चैप्टर 8 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 8 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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डॉक्टर शौकत इंस्पेक्टर फ़रीदी की मौत की खबर सुनकर दंग रह गया। उसे हैरत है कि आखिर एकदम से ये क्या हो गया। लेकिन वह सोच भी नहीं सकता था कि उसकी मौत सविता देवी के कत्ल की खोजबीन के सिलसिले में हुई है। वही समझ रहा था कि फ़रीदी के किसी पुराने दुश्मनों उसे मौत के घाट उतार दिया। जासूसी विभाग वालों के लिए दुश्मनों की अच्छी खासी फौज पैदा कर लेना कोई बात नहीं। इस पेशे में कामयाब आदमियों की मौत ही ज्यादातर इसी तरह होती हैं।

सविता देवी के कत्ल के सिलसिले में उसकी अब तक यही राय थी कि यह काम उन्हीं के किसी मज़हब वाले का है, जिसने मज़हबी जज्बात से अंधा होकर आखिरकार उन्हें क़त्ल कर दिया। इंस्पेक्टर फ़रीदी का यह ख़याल कि वह हमला दरअसल उसी पर था, धीरे-धीरे उसके दिमाग से हटता जा रहा था। यही वजह थी कि जब उसे राजरूप नगर से डॉक्टर तौसीफ़ का ख़त मिला, तो उसने उस क़स्बे के नाम पर ध्यान तक न दिया।

दूसरे, डॉक्टर से ख़ुद उससे मिलने के लिए आया था। उसने नवाब साहब के मर्ज़ की सारी बातें बताकर उसे ऑपरेशन करने पर राज़ी कर लिया।

डॉक्टर शौकत की कार राजरूप नगर की तरफ जा रही थी। वह अपने असिस्टेंट और दोनों को हिदायत कर आया था कि वह चार बजे तक ऑपरेशन का ज़रूरी सामान लेकर राजरूप नगर पहुँच जायें।

नवाब साहब के खानदान वाले अभी तक कर्नल तिवारी के ट्रांसफर और तौसीफ़ के नये फैसले से वाकिफ़ नहीं थे। डॉक्टर शौकत की आमद से वे सब हैरत में पड़ गए। खास कर नवाब साहब की बहन तो आपे से बाहर हो गई।

“डॉक्टर साहब!” वह डॉक्टर तौसीफ से बोली, “मैं आपकी इस हरकत का मतलब नहीं समझ सकी।”

“मोहतरमा, मुझे अफ़सोस है कि मुझे आपसे राय लेने की ज़रूरत नहीं।” तौसीफ़ ने लापरवाही से कहा।

“क्या मतलब?” नवाब साहब की बहन ने हैरत और गुस्से के मिले-जुले अंदाज़ में कहा।

“मतलब यह कि अचानक कर्नल तिवारी का तबादला हो गया है और अब इसके अलावा कोई और सूरत बाकी नहीं रह गई।”

“कर्नल तिवारी का तबादला हो गया है?”

“उनका खत पढ़िये।” डॉक्टर से अपने जेब से एक लिफाफ़ा निकालकर उनके सामने डाल दिया। वे खत पढ़ने लगी। सलीम और नवाब साहब की भांजी नजमा भी झुककर देखने लगी।

“लेकिन मैं ऑपरेशन तो हरगिज़ न होने दूंगी।” बेगम साहिबा ने खत वापस करते हुए कहा।

“देखिए मोहतरमा…यहाँ आपकी राय का कोई सवाल ही नहीं रह जाता। नवाब साहब का डॉक्टर होने की हैसियत से इसकी सौ फीसदी जिम्मेदारी मुझ पर होती है। कर्नल तिवारी की गैर-मौजूदगी में मैं कानूनन अपने हक का इस्तेमाल कर सकता हूँ।”

“बिल्कुल बिल्कुल डॉक्टर साहब!” कुंवर सलीम ने कहा, “अगर डॉक्टर शौकत मेरे चाचा को इस बीमारी से निज़ात दिला दें, तो इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है। मेरा भी यही ख़याल है कि अब ऑपरेशन के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया।”

“सलीम!” नवाब साहब की बहन ने गरज कर कहा।

“फूफी साहिबा… मैं समझता हूँ कि आप मोहब्बत करने वाली बहन का दिल रखती हैं, लेकिन उनकी सेहत की ख़ातिर दिल पर पत्थर रखना पड़ेगा।”

“कुंवर भैया! आप इतनी जल्दी बदल गए।” नज़मा ने कहा।

“क्या करूं नज़मा….! अगर कर्नल तिवारी मौजूद होते, तो मैं कभी ऑपरेशन के लिए तैयार ना होता। लेकिन ऐसी सूरत में तुम ही बताओ, चाचा जान कब तक यूं ही पड़े रहेंगे।”

