Chapter 7 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi
Table of Contents
Prev | Next | All Chapters
भयानक बूढ़ा
शाम का अखबार बाजार में आते ही सारे शहर में सनसनी फैल गई। अखबार वाले गली कूचे में चीखते फिर रहे थे – इंस्पेक्टर फ़रीदी का क़त्ल…एक हफ्ते के अंदर-अंदर शहर में तीन क़त्ल…शाम की ताजा खबर….शाम की ताजा खबर…”
“आज दो बजे इंस्पेक्टर फ़रीदी की कार पुलिस अस्पताल के कंपाउंड में दाखिल हुई। इंस्पेक्टर फ़रीदी कार से उतरते वक्त लड़खड़ा कर गिर पड़े। किसी ने उनके दायें बाजू और बायें कंधे को गोलियों का निशाना बना दिया था। फौरन ही डॉक्टरी मदद पहुँचाई गई, लेकिन फ़रीदी साहब बच न सके। तीन घंटे ज़िन्दगी की कशमकश में जूझने के बाद वे हमेशा हमेशा के लिए रुखसत हो गए। यकीनन यह मुल्क के लिए बहुत बड़ा नुकसान है।
“इंस्पेक्टर फ़रीदी शायद सविता देवी के कत्ल के सिलसिले में छानबीन कर रहे थे। लेकिन उन्होंने इसकी खबर किसी को नहीं दी थी। चीफ इंस्पेक्टर साहब को भी इस बात का पता नहीं था कि उन्होंने जासूसी का कौन सा तरीका अपनाया था। अभी तक कोई नहीं बता सकता कि इंस्पेक्टर फ़रीदी आज सुबह कहाँ गए थे। लेकिन उनकी कार पर जमी हुई धूल और की हालत बता दी थी कि उन्होंने काफ़ी लंबा सफर किया था।
“इंस्पेक्टर फ़रीदी की उम्र तीस साल थी। वे कुंवारे थे। उन्होंने दो बंगले और एक बड़ी जायदाद छोड़ी है। उनके किसी वारिस का पता नहीं चल सका।
यह खबर आग की तरह सारे शहर में फैल गई। डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन के दफ्तर में हलचल मची हुई थी। इंस्पेक्टर फ़रीदी के दोस्तों ने लाश हासिल करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें लाश देखने तक की इजाज़त न दी गई और कई खबरों से मालूम हुआ कि पोस्टमार्टम करने पर पांच या छह ज़ख्म पाए गए थे।
यह सब कुछ हो रहा था लेकिन सार्जेंट हमीद न जाने क्यों चुप था। उसे अच्छी तरह मालूम था कि इंस्पेक्टर फ़रीदी राजरूप नगर गया था, लेकिन उसने इसकी कोई खबर चीफ इंस्पेक्टर को नहीं दी। वह पुलिस और खुफिया पुलिस की भागदौड़ देख रहा था।
दूसरे जासूसों और बहुत सारे लोगों ने उससे पूछा, लेकिन उसने एक को भी ठीक ढंग से जवाब न दिया। किसी से कहता कि उन्होंने मुझे अपना प्रोग्राम नहीं बताया था; किसी से कहता उन्होंने मुझे यह तक तो बताया नहीं था कि उन्होंने अपनी छुट्टी कैंसिल करा दी है। फिर जासूसी का प्रोग्राम क्या बताते? किसी को यह जवाब देता कि वे अपने स्कीमों में किसी से न राय लेते थे और न मिलकर काम करते थे।
लगभग दस बजे रात को एक नेपाली चोरों की तरह छिपता छुपाता सार्जेंट हमीद के घर से निकला। बड़ी देर तक यूं ही सड़कों पर मारा मारा फिरता रहा, फिर एक घटिया से शराब खाने से में घुस गया। जब वहाँ से निकला, उसके पैर बुरी तरह डगमगा रहे थे। आँखों से मालूम होता था, जैसे वह बहुत पी गया हो। वह लड़खड़ाता हुआ टैक्सियों की तरफ चल पड़ा।
“भाई शाप हम दूर जाना मांगता है।” उसने एक टैक्सी ड्राइवर से कहा।
“साहब हमें फुर्सत नहीं…!” टैक्सी ड्राइवर ने कहा।
“ओह बाबा, पैसा देगा…” उसने जेब में हाथ डालकर पर्स निकालते हुए कहा।
“नहीं नहीं…साहब मुझे फुर्सत नहीं।” टैक्सी ड्राइवर ने दूसरी तरफ मुँह करते हुए कहा।
“अरे लो हमारा बाप…तुम भी साला क्या याद रखेगा।” उसने पचास पचास के दो नोट उसके हाथ पर रखते हुए कहा, “अब चलेगा हमारा बाप!”
“बैठिए कहाँ चलना होगा?” टैक्सी ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा।
“जाओ हम नहीं जाना मांगता। हम तुमको सौ रुपया भीख दिया।” उसने रूठ कर जमीन पर बैठते हुए कहा।
“अरे नहीं साहब, उठिए चलिए! जहाँ आप कहें, आपको पहुँचा दूं। चाहे जहन्नुम ही क्यों न हो?” टैक्सी ड्राइवर ने उसके नशे की हालत का लुत्फ उठाते हुए हँसकर कहा।
“जहन्नुम ले चलेगा।” नेपाली ने उठ कर कहा, “तुम बड़ा अच्छा है। तुम हमारा बाप है…तुम हमारा भाई है…तुम हमारा माँ है…तुम हमारा बीवी है…तुम हमारा बीवी का साला है…तुम हमारा…तुम हमारा…तुम हमारा क्या है?”
“साहब, हम तुम्हारे सब कुछ हैं। बोलो कहाँ चलेगा?” टैक्सी ड्राइवर ने उसका हाथ अपनी गर्दन से हटा कर हँसते हुए कहा।
“जिधर हम बतलाना मांगता। शाला तुम नहीं जानता कि हम बड़ा लोग है, हम तुमको और बख़्शीश देगा।” मदहोश नेपाली ने पिछली सीट पर बैठते हुए कहा, “सीधा चलो।”
दूसरे मोड़ पर पहुँचकर टैक्सी राजरूप नगर की तरफ जा रही थी।
Prev | Next | All Chapters
Ibne Safi Novels In Hindi :
कुएं का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास
जंगल में लाश ~ इब्ने सफ़ी का ऊपन्यास
नकली नाक ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास
खौफ़नाक इमारत ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास
नीले परिंदे ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास