चैप्टर 15 अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 15 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Ka Upanyas

चैप्टर 15 अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास, Chapter 15 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Ka Upanyas, Chapter 15 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

Chapter 15 Apsara Suryakant Tripathi Nirala

Chapter 15 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

राजकुमार को नए कंठों के संगीत से कुछ देर तक आनन्द मिलता रहा, पर कुँवर साहब के चले जाने के बाद महफिल कुछ बेसुरी-सी लगने लगी, मानो सबके प्राणों से आनन्द की तरंग लुप्त हो गई हो ! जैसे मनोरंजन की जगह तमाम महफिल कार्य-क्षेत्र हो रही हो !

गायिका कनक के संगीत का उस पर कुछ प्रभाव पड़ा था, विदुषी कुमारी कनक उसकी नजरों में गिर चुकी थी । अज्ञात भाव से इसके लिए उसे अन्दर-ही-अन्दर बड़ी पीड़ा मालूम हो रही थी । वह कुछ देर तक तो बैठा रहा, पर जब कनक भीतर चली गई, और थोड़ी देर में कुँवर साहब भी उठ गए, और कनक बड़ी देर तक न आई, फिर जब आई, तो बाहर ही से माँ को बुलाकर लौट गई, यह सब देखकर वह स्टेज, गाना, कनक और अपने प्रयत्न की तरफ से वीतराग हो चला । फिर उसके लिए वहाँ एक-एक क्षण पहाड़ की तरह बोझीला हो उठा ।

राजकुमार उठकर खड़ा हो गया, और बाहर निकलकर धीरे-धीरे डेरे की तरफ चला । बहूजी के मायके की याद से शरीर से जैसे एक भूत उत्तर गया हो । नशे के उतार की शिथिलता थी । धीरे-धीरे चला जा रहा था । कनक की तरफ से जो दिल को चोट लगी थी, रह-रहकर नफरत से उसे और बढ़ाता, तरह-तरह की बातें सोचता हुआ चला जा रहा था । ज्यादा झुकाव कलकत्ते की तरफ था-सोच रहा था, इसी गाड़ी से कलकत्ते चला जाएगा ।

जब गढ़ के बाहर निकलकर रास्ता चलने लगा, तो उसे मालूम हुआ, कुछ आदमी और उसके साथ आ रहे हैं । सोचा, ये लोग भी अपने-अपने घर जा रहे होंगे । धीरे-धीरे चलने लगा । वे लोग निकट आ गए । चार आदमी थे । राजकुमार ने अच्छी तरह नजर गड़ाकर देखा, सब साधारण सिपाही दर्जे के आदमी थे । कुछ न बोला, चलता रहा ।

हटिया से निकलकर बाहर सड़क पर आया । वे लोग भी आए । सामने दूर तक रास्ता-ही-रास्ता था, दोनों बगल खेत । राजकुमार ने उन लोगों की तरफ फिरकर पूछा, “तुम लोग कहाँ जाओगे ?”

“कहीं नहीं, जहाँ-जहाँ आप जाएँगे ।”

‘मेरे साथ चलने के क्या माने ?”

“तारा बहन ने हमें आपकी खबरदारी के लिए भेजा था । साथ चन्दन बाबू भी थे ।”

“चन्दन ?”

“हाँ, वह आज सुबह की गाड़ी से आ गए हैं ।”

राजकुमार की आँखों पर दूसरा पर्दा उठा । संसार अस्तित्वयुक्त, सुखद और सुन्दर मालूम देने लगा । आनन्द के उच्छ्वसित कंठ से पूछा, “कहीं हैं वह ?”