“क्यों साहब, क्या ऑपरेशन के अलावा कोई और सूरत नहीं हो सकती?” नवाब साहब की बहन ने डॉक्टर शौकत से पूछा।

“यह तो मैं मरीज़ को देखने के बाद ही बता सकता हूँ।” डॉक्टर शौकत ने मुस्कुरा कर कहा।

“हाँ…हाँ…हो सकता है किस की नौबत ही ना आये।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।

नवाब साहब जिस कमरे में थे वह ऊपरी मंजिल पर था। सब लोग नवाब साहब के कमरे में आये। वे कंबल ओढ़ लेटे हुए थे। ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे में गहरी नींद में सो रहे हो।

डॉक्टर शौकत ने अपने आले की मदद से उनका चेकअप करना शुरू किया। फिर बोला, “मुझे अफ़सोस है बेगम साहिबा कि ऑपरेशन के बगैर काम में चलेगा।” डॉक्टर शौकत ने अपने आले को हैंडबैग में रखते हुए कहा।

फिर सब लोग नीचे वापस आ गये।

डॉक्टर शौकत ने नवाब साहब के खानदान वालों को काफ़ी इत्मीनान दिलाया। उनकी तसल्ली के लिए उसने इन लोगों को अपने बेशुमार खतरनाक केसों के हालात सुना डाले। नवाब साहब का ऑपरेशन तो उनके मुकाबले में कोई चीज न था।

“फूफी साहिबा आप नहीं जानती।” बेगम साहिबा से कुँवर सलीम से कहा, “डॉक्टर शौकत जैसा डॉक्टर पूरे हिंदुस्तान में नहीं मिल सकता।”

“मैं किस काबिल हूँ।” डॉक्टर शौकत ने कहा, “सब ख़ुदा की मेहरबानी और उसका एहसान है।”

“हाँ यह तो बताइए, क्या ऑपरेशन से पहले कोई दवा वगैरह दी जाएगी।” कुंवर सलीम ने पूछा।

“फिलहाल एक इंजेक्शन दूंगा।”

“और ऑपरेशन कब होगा?” नवाब साहब की बहन ने पूछा।

“आज ही…आठ बजे रात से ऑपरेशन शुरू हो जाएगा। चार बजे तक मेरा असिस्टेंट और दो नर्स यहाँ जायेंगी।”

“मेरा तो दिल घबरा रहा है।” नवाब साहब के भांजे ने कहा।

“घबराने की कोई बात नहीं है।” डॉक्टर शौकत ने कहा, “मैं अपनी सारी कोशिशें लगा दूंगा। केस कुछ ऐसा खतरनाक नहीं है और अल्लाह ताला से बड़ा कोई नहीं, उससे हम सबको उम्मीद है। इंशाल्लाह ऑपरेशन कामयाब होगा। आप लोग बिल्कुल परेशान न हो।”

“डॉक्टर साहब आप इत्मीनान से अपनी तैयारी पूरी कीजिए।” कुंवर सलीम बोला, “बेचारी औरतों के बस में घबराने के अलावा और कुछ नहीं।”

नवाब साहब की बहन ने उसे तेज नज़रों से देखा और नज़मा के माथे पर लकीरें पड़ गई।

“मेरा मतलब है फूफी साहिबा कि कहीं डॉक्टर साहब आप लोगों की हालत देख कर परेशान न हो जायें। अब चचाजान को अच्छा ही हो जाना चाहिए। हद है, अठारह दिन हो गए अभी तक उनको होश नहीं आया।”

“तुम इस तरह कह रहे हो, जैसे हम लोगों ने सेहतयाब देखने की ख्वाहिश मंद नहीं है।” बेगम साहिबा ने मुँह बना कर कहा।

“खैर खैर!” फैमिली डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा, “हाँ तो डॉक्टर शौकत, मेरे ख़याल से अब आप इंजेक्शन दे दीजिए।”

डॉक्टर शौकत, डॉक्टर तौसीफ़ और कुंवर सलीम ऊपरी मंजिल पर मरीज के कमरे में चले गए और दोनों माँ बेटियाँ हॉल में रुककर आपस में बातें करने लगी।

नज़मा कुछ कह रही थी और नवाब साहब की बहन के माथे पर लकीरें उभर रही थी। उन्होंने दो-तीन बार सीढ़ियों की तरफ देखा और बाहर निकल गई।

इंजेक्शन देने के बाद डॉक्टर शौकत, कुंवर सलीम और डॉक्टर तौसीफ़ के साथ बाहर आया।

“अच्छा कुंवर साहब! अब हम लोग चलेंगे। चार बजे तक नर्स से और मेरा असिस्टेंट आपके यहाँ आ जायेंगे और मैं भी ठीक छः बजे यहाँ पहुँच जाऊंगा।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

