाना चाहती, तो वो दूर भाग जाती।

“कैसे समझाऊं बेटा तुझे कि तू ही मेरी सब कुछ है, मेरे लिए तुझसे बढ़कर कोई नहीं। इसलिए तुझसे तो एक्स्पेक्ट कर सकती थी ना कि तू मुझे समझे। मगर शायद कई बातें समझने के लिए तू बहुत छोटी है। इसलिए आज तू मुझे नहीं समझ सकती। पर यक़ीन है मुझे कि एक दिन तू ज़रूर समझ जायेगी।“ शालिनी दर्पण का चेहरा निहारते हुए मन ही मन बोली। कुछ देर वह दर्पण को यूं ही निहारती रही, फिर हाथ में पकड़ा ताबीज़ धीरे-से उसके बाजू में बांध दिया।

“बेटा, जब तू पैदा होने वाली थी, तब तुझे बुरी नज़र से बचाने के लिए तेरे पापा ने ये ताबीज़ बनवाया था। अब तक तो तू मेरी नज़रों के सामने थी, इसलिए मैंने तुझे ये ताबीज़ नहीं बांधा। मगर अब जब तू मेरी नज़रों से दूर जा रही है, तो तुझे ये ताबीज़ बांध रही हूँ। ये तुझे बुरी नज़र से बचायेगा।”

ताबीज़ बांधने के बाद शालिनी आँखों में आँसू लिए दर्पण के कमरे से उसी तरह निकल गई, जिस तरह आई थी – दबे पांव…बिना किसी आहट के।

रात गहराती गई। चाँद तारों से अठखेलियाँ खेलती हुई वो सुबह के उजाले में खोने को बढ़ चली। उस वक़्त तकरीबन साढ़े चार बज रहे थे, जब दर्पण हड़बड़ाकर उठ बैठी। वह पसीने से सराबोर थी, उसकी साँसे तेज़ रफ़्तार से भाग रही थीं।

“कैसा था ये सपना? कौन थी वो? इतनी ख़ूबसूरत मगर…”

दर्पण बुदबुदाई। उसकी खुली आँखों के सामने एक बार फिर वो सपना घूम गया और उसने आँखें बंद कर ली।

“नहीं! मुझे नहीं सोचना ऐसे सपने के बारे में। उफ़्फ़ कितना हॉरिबल था….“ दर्पण ने सिर झटका और उसे अपने बाजू पर कुछ कसे होने का अहसास हुआ। उसने टेबल लैंप जलाया और अपने बाजू को गौर से देखने लगी। उसे काले धागे में बंधा एक ताबीज़ नज़र आया।

“ये ज़रूर मम्मा ने बांधा है।“ बुदबुदाते हुए वह उसे खींचकर निकाल फेंकने को हुई, तभी उसकी नज़र साइड टेबल पर लैंप के पास रखे एक कागज़ पर पड़ी। उसने कागज़ उठा लिया। उस पर लिखा था –

‘बेटा! तेरे पैदा होने के पहले तेरे पापा ने तेरे लिए ये ताबीज़ बनवाया था। आज के बाद इसे कभी ख़ुद से अलग मत करना।‘ 

ताबीज़ की ओर बढ़े दर्पण के हाथ ठिठक गये। उसके बाद वह चाहकर भी सो नहीं सकी। वह उठकर बालकनी में चली गई और अंधेरा छंटने तक अपने शहर की खुशबू ख़ुद में समेटती रही।

घड़ी की सुइयाँ घूमती रही और वो वक़्त भी आ गया, जब उसे भोपाल शहर को अलविदा कहना था।

“अलविदा भोपाल!” मन ही मन उसने कहा और उसकी आँखों में आँसू छलक आये। प्लेन ने दिल्ली की तरफ उड़ान भरी और दर्पण ने एक नई दुनिया की तरफ।

दिल्ली में शालिनी और दर्पण ने नाईट स्टे किया। अभिराज का ड्राईवर शंभू शाम को ही स्कार्पियो लेकर दिल्ली पहुँच गया था। अगली सुबह तकरीबन साढ़े चार बजे वे लोग शिमला के लिए निकल गये।

“मैडम! अच्छा हुआ, जो आप लोग आज आये। कल आये होते, तो बड़ी परेशानी होती।“ शिमला के पहाड़ी रास्ते पर स्कार्पियो चलाते हुए शंभू ने कहा।

“क्यों?” शालिनी ने एक नज़र बगल में सोती हुई दर्पण पर डालकर शंभू से पूछा।

“रास्ता बंद था ना मैडम। पेड़ गिर गया था।”

“कैसे? आंधी आई थी क्या?”

“शहर में तो नहीं आई थी मैडम, शायद इधर आई थी।”

“तुम कबसे साहब की गाड़ी चला रहे हो?”

“पिछले पाँच साल से मैडम। पहले पिताजी चलाते थे। उनकी आँखें कमज़ोर हो गईं, तो मैं ही साहब की गाड़ी चलाने लगा।

“अच्छा…अच्छा…. और कितनी देर है शिमला पहुँचने में?”

“एक घंटा और लगेगा मैडम।”

“सीधे स्कूल ही ले चलना।”

“जी मैडम!”

उसके बाद जो ख़ामोशी पसरी, वो शिमला पहुँचते तक क़ायम रही। तकरीबन बारह बजे वे लोग शिमला पहुँचे। स्कार्पियो झटके के साथ रुकी और दर्पण को स्वप्निल नींद से बाहर खींच लाई। शंभू पीछे घूमा और शालिनी से बोला, “लो जी मैडम जी! पहुँच गये।”

“हम्म!” होंठ दबाकर शालिनी ने कहा और अपना पर्स और दर्पण के सर्टिफिकेट्स की फ़ाइल हाथ में थामे स्कार्पियो से उतर गई। दर्पण ने उसे उतरते हुए देखा और अहिस्ता से अपने तरफ़ की खिड़की का शीशा नीचे गिराकर बाहर का नज़ारा लेने लगी।

क्रमश:

कैसा सपना देखा था दर्पण ने? कौन थी वो खूबसूरत लड़की? मुकेश कहां है? क्या होगा दर्पण के साथ शिमला में? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

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Author  – Kripa Dhaani

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कैसा सपना देखा था दर्पण ने? कौन थी वो खूबसूरत लड़की? मुकेश कहां है? क्या होगा दर्पण के साथ शिमला में? जानने के लिए पढ़िए Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Upanyas का अगला भाग।

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