चैप्टर 9 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 9 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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बाल बाल बचे

रास्ते भर शौकत का दिमाग सुई और कुत्ते की मौत में उलझा रहा। साथ ही साथ वह खलिश भी उसके दिल में चुभ रही थी, जो नज़मा से बात करने के बाद पैदा हो गई थी। उसका दिल से चाह रहा था कि वह ज़िन्दगी भर खड़ा उससे इसी तरह बातें करें। औरतों से बात करना उसके लिए नहीं बात न थी। वह तकरीबन दिन भर नर्सों से घिरा रहता था और इसके अलावा उसका पेशा भी ऐसा था कि दूसरी औरतों से भी उसका साबका पड़ता रहता था। लेकिन नज़मा में न जाने कौन सी ऐसी बात थी, जिस वजह से रह-रहकर उसका चेहरा सामने आ जाता था।

डॉक्टर तौसीफ़ के घर पहुँचते ही वह सब कुछ भूल गया, क्योंकि अब वह ऑपरेशन की स्कीम तैयार कर रहा था। वह एक ज़िन्दगी बचाने जा रहा था। उसे अपनी कामयाबी का उसी तरह यकीन था, जिस तरह इसका कि वह ग्यारह बजे खाना खाएगा।

लगभग एक घंटे के बाद डॉक्टर तौसीफ़ नवाब साहब की कार लेकर घर पर आ गया।

“कहिए डॉक्टर साहब कोई खास बात?” डॉक्टर शौकत ने पूछा।

“ऐसी तो कोई बात नहीं। अलबत्ता कुत्ते की मौत से हर शख्स हैरान है। लाइए, देखूं तो वह सुई।“ डॉक्टर तौसीफ़ ने सुई देने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“यह देखिए….बड़ी अजीब बात है। मालूम नहीं सुई किस ज़हर में बुझाई गई है।” डॉक्टर शौकत थर्मामीटर की नल की से सुई निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला, “देखते-देखते कुत्ता खत्म हो गया।”

“ग्रामोफोन की सुई है।” डॉक्टर तौसीफ़ सुई को गौर से देखते हुए कहा, “मालूम नहीं कि किस ज़हर से बुझाई गई है।”

“मेरे ख़याल से पोटेशियम साइनाइड या उसी किस्म का कोई और ज़हर है।” डॉक्टर शौकत ने सुई को लेकर फिर थर्मामीटर की नलकी में रखते हुए कहा।

“मुझे तो यह सुई पागल प्रोफेसर की मालूम होती है।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा, “उसकी अजीबोगरीब चीखें और हरकत दूर तक मशहूर है।”

“मुझे अभी तक प्रोफेसर के बारे में कुछ ज्यादा नहीं मालूम, लेकिन मैं उस शख्सियत के बारे में और जाना चाहता हूँ। वैसे तो मैं यह जानता हूँ कि वह एक मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक है।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“उसकी ज़िन्दगी अभी तक एक राज है।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा, “लेकिन इतना मैं भी जानता हूँ कि अब से दो साल पहले वह एक ठीक दिमाग का आदमी था। उसके बाद अचानक उसकी आदतों में तब्दीलियाँ आने लगी और अब तो सभी का यह ख़याल है उसका दिमाग खराब हो गया है।”

“मैं तो साहब इतना भयानक आदमी आज तक नहीं देखा।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

थोड़ी देर तक ख़ामोशी छाई रही। उसके पास डॉक्टर तौसीफ बोला, “हाँ तो आपका क्या प्रोग्राम है? मेरे ख़याल से तो अब दोपहर का खाना खा लेना चाहिए।”

खाने के दौरान ऑपरेशन और दूसरे विषयों पर बातचीत होती रही। अचानक डॉक्टर शौकत को कुछ याद आ गया।

“डॉक्टर साहब, मैं जल्दी में अपने असिस्टेंट को कुछ ज़रूरी बात बताना भूल गया हूँ। अगर आप कोई ऐसा इंतज़ाम कर सके कि मेरा पर्चा उस तक पहुँचा दिया जाए, तो बहुत अच्छा हो।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“चलिए अब दो काम हो जायेंगे।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा, “मैं दरअसल शहर जाने के लिए नवाब साहब की कार लाया था। आप पर्चा दे दीजिएगा और हाँ क्यों न आप के साथियों को अपने साथ लेता आऊं।”

“इससे बेहतर क्या हो सकता है!”

