चैप्टर 20 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 20 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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वह शाम कम से कम कर्नल ज़रगाम के लिए आनंददायक थी। हालांकि कर्नल  डिक्सन को भी अब बारतोश के पर्दे में ली यूका के वजूद का यकीन आ गया था। मगर फिर भी उसके चेहरे पर मुर्दिनी छाई हुई थी। पता नहीं उसे इस हादसे का सदमा था या इस बात की शर्मिंदगी थी कि वह ज़रगाम के दुश्मन को उसका मेहमान बना कर लाया था।

चाय की मेज़ पर सोफ़ियाके कहकहे गूंज रहे थे। पहली बार वह इस तरह दिल खोलकर कहकहे लगा रही थी। इमरान के चेहरे पर वही पुरानी मूर्खता दिखाई दे रही थी।

“यह दो सौ साल वाली बात मैं भी नहीं समझ सका।” कर्नल ज़रगाम ने इमरान की तरफ देख कर कहा।

“दो सौ साल तो बहुत कम हैं। जो तरीका ली यूका ने अपना रखा था, उससे उसका नाम हजारों साल तक ज़िन्दा रहता।” इमरान सिर हिलाकर बोला, “ली यूका सिर्फ एक नाम है, जिसे नस्ल-दर-नस्ल अलग-अलग लोग अपनाते रहते हैं। तरीका बड़ा अजीब है। किसी ली यूका ने भी अपनी औलाद को अपना वारिस नहीं बनाया। यह दरअसल ली यूका पर्सनल चुनाव होता था। वह अपने गिरोह ही के किसी आदमी को अपनी विरासत सौंप कर दुनिया से रुखसत हो जाता था। और यह चुनाव वह उसी वक़्त करता था, जब उसे यकीन हो जाए कि वह बहुत जल्द मर जाएगा और फिर दूसरा ली यूका बिल्कुल उसी नक्शे कदम पर चलना शुरू कर देता था। मेरा ख़याल है कि बारतोश को मैंने दूसरे ली यूका के चुनने का मौका ही नहीं दिया। इसलिए हमें फिलहाल यही सोचना चाहिए कि दुनिया ली यूका के वजूद से पाक हो गई।”

“लेकिन शायद हम उसके गिरोह के बदले से न बच सके।” कर्नल डिक्सन भर्रायी हुई आवाज़ में बोला।

“हरगिज़ नहीं!” इमरान ने मुस्कुराकर कहा, “अब ली यूका के गिरोह का हर आदमी कम से कम करोड़पति तो ज़रूर ही हो जायेगा। बस यह समझो कि गिरोह टूट गया। ली यूका की मौजूदगी में उन पर दहशत सवार रहती थी और वह उसके गुलामों से भी बदतर थे। दहशत की वजह यह थी कि ली यूका छुपा होता था और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि पिछले पच्चीस साल से उसका गिरोह बगावत पर आमादा रहा है। उसकी तरफ से आप लोग बेफ़िक्र रहें। कोई ली यूका के नाम पर आपकी तरफ उंगली भी न उठा सकेगा।”

“लेकिन तुम्हें यकीन कैसे आ गया था कि बारतोश ही ली यूका है?” कर्नल ज़रगाम ने पूछा।

“मुझे इस पर उसी दिन शक हो गया, जब वह मुझे जड़ी-बूटियों की तलाश में ले गया था। उसके बाद से मैं लगातार उसकी टो ह में लगा रहा और पिछली रात को मैंने ख़ुद उसे चौखट में खंजर गाड़ते देखा था।”

“ओह!” कर्नल की आँखें फैल गयी।

“मगर इमरान साहब, आपने कामयाबी का सेहरा इंस्पेक्टर ख़ालिद के सिर क्यों डाल दिया?” सोफ़िया ने पूछा।

“यह एक लंबी दास्तान है!” इमरान ठंडी सांस लेकर बोला, “मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम इस सिलसिले में मशहूर हो।”

“आखिर क्यों?”

“हा हा! मेरी मम्मी ठेठ पूरबी किस्म की औरत है और डैडी सौ फीसदी अंग्रेज। अल्लाह बचाये…कभी कभी जूतियाँ संभाल लेती हैं और फिर समझ में नहीं आता कि कितने फासले पर हूँ। यकीन कीजिए कि कभी-कभी ऐसी हालत में मुझे बीस का पहाड़ा भी याद नहीं आता।”

“लड़के तुम बड़े खतरनाक हो।” कर्नल ज़रगाम मुस्कुराकर बोला, “मगर ये तुम्हारी एयरगन क्या बला है, जिसने बारतोश का एक बाजू तोड़ दिया।”

“क्या बताऊं?” इमरान गंभीर लहज़े में बोला, “मैं इस कमबख्त से परेशान आ गया हूँ। इसमें कभी-कभी प्वाइंट टू टू बोर की गोलियाँ निकल पड़ती हैं…हैं न बेवकूफी!”

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