Chapter 6 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi
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गोलियों की बौछार
फ़रीदी ने अपनी कार को कस्बे की तरफ मोड़ दिया। अब वह नवाब के फैमिली डॉक्टर से मिलना चाहता था। डॉक्टर तौसीफ़ एक बूढ़ा आदमी था। इससे पहले वह सिविल सर्जन था। पेंशन लेने के बाद उसने अपने पुराने मकान में रहना शुरू कर दिया था, जो राजरूप नगर में स्थित था। उसकी गिनती कस्बे के इज्जतदार और दौलतमंद लोगों में होती थी। फरीदी को उसका घर मालूम करने में कोई परेशानी न हुई।
डॉक्टर तौसीफ़ इंस्पेक्टर फ़रीदी को शायद पहचानता था। इसलिए वह उसके अचानक आ जाने से कुछ घबरा सा गया।
“मुझे फ़रीदी कहते हैं।” फ़रीदी ने अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा।
“मैं आपको जानता हूँ।” डॉक्टर तौसीफ़ ने हाथ मिलाते हुए कहा, “कहिए कैसे आना हुआ?”
“डॉक्टर साहब मैं एक ज़रूरी काम के सिलसिले में आपसे राय लेना चाहता हूँ।”
“ठीक है! अंदर चलिए।”
“आप ही नवाब साहब की फैमिली डॉक्टर है?” फ़रीदी ने सिगार लाइटर से सुलगाते हुए कहा।
“जी हाँ! जी बोलिए।” डॉक्टर ने चौंकते हुए कहा।
“क्या कर्नल तिवारी आपके कहने पर नवाब साहब का इलाज कर रहे हैं।” वह अचानक पूछ बैठा।
डॉक्टर तौसीफ़ चौंककर उसे घूरने लगा।
“लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?”
“डॉक्टर साहब! मुझे दिमागी बीमारियों के इलाज की थोड़ी सी मालूमात है और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि इस तरह की बीमारी का सिर्फ एक ही इलाज है और वह है ऑपरेशन। आखिरी कर्नल तिवारी देर क्यों कर रहे हैं। यह चीज मुझे सोचने पर मजबूर कर रही हैम कर्नल तिवारी एक नौजवान डॉक्टर से इलाज करवाने की बजाय, जो इस बीमारी को चुटकियों में ठीक कर सकता है, एक बूढ़े डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं।”
“मेरा ख्याल है कि आप एक निजी मामले में दखलअंदाजी कर रहे हैं।” डॉक्टर तौसीफ़ ने नाराज़ होते हुए कहा।
“आप समझे नहीं।” फ़रीदी ने कहा, “मैं नवाब साहब की जान लेने की एक गहरी साजिश का पता लगा रहा हूँ। इस सिलसिले में आपसे मदद लेना चाहता हूँ।”
“जी!” डॉक्टर तौसीफ़ ने चौंककर कहा और फिर उदास हो गया।
“बात दरअसल यह है कि इंस्पेक्टर साहब कि मैं ख़ुद इस मामले में बहुत परेशान हूंम लेकिन क्या करूं…खुद नवाब साहब की भी यही ख्वाहिश है। उन्हें दो-तीन बार कर्नल तिवारी के इलाज से फायदा हो चुका है।”
“लेकिन मुझे तो मालूम है कि कर्नल तिवारी को इलाज के लिए उनके खानदान वालों ने चुना है।”
“नहीं! यह बात नहीं है। अलबत्ता उन्होंने मेरी ऑपरेशन वाली बात नहीं मानी थी। मैं आपको यह दिखाता हूँ, जो नवाब साहब ने दौरा पड़ने से एक दिन पहले मुझे लिखा था।”
डॉक्टर तौसीफ़ उठकर दूसरे कमरे में चला गया और फ़रीदी सिगार के कश लेता हुआ अधखुली आँखों से छत को ताकता रहा।
“यह देखिए नवाब साहब का खत!” डॉक्टर तौसीफ़ ने फ़रीदी की तरफ ख़त बढ़ाते हुए कहा। फ़रीदी खत को देखने लगा। खत नवाब साहब के लेटर पैड पर लिखा गया था। फ़रीदी खत पढ़ने लगा।
“डियर डॉक्टर!
