चैप्टर 19 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 19 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 19 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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दूसरी सुबह मेहमान और घरवाले सभी बड़ी बेचैनी से करना ज़रगाम का इंतज़ार कर रहे थे। वह ली यूका के कागज़ात का पैकेट लेकर अकेला देवगढ़ी की तरफ गया था। सबने उसे समझाने की कोशिश की थी कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं है, मगर कर्नल किसी भी अपने साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ था। इमरान तो रात ही से गायब था। उन्होंने उसे बड़ी देर तक चट्टानों और गुफाओं में तलाश किया था और फिर थक-हार कर वापस आ गए थे।

सोफ़िया को भी इमरान की इस हरकत पर आश्चर्य था, मगर उसने किसी से कुछ नहीं कहा।

लगभग दस बजे करना ज़रगाम वापस आ गया। उसके चेहरे से थकन ज़ाहिर हो रही थी। उसने कुर्सी पर बैठ कर अपना जिस्म फैलाते हुए एक लंबी अंगड़ाई ली।

“क्या रहा?” कर्नल डिक्सन ने पूछा।

“कुछ नहीं! वहाँ बिल्कुल सन्नाटा था। मैं पैकेट एक महफूज़ जगह पर रख कर वापस आ गया।” ज़रगाम ने कहा। थोड़ी देर ख़ामोश रहा। फिर कहने लगा, “वहाँ से सही सलामत वापस आ जाने का मतलब यह है कि अब ली यूका मुझे या मेरे खानदान वालों को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगा।”

वह भी कुछ और भी कहता, लेकिन अचानक उन सबने इमरान का कहकहा सुना। वह कंधे से एयरगन लटकाए हाथ झुलाता हुआ कमरे में दाखिल हो रहा था। उसके चेहरे पर उस वक़्त सामान्य से ज्यादा मूर्खता बरस रही थी।

“वाह कर्नल साहब!” उसने फिर कहकहा लगाया, “खून बेवकूफ बनाया ली यूका को…नऊजुबिल्लाह…नहीं शायद सुभान अल्लाह कहना चाहिए… वाकई आप बहुत ज़हीन आदमी हैं।”

“क्या बात है?” कर्नल ज़रगाम झुंझला गया।

“यही पैकेट रखा था न आपने?” इमरान जेब से भूरे रंग का एक पैकेट निकाल कर दिखाता हुआ बोला।

“क्या? यह क्या किया तुमने?” कर्नल उछलकर खड़ा हो गया।

इमरान एक पैकेट फाड़कर उसके कागजात फर्श पर डालते हुए कहा।

“ली यूका से मज़ाक करते हुए आपको शर्म आनी चाहिए थी। इसके बावजूद भी उसने आपको ज़िन्दा रहने दिया।”

फर्श पर बहुत सारे सारे कागज़ात बेतरतीबी से बिखरे हुए थे। कर्नल बौखलाये अंदाज़ में बड़बड़ाते हुए कागजों पर झुक पड़ा।

“मगर!” वह चंद लम्हे बाद बदहवासी में बोला, “मैंने तो कागज़ात रखे थे। तुमने इसे वहाँ से उठाया है क्यों?”

“इसलिए कि मैं ही ली यूका हूँ।” इमरान ने गरज कर कहा।

“त…त…तुम!” कर्नल हकला कर रह गया। बाकी लोग भी मुँह खोले हुए इमरान को घूर रहे थे। अब इमरान के चेहरे पर मूर्खता की बजाय ओज बरस रहा था।

“नहीं…नहीं!” सोफ़िया खौफज़दा आवाज में चीखी।

इमरान में कंधे से एयरगन उतारी और उसे बारतोश की तरफ तान कर बोला।

“मिस्टर बारतोश पिछली रात तुम मुझे पकड़ने की स्कीमें बना रहे थे। अब बताओ…तुम्हें तो मैं सबसे पहले खत्म कर दूंगा।”

“यह क्या बदतमीजी है?” बारतोश कर्नल ज़रगाम की तरफ देखकर गुर्राया, “मैं इसे नहीं बर्दाश्त कर सकता।”

फिर वह कर्नल डिक्सन से बोला, “मैं किसी होटल में रहना ज्यादा पसंद करूंगा। यह बदतमीज सेक्रेटरी शुरू ही से हमारा मज़ाक उड़ाता रहा है।”

“ज़रगाम!” डिक्सन ने कहा, “ऐसे बेहूदा सेक्रेटरी से कहो कि वह मिस्टर बारतोश से माफ़ी मांग ले।”

“मिस्टर बारतोश!” इमरान चुभते हुए लहज़े में बोला, “मैं माफ़ी चाहता हूँ। लेकिन तुम असली कागज़ात का पैकेट हजम नहीं कर सकोगे। बेहतर यही है कि उसे मेरे हवाले कर दो।”