डॉक्टर कार में बैठ गए। लेकिन डॉक्टर शौकत की लाख कोशिशों के बावजूद कार स्टार्ट न हुई।

“यह तो बड़ी मुसीबत हुई।” डॉक्टर शौकत ने कार से उतरकर मशीन का जायज़ा लेते हुए कहा।

“फ़िक्र मत कीजिए। मैं अपनी गाड़ी निकाल आता हूँ।” कुंवर सलीम ने कहा और लंबे डग भरता हुआ गैराज की तरफ चला गया, जो पुरानी कोठी के करीब था।

थोड़ी देर बाद नवाब साहब की बहन आ गई।

“डॉक्टर शौकत की कार खराब हो गई। कुंवर साहब कार के लिए गए हैं।” डॉक्टर तौसीफ़ ने उनसे कहा।

“ओह…कार तो मैंने भी शहर भेज दी है और भाईजान वाली का बहुत दिनों से खराब है।”

“अच्छा, तो फिर आइए डॉक्टर साहब! हम लोग पैदल ही चलें, सिर्फ डेढ़ मिल तो चलना है।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“डॉक्टर तौसीफ़ मुझे आपसे कुछ राय मशवरा करना है।” नवाब साहब की बहन ने कहा, “अगर आप लोग शाम तक यहीं ठहर जायें, तो क्या हर्ज़ है।”

“डॉक्टर साहब को आप रोक लें। मुझे कोई एतराज़ न होगा।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“आप कुछ ख़याल न कीजिए।” बेगम साहिबा बोली, “अगर कार शाम तक वापस आ गई, तो मैं छह बजे तक भिजवा दूंगी। वरना फिर किसी दूसरी सवारी का इंतज़ाम किया जाएगा।”

“शाम को तो मैं हर सूरत में पैदल ही आऊंगा, क्योंकि ऑपरेशन के वक्त में काफ़ी चाक-चौबंद रहना चाहता हूँ।” शौकत ने कहा, “और कस्बे की तरफ रवाना हो गया। रास्ते में कुंवर सलीम मिला।

“मुझे अफ़सोस है डॉक्टर कि इस वक्त कार मौजूद नहीं। आप यहीं रहिए, आखिर इसमें हर्ज़ ही क्या है?”

“हर्ज़ तो कोई नहीं, लेकिन मुझे तैयारी करनी है।” डॉक्टर साहब ने जवाब दिया।

“अच्छा तो चलिए, मैं आपको छोड़ आऊं।”

“नहीं शुक्रिया रास्ता मेरा देखा हुआ है।”

डॉक्टर शौकत जैसे ही पुरानी कोठी के करीब पहुँचा, उसे एक अजीब तरह का कहकहा सुनाई दिया। बूढ़ा प्रोफेसर इमरान कहकहे लगाता हुआ उसकी तरफ बढ़ रहा था।

“हलो हलो!” बूढ़ा चीखा, “अपने मकान के करीब अजनबियों को देखकर मुझे खुशी होती है।”

डॉक्टर शौकत रुक गया उसे महसूस हुआ, जैसे उसके जिस्म के सारे रोये खड़े हो गए हो। इतनी खौफ़नाक शक्ल का आदमी आज तक उसकी नज़रों से न गुज़रा था।

“मुझसे मिलिए मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ।” उसने हाथ मिलाने के लिए दांया हाथ बढ़ाते हुए कहा, “और आप?”

“मुझे शौकत कहते हैं!” शौकत ने बेदिली से हाथ मिलाते हुए कहा, लेकिन उसे महसूस किया कि हाथ मिलाते हुए पूरा कुछ सुस्त पड़ गया था। बूढ़ा फौरन ही अपना हाथ खींच कर कहकहा लगाता, उछलता-कूदता, फिर पुरानी कोठी में वापस चला गया।

डॉक्टर शौकत हैरान खड़ा था। तभी एकाएक करीब की झाड़ियों से एक बड़ा सा कुत्ता उस पर झपटा। डॉक्टर शौकत घबराकर कई कदम पीछे हट गया। कुत्ते ने छलांग लगाई और एक भयानक चीख के साथ जमीन पर जा गिरा। कुछ सेकेंड तक वह तड़पा और फिर उसकी हरकत बंद हो गई। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि डॉक्टर शौकत को कुछ सोचने समझने का मौका न मिल सका। इसके बाद कुछ समझ ही में न आ रहा था कि वह क्या करें।

“अरे यह मेरे कुत्ते को क्या हुआ? टाइगर टाइगर!” एक जनाना आवाज सुनाई दी। शौकत चौंक पड़ा। सामने नवाब साहब की भांजी नज़मा खड़ी थी।

“मुझे ख़ुद हैरत है।” शौकत ने कहा।

“मैंने इसके गुर्राने की आवाज सुनी थी। क्या यह आप पर झपटा था? लेकिन इसकी सजा मौत न हो सकती थी।” वह तेज आवाज में बोली।

“यकीन कीजिए मोहतरमा! मुझे खुद हैरत है कि उसे एकदम से हो क्या गया? अगर आपको मुझ पर शक है तो भला बताइए, मैंने उसे क्यों कर मारा?”