आज दो दिन से मुझे महसूस हो रहा है, जैसे मुझ पर दौरा पड़ने वाला हैम अगर आप शाम तक कर्नल तिवारी को लेकर आ जायें, तो ठीक है। पिछली बार भी उनके इलाज से फ़ायदा हुआ था। मुझे खबर मिली है कि कर्नल तिवारी आजकल बहुत मशगूल हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप उन्हें लेकर ही आयेंगे।”
आपका
वज़ाहत
“डॉक्टर साहब क्या आपको यकीन है कि एक खत नवाब साहब ही के हाथ से लिखा हुआ है।” फ़रीदी ने खत पढ़कर कहा।
“इतना ही यकीन है जितना कि इस बात पर कि इस वक्त मैं आपसे बात कर रहा हूँ। मैं नवाब साहब के लिखावट लाखों में पहचान सकता हूँ।”
“अच्छा!” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन डॉक्टर साहब, ज़रा इस पर गौर कीजिए। क्या आपने कभी इतनी चौड़ाई रखने वाले कागज का इतना छोटा पैड भी देखा है? कितना बेढंगा मालूम हो रहा है। ओह…यह देखिए! साफ मालूम होता है कि दस्तखत के नीचे से किसी ने कागज का बाकी टुकड़ा कैंची से काटा है। डॉक्टर, क्या आपको यह ऐसी हालत में मिला था?”
“जी हाँ!” डॉक्टर ने हैरान होकर कहा, “लेकिन मैं आप का मतलब नहीं समझा।”
“वही बताने जा रहा हूँ। क्या यह मुमकिन नहीं कि नवाब साहब ने खत लिखकर दस्तखत कर देने के बाद भी नीचे कुछ और लिखा हो, जिसे किसी ने बाद में कैंची से काटकर उसे बराबर करने की कोशिश की है? मेरा ख़याल है कि नवाब साहब इतने कंजूस नहीं है कि बाकी बचा हुआ कागज काट कर रख ले।”
“उफ्फ मेरे ख़ुदा!” डॉक्टर ने सिर पकड़ लिया, “यहाँ तक तो मेरी नज़र नहीं पहुँची थी।”
“बहरहाल हालात कुछ ही क्यों ना हो, क्या आप बहैसियत फैमिली डॉक्टर इतना नहीं कर सकते कि कर्नल तिवारी के बजाय किसी और डॉक्टर से इलाज करायें।”
“मैं इस मामले में बिल्कुल बेबस हूँ फ़रीदी साहब। हालांकि नवाब साहब ने कई बार मुझसे ऑपरेशन के बारे में बात की थी…और हाँ क्या नाम है उसका। इस सिलसिले में सिविल हस्पताल के स्पेशल डॉक्टर शौकत का भी नाम आया था।”
“अब तो मामला बिल्कुल साफ हो गया।” फ़रीदी ने हाथ मलते हुए कहा, “हो सकता है खत लिख चुकने के बाद नवाब साहब ने यह लिखा हो कि अगर कर्नल तिवारी न मिल सके, तो डॉक्टर शौकत को लेते आइएगा। इस हिस्से को किसी ने गायब कर दिया।”
“हूं..!” तौसीफ़ ने कुछ सोचते हुए कहा।
“मेरा ख़याल है कि आप डॉक्टर शौकत से जरूर मिल लीजिए। कम से कम इस सूबे में वह अपना जवाब नहीं रखता।”
“मैं उसकी तारीफें अखबार में पढ़ता रहता हूँ और एक बार मिल भी चुका हूँ। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वह नवाब साहब का सौ फीसदी कामयाब ऑपरेशन करेगा। लेकिन फ़रीदी साहब मैं कर्नल तिवारी की मौजूदगी में बिल्कुल बेबस हूँ। ऐसा झक्की आदमी तो आज तेरी नज़रों से नहीं गुज़रा।”
“कर्नल तिवारी की आप फिक्र न करें। उसका इंतज़ाम मैं कर लूंगा। आप जितनी जल्द हो सके, डॉक्टर शौकत से मिलकर बात कर लीजिए।”
“आप कर्नल तिवारी का क्या इंतज़ाम करेंगे।”
“इंतज़ाम करना कैसा? वो तो करीब-करीब हो चुका है।” फ़रीदी ने सिगार जलाते हुए कहा।
“मैं आप का मतलब नहीं समझा।”
“तीन दिन बाद कर्नल तिवारी का यहाँ से ट्रांसफर हो जाएगा। ऊपर से हुक्म आ गया है। मुझे सूत्रों से खबर मिली है। लेकिन खुद कर्नल तिवारी को अभी तक इसका पता नहीं। उन्हें इतनी जल्दी जाना होगा कि शायद वे धोबी के यहाँ से अपने कपड़े भी न मंगा सके। लेकिन यह राज़ की बात है। इसे अपने तक ही रखियेगा।”
