लेडीज सोसाइटीज चार्ल्स डिकेंस की कहानी | The Ladies Societies Charles Dickens Story In Hindi,

लेडीज सोसाइटीज चार्ल्स डिकेंस की कहानी, The Ladies Societies Charles Dickens Story In Hindi, Ladies Societies Charles Dickens Ki Kahani 

The Ladies Societies Charles Dickens Story In Hindi

हमारे कस्बे में लेडीज की कई धर्मार्थ सोसाइटीज हैं। जाड़े में जब ठंडक ज्यादा हो जाती है और लोगों को जल्दी-जल्दी जुकाम हो जाता है, तब लेडीज सूप वितरण सोसाइटी, लेडीज कोल वितरण सोसाइटी, लेडीज कंबल वितरण सोसाइटी आदि शुरू हो जाती हैं। गरमी के समय में, जब स्टोनफल बहुतायत में होने लगते हैं और तमाम लोग पेट दर्द से पीडित होने लगते हैं, तब हम देखते थे कि कई लेडीज डिस्पेंसरी, लेडीज बीमारों का विजिटेशन (जाकर) सोसाइटी आदि करने जाती हैं और सारे साल भर चलने वाली सोसाइटीज भी हैं, जैसे चिल्डेंस एग्जामिनेशन सोसाइटी (बच्चों की परीक्षाओं में मदद के लिए), लेडीज बाइबल और प्रार्थना-पुस्तक वितरण सोसाइटी और बच्चों के कपड़े वितरण करनेवाली मासिक सोसाइटी। बाद वाली दोनों सोसाइटी वाकई में बहुत ज्यादा अहम हैं। हम नहीं जानते कि वे बच्चों को, समाज को कितना लाभ पहुँचाती हैं; पर यह बात जरूर है कि इनमें और सोसाइटीज की तुलना में ज्यादा अफरा-तफरी होती है।

हमें यहाँ पर जरा अफसोस से यह कहना पड़ रहा है कि बाइबल और प्रार्थना-पुस्तक सोसाइटी इतनी लोकप्रिय नहीं थी, जितनी कि बच्चों के बिस्तर की चादर एवं कपड़े वितरण करने वाली सोसाइटी। तथापि पिछले एक-दो सालों में बाइबल और प्रार्थना-पुस्तक सोसाइटी को थोड़ी सी बढ़त इसलिए मिली, क्योंकि बच्चों की परीक्षा वाली सोसाइटी का काम अचानक धीमा पड़ गया था और वे सब अविवाहित महिलाएँ तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की ओर ध्यान देती थीं और वे सब बच्चे सभी लोगों के ध्यान का केंद्र बन गए थे। तीनों मिस ब्राउन बहनें जो कमजोर बच्चों को पढ़ाती थीं, उनको इम्तहान के लिए तैयार करती थीं और बच्चों को बार-बार सबक, मश्क और उनकी परीक्षा लेती थीं। उनके बच्चे व बच्चियाँ बीमार पड़ गए और कमजोर हो गए थे। वे तीनों मिस ब्राउन तो बारी-बारी करके बच्चों को पढ़ाती रहीं, पर वे बच्चे-बच्चियाँ, जो उनके विद्यार्थी थे, उनमें थकान व कमजोरी के लक्षण प्रकट होने लगे थे तथा उन पर अब और दबाव नहीं डाला जा सकता था। इस सबके फलस्वरूप गाँव वाले उनका हँसी-मजाक उड़ाने लगे और कुछ अन्य लोगों ने तो उनकी गतिविधियों पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से अपने को अलग रखा।