“इसके अलावा कोई और काम?”

“जी नहीं शुक्रिया! मेरे ख़याल से आप उन लोगों को उसी तरफ से कोठी लेते जाइएगा।”

“ठीक है छः बजे आपके लिए कार भिजवा दी जाएगी।”

“नहीं इसकी ज़रूरत नहीं मैं पैदल ही आऊंगा।”

“क्यों?”

“बात दरअसल यह है डॉक्टर साहब कि ऑपरेशन ज़रा नाज़ुक है। मैं चाहता हूँ कि ऑपरेशन से पहले इतनी कसरत हो जाए, जिससे जिस्म में चुस्ती पैदा हो सके।”

“डॉक्टर शौकत मैं आपकी तारीफ़ किए बगैर नहीं रह सकता। हकीकत में एक अच्छे डॉक्टर को ऐसा ही होना चाहिए।”

डॉक्टर तौसीफ़ के चले जाने के बाद डॉक्टर शौकत ने एक के बाद एक भी किताबें पढ़ना शुरू की, जो वह अपने साथ लाया था। एक कागज पर पेंसिल से कुछ खाके बनायें और देर तक उन्हें देखता रहा। पुराने रिकॉर्डों की कुछ फाइलें देखी। इस तरह दिन खत्म हो गया। तकरीबन पांच बजे उसने किताबें और फाइलें एक तरफ रख दी। उसे ठीक छः बजे यहाँ से निकलना था। दिसंबर का महीना था। शाम की किरणें फीकी-फीकी लाली में बदलती जा रही थी। डॉक्टर तो सिर्फ का नौकर अंडे के सैंडविच और कॉफ़ी ले आया। रात का खाना उसे कोठी में खाना था, इसलिए उसने सिर्फ एक सैंडविच खाया और दो कप कॉफ़ी के बाद सिगरेट सुलगा कर टहलने लगा। घड़ी ने छः बजाया…उसने कपड़े पहने और चेस्टर कंधे पर डालकर रवाना हो गया। वह धीरे-धीरे टहलता हुआ जा रहा था। चारों तरफ अंधेरा फैल गया था। सड़क की दोनों तरफ झाड़ियाँ थी, जिनकी वजह से सड़क और ज्यादा अंधेरी हो गई थी। लेकिन डॉक्टर शौकत ऑपरेशन के ख़याल में मगन बेखौफ़ चला जा रहा था। उसके तकरीबन पचास फुट पीछे एक दूसरा आदमी झाड़ियों से लगा हुआ चल रहा था। शायद उसने रबरसोल के जूते पहन रखे थे, जिसकी वजह से डॉक्टर शौकत को उसके कदमों की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। एक जगह डॉक्टर शौकत सिगरेट सुलगाने के लिए रुका, तो वह शख्स भी रुककर झाड़ियों की ओट में चला गया। जैसे ही शौकत ने चलना शुरू किया, तो वह फिर झाड़ियों से निकलकर उसी तरह उसका पीछा करने लगा।

