चैप्टर 14 आग और धुआं आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 14 Aag Aur Dhuan Acharya Chatursen Shastri Ka Upanyas Novel

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Chapter 14 Aag Aur Dhuan Acharya Chatursen Shastri

Chapter 14 Aag Aur Dhuan Acharya Chatursen Shastri

साम्राज्ञी आत्वानेत कारागार में सख्त पहरे में रहती थी। शासकों को उससे डरने का कोई कारण नहीं था, परन्तु मारोत की मृत्यु के बाद वह भी उनकी दृष्टि में षंड्यन्त्र में सम्मिलित प्रतीत हुई। शासन ने उसपर भी अभियोग चलाने का निश्चय किया। सम्राट के कत्ल के बाद उसका पुत्र माता के ही पास रहता था, परन्तु अभियोग चलाने के निश्चय के बाद उसे मातां से पृथक् कर बन्दी पिता के कमरे में रखने की आज्ञा दी गई। रानी ने अपने पुत्र को अपने से अलग रखने का विरोध किया। दो घंटे तक वह अधिकारियों से झगड़ती रही, परन्तु वे किसी भाँति नहीं माने। माता के ममत्व का उन निष्