पर बहुत समय नहीं बीता, जब क्यूरेट (पादरी का सहायक) ने चैरिटी (खैरात) स्कूल के लिए एक चैरिटी या दानशीलता पर एक जोरदार भाषण दिया और उस भाषण में कुछ माननीय व्यक्तियों के अथक प्रयासों को खूब सराहा और उनकी प्रशंसा की। तीनों मिस ब्राउन जहाँ चर्च में बैठी थीं, वहाँ से रोने-सिसकने की आवाज आई। उस विभाग की संरक्षिका जल्दी से जाकर एक गिलास पानी लेकर आई। फिर से किसी के कराहने की आवाज आई, तब कुछ महिला सेविकाओं द्वारा उन्हें चर्च से बाहर ले जाया गया और फिर वे 5 मिनट बाद वापस आई। उनके हाथों में सफेद रूमाल थे, जिनसे वे अपनी आँखें पोंछ रही थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वे चर्च के बाहर बने चर्च यार्ड में किसी मृतक की शोक सभा से आ रही थीं। इससे यह साफ हो गया कि यह सब किस संदर्भ में कहा जा रहा था और किन व्यक्तियों की ओर इशारा था।

उन गरीब या अनाथ बच्चों को सहायता देने की जरूरत सभी की समझ में आ गई थी। तीनों मिस ब्राउन को समझाया गया। बच्चों के चैरिटी स्कूल को कक्षाओं में विभाजित कर दिया गया तथा हर एक कक्षा में दो महिलाओं को उनकी देखभाल के लिए नियुक्त किया गया।

थोड़ा सा ज्ञान खतरनाक होता है, पर थोड़ी सी पैट्रनेज और ज्यादा खतरनाक हो सकती है। तीनों मिस ब्राउन ने बूढ़ी-बूढ़ी मेड्स को बच्चों की निगरानी के लिए नियुक्त कर दिया और बहुत ही सावधानी से युवतियों को इस काम से बाहर रखा। कुँवारी चाचियों को विजय हो गई और लोगों में तीनों मिस ब्राउन सिस्टर्स के विरोध में रोष की भावना पैदा हो गई, जो कभी भी हिंसक रूप धारण कर सकती थी। पर एक संयोगवश इस तरह की कोई दुर्घटना टल गई। हुआ यूँ कि मिसेज जॉनसन पार्कर, जो सात अच्छी अविवाहित लड़कियों की माँ थीं, उन्होंने कई अन्य माताओं से, जो स्वयं अविवाहित लड़कियों की माताएँ थीं, उन्होंने उनसे बताया कि प्रति रविवार को चर्च में पाँच आदमी, छह औरतें और बहुत सारे बच्चे चर्च के अंदर मुफ्तवाली सीटों पर बिना बाइबल या प्रार्थना-पुस्तक के बैठे रहते थे। क्या ऐसी बात किसी सभ्य समाज में बर्दाश्त की जा सकती थी? क्या ऐसी चीज इसाइयों की जमीन पर सही जा सकती थी? कभी नहीं। उसी वक्त एक लेडीज सोसाइटी बाइबल और प्रार्थना किताब के वितरण के लिए बनाई गई।

मिसेज जॉनसन पार्कर उस सोसाइटी की प्रेसीडेंट बन गई और उनकी बेटियाँ (मिस जॉनसन्स) उसकी सेक्रेटरी, ट्रेजरर (कोषाध्यक्ष) और ऑडिटर बन गई। तत्पश्चात् चंदा इकट्ठा किया गया, बाइबल और प्रेयर बुक खरीदी गई तथा उसे चर्च में फ्री सीट पर बैठने वालों को वितरित कर दिया गया। परंतु अगले रविवार को पादरी ने जब पहला अध्याय पढ़ना शुरू किया, तो किताबों के गिरने की और पत्तियों की सरसराहट की इतनी आवाज हो रही थी कि उस दिन पादरी ‘सर्विस’ में क्या बोल रहे थे, उसे सुनना लगभग असंभव हो गया। एक शब्द भी वहाँ मौजूद लोगों की समझ में नहीं आया।

तीनों जॉनसन बहनों ने आने वाले खतरों को भाँप लिया था और उसे तानाकशी तथा मजाक उड़ाकर उसे टालने या बचाने का प्रयास किया। ब्राउन बहनों का कहना था कि न तो वृद्ध पुरुष और न ही वृद्ध महिलाएँ किताब पढ़ पाते थे। पर मिसेज पार्कर ने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता है। वे धीरे-धीरे पढ़ना सीख जाएँगे। मिस ब्राउन ने कहा कि वे बच्चे भी नहीं पढ़ सकते थे।