“अरे, यह भी कोई कहने की बात है।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।
“अच्छा, तो अब मैं चलूं…आप कर्नल तिवारी के ट्रांसफर की खबर सुनते ही डॉक्टर शौकत को यहाँ ले आइएगा। मेरा ख्याल है कि फिर उस वक़्त किसी को ऐतराज भी नहीं होगा। हाँ देखिए, इसका ख़याल रहे कि मेरी मुलाकात का हाल किसी को पता ना चले। खासकर नवाब साहब के खानदान के किसी आदमी को और उस सनकी बूढ़े प्रोफेसर कोई खबर ना होने पाए। साहब, मुझे तो वह बूढ़ा पागल मालूम होता है।”
“मैं भी उसके बारे में कोई अच्छी राय नहीं रखता।”
“वह आखिर है कौन?” फ़रीदी ने दिलचस्पी ज़ाहिर करते हुए कहा।
“मेरे ख़याल से वह नवाब साहब का कोई रिश्तेदार है। लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि नवाब साहब ने मेरे ही सामने उससे पुरानी कोठी का किरायानामा लिखवाया था। बल्कि मैंने ही उस पर गवाह की हैसियत से दस्तखत किए थे।”
“खैर…अच्छा, अब मैं जाना चाहूंगा।” फ़रीदी ने उठते हुए कहा, “मुझे उम्मीद है कि आप जल्द ही डॉक्टर शौकत से मुलाकात करेंगे।”
फ़रीदी की कार तेजी से शहर की तरफ जा रही थी। आज उसका दिमाग बहुत उलझा हुआ था। बहरहाल वह जो मकसद लेकर राजरूप नगर आया था, उसमें अगर बिल्कुल नहीं, तो थोड़ी बहुत कामयाबी उसे ज़रूर मिली थी। अब वह आगे के लिए प्रोग्राम बना रहा था जैसे जैसे वह सोच रहा था, उसे अपनी कामयाबी का पूरा यकीन होता जा रहा था।
सड़क के दोनों तरफ दूर-दूर तक घनी झाड़ियाँ थी। सड़क बिल्कुल सुनसान थी। एक जगह उसे बीच सड़क पर ही खाली तांगा खड़ा नज़र आया। वह भी इस तरह, जैसे वह खास तौर पर रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया हो। फ़रीदी ने कार की रफ्तार धीमी कर के हॉर्न देना शुरू किया, लेकिन दूर नज़दीक को दिखाई न देता था। सड़क ज्यादा चौड़ी न थी, इसलिए फ़रीदी को कार रोककर उतरना पड़ा। तांगा किनारे लगाकर वह गाड़ी की तरफ लौट ही रहा था कि उसे दूर झाड़ियों में एक भयानक चीख सुनाई दी। कोई भराई की आवाज में चीख रहा था। ऐसा मालूम होता था, जैसे बार-बार चीखने वाले का मुँह दबा दिया जाता है और वह गिरफ्त से निकलने के बाद फिर चीखने लगता हो। फ़रीदी ने जेब से रिवाल्वर निकालकर आवाज की तरफ दौड़ना शुरू किया। ऊँची-ऊँची झाड़ियों से उलझता, गिरता पड़ता जंगल में घुसा जा रहा था। अचानक एक फायर हुआ और एक गोली सनसनाती हुई उसके कानों के करीब से निकल गई। उसके बाद कई फायर हुए। वह फुर्ती के साथ जमीन पर लेट गयाम लेटे लेटे रेंगता हुआ वह खाई की आड़ में हो गया। उसने भी अपना रिवाल्वर खाली करना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ से फायर होने बंद हो गए। शायद गोलियाँ चलाने वाला अपने खाली रिवॉल्वर में कारतूस चढ़ा रहा था। फ़रीदी ने खाई की आड़ से सिर उभारा ही था कि फायर हुआ। अगर वह तेजी से पीछे की तरफ न गिर गया होता, तो खोपड़ी उड़ ही गई थी। दूसरी तरफ से फिर अंधाधुंध फायर होने लगे। फ़रीदी ने भी दो तीन फायर किए ऑफिस चीखता हुआ सड़क की तरफ भागा। दूसरी तरफ से अब भी फायर हो रहे थे, लेकिन वह गिरता पड़ता भागा जा रहा था। कार में पहुँचते ही वह तेज़ रफ्तार से शहर की तरफ रवाना हो गया।
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