Chapter 7 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi
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शाम हो गई, लेकिन कर्नल ज़रगाम वापस न आया। सोफ़िया के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें डिक्सन बार-बार ज़रगाम के बारे में पूछता था। एक-आध बार उसने यह भी कहा कि शायद अब ज़रगी अपने दोस्तों से घबराने लगा है। अगर यह बात थी, तो उसने साफ़-साफ़ क्यों नहीं लिख दिया।
सोफ़िया इस बौखलाहट में यह भी भूल गई थी कि इमरान ने उसे कुछ निर्देश दिए थे, जिसमें से एक यह भी था कि आरिफ़ और अनवर मौजूदा हालत के बारे में मेहमानों से कोई बात न करें।
सोफ़िया अनवर और आरिफ़ को यह बताना भूल गई।
और फिर जिस वक्त आरिफ़ ने यह मूर्खता की, तो सोफ़िया वहाँ मौजूद नहीं थी। वह बावर्ची खाने में बावर्चियों का हाथ बंटा रही थी और इमरान बातें बना रहा था।
डिक्सन वगैरह बरामदे में थे। अनवर बारतोश से रफ़ेल की तस्वीरों के बारे में गुफ्तगू कर रहा था। आरिफ़ डिक्सन की लड़की मार्था को अपने एल्बम दिखा रहा था और डिक्सन दूर पहाड़ों की चोटियों में शाम की लाली की रंगीन लहरें देख रहा था। अचानक उसने आरिफ़ की तरफ मुड़कर कहा –
“ज़रगी से ऐसी उम्मीद नहीं थी।”
आरिफ़ उस वक्त मौज में था। उसमें न जाने क्यों उन लोगों के लिए अपनाइयत का एहसास बड़ी शिद्दत से पैदा हो गया। हो सकता है कि इसकी वजह कर्नल की शोख और खूबसूरत लड़की मार्था रही हो।
“कर्नल साहब यह एक बड़ा गहरा राज़ है।” आरिफ़ ने एल्बम बंद करते हुए कहा।
“राज…!” कर्नल डिक्सन बड़बड़ाकर उसे घूरने लगा।
“जी हाँ! वह तक़रीबन बीस दिन से सख्त परेशान थे। इस दौरान हम लोग रात-रात भर जागते रहे हैं। उन्हें किसी का खौफ़ था। वह कहते थे कि मैं किसी वक्त भी किसी हादसे का शिकार हो सकता हूँ। और न जाने क्यों वे उसे राज़ रखना चाहते थे।”
“बड़ी अजीब बात है। तुम लोग इस पर भी इतने इत्मिनान से बैठे हो।” कर्नल उछलकर खड़ा होता हुआ बोला।
बारतोश और अनवर उन्हें घूरने लगे। अनवर ने शायद ने उनकी गुफ्तगू सुन ली थी। इसलिए वह आरिफ़ को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था। हालांकि उसे भी इस बात को मेहमानों से छुपाने की ताकीद नहीं थी, लेकिन उसे कम से कम इतना एहसास था कि खुद कर्नल ज़रगाम भी उसे राज़ रखना चाहता है।
“सोफ़िया कहाँ है?” कर्नल डिक्सन ने आरिफ़ से कहा, “शायद किचन में।”
कर्नल डिक्सन ने किचन की राह ली। बाकी लोग वहीं बैठे रहे।
सोफिया फ्राइंग पैन में कुछ डाल रही थी। इमरान उसके करीब ख़ामोश खड़ा था।
“सूफी!” कर्नल डिक्सन ने कहा, “यह क्या मामला है?”
“ओह आप!” सोफ़िया चौंक पड़ी, “यहाँ तो बहुत गर्मी है। मैं अभी आती हूँ।”
“कोई बात नहीं! यह बताओ कि ज़रगी का क्या मामला है?”
इमरान ने उल्लू की तरह अपनी आँखें घुमाई।
“मुझे ख़ुद फ़िक्र है कि डैडी कहाँ चले गये।” सोफ़िया ने कहा।
“झूठ मत बोलो। मुझे अभी आरिफ़ ने बताया है।”
“ओह…वो!” सोफ़िया थूक निगलकर रह गई। फिर उसने इमरान की तरफ देखा।
“बात यह है कर्नल साहब! ये सारी बातें बड़ी अजीब है।” इमरान ने कहा।
“ऐसी सूरत में भी जब ज़रगाम इस तरह से गायब हो गया है?” कर्नल ने सवाल किया।
“वे अक्सर यही कर बैठते हैं। कई-कई दिन घर से गायब रहते हैं। कोई ख़ास बात नहीं है।” इमरान बोला।
कर्नल मुतमईन नहीं हुआ।
“आह…कन्फ्यूशियस ने भी एक बार यही कहा था।”
कर्नल ने उसे गुस्से भरी नज़रों से देखा और सोफ़िया से बोला, “जल्दी आना। मैं बरामदे में तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।”
डिक्सन चला गया।
“बड़ी मुसीबत है।” सोफ़िया बड़बड़ाई, “मैं क्या करूं?”
