एक सितारा सपने में चार्ल्स डिकेंस की कहानी | A Child’s Dream of a Star Charles Dickens In Hindi

एक सितारा सपने में चार्ल्स डिकेंस की कहानी, A Child’s Dream of a Star Charles Dickens In Hindi, Ek Sitara Sapne Mein Charles Dickens Ki Kahani 

Child’s Dream of a Star Charles Dickens Story In Hindi

एक बच्चा यों ही घूमते-फिरते जाने कितनी बातें सोचता रहता। उसकी एक छोटी सी बहन भी थी। बहन और दोस्त भी। दोनों भाई-बहन दिनभर अचरज से भरे रहते। उन्हें फूलों की सुंदरता पर आश्चर्य होता। उन्हें आसमान की ऊँचाई और नीलेपन पर आश्चर्य होता। उन्हें चमकते पानी की गहराई पर आश्चर्य होता। उन्हें ईश्वर की अच्छाई और शक्ति पर आश्चर्य होता और उसकी रची इस प्यारी दुनिया पर आश्चर्य होता।

वे अक्सर एक-दूसरे से कहते कि अगर दुनिया के सारे बच्चे मर जाएँ तो क्या इन सबको दुःख होगा? उन्हें यकीन था कि वे जरूर दुःखी होंगे। उन्हें लगता कि कलियाँ फूलों की बेटियाँ हैं और पहाड़ों से झरती छोटी-छोटी धाराएँ पानी के बच्चे…और रातभर आसमान में लुका-छिपी खेलते हुए ये छोटे-छोटे चमकीले कण मानो सितारों के नौनिहाल हैं। उन्हें लगता कि वे अपने संगी-साथियों यानी इंसान के बच्चों के लिए दुःखी होते होंगे।

आसमान में एक चमकीला सितारा था, जो हर रोज सब सितारों से पहले आ जाता, चर्च के पासवाली कब्रों के करीब। यह सितारा खूब बड़ा और सुंदर था। हर रात वे उसे देखते। खिड़की के पास हाथों में हाथ डाले। जो भी उसे पहले देख लेता, वह चीख पड़ता, ‘मैंने सितारा देख लिया…’ अक्सर वे दोनों एक साथ चिल्लाते, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम हो गया था कि यह कब और कहाँ निकलता है। जैसे वे इसके दोस्त बन गए थे। रात को बिस्तर पर जाने से पहले भी एक बार उसे जरूर देख आते, जैसे उसे गुडनाइट कह रहे हों। जब बिस्तर पर जाने के लिए मुड़ते तो कहते, ‘भगवानजी, आप इस सितारे का खयाल रखना।

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एक बार उस बच्चे की बहन कहीं से गिर पड़ी। गिरने के कारण वह नन्ही सी जान इतनी ज्यादा कमजोर हो गई कि रात को खिड़की पर खड़ा होना भी उसके लिए मुश्किल हो गया। उसका भाई उदास सा बाहर देखता रहता। जब उसे तारा दिखाई दे जाता, तब वह अपनी बहन के पास आता और कहता, ‘मैंने तारा देख लिया।’ उस पीले मुरझाए चेहरे पर एक मुस्कान खिल जाती और वह कहती, ‘भगवानजी, मेरे भइया और उस तारे का हमेशा खयाल रखना।’

जल्द ही वह समय आ गया, जब बच्चा अकेला ही उस तारे को देखने लगा, क्योंकि उसका वह मासूम साथी चेहरा अब उस बिस्तर पर भी नहीं था। हाँ, कब्रों के बीच एक छोटी सी कब्र बन चुकी थी। जब सितारा अपनी किरणें बिखेरता हुआ आसमान में आता, तो बच्चे की आँखें आँसुओं से भर जातीं।

अब ये किरणें इतनी चमकीली होने लगी थीं कि आसमान से धरती तक एक चमकते हुए रास्ते जैसी लगतीं। एक दिन जब बच्चा अकेला बिस्तर पर गया, उसने उस सितारे का सपना देखा। उसने एक ट्रेन को फरिश्तों के चमकते रास्ते पर ऊपर की तरफ जाते देखा। देखते-ही-देखते सितारे ने खुलकर बड़ी सी रोशनी का रूप ले लिया। उसने देखा कि वहाँ और भी बहुत से फरिश्ते थे, जो लोगों का स्वागत कर रहे॒थे।

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ये सारे फरिश्ते लोगों को चमकती हुई आँखों से देखते, नेह से चूमते और फिर उस विराट् रोशनी की ओर अपने साथ ले जाते। बच्चा इतना खुश था कि खुशी से रो पड़ा। वहाँ कुछ फरिश्ते ऐसे भी थे, जो उनके साथ नहीं गए थे। उनमें से एक को वह अच्छी तरह से जानता था। वही एक नन्हा बीमार चेहरा, जिसे वह बिस्तर पर देखा करता था, अब जैसे चमक से भर उठा था। उसे उन सारे फरिश्तों में सबसे प्यारी अपनी बहन ही लगी। उसकी बहन ने फरिश्ता लोगों को बटोरकर लानेवाले सबसे बडे़ फरिश्ते से कहा, ‘क्या मेरा भइया अंदर आ सकता है?’