सड़क ज्यादा चलती हुई न थी। वजह यह कि सड़क महज़ कोठी के लिए बनाई गई थी। अगर नवाब साहब ने अपनी कोठी बस्ती के बाहर न बनवाई होती, तो फिर इस सड़क का वजूद भी न होता। शौकत के वजनी जूतों की आवाज इस सुनसान सड़क पर इस तरह गूंज रही थी, जैसे वह झाड़ियों में दुब कर टी टी री री करने वाले झीगरों को डांट रही हो। शौकत चलते चलते हल्के सुरों में सीटी बजाने लगा। उसे अपने जूतों की आवाज सिटी की धुन पर ताल देती मालूम हो रही थी। किसी पेड़ पर एक बड़े पक्षी ने चौंककर अपने पर फड़फड़ाए और उड़कर दूसरी तरफ चला गया। झाड़ियों के पीछे करीब ही गीदड़ों ने चीखना शुरू कर दिया। जो शख्स डॉक्टर शौकत का पीछा कर रहा था, उसका अब कहीं पता न था। कुछ आगे बढ़ कर बहुत ज्यादा घने पेड़ों का सिलसिला शुरू हो गया। यहाँ पर दोनों तरफ के पेड़ों की डालियाँ इस तरह आपस में मिल गई थी कि आसमां नहीं दिखाई देता था। डॉक्टर शौकत दुनिया से बेखबर अपनी धुन में चला जा रहा था। अचानक उसके मुँह से एक चीख निकली और हाथ ऊपर उठ गए। उसके गले में एक मोटी सी रस्सी का फंदा पड़ा हुआ था। धीरे-धीरे फंदे की पकड़ कसती गई और साथ ही साथ वह ऊपर उठने लगा। गले की रगें फूल रही थी। आँखें निकली पड़ रही थी। उसने चीखना चाहा, लेकिन आवाज न निकली। उसे ऐसा मालूम हो रहा था जैसे उसका दिल कन पटियों और आँखों में धड़क रहा हो। धीरे-धीरे उसे अंधेरा गहरा होता हुआ मालूम हुआ। झींगुरों और गीदड़ का शोर दूर क्षितिज में डूबता जा रहा था। फिर बिल्कुल ख़ामोशी छा गई। वह जमीन से दो फुट की ऊँचाई पर झूल रहा था। कोई उसी पेड़ पर से कूद कर झाड़ी में गायब हो गया। फिर एक आदमी उसकी तरफ दौड़ कर आता दिखाई दिया। उसके करीब पहुँचकर उसने हाथ मलते हुए इधर उधर देखा…दूसरे पल में वह फुर्ती से पेड़ पर चल रहा था। एक डाल से दूसरी डाल पर कूदता हुआ वह उस पर पहुँच गया, जिससे रस्सी बंधी हुई थी। उसने रस्सी ढीली करनी शुरू की और धीरे-धीरे डॉक्टर शौकत के पैर जमीन पर टिका दिए। फिर रस्सी को उसी तरह बांध का नीचे उतर आया। अब उसने जेब से चाकू निकालकर रस्सी काटी और शौकत को हाथों पर संभाले हुए सड़क पर लिटा दिया। फंदा ढीला होते ही बेहोश डॉक्टर गहरी गहरी सांसे लेने लगा था। उस अजनबी ने माचिस जलाकर उसके चेहरे पर नज़र डाली। आँखों की पलकों में हरकत पैदा हो चुकी थी। मालूम हो रहा था जैसे वह दस-पांच मिनट के बाद होश में आ जाएगा। दो-तीन मिनट गुज़र जाने पर उसके जिस्म में हरकत पैदा हुई और अजनबी जल्दी से झाड़ियों के पीछे छुप गया।

थोड़ी देर बाद एक कराह के साथ डॉक्टर शौकत उठकर बैठ गया और आँखें फाड़-फाड़ कर चारों तरफ देखने लगा। धीरे धीरे कुछ देर पहले के वाक़यात उसकी आँखों के सामने कौंध गए। न चाहते हुए भी उसका हाथ गर्दन की तरफ़ गया, लेकिन अब वहाँ रस्सी का फंदा न था। अलबत्ता गर्दन बुरी तरह दुख रही थी। उसे हैरत हो रही थी कि वह किस तरह बच गया। अब उसे फ़रीदी मरहूम के अल्फ़ाज़ बुरी तरह याद आ रहे थे और साथ ही सविता देवी की ख़्वाब की बड़बड़ाहट भी याद आ गई थी। “राज रूपनगर” उसके सारे जिस्म से ठंडा-ठंडा पसीना छूट पड़ा। वह सोचने लगा वह भी कितना बेवकूफ था कि उसने फ़रीदी के शब्द भुला दिए और खौफ़नाक जगह पर अंधेरी रात में अकेला चला आया।

उसकी जान लेने की यह दूसरी कोशिश थी। उसकी आँखों के सामने उस नेपाली का नक्शा घूम गया, जिस ने उसे धमकी दी थी। फिर अचानक वह ज़हरीली सुई याद आई और प्रोफेसर का भयानक चेहरा, जो उसने उससे हाथ मिलाते हुए देखा था। और ठीक उसी जगह कुत्ता भी उछल कर गिरा था। तो क्या प्रोफेसर…प्रोफेसर…लेकिन आखिर क्यों? यह सब सोचते-सोचते हुए उसे अपनी मौजूदा हालात का ख़याल आया और वह कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हो गया। चेस्टर करीब ही पड़ा था। उसने जल्दी से चेस्टर उठा कर कंधे पर डाल लिया और तेजी से कोठी की तरफ रवाना हो गया। उसने सोचा कि घड़ी में वक़्त देखे, लेकिन फिर माचिस जला कर देखने की हिम्मत न पड़ी।

