चैप्टर 18 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 18 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 18 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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उसी दिन पाँच बजे शाम के गैस भरा गुब्बारा का कर्नल की कोठी के कंपाउंड से आकाश में उड़ रहा था। कंपाउंड में सभी लोग मौजूद थे और इमरान तालियाँ बजा बजाकर बच्चों की तरह हँस रहा था।

कर्नल के मेहमानों ने उसकी इस हरकत को अच्छी नज़र से नहीं देखा, क्योंकि उन सबके चेहरे उतरे हुए थे। कर्नल ने आज दोपहर को उन सबके सामने ली यूका की दास्तान दोहरा दी थी। इस पर सबने यही राय दी थी कि उस ख़तरनाक आदमी के कागजात वापस कर दिया जाये। कर्नल डिक्सन पहले भी ली यूका का नाम सुन चुका था। यूरोप वालों के लिए यह नाम नया नहीं था, क्योंकि ली यूका का कारोबार हर महाद्वीप में फैला था। यह तिजारत सौ फ़ीसदी गैरकानूनी थी, मगर फिर भी आज तक कोई ली यूका पर हाथ नहीं डाल सका था। कर्नल डिक्सन और बारतोश ली यूका का नाम सुनते ही सफेद पड़ गए थे। रात के खाने के वक्त से पहले ही ली यूका की तरफ से जवाब आ गया। बिल्कुल उसी रहस्यमय ढंग से जैसे सुबह वाला पैगाम मिला था। आरिफ़ ने दरवाज़े की चौखट में एक खंजर गड़ा हुआ देखा, जिसकी नोक कागज के एक को छेदती हुई चौखट में घुस गई थी।

कागज का यह टुकड़ा दरअसल ली यूका का ख़त था, जिसमें कर्नल को निर्देश दिया गया था कि वह दूसरे दिन ठीक नौ बजे उस कागजात को देवगढ़ी वाले मशहूर सियाह चट्टान के किसी कोने में ख़ुद रख दे या किसी से रखवा दे। ली यूका की तरफ से यह भी लिखा गया था कि अगर कर्नल को किसी किस्म का भय महसूस हो, तो वह अपने साथ जितने आदमी भी लाना चाहे, ला सकता है। अलबत्ता किसी तरह की चालाकी की सूरत में उसे किसी तरह भी माफ़ न किया जा सकेगा।

खाने की मेज पर इस ख़त के सिलसिले में गरमा-गरम बहस छिड़ गई।

“क्या ली यूका भूत है?” कर्नल डिक्सन की लड़की मार्था ने कहा, “आखिर यह ख़त यहाँ कैसे आते हैं? इसका मतलब तो यह है कि ली यूका कोई आदमी नहीं बल्कि रूह है।”

“हां आं!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “हो सकता है। यकीनन आया किसी अफीमची की रूह है, जिसने रूहों की दुनिया में भी ड्रग्स की तस्करी शुरू कर दी है।”

“एक तरकीब मेरे ज़ेहन में है।” बारतोश ने कर्नल ज़रगाम से कहा, “लेकिन बच्चों के सामने मैं उसका ज़िक्र ज़रूरी नहीं समझता।”

“मिस्टर बारतोश!” इमरान बोला, “आप मुझे तो बच्चा नहीं समझते।”

“तुम शैतान के भी दादा हो।” बारतोश अनायास मुस्कुरा पड़ा।

“शुक्रिया! मेरे पोते मुझे हर हाल में याद रखते हैं।” इमरान ने संजीदगी से कहा।

कर्नल डिक्सन उसे घूरने लगा । वह अब भी इमरान को कर्नल ज़रगाम का प्राइवेट सेक्रेटरी समझता था। इसलिए उसे एक छोटे आदमी का बारतोश जैसे सम्मानित मेहमान से बेतकल्लुफ़ होना बहुत बुरा लगा। लेकिन वह कुछ नहीं बोला।

खाने के बाद सोफ़िया, मार्था, अनवर और आरिफ़ उठ गए।

कर्नल ज़रगाम बड़ी बेचैनी से बारतोश कर मशवरे का इंतज़ार कर रहा था।

“एक आर्टिस्ट हूँ।” बारतोश ने ठहरे हुए लहज़े में कहा, “बज़ाहिर मुझसे इस किस्म की उम्मीद नहीं की जा सकती कि मैं किसी ऐसे उलझे हुए मामले में कोई मशवरा दे सकूंगा।”

“मिस्टर बारतोश!” कर्नल ज़रगाम बेसब्री से हाथ उठाकर बोला, “तकल्लुफात किसी दूसरे मौके के लिए उठा रखिये।”

बारतोश चंद लम्हे सोचता रहा। फिर उसने कहा, “ली यूका का नाम मैंने बहुत सुना है और मुझे यह भी मालूम है कि वह इस किस्म की मुहिम में ख़ुद भी हिस्सा लेता है। उसके बारे में अब तक मैंने जो कहानियाँ सुनी है, अगर वह सच्ची है, तो फिर ली यूका को इस वक्त सोनागिरी ही में मौजूद होना चाहिए।”