“कोई बात नहीं।” मिसेज पार्कर ने उलटा जवाब दिया, “उनको पढ़ना-लिखना सिखाया जा सकता था।” एक संतुलन पार्टी का आयोजन किया गया। ब्राउन बहनों ने खुलेआम इसकी परीक्षा-जो कि लोकप्रिय तरीका था, बच्चों की परीक्षा सोसाइटी का। मिस पार्कर ने जनता में खुलेआम बाइबल और प्रार्थना पुस्तक बँटवाई। एक ‘पर’ भी किसी के पक्ष में फैसला इधर-उधर कर सकता था। और एक ‘पंख’ ने ऐसा ही किया। एक मिशनरी वेस्टइंडीज से लौटकर आया था और वह एक धनी विधवा से अपने विवाह के बाद उसे एक डिसेंटर्स मिशनरी सोसाइटी के सामने पेश होना था। मिसेज जॉनसन पार्कर ने भी उन्हें अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया। उनका सुझाव था कि क्यों न दोनों सोसाइटीज की एक संयुक्त मीटिंग हो। यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। सारी जनता में घोषणा कर दी गई और मीटिंग के समय मीटिंग रूम आदमी-औरतों से खचाखच भर गया। मिशनरी मंच पर आया और उसका जोर-शोर से स्वागत हुआ। उसने एक संवाद, जो उसने झाडियों के पीछे से दो नीग्रोज के बीच वितरण सोसाइटी के बारे में सुना था, उसे दुहराया। उसका पुरजोर अनुमोदन हुआ। उसने दोनों नीग्रोज की बातचीत को उनकी टूटी-फूटी अंग्रेजी में नकल करके सुनाया। पूरी छत शोर और ठहाकों से गूंज उठी। उस दिन से पुस्तक वितरण सोसाइटी की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ गई और चिल्ड्रेन एग्जामिनेशन सोसाइटी इसका विरोध नहीं कर पाई ।

अब बात बच्चों के बिस्तर की चादरों के लिए बनी सोसाइटी की थी, जो बच्चों के लिए चादरें आदि मासिक उधार पर देती थी। इस सोसाइटी की लोकप्रियता अन्य दो सोसाइटी के बारे में जनता की राय पर आश्रित नहीं थी। चाहे जो कुछ भी हो, उन विषयों की कमी नहीं थी, जिन पर आप अपनी दानशीलता का उपयोग न कर सकें। हमारे गाँव/कस्बे की आबादी काफी घनी थी और वहाँ शहरों की अपेक्षा ज्यादा बच्चे पैदा होते थे। अतएव आप बच्चों के लिए कुछ भी देकर अपनी दानशीलता का प्रदर्शन कर सकते थे। इसके फलस्वरूप हमारी मासिक बच्चों के कपड़ों/चादरों वाली सोसाइटी फलती-फूलती रही। सोसाइटी हर माह चाय मीटिंग करती थी, जिसमें बीते हुए माह का लेखा-जोखा होता था तथा उसकी गतिविधियों की समीक्षा होती थी और जो बक्से लोन (उधार) पर नहीं दिए जा सकते थे, उनको अच्छी तरह से देख-दाखकर फिर रख दिया जाता था। मीटिंग में अगले माह के लिए सेक्रेटरी का चुनाव भी होता था।

