चैप्टर 8 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 8 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 8 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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पुलिस हेडक्वार्टर के एक बड़े कमरे में इंस्पेक्टर ख़ालिद मेज़ पर बैठा अपनी डाक खोल रहा था। वह तंदुरुस्त और नौजवान आदमी था। पहले फौज में था और जंग खत्म होने के बाद गुप्तचर विभाग में ले लिया गया था। आदमी ज़हीन था, इसलिए उसे इस महकमे में परेशानी पेश नहीं आई थी। अपने काम के कारण वह सबको पसंद था। चेहरे की बनावट सख्त दिल आदमियों की सी थी, मगर उसके तौर तरीकों से सख्ती ज़ाहिर नहीं होती थी।

अपनी डाक देखने के बाद उसने कुर्सी से टेक लगाई ही थी कि मेज़ पर रखे हुए फोन की घंटी बज उठी।

“यस!” उसने रिसीवर उठाकर माउथपीस में कहा, “अच्छा मैं भी हाजिर हुआ।”

वह अपने कमरे से निकलकर विभाग के डीएस के कमरे की तरफ रवाना हो गया। उसने दरवाजे की चिक हटाई।

“आ जाओ।” डीएस ने कहा, फिर उसने कुर्सी की तरफ इशारा किया।

इंस्पेक्टरखालिद बैठ गया।

“मैंने एक प्राइवेट काम के लिए तुम्हें बुलाया है।”

“फ़रमाइये!”

“फेडरल डिपार्टमेंट के कैप्टन फैयाज का एक निजी खत मेरे पास आया है।”

“कैप्टन फैयाज़!” ख़ालिद कुछ सोचता वह बोला, “जी हाँ! मैं उन्हें जानता हूँ।”

“उनका एक आदमी यहाँ आया हुआ है। वे चाहते हैं कि उसे जिस किस्म की मदद की जरूरत हो, दी जाये। उसका नाम अली इमरान है और वह कर्नल जरगाम के घर ठहरा हुआ है।”

“किस सिलसिले में आया है?_

“यह भी उसी आदमी से मालूम हो सकेगा। यह रहा उसका फोटो।” डीएस ने मेज़ के दराज से एक तस्वीर निकालकर ख़ालिद की तरफ बढ़ाई।

“बहुत अच्छा।” ख़ालिद तस्वीर नज़र जमाये बोला, “मैं ख़याल रखूंगा।”

“अच्छा दूसरी बात!” डीएस ने अपने पाइप में तंबाकू भरते हुए कहा, “शिफ्टेन के केस में क्या हो रहा है?”

“यह एक सिर दर्द है।” ख़ालिद ने लंबी सांस लेकर कहा, “मेरा ख़याल है इसमें जल्दी काम अभी नहीं होगा।”

“क्यों?”

“हम यह भी नहीं जानते कि शिफ्टेन कोई एक फ़र्द है या गिरोह। इस शिफ्टेन की तरफ से जितने लोगों को भी धमकी भरे खत मिले हैं, वे अब तक तो ज़िन्दा है और उनमें से अभी तक किसी ने यह खबर नहीं दी कि उनमें कोई उनसे कोई रकम वसूल कर ली गई है। मैं सोचता हूँ कि शायद कुछ शातिर आदमी ख़ामखा सनसनी फैलाने के लिए ऐसा कर रहा हैं। करीब-करीब शहर के हर बड़े आदमी को इस किस्म के खत मिले हैं और इन सबसे किसी बड़ी रकम की मांग की गई है।”

“कोई ऐसा भी है, जिसने इस किस्म की कोई शिकायत न की हो।” डीएस ने मुस्कुराकर पूछा।

“मेरा ख़याल है कि शायद ही कोई बचा हो।” ख़ालिद ने कहा।

“ज़ेहन पर ज़ोर दो।”

“हो सकता है कि कोई शायद रही गया हो।”

“कर्नल ज़रगाम!” डीएस ने मुस्कुराकर कहा, “उसकी तरफ से अभी तक इस किस्म की कोई ख़बर नहीं मिली है और फेडरल डिपार्टमेंट का सुपरिंटेंडेंट एक ऐसे आदमी के लिए हम से मदद मांग रहा है, जो कर्नल ज़रगाम के यहाँ ठहरा है। क्या समझे!”

“तब तो ज़रूर कोई बात है।”

“बहुत ही ख़ास!” डीएस ने मुँह से पाइप निकालकर कहा, “मेरा ख़याल है कि तुम ख़ुद ही उस आदमी से…क्या नाम…अली इमरान से मिलो।”

“मैं ज़रूर मिलूंगा….मगर मालूम नहीं, वह कौन और किस किस्म का आदमी है।”

“बहरहाल, यह तो मिलने पर ही मालूम हो सकेगा।” डीएस ने कहा और अपनी मेज़ पर रखे हुए कागजों को देखने लगा।

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