“अच्छा!” इमरान अपने दीदे फिराने लगा।

“अगर वह यही है, तो हमें इस मौके से ज़रूर फ़ायदा उठाना चाहिए।” बारतोश ने कहा।

“मैं आप का मतलब नहीं समझा!” कर्नल बोला।

“अगर हम ली यूका को पकड़ सकें, तो यह इंसानियत की एक बहुत बड़ी खिदमत होगी।”

कर्नल घृणास्पद अंदाज में हँस पड़ा, लेकिन इस हँसी में झल्लाहट का तत्व ज्यादा थाम उसने कहा, “आप ली यूका को पकड़ेंगे। उस ली यूका को, जिस की तहरीरें मेरी मेज़ पर पाई जाती हैं यानी वह जिस वक्त चाहे, हम सब को मौत के घाट उतार सकता है।”

“च्च च्च” बारतोश ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा, “आप समझते हैं कि ली यूका  या उसका कोई आदमी कुदरत की तमाम ताकत का मालिक है…नहीं डियर कर्नल। मेरा दावा है कि इस घर का कोई आदमी ली यूका से मिला हुआ है।”  फिर उसने अपनी बात में वजन पैदा करने के लिए मेज़ पर मुक्का मारते हुए कहा, “मेरा दावा है कि इसके अलावा और कोई बात नहीं।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। करना जरगामर सांस रोके  बारतोश की तरफ देख रहा था।

“मैं मिस्टर बारतोश की बात से सहमत हूँ।” इमरान की आवाज सुनाई दी। उसके बाद फिर सन्नाटा हो गया।

आखिर कर्नल ज़रगाम गला साफ करके बोला, “वह कौन हो सकता?”

“कोई भी हो!” बारतोश ने लापरवाही से अपने कंधे हिलाए, “जब वास्ता ली यूका से हो, तो किसी पर भी भरोसा न करना चाहिए।”

“आप से गलती हुई थी कर्नल साहब।” इमरान ने कर्नल ज़रगाम से कहा, “आपको पहले मिस्टर बारतोश से बातचीत करनी चाहिए थी। ली यूका के बारे में उनकी जानकारी बहुत ज्यादा है।”

“बिल्कुल! मैं ली यूका के बारे में बहुत कुछ जानता हूँ। एक ज़माने में मेरी ज़िन्दगी इंतिहाई पिछड़े तबके में गुजरी है, जहना चोर, बदमाश और नाजायज़ तिजारत करने वाले आम थे। जिंदगी के उसी दौर में मुझे ली यूका के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिला था। कर्नल क्या तुम क्या समझते हो कि ली यूका इन कागजात को अपने आदमियों के ज़रिये हासिल करेगा। हरगिज़ नहीं! वह उन्हें उस जगह से उठाएगा, जहाँ वे रख दिए जायेंगे। ली यूका का कोई आदमी नहीं जानता कि वो कौन है और इन कागजों में है क्या?”

“जहना तक मेरा ख़याल है इनमें से कोई ऐसी चीज नहीं, जिससे ली यूका की शख्सियत पर रोशनी पड़ सके।” कर्नल ज़रगाम ने कहा।

“वाह!” इमरान गर्दन से झटककर बोला, “जब आप चीनी और जापानी जुबानों से वाकिफ़ नहीं है, तब यह बात इतनी भरोसे के साथ कैसे कह रहे हैं।”

“चीनी और जापानी ज़बानें!”

बारतोश सोच में पड़ गया। फिर उसने कहा, “क्या आप मुझे भी कागजात दिखा सकते हैं।”

“हरगिज़ नहीं!” कर्नल ने इंकार में सिर हिला कर कहा, “यह नामुमकिन है। मैं उन्हें एक पैकेट में रखकर सील करने के बाद ली यूका की बताई हुई जगह पहुँचा दूंगा।”

“आप इंसानियत पर ज़ुल्म करेंगे।” बारतोश पुरजोश लहज़े में बोला, “बेहतर तरीका यह है कि आप ख़ुद को पुलिस की हिफ़ाज़त में देकर कागजात उसके हवाले कर दे।”

“मिस्टर बारतोश मैं बच्चा नहीं हूँ।” कर्नल ने तल्ख लहज़े में कहा “कागजात बहुत दिनों से मेरे पास महफूज़ है। अगर मुझे पुलिस की मदद हासिल करनी होती, तो कभी का कर चुका होता।”

“फिर आखिर उन्हें इतने दिनों रोके रखने का क्या मकसद था?”