‘नहीं।’ उसने कहा।

वह मुड़कर देखने लगी। बच्चा अपनी बाँहें पसारे चिल्ला रहा था, ‘मैं यहाँ हूँ…मुझे भी ले चल मेरी बहना!’ उसे लगा कि वह सिर्फ धरती से ही नहीं, आसमान और सितारों से भी जुड़ा हुआ है। आखिर उसकी बहन अब फरिश्ता बन गई थी।

इसके कुछ समय बाद उसके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया और वह बड़ा भाई बन गया। लेकिन जल्द ही यह नया सदस्य भी अपना बिस्तर खाली छोड़कर चला गया। बच्चे ने फिर वही सपना देखा। वही खुलता सितारा। वही फरिश्तों की भीड़। वही इंसानों से भरी ट्रेन…चमकती आँखों से देखते हुए फरिश्ते…उसकी बहन के फरिश्ते ने सबसे बडे़ फरिश्ते से कहा, ‘मेरा भइया आ गया?’ फरिश्ते ने जवाब दिया, ‘नहीं, वो नहीं दूसरा…’ जैसे ही उसने अपने भाई को गोद में उठाया, वह चिल्ला पड़ा, ‘ओ बहना, देख मैं यहाँ हूँ, मुझे भी ले चल ना!’ वह मुड़ी और मुस्कुराई। सितारा जगमगा रहा था।

धीरे-धीरे बच्चा बड़ा हो गया। एक दिन जब किताबों में व्यस्त था कि बूढ़ी दाई माँ ने आकर कहा, ‘तेरी माँ नहीं रही बच्चे।’ उस रात फिर से उसने वही सितारा और सपना देखा। उसकी बहन के फरिश्ते ने सबसे बडे़ फरिश्ते से कहा, ‘क्या मेरा भइया आ गया?’ फरिश्ते ने कहा, ‘नहीं, तुम्हारी माँ…।’

जोरों की एक चीख दिशाओं में बिखर गई, क्योंकि यहाँ आकर माँ ने अपने दो बिछुडे़ बच्चे पा लिये थे। उसने अपनी माँ, भाई और बहन की बाँह खींचते हुए कहा, ‘मैं यहाँ हूँ, मुझे भी तो ले चलो।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, अभी नहीं।’ सितारा चमकता रहा।

फिर वह बुढ़ाने लगा। उसके बालों में सफेदी घिरने लगी। आग के पास कुर्सी पर गहरे दुःख से घिरा हुआ वह गीली आँखों से बैठा हुआ था। तभी सितारा जगमगाया। उसकी बहन के फरिश्ते ने सबसे बडे़ फरिश्ते से पूछा, ‘मेरा भइया आ गया?’

‘नहीं, उसकी बेटी आई है।’

बूढ़े आदमी ने तीनों बच्चों में से अभी-अभी मृत्यु हुई अपनी बेटी को देखा…वह सबसे अच्छी थी…सबसे अच्छी…उसने कहा, ‘मेरी बेटी का सिर मेरी बहन के सीने से लगा है और उसकी बाँहों ने उसे जकड़ रखा है। उसके पैरों में एक बच्चा है…बहुत पुराना बच्चा। मुझे आज भी उससे जुदाई का दर्द याद है।’ सितारा चमकता रहा।

इस तरह वह बच्चा बूढ़ा हो गया। चिकना चेहरा झुर्रियों से भर गया। उसकी चाल धीमी और कमजोर हो गई। पीठ झुक गई और एक रोज जब वह अपने बिस्तर पर लेटा था, तो उसके बच्चे चारों ओर खडे़ थे, वह चिल्लाया। वैसे ही जैसे वर्षों पहले चिल्लाया था…‘मैंने सितारा देख लिया।’

उसके बच्चे एक-दूसरे से बुदबुदाए, ‘वे जा रहे हैं…।’

और उसने कहा, ‘हाँ, मैं…मेरी उम्र पैरहन की तरह उतर रही है। मैं सितारे की ओर बच्चा बना चला जा रहा हूँ। हे ईश्वर! मैं तेरा शुक्रिया अदा करता हूँ कि ये सितारा मेरे उन प्यारे लोगों के लिए खुलता रहा, जो मेरा इंतजार कर रहे हैं।

और…अब एक तेज सितारा उसकी कब्र पर चमक रहा था।

(अनुवाद : कृष्णकांत श्रीवास्तव)

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