“अब आपको घर चलकर मालूम हो जाएगा ।”

ये चारों उसी गाँव के आत्माभिमानी अशिक्षित वीर आजकल की भाषा में गुण्डे थे-प्राचीन रूढ़ियों के अनुसार चलनेवाले । किसी ने रूढ़ि के खिलाफ किसी तरफ कदम बढ़ाया कि उसका सिर काट लेनेवाले । गाँव की बहुओं और बेटियों की इज्जत तथा सम्मान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्त्र स्वाहा कर देनेवाले । अंग्रेजों और मुसलमानों पर विजातीय घृणा की आग भड़कानेवाले मलखान और ऊदल के अनुयायी । महावीरजी के अनन्य भक्त । लुप्त-गौरव क्षत्रिय, जमींदार घराने के सुबह के नक्षत्र, जो अपने स्वल्प प्रकाश में टिमटिमा रहे थे । रिश्ते में ये तारा के भाई लगते थे ।

राजकुमार के चले जाने पर तारा को इनकी याद आई, तो जाकर नम्र शब्दों में कहा, “भैया ! आप लोग चन्दन के साथ जाओ, और राजकुमार को देखे रहना, कहीं टंटा न हो जाए ।” तदनुसार ये लोग चन्दन के साथ चले गए थे । चन्दन ने जैसा बताया, वैसा ही करते रहे । खानदान की लड़की तारा अच्छे घराने में गई है, वहाँ वाले वह ऊँचे दर्जे के पढ़े-लिखे आदमी हैं, इसका इन लोगों को गर्व था ।

धीरे-धीरे गाँव नजदीक आ गया । राजकुमार ने तारा का मतलब दूर तक समझकर फिर ज्यादा बातचीत इस प्रसंग में न की । चन्दन के लिए दिल में तरह-तरह की जिज्ञासा उठ रही थी, ‘वह क्यों नहीं आया, तारा ने सब बातें उससे जरूर कह दी होंगी, वह उसी चक्कर में तो नहीं घूम रहा ? पर ये लोग क्यों नहीं बतलाते ?”

राजकुमार इसी अधैर्य में जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा रहा था । मकान आ गया । गाँव के आदमियों ने दरवाजे पर “बिट्टो बिट्टो” की असंकुचित, निर्भय आवाज लगाई । तारा ने दरवाजा खोला । राजकुमार को खड़ा देख स्नेह-स्वर से कहा, “आ गए तुम ?”

“सुनो ।” एक ने गम्भीर कंठ से तारा को एक तरफ अलग बुलाया । तारा निःसंकोच बढ़ गई । उसने धीरे-धीरे कुछ कहा । बात समाप्त कर चारों ने तारा के पैर छुए ।

चारों एक तरफ चले गए । चिन्तायुक्त तारा राजकुमार को साथ लेकर चली गई, और दरवाजा बन्द कर लिया । तारा के कमरे में जाते ही राजकुमार ने पूछा, “चन्दन कहाँ है बहूजी ? इतनी जल्दी आ गया ?”

“पुलिस के पास कोई मजबूत कागजात उनके बागीपन के सुबूत में न थे, सिर्फ सन्देह पर गिरफ्तार किए गए थे । पुलिस के साथ खासतौर से पैरवी करने पर जमानत पर छोड़ दिए गए हैं । इस पैरवी के लिए बड़े भाई से नाराज भी हैं । मुझे कलकत्ते ले जाने के लिए आए थे । पर यहाँ तुम्हारा हाल मुझसे सुना, तो बड़े खुश हुए, और तुमसे मिलने चले गए । पर रज्जू बाबू. !” कहते-कहते युवती की आँखें भर आईं ।

राजकुमार चौंक उठा । उसे विपत्ति की शंका हुई । चकित हो, युवती के दोनों हाथ पकड़कर आग्रह और उत्सुकता से पूछा, “पर क्या ? बताओ, मुझे यह शंका हो रही है ।’

“तुम्हारा भी तो वहीं खून है ।”

राजकुमार जिज्ञासा-भरी दृष्टि से उसका आशय पूछ रहा था । युवती ने अधिक बातचीत करना अनावश्यक समझा । राजकुमार उठकर बाहर चलने लगा, पर युवती ने पकड़कर डाँट दिया, “थोड़ी देर में सब मालूम हो जाएगा, घर के आदमियों के आने पर । खबरदार, अगर बाहर कदम बढ़ाया ।”

वीर युवक तारा के पलँग पर तकिए में सिर गड़ाए पड़ा रहा । तारा उसके हाथ-मुँह धोने और जलपान करने का इन्तजाम करने लगी । धैर्य का बाँध तोड़कर कभी-कभी दृष्टि से अपार चिन्ता झलक पड़ती थी ।

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