कोठी में सब लोग बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसने सात बजे आने केस वादा किया था, लेकिन अब आठ बज रहे थे।

“शौकत बहुत ही पंक्चुअल आदमी मालूम होता है न जाने क्या बात है?” डॉक्टर तौसीफ ने बाग में टहलते हुए कहा।

नज़मा बार बार अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी देख रही थी।

“क्या बात हो सकती है।” कुंवर सलीम ने पंजों के बल खड़े होते हुए माथे पर हाथ रखकर अंधेरे में घूरते हुए कहा।

“मेरा ख़याल है कि वह देर में घर से रवाना हुआ। मैं तो कह रहा था कि कार भिजवा दूंगा। लेकिन उसने कहा कि मैं पैदल ही आऊंगा। पर यह कौन आ रहा है? हेलो डॉक्टर…भई इंतज़ार करते-करते आँखें पथरा गई।”

डॉक्टर शौकत बरामदे में दाखिल हो चुका था। वह रास्ते पर अपने चेहरे से परेशानी के भाव मिटाने की कोशिश करता था।

“मुझे अफ़सोस है।” डॉक्टर शौकत ने मुस्कुराते हुए कहा, “अपनी बेवकूफी की वजह से चलते वक्त टॉर्च लेकर नहीं चला। नतीजा यह हुआ कि रास्ता भूल गया।”

“लेकिन आपके सिर पर यह इतने सारे तिनके कहाँ से आ गए। जी वहाँ नहीं… पीछे की तरफ।” नज़मा ने मुस्कुरा कर कहा।

“तिनके…ओह…बताइए ना…आखिर क्या बात है?” कुंवर सलीम ने गंभीरता से पूछा।

“अरे वह तो एक पागल कुत्ता था…राह में उसने मुझे दौड़ाया। अंधेरा काफ़ी था…मैं ठोकर खाकर गिर पड़ा। वह तो कहिए एक राहगीर उधर से आ निकला करना, वरना…!”

“आजकल दिसंबर में पागल कुत्ता?” नज़मा ने हैरत से कहा, “कुत्ते तो ज्यादातर गर्मियों में पागल होते हैं।”

“नहीं ज़रूरी नहीं।” कुंवर सलीम ने जवाब दिया, “अक्सर सर्दियों में भी कुछ कुत्तों का दिमाग खराब हो जाता है। आप खुशकिस्मत थे डॉक्टर शौकत। पागल कुत्तों का ज़हर बहुत खतरनाक होता है, आप तो जानते ही होंगे।”

“अभी डॉक्टर वह आपके आदमियों ने बीमार के कमरे में सारी तैयारी पूरी कर ली है।”

“वे लोग इस वक्त वही हैं।’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।

“आपके इंतज़ार में शायद उन लोगों ने भी अभी तक खाना नहीं खाया।” नज़मा बोली।

“मेरा इंतज़ार आप लोगों ने बेकार किया। मैं ऑपरेशन से पहले थोड़ा सा सूप पीता हूँ। खाना खा लेने के बाद दिमाग किसी काम का नहीं रह जाता।”

“जी हाँ, मैंने भी अक्सर किताबों में यही पढ़ा और जहाँ तक मेरा ख़याल है कि दुनिया के किसी बड़े आदमी ने यह ज़रूर कहा होगा।” नज़मा ने शोखी से कहा। डॉक्टर शौकत मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा। नज़मा से निगाहें मिलते ही वह जमीन की तरफ देखने लगा।

“खैर साहब वह सब कुछ ठीक है। पर मैं तो दिन भर में पांच सेर से कम नहीं खाता।” कुंवर सलीम ने हँसकर कहा, “खाना देर से इंतज़ार में है। हर तंदुरुस्त आदमी का फ़र्ज़ है कि उस इंतज़ार की जहमत से बचाए।

सब लोग खाने के कमरे में चले गए।

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