“यह मुसीबत तुमने ख़ुद ही मोल ली है। आरिफ़ को मना क्यों नहीं किया था।” इमरान बोला।
“इन उलझनों में भूल गई थी।”
“मैंने तुम्हें इत्मिनान दिलाया था, फिर कैसी उलझन? यहाँ तक बता दिया था कि कर्नल को मैंने एक महफूज़ जगह पर भिजवा दिया है।”
“लेकिन यह उलझन क्या कम थी कि मैं मेहमानों को क्या बताऊंगी।”
“क्या मेहमान इस इत्तला के बगैर मर जाते? तुम्हारे दोनों कज़न मुझे सख्त नापसंद हैं। समझी!”
“अब मैं क्या करूं? आरिफ़ बिल्कुल उल्लू है।”
“खैर…!” इमरान कुछ सोचने लगा, फिर उसने कहा, “जल्दी करो। मैं नहीं चाहता कि अब मेरे बारे में मेहमानों से कुछ कहा जाये।”
दोनों बरामदे में आये। यहाँ अनवर उर्दू में आरिफ़ की खासी मरम्मत चुका था और अब वह ख़ामोश बैठा था।
“मुझे पूरा वाक़यात बताओ।” कर्नल डिक्सन ने सोफ़िया से कहा।
“पूरे वाक़यात का इल्म कर्नल के अलावा और किसी को नहीं।” इमरान बोला।
“किस बात का खौफ़ था उसे?” डिक्सन ने पूछा।
“वे लकड़ी के एक बंदर से बुरी तरह डरे हुए थे।”
“क्या बकवास है!”
“इसलिए मैं कहता था कि वाक़यात ना पूछें। मुझे कर्नल साहब की ज़हनी हालात पर शक है।” इमरान बोला।
“इसके बावजूद तुम लोगों ने उसे तन्हा कैसे बाहर निकलने दिया?”
“उनकी ज़हनी हालत बिल्कुल ठीक थी।” आरिफ़ ने कहा।
“तू फिर बकवास किए जा रहा है।” अनवर ने उसे उर्दू में डांटा।
कर्नल डिक्सन अनवर को घूरने लगा।
“तुम लोग बड़े अजीब लग रहे हो।” उसने कहा।
“ये दोनों वाक़ई बड़ी अजीब है। इमरान ने मुस्कुराकर कहा, “आज ये दिन भर एयरगन से मक्खियाँ मारते रहे।”
मार्था इस वाक्य पर अनायास हँस पड़ी।
“उनसे ज्यादा अजीब तुम हो।” कर्नल ने व्यंग्य से कहा।
“जी हाँ!” इमरान ने भी धीरे से सिर हिलाकर कहा, “मक्खियाँ मारने का मशविरा मैंने ही दिया था।”
“देखिए! मैं बताती हूँ।” सोफ़िया ने कहा, “मुझे हालात की ज्यादा जानकारी नहीं…डैडी को एक दिन डाक से एक पार्सल मिला, जिसे किसी अनजान आदमी ने भेजा था। पार्सल से लकड़ी का एक छोटा सा बंदर मिला और उसी वक्त से डैडी परेशान नज़र आने लगे। वह रात उन्होंने टहल कर गुजारी। दूसरे दिन उन्होंने पहाड़ी नौकर रखे, जो रात भर राइफलें लिए इमारत के चारों ओर पहरा दिया करते थे। डैडी ने हमें सिर्फ इतना ही बताया था कि वह किसी किस्म का खतरा महसूस कर रहे है।”
“और उस बंदर का क्या मतलब था?” बारतोश ने पूछा, जो अब तक ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था।
“डैडी ने उसके बारे में कुछ नहीं बताया। हम अगर ज्यादा पूछते, तो नाराज़ हो जाया करते थे।”
“लेकिन तुमने हमसे यह बात क्यों छुपानी चाही थी?” डिक्सन ने पूछा।
“डैडी का हुक्म! उन्होंने कहा था कि इस बात के फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा।”
“अजीब बात है!” डिक्सन कुछ सोचता उया बोला, “क्या मैं इन हालात में इस छत के नीचे चैन से रह सकूंगा।”
“मेरा ख़याल है कि खतरा सिर्फ कर्नल के लिए था।” इमरान बोला।
“तुम बेवकूफ हो।” डिक्सन झुंझला गया, “मैं खतरे की बात नहीं कर रहा। ज़रगाम के लिए फ़िक्रमंद हूँ।”
“कन्फ्यूशियस ने कहा है…”
“जब तक मैं यहाँ रहूं, तुम कन्फ्यूशियस का नाम न लेना। समझे!” कर्नल बिगड़ कर बोला।
“अच्छा!” इमरान ने किसी आज्ञाकारी कभी बच्चे की तरह से सिर हिलाकर कहा और जेब से चुइंगगम का पैकेट निकालकर उसका कागज फाड़ने लगा। मार्था फिर हँस पड़ी।
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