चैप्टर 22 अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 22 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Ka Upanyas

चैप्टर 22 अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास, Chapter 22 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Ka Upanyas, Chapter 22 Apsara Suryakant Tripathi Nirala

Chapter 22 Apsara Suryakant Tripathi Nirala

Chapter 22 Apsara Suryakant Tripathi Nirala

राजकुमार ने अपने कमरे में पहुँचकर देखा, उसके संवाद-पत्र पड़े थे । कुलियों से सामान रखवाया, उन्हें पारिश्रमिक दिया, और फिर उन्हीं संवाद-पत्रों के ढेर में खोजने लगा, उसके पत्र भी आए हैं या नहीं । उसकी सलाह के अनुसार उसके पत्र भी पोस्टमैन झरोखे से डाल जाते थे । कई पत्र थे । अधिकांश मित्रों के । एक उसके घर का था । खोलकर पढ़ने लगा । उसकी माता ने लिखा था, गर्मियों की छुट्टी में तुम घर आनेवाले थे, पर नहीं आए । चित लगा है-आदि-आदि । अभी कॉलेज खुलने में बहुत दिन थे । राजकुमार बैठा सोच रहा था कि एक बार घर जाकर माता के दर्शन कर आवे ।

राजकुमार ने ‘टी’ को पीछा करते हुए देखा था, और देखा था कि उसकी टैक्सी के रुकने के साथ ही ‘टी’ की टैक्सी भी कुछ दूर पीछे रुक गई थी । वह स्वभाव का इतना लापरवाह था कि इसके बाद उस पर क्या विपत्ति बीतेगी, इसकी उसने कल्पना भी नहीं की । जब एकाएक माता का ध्यान आया, तो स्मरण आया कि चन्दन की किताबें यहाँ हैं । और, यदि तलाशी हुई, तो चन्दन पर भी विपत्ति आ सकती है । वह विचारों को छोड़कर किताबें उलट उलटकर देखने लगा ।

दराज से रबड़ और ब्लेड निकालकर जहाँ कहीं उसने चन्दन का नाम लिखा हुआ देखा, घिसकर, काटकर उड़ा दिया । इस पर भी किसी प्रकार की शंका हो, इस विचार से, बीच-बीच ऊपर के सफों पर, अपना नाम लिखता जाता । अधिकांश पुस्तकें चन्दन के नाम की छाप से रिक्त थीं । कारण, उसे नाम लिखने की लत न थी । जहाँ कहीं था भी, वह बहुत अस्पष्ट । और इतनी मैली वे किताबें थीं, जिनमें यह छाप होती कि देखकर यह अनुमान लगा लेना सहज होता था कि यह “परहस्तेषु गताः” की दशा है, और दूसरे लोग आक्रमण से स्वयं बचे रहने के लिए किताबों पर मालिक का नाम लिख देते थे, इस तरह अपने यहाँ छिपाकर पढ़ते थे ।

राजकुमार जब इस कृत्य में लीन था, तब चन्दन कनक के मकान में था । राजकुमार के यहाँ सामान ले आने और ‘टी’ के सम्बन्ध जानने के लिए वह उत्सुक हो रहा था । वह सीधे राजकुमार के पास ही जाता, पर कनक को बहू के भाव न समझ सकने के कारण कष्ट हो रहा होगा, इस शंका से पहले कनक के ही यहाँ गया ।

कनक चन्दन को अपने यहाँ देखकर बड़ी ही प्रसन्न हुई । वाक्पटु चन्दन ने तारा की बातों का गूढ़ अर्थ, जिससे मकान में नहीं रुकी, कुछ सच और कुछ रँगकर खूब समझाया । चन्दन के सत्य का तो कुछ असर कनक पर पड़ा, पर उसकी रँगामेजी से कनक के दिल में दीदी का रंग फीका नहीं पड़ा । कारण, उसने स्वयं अपनी आँखों दीदी की उस समय की अनुपम छवि देखी थी, जिसका पुरअसर खयाल यह किसी तरह भी न छोड़ सकी थी ।

दीदी पुरानी आदतों से मजबूर है, यह सिर्फ उसने सुन लिया, और सभ्यता की खातिर इसके बाद एक ‘हाँ’ कर दिया । चन्दन ने समझा, मैंने खूब समझाया । कनक ने दिल में कहा, तुम कुछ नहीं समझे ।

चन्दन की इच्छा न रहने पर भी कनक ने उसे जलपान कराया, और फिर यह जानकर कि वह राजकुमार के यहाँ जा रहा है, उससे आग्रह किया कि वह और राजकुमार आज शाम चार बजे उसके यहाँ आ जाएँ, और वहीं भोजन करें ।

चन्दन ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया । उतरकर अपनी मोटर पर राजकुमार के यहाँ चला ।

राजकुमार ने नया मकान बदला था, इसका ज्ञान तो चन्दन को था, पर कहाँ है, नहीं जानता था, अतः दो-एक जगह पूछकर, रुक-रुककर जाना पड़ा । राजकुमार अपने किताबी कार्य से निवृत्त हो, चाय मँगवाकर आराम से पी रहा था ।

चन्दन पहले सीधे मकान के मैनेजर के पास गया, पूछा, “10 नं. कमरे का कितना किराया बाकी है ?”