नज़मा कुत्ते की लाश पर झुकी उसे पुकार रही थी, “टाइगर टाइगर!”

“बेकार है मोहतरमा! यह ठंडा हो चुका है।” शौकत कुत्ते की लाश हिलाते हुए बोला।

“आखिर उसे हो क्या गया?” नज़मा ने डरे हुए अंदाज में पूछा।

“मैं खुद ही सोच रहा हूँ। बाहर से तो कोई ज़ख्म भी नहीं नज़र आ रहा।”

“हैरत है!”

तभी अचानक डॉक्टर शौकत के दिमाग में एक ख़याल आया। वह उसके पंजों को देखने लगा।

“ओह..” उसके मुँह से हैरत की चीख निकली और उसने कुत्ते की पंजे में छुपी हुई ग्रामोफोन की सुई खींच ली और गौर से देर तक देखता रहा।

“देखिए मोहतरमा! मेरे ख्याल से यह ज़हरीली सुई ही आपके कुत्ते की मौत का सबब बनी है।”

“सुई!!’ नज़मा ने चौंककर कहा, “ग्रामोफोन की सुई…क्या मतलब?”

“मतलब तो मैं भी नहीं समझा। लेकिन पूरे तौर पर कह सकता हूँ कि ऐसी ख़तरनाक हद तक ज़हरीली है। मुझे बहुत अफ़सोस है। कुत्ता बहुत उम्दा नस्ल का था।”

“लेकिन यह तो यहाँ कैसे आई?” वह पलकें झपकाती हुई बोली।

“किसी से गिर गई होगी।”

“अजीब बात है।”

शौकत ने वह सुई एहतियात से थर्मामीटर रखने वाली नली में रख ली और बोला, “यह एक दिलचस्प चीज है। मैं इसकी जांच करूंगा। आपके कुत्ते की मौत पर एक बार फिर अफ़सोस करता हूँ।”

“और डॉक्टर मैं आपसे सच कहती हूँ कि मैं इस कुत्ते का बहुत ख़याल रखती थी।” उसने हाथ मलते हुए कहा।

“वाकई बहुत अच्छा कुत्ता था। इस नस्ल के ग्रेहाउंड बहुत कम मिलते हैं।” शौकत ने जवाब दिया।

“होने वाली बात थी…अफ़सोस तो होता है, मगर अब कोई क्या सकता है? मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि सुई यहाँ आई कैसे?”

“मैं ख़ुद यही सोच रहा हूँ।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“हो सकता है कि यह सुई उस पागल बूढ़े की हो। उसके पास अजीबोगरीब चीजें हैं। मनहूस कहीं का!”

“क्या आप उन साहब के बारे में तो नहीं कह रही हैं, जो अभी इस कोठी से निकले थे।”

“जी हाँ वही होगा।” नज़मा ने जवाब दिया।

“यह कौन साहब है? बहुत ही अजीबोगरीब मालूम होते हैं।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“यह हमारा किरायेदार है। प्रोफ़ेसर इमरान…लोग कहते हैं कि अंतरिक्ष वैज्ञानिक है। मुझे तो यकीन नहीं आता। यह देखिए, उसने मीनार पर एक दूरबीन भी लगा रखी है।”

“प्रोफ़ेसर इमरान…अंतरिक्ष वैज्ञानिक…यह बहुत मशहूर आदमी है। मैंने इन्हीं से किताबें पढ़ी हैं। अगर वक्त मिला, तो मैं उनसे ज़रूर मिलूंगा।”

“क्या कीजिएगा मिलकर…दीवाना है। वह होश ही में कब रहता है और जानवर से भी बदतर है।” नज़मा ने कहा, “खैर, हटाइए इन बातों को…डॉक्टर साहब ऑपरेशन में कोई खतरा तो नहीं?”

“जी नहीं…आप इत्मीनान रखिए…इंशाल्लाह कोई गड़बड़ ना होने पाएगी।” डॉक्टर शौकत ने कहा, ” अच्छा मैं चलूं। मुझे ऑपरेशन की तैयारी करनी है।”

डॉक्टर शौकत कस्बे की तरफ चल पड़ा। एक शख्स झाड़ियों की आड़ लेता हुआ उसका पीछा कर रहा।

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