Chapter 10 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi
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पुरानी कोठी के बाहर
पुरानी कोठी के बाहर में प्रोफेसर इमरान किसी से बातचीत कर रहा था। कभी-कभी दोनों की आवाजें तेज हो जाती, तो कभी खुसर- फुसर में बदल जाती।
प्रोफेसर कह रहा था, “लेकिन मैं नहीं जाऊंगा।”
“तो इसमें बिगड़ने की क्या बात है मेरी जान?” दूसरी आवाज सुनाई दी, “न जाने मैं तुम्हारा ही नुकसान है।”
“मेरा नुकसान..!” प्रोफेसर की आवाज आई, “यूनान और रोम के देवताओं की कसम हरगिज़ न जाऊंगा।”
“तुम्हें चलना पड़ेगा।” किसी ने कहा।
“सुनो इसे, अबाबील के बच्चे….तुम्हें इतनी हिम्मत नहीं कि मुझे मेरी मर्जी के खिलाफ कहीं ले जा सको।” प्रोफेसर चीखा।
“खैर न जाओ, लेकिन तुम्हें इसके लिए पछताना पड़ेगा। देखना है कि तुम्हें कल से सफेदा कैसे मिलता है।” दूसरे आदमी ने कहा और बाग से निकलने लगा।
“ठहरो… ठहरो…कैसे बात करो न! तुमने पहले ही क्यों नहीं बताया कि तुम बीरबहूटी के बच्चे हो।” प्रोफ़ेसर हँसकर बोला।
“बीरबहूटी…हाँ, बीरबहूटी…मगर इसके लिए तुम्हें मेरे साथ माली के झोपड़े पर तक चलना होगा।”
“अच्छा तो आओ फिर चलें।” प्रोफेसर ने कहा और दोनों माली के झोपड़े की तरफ चल पड़े।
लगभग आधे घंटे के बाद प्रोफेसर लंगड़ाता हुआ माली के झोपड़े से बाहर निकला। वह अकेला था और उसके कंधे पर एक वजनी गठरी थी। एक जगह रुककर उसने इधर उधर देखा, फिर माली के झोपड़े की तरफ घूसा तान कर कहने लगा –
“अभी तूने मुझे क्या समझा है? मैं कुत्ते का गोश्त खिला दूंगा। छछूंदर की औलाद नहीं तो…अबे मैं वह हूँ, जिसने सिकंदर-ए-आजम का मुर्गा चुराया था। चमगादड़ मुझे सलाम करने आते हैं। मैं तुझे जानता हूँ कि तू अपने दादा का बीज है। हरा मी! चला है वहाँ से मक्खियाँ मारने…बड़ा आया कहीं का तीस मार खां! आओ ए भेड़ियों! उसे खा जाओ। आओ ए लोमड़ियों! उसे चबा जाओ। चुड़ैलों की हरामी नानी अशकलोनिया, तू कहाँ है। देख मैं नाच रहा हूँ। मैं तेरा भतीजा हूँ… आजा प्यारी! ” यह कहकर प्रोफेसर ने वहीं पर नाचना शुरू कर दिया। फिर सीने पर हाथ मार कर कहने लगा, “मैं इस आग का पुजारी हूँ, जो मिर्रीख में जल रही है। हजारों साल से मैं उसकी पूजा करता रहा हूँ। मैं पांच हजार साल से इंतज़ार कर रहा हूँ, लेकिन सितारा कभी न टूटेगा। मैंने तेरे लिए खरगोश पालें हैं। मैं तुझे गिलहरियों के कबाब खिलता हूँ…मैं तितलियों के परों से सिगरेट बनाकर तुझे पिलाता हूँ। तू कहाँ है प्यारे शैतान। मैं तुझे अपना कान काट कर खिला दूंगा।“
और न जाने क्या बड़बड़ाता, उछलता-कूदता हुआ पुरानी कोठी के बाग में गायब हो गया।
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