“मकसद साफ है!” कर्नल डिक्सन पहली बार बोला, “ज़रगाम सिर्फ इसलिए अभी तक ज़िन्दा है कि वह कागजात अभी तक उसके कब्जे में है। अगर ली यूका का हाथ उन पर पड़ गया होता, तो ज़रगाम हम में न बैठा होता।”

“ठीक है!” बारतोश ने कुछ सोचते हुए सिर हिलाया।

“लेकिन तुम्हारी स्कीम क्या थी?” कर्नल ज़रगाम ने बेसब्री से कहा।

“ठहरो मैं बताता हूँ।” बारतो श ने कहा। चंद लम्हे ख़ामोश रहा, फिर बोला, “ली यूका बताई हुई जगह पर अकेला आएगा, मुझे यकीन है। अगर वहना कुछ लोग पहले ही छुपा दिया जायें, तो।”

“तज़वीज अच्छी है!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “लेकिन अभी आप कह चुके हैं कि..खैर, हटाइए उसे…मगर बिल्ली की गर्दन में घंटी बांधेगा का कौन? कर्नल साहब पुलिस को इस मामले में डालना नहीं चाहते और फिर यह भी ज़रूरी नहीं कि वह बिल्ली चुपचाप गले में घंटी बंधवा ही ले।”

“तुम मुझे वह जगह दिखाओ। फिर मैं बताऊंगा कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा।” बारतोश ने अकड़कर कहा।

थोड़ी देर ख़ामोशी रही। फिर वे सरगोशियों में मशवरा करने लगे। आखिर यह तय पाया कि वे लोग उसी वक्त चलकर देवगढ़ी की सियाह चट्टान का जायज़ा लें। कर्नल ज़रगाम हिचकिचा रहा था। लेकिन इमरान की सरगर्मी देखकर उसे भी हाँ में हाँ मिलानी पड़ी। वह अब इमरान की मूर्खताओं पर भी भरोसा करने लगा था।

रात अंधेरी थी। कर्नल ज़रगाम, कर्नल डिक्सन, बारतोश और इमरान मुश्किल रास्तों पर चक्कर खाते हुए देवगढ़ी की तरफ बढ़ रहे थे। उनके हाथों में छोटी-छोटी टॉर्च थी, जिन्हें वे अक्सर रोशन कर लेते थे। डिक्सन, ज़रगाम और बारतोश के पास हथियार थे। इमरान के बारे में भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वैसे तो उसके हाथ में एयरगन नज़र आ रही थी। लेकिन एयरगन ऐसी कोई चीज नहीं, जिसकी मौजूदगी में किसी आदमी को हथियारबंद कहा जा सके।

काली चट्टान के करीब पहुँचकर वे रुक गए। यह एक बहुत बड़ी चट्टान थी। अंधेरे में वह बहुत खौफ़नाक नज़र आ रही थी। उसकी बनावट कुछ इस किस्म की थी कि वह दूर से किसी बहुत बड़े अजगर का फैला हुआ मुँह मालूम होती थी।

तकरीबन आधे घंटे तक बारतोश उसका जायज़ा लेता रहा। फिर उसने आहिस्ता से कहा, “बहुत आसान है…बहुत आसान है! ज़रा उन गुफाओं की तरफ देखो। इनमें हजारों आदमी एक समय में छुप सकते हैं। हमें ज़रूर इस मौके से फ़ायदा उठाना चाहिए।”

“ली यूका के लिए सिर्फ एक आदमी काफ़ी होगा।” इमरान ने कहा।

“मैं आज तक समझ नहीं सका कि तुम किसके आदमी हो।” बारतोश झुंझला गया।

“क्या मैंने कोई गलत बात कही है?” इमरान ने संजीदगी से कहा।

“फिजूल बातें न करो।” कर्नल डिक्सन ने कहा।

“अच्छा तो आप हजारों आदमी कहाँ से लायेंगे, जब कि कर्नल ज़रगाम पुलिस को बीच में नहीं लाना चाहते।”

“पुलिस को बीच में लाना पड़ेगा।” बारतोश बोला।

‘हरगिज़ नहीं!” कर्नल ज़रगाम ने सख्ती से कहा, “पुलिस मुझे या मेरे घरवालों को ली यूका के इंतकाम से नहीं बचा सकेगी।”

“तब तो फिर कुछ भी नहीं हो सकता।” बारतोश मायूसी से बोला।

“मैं यही चाहता हूँ कि कुछ ना हो।” कर्नल ज़रगाम ने कहा।

थोड़ी देर तक ख़ामोशी रही, फिर अचानक इमरान ने कहकहा लगाकर कहा –

“तुम सब पागल हो गए। मैं तुम सबको गधा समझता हूँ।”

फिर उसने एक तरफ अंधेरे में छलांग लगा दी। उसके कहकहे की आवाज सन्नाटे में गूंजती हुई आहिस्ता-आहिस्ता दूर होती चली गई।

“क्या यह सचमुच पागल है।” कर्नल डिक्सन बोला, “या फिर ख़ुद ही ली यूका था।”

किसी ने जवाब नहीं दिया। उनकी टॉर्चों की रोशनी दूर-दूर तक अंधेरे ने सीने को चीर रही थी। लेकिन उन्हें इमरान की परछाई भी नहीं दिखाई दी।

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