“क्या मतलब?” कर्नल ज़रगाम एक बार फिर उछल पड़ा।

बारतोश का हाथ बड़ी तेजी से जेब की तरफ गया। लेकिन दूसरे ही पल इमरान की एयरगन चल गई। बारतोश चीख मारकर पीछे हट गया। उसके बाज़ू से खून का फव्वारा निकल रहा था।

फिर उसने इमरान पर छलांग लगाई। इमरान बड़ी फुर्ती से एक तरफ हट गया। बारतोश अपने ही ज़ोर में सामने वाली दीवार से जा टकराया। इमरान उसके कूल्हे पर एयरगन का कुंदा रसीद करता हुआ बोला, “कन्फ्यूशियस ने कहा था…”

बारतोश फिर पलटा, लेकिन इस बार उसका रुख दरवाजे की तरफ था।

“यह क्या बेहूदगी है?” कर्नल ज़रगाम हलक फाड़कर चीखा। ठीक उसी वक्त इंस्पेक्टर ख़ालिद कमरे में दाखिल हुआ और उसने भागते बारतोश की कमर पकड़ ली। हालांकि बारतोश के बाज़ू की हड्डी टूट चुकी थी, लेकिन फिर भी उसका झटका इतना ज़ोरदार था कि ख़ालिद उछलकर दूर जा गिरा।

इस बार इमरान ने राइफल का कंधा उसके सिर पर रसीद करते हुए कहा “कन्फ्यूशंस इसके अलावा और क्या कहता!”

बारतोश चकराकर गिर पड़ा। इमरान उसे गिरेबान से पकड़कर उठाता हुआ बोला :

“ज़रा ली यूका की शक्ल देखना। वह ली यूका जिसने दो सौ साल से दुनिया को चक्कर में डाल रखा था।”

“क्या तुम पागल हो गए हो?” कर्नल डिक्सन चीखकर बोला।

इमरान ने उसकी तरफ ध्यान दिए बगैर इंस्पेक्टर ख़ालिद से कहा, “उसके पास से असली कागजात का पैकेट बरामद करो।”

इस दौरान वर्दीधारी और हथियारबंद कांस्टेबलों के जत्थे इमारत के अंदर और बाहर इकट्ठा होते जा रहे थे।

इमरान ने ली यूका या बारतोश को एक आराम कुर्सी में डाल दिया।

उसके कपड़ों की तलाशी लेने पर वाकई उसके पास से खाकी रंग का सील किया हुआ पैकेट बरामद हुआ। ख़ासलिद ने उसे अपने कब्जे में कर लिया।

बारतोश पर बेहोशी छाने लगी थी। फिर अचानक उसकी आँखें बंद हो गई।

“तुम्हारे पास क्या सबूत है कि यह ली यूका है?” कर्नल डिक्सन ने कहा।

“आहा…कर्नल!” इमरान मुस्कुरा कर बोला, “कल रात उसने क्या कहा था…ली यू का कागज़ात ख़ुद हासिल कर लेगा। उसने ठीक ही कहा था। हासिल कर लिए उसने। उसके अलावा दुनिया का कोई आदमी ली यूका नहीं हो सकता। पिछली रात उसने इस किस्म की बातें कर्नल का भरोसा हासिल करने के लिए की थी। क्यों कर्नल? आपने उसी के सामने कागजात का पैकेट बनाया था।”

“यह सभी मौजूद थे।” कर्नल ज़रगाम सूखे होठों पर ज़ुबान फेरकर बोला।

“मुझे इस पर उसी दिन शक हो गया था, जब यह मुझे जड़ीबूटियों की तलाश के बहाने चट्टानों में ले गया था और वापसी पर मैंने सोफ़िया को गायब पाया था। बहरहाल, कल रात को उसने कागज़ात अपने कब्जे में कर लिए थे और उनकी जगह सादे कागज का पैकेट रख दिया था। क्यों कर्नल डिक्सन यह तुम्हारा दोस्त बना था?”

“आज से तीन साल पहले, जब यह लंदन में रहता था।”

“शिफ्टेन को ले जाओ इंस्पेक्टर!” इमरान ने ख़ालिद से कहा, “शिफ्टेन या ली यूका…तुमने आज एक बहुत बड़े मुज़रिम को गिरफ्तार कर लिया है। वह मुज़रिम, जो दो सौ साल से सारी दुनिया को उंगलियों पर नचाता आ रहा है।”

“दो सौ साल वाली बात मेरी समझ में नहीं आती।” ख़ालिद ने कहा।

“तुम इसे फिलहाल ले जाओ। दो घंटे बाद मुझसे मिलना, रिपोर्ट तैयार मिलेगी।” इमरान बोला, “बहरहाल ली यूका को तुमने गिरफ्तार किया है। अली इमरान एमएससी पीएचडी का नाम कहीं नहीं आना चाहिए।”

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