मैनेजर ने आगन्तुक को देखे बिना अपना खाता खोलकर बतलाया, “चालीस रुपए । दो महीने का है । आपको तो मालूम होगा ।”

चन्दन ने बिलकुल सज्ञान की तरह कहा, “हाँ, मालूम था, पर मैंने कहा, एक दफा जाँच कर लूँ । अच्छा, यह लीजिए ।”

चन्दन ने दस-दस रुपए के चार नोट दे दिए ।

“अच्छा, आप बता सकते हैं, आज मेरे बारे में किसी ने यहाँ कोई पूछताछ की थी ?” चन्दन ने गौर से मैनेजर को देखते हुए पूछा ।

“हाँ, एक आदमी आया था । उसने पूछ-ताछ की थी, पर इस तरह अक्सर लोग आया करते हैं, पूछ-पछोरकर चले जाते हैं ।” मैनेजर ने कुछ विरक्ति से कहा ।

“हाँ, कोई गैर-जिम्मेदार आदमी होंगे । कुछ काम नहीं, तो दूसरों की जाँच-पड़ताल करते फिरे ।” व्यंग्य के स्वर में कहकर चन्दन वहाँ से चल दिया ।

मैनेजर को चन्दन का कहना अच्छा न लगा । जब उसने निगाह उठाई, तब तक चन्दन मुँह फेर चुका था । राजकुमार के कमरे में जाकर चन्दन ने देखा, वह अखबार उलट रहा था । पास बैठ गया ।

“तुम्हारा न्यौता है । रखो अखवार ।”

“कहाँ ?”

“तुम्हारी बीबी के यहाँ ।”

“मैं घर जाना चाहता हूँ । अम्मा ने बुलाया है । कॉलेज खुलने तक लौटूंगा ।”

“तो कल चले जाना, न्यौता तो आज है ।”

“गाड़ी तो लाए होंगे ?”

“हाँ ।”

“अरे रमजान !” राजकुमार ने नौकर को बुलाया । नाम उसका रामजियावन था, पर राजकुमार ने छोटा कर लिया था ।

रामजियावन सामान उठाकर मोटर पर रखने लगा ।

“कमरे की कुंजी मुझे दे दो ।” चन्दन ने कहा ।

राजकुमार ने कारण न पूछा, कुंजी दे दी, कहा, “में कल चला जाऊँगा । लौटकर दूसरी कुंजी बनवा लूँगा । न्यौते में तुम तो होंगे ही ?”

“जहाँ भी मुफ्त माल मिलता हो, वहाँ मेरी बेरहमी तुम जानते हो ।”

“तुमने मुफ्त माल के लिए काफी गुंजाइश कर ली । आसामी मालदार है ।’

“दादा, किस्मत तो तुम्हारी है, जिसे रास्ता चलते जान व माल दोनों मिलते हैं । यहाँ तो ईश्वर ने दिखलावे के लिए बड़े घर में पैदा किया है, लेकिन रहने के लिए दूसरी ही बड़ा घर चुना । रामबान कूटते-कूटते ही जान जाएगी अब ! कपाल क्या, मशाल जल रही है ।” चन्दन ने राजकुमार को देखते हुए कहा ।

नौकर ने आकर कहा, “जल्दी जाइए, सामान रख दिया है बाबूजी !”

राजकुमार और चन्दन भवानीपुर चले । राह में चन्दन ने उसे कनक के यहाँ छोड़ जाने के लिए पूछा, पर उसने पहले घर चलकर अम्मा और बड़े भैया को प्रणाम करने की इच्छा प्रकट की । चन्दन गाड़ी ड्राइव कर रहा था । सीधे भवानीपुर चला ।

राजकुमार को देखकर चन्दन की माता और बड़े भाई नन्दन बड़े खुश हुए । बहू ने घर पहुँचते ही पति से राजकुमार के नए ढंग के विवाह की कथा कही, अपनी सरलता से रंग चढ़ा-चढ़ाकर खूब चमका दिया था । नन्दन की वैसी स्थिति में राजकुमार से पूरी सहानुभूति थी । तारा ने अपनी सास से इसकी चर्चा नहीं की । नन्दन ने भी मना कर दिया था । तारा को कुछ अधिक स्वतन्त्रता देने के विचार से नन्दन ने उसके आते ही खोदकर माता के काशी-वास की कथा उठा दी थी । अब तक इसी पर बहस हो रही थी-उन्हें कौन काशी छोड़ने जाएगा, वहाँ कितना मासिक खर्च सम्भव है, एक नौकर और एक ब्राह्मण से काम चल जाएगा या नहीं, आदि-आदि । इसी समय राजकुमार और चन्दन वहाँ पहुँचे।

राजकुमार ने मित्र की माता की चरण-धूलि सिर से लगा ली, बड़े भाई को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । नन्दन ने अंग्रेजी में कहा, “तुम्हारी भाभी से तुम्हारे विचित्र विवाह की बात सुनकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई ।”

राजकुमार ने नजर झुका ली । अंग्रेजी का मर्म शायद काशी-वास की कथा हो, जो अभी चल रही थी, यह समझकर चन्दन की माँ ने कहा, “देखो न भैया, न जाने कब जीव निकल जाए, करारे का रुख, कौन ठिकाना, चाहे जब महरायके बैठ जाए, यही से अब जितनी जल्दी बाबा विश्वनाथजी की । पैरपोसी मा हाजिर ह्वै सकी, वतने अच्छा है ।”

“हाँ अम्मा, विचार तो बड़ा अच्छा है ।” राजकुमार ने जरा स्वर ऊँचा करके कहा ।

“लै जाए की फुर्सत नाहीं ना कोहू का ! यह छिबुलका पैदा होय के साथै आफत बरपा करै लाग ।” चन्दन की तरफ देखकर माता ने कहा, “यहिके साथ को जाए !”

“अम्मा, मैं कल घर जाऊँगा, अम्मा ने बुलाया है । आप चलें, तो आपको काशी छोड़ दूँ ।” राजकुमार ने कहा ।

वृद्धा गद्गद् हो गई । राजकुमार को आशीर्वाद दिया । नन्दन से कल ही सब इन्तजाम कर देने के लिए कहा ।

“तो तुम लौटोगे कब ?” तारा ने राजकुमार की ओर व्यग्रता से देखते हुए पूछा ।

“चार-पाँच रोज में लौट आऊँगा ।”

भोजन तैयार था । तारा ने राजकुमार और चन्दन से नहाने के लिए कहा । महरी दोनों की धोतियाँ गुसलखाने में रख आई । राजकुमार और चन्दन नहाने चले गए ।

भोजन कर दोनों मित्र आराम कर रहे थे तारा आई । राजकुमार से कहा, “रज्जू बाबू ! अम्मा को मिलने के लिए पड़ोसियों के यहाँ भेज दूँगी, अगर कल तुम उन्हें लिए जाते हो । आज शाम को उसे यहाँ ले आओ ।”

“अच्छी बात है ।” राजकुमार ने शान्ति से कहा । चन्दन ने उसके पेट में उँगली कोंची । राजकुमार हँस पड़ा ।

“बनते क्यों हो ?” चन्दन ने कहा, “मुझे बड़ा गुस्सा लगता है, जब मियाँ बनकर लोग गाल फुलाने लगते हैं । वाहियात ! दूसरों को जताते हैं कि मेरे बीवी है । बीवी कहीं पढ़ी-लिखी हुई, तब तो उन्हें बीवी के बोलते हुए विज्ञापन समझो; मियाँ लोग दुनिया के सबसे बड़े जोकर हैं ।”

तारा खड़ी हँस रही थी, “आपके भाईसाहब ?”

“वह सब साहब पर एक ही ट्रेडमार्क है ।”

“अच्छा-अच्छा, अब आपकी भी जल्द खबर ली जाएगी ।” तारा ने हँसते हुए कहा ।

“मुझसे कोई पूछता है, तुम ब्‍याहे हो, या गैर-ब्‍याहे, तो मैं अपने को ब्‍याहा हुआ बतलाता हूँ ।” चन्दन ने राजकुमार को फाँसकर अकड़ते हुए कहा, “बदन बहुत टूट रहा है ।”

“सोओगे, तो ठीक हो जाएगा । ब्याह हुआ किस तरह बतलाते हो ?” राजकुमार ने पूछा ।

“किसी ने कहा है, मेरी शादी कानून से हुई है; किसी ने कहा है, मैं कविता-कुमारी का भर्तार हूँ; किसी ने कहा है, मेरी प्यारी बीबी चिकित्सा है; मैं कहता हूँ, मेरी हृदयेश्वरी, इस जीवन की एकमात्र संगिनी, इस चन्दनसिंह की सिंहिनी सरकार है ।”

तारा मुस्कुराकर रह गई । राजकुमार चुपचाप सोचने लगा ।

महरी पान दे गई । तारा ने सबको पान दिया । पाँच बजे ले आने के लिए एक बार फिर याद दिला भीतर चली गई । दोनों पड़े रहे ।

Prev| Next | All Chapters 

अनुराधा शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का उपन्यास

बदनाम गुलशन नंदा का उपन्यास 

नीले परिंदे इब्ने सफ़ी का उपन्यास

कुसुम कुमारी देवकीनन्दन खत्री का उपन्यास

Leave a Comment