हम लोग इस मीटिंग में कभी भी हिस्सा नहीं लेते थे, जिससे यह साफ जाहिर था कि आदमी लोग इस मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए वांछित नहीं थे और उन्हें सावधानीपूर्वक इससे बाहर रखा जाता था। परंतु मि. बंग को इस मीटिंग में एक-दो बार बुलाया गया था और उनके अनुसार यह मीटिंग बहुत नियमित रूप से अच्छी तरह संचालित होती थी। किसी भी विषय पर एक समय में चार सदस्य से ज्यादा नहीं बोल सकते थे। जो नियमित कमेटी थी, उसमें केवल विवाहित महिलाएँ थीं, पर कई युवा महिलाएं, जो 18 से 25 वर्ष की उम्र की थीं, उन्हें मानद सदस्य के रूप में सोसाइटी में सदस्यता मिली हुई थी। विशेषकर इसलिए भी कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए जरूरी बक्से बनाने में मददगार थीं; परंतु वे ऐसी महिलाओं का, जो सौर में थीं, जिन्हें हाल ही में बच्चा हुआ था, उन्हें समय-समय पर जाकर मिल आती थीं। यह इसलिए भी जरूरी था कि उन्हें विवाहित जीवन के बाद मातृत्व जीवन का भी कुछ ज्ञान व अनुभव हो जाए और जो चतुर माँएँ थीं, वे लड़की के इस गुण को विवाह के प्रस्ताव के समय अच्छे से बखानती थीं।

यह सोसाइटी मासिक बक्से लोन देने के अलावा कभी-कभी जच्चा को बीफ टी, गरम बीयर, मसाले, चीनी तथा अंडे आदि भी सप्लाई करती थी। इन बक्सों पर, जो नीले रंग के होते थे, सोसाइटी का नाम सफेद अक्षरों में लिखा रहता था।

इन चीजों को ‘कैंडल्स’ कहकर लाभार्थियों को बाँटा जाता था और यह भी इन चीजों के वितरण के लिए ऑनरेरी मेंबर्स की सेवाएँ ली जाती थीं और ऐसे मौकों पर जब मरीजों को वे लोग देखने जाती थीं तो कैंडल और बीफ टी की टेस्टिंग (स्वाद चखाना) होती थी और छोटे-छोटे सासपैन में उन्हें गैस चूल्हे पर रखकर गरम किया जाता था। बच्चों को नहलाया-धुलाया जाता था, उनके कपड़े बदले जाते थे, उनको दूध पिलाया जाता था तथा उनके नन्हे-नन्हे पैरों को हाथ के सामने रखकर सेंका जाता था। इतना आनंदमय कन्फ्यूजन होता था, बातचीत होती थी, कुकिंग होती थी, हबड़-तबड़ होती थी कि उसका कुछ कहना नहीं। सब लोग मिलकर इस मौके का खूब आनंद उठाते थे।

इन दोनों संस्थाओं की प्रतिस्पर्धा में और अपने एक अंतिम प्रयास में चिल्ड्रेन परीक्षा सोसाइटी ने यह फैसला लिया कि वह अपने सब विद्यार्थियों की एक पब्लिक परीक्षा लेगी। इस उद्देश्य से उन्होंने नेशनल सेमिनरी का विशाल स्कूल कमरा गाँव/चर्च की अनुमति से लिया। गाँव के मुख्य पादरियों और अन्य दो संस्थाओं के सदस्यों को भी बुलाया, जिन पर उन्हें अपने प्रयासों का असर डालना था। सेमिनरी हॉल के फर्श की एक दिन पहले खूब अच्छी तरह से धुलाई-सफाई की गई। आगंतुकों के बैठने के लिए इंतजाम किया गया। बच्चों द्वारा बड़े-बड़े लिखावट के नमूने के चार्ट और गणित के सवालों के चार्ट लगाए गए। चार्टी/ पोस्टरों में लिखाई में इतना सुधार किया गया था कि वे बच्चे, जिन्होंने उसे लिखा था, वे स्वयं भी पहचान नहीं पाए कि यह उनकी लिखावट है और वे आश्चर्यचकित रह गए। उन विद्यार्थियों को कठिन सवालों को तब तक बार-बार अभ्यास कराया गया, जब तक कि वे उनको जबानी याद नहीं हो गए तथा सारी अन्य तैयारियाँ भी बड़ी मेहनत और सावधानी से कराई गई। वह सुबह अंततोगत्वा आ ही गई। बच्चों को अच्छी तरह नहलाया-धुलाया गया, उनको अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए गए। उनके चेहरे चमक रहे थे। लड़कियों को सफेद रंग के स्कार्फ, जो उनके गले और कंधों को ढक रहे थे, पहनाए गए थे और सिर पर सफेद टोपी थी, जो बैगनी रंग के रिबन से सिर के पीछे बाँधी गई थी। लड़कों की कमीजों के कॉलर कुछ चौंका देनेवाले साइज के थे।

दरवाजे खोल दिए गए और तीनों मिस ब्राउन बहनें वहाँ पर सफेद रंग के मसलिन की ड्रेस पहने खड़ी थीं। उन्होंने भी सफेद रंग की वैसी ही टोपी पहनी थी, जैसी कि लड़कियों ने। सबसे बड़ा लड़का सबका अभिवादन करते हुए वहाँ आया और उसने स्वागत भाषण सबके सम्मान में पढ़ा, जो मिस्टर हेनरी ब्राउन द्वारा लिखा गया था। सब लोगों ने खूब जोरों से एक साथ तालियाँ बजाई और सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मिसेज जॉनसन पार्कर और उनके साथी भौंचक्के रह गए। बच्चों की परीक्षा बहुत सफलतापूर्वक संपन्न हुई। बच्चों को परीक्षा सोसाइटी को उस समय (क्षणिक) विजय प्राप्त हुई और मिसेज जॉनसन पार्कर एवं साथी थोड़ा पिछड़ गए।

उस रात को मिसेज जॉनसन पार्कर के यहाँ बच्चों के कपड़े वितरण करने वाली सोसाइटी की एक गुप्त मीटिंग हुई, जिसमें इस विषय पर चर्चा हुई कि किस प्रकार से वितरण सोसाइटी अपनी पुरानी जगह पर वापस आकर और फिर से मान-सम्मान प्राप्त कर सके। क्या करना चाहिए? क्या एक और मीटिंग करनी चाहिए? आह! उसमें शिरकत लेने कौन आएगा? वह मिशनरी तो दुबारा आने से रहा। पादरी को फिर से किसी प्रकार से अचंभित कर देना चाहिए। पर उसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए? बाद में काफी वाद-विवाद के बाद किसी ने एक वृद्ध महिला को कहते हुए सुना, “एवसेटर हाल।” सबके मन में एक बिजली-सी कौंध गई। सबने मिलकर यह फैसला किया कि कुछ महिलाओं का एक दल उसी विख्यात वक्ता (भाषण देनेवाला) के पास जाए और उसे एक अच्छा सा भाषण देने के लिए मनाया जाए। तभी वह महिला दल इस गाँव के बाहर के गाँव में जाए और वहाँ से दो-तीन अन्य वयोवृद्ध महिलाओं को भी उस सभा में बुलाया जाए, जहाँ वह व्यक्ति भाषण देगा। उनके दल का अभियान सफल रहा और मीटिंग हुई। भाषणकर्ता, जो एक आयरिश था, आया और उसने भाषण दिया–विदेशी तटों के बारे में, हरे-भरे द्वीप, ईसाइयों की उदारता और दया-भाव पर, विशाल अटलांटिक सागर और उसकी गहराइयों एवं विस्तार पर, खून-खराबा और जातियों के विनाश पर, दिल में दया पर, हाथों में छुरियाँ-आल्हार/वोदिका/ घर और घर के देवी-देवताओं पर। उसने अपनी नाक छिड़की और नम हो आई आँखें पोंछी और लैटिन में कुछ कोट किया। इस सबका बहुत जोरदार असर पड़ा तथा लैटिन के कोटेशन का वो कहना ही क्या! किसी को उसका माने तो समझ नहीं आया, पर सबने यही सोचा कि वह बहुत ही भाव-विह्वल करनेवाली चीज होगी; क्योंकि वह खुद भी बहुत भावुक हो गया था।

वितरण सोसाइटी की लोकप्रियता हमारे गाँव में बहुत तेजी से बढ़ गई तथा शिशु परीक्षा सोसाइटी का धीरेधीरे पतन शुरू हो गया।

**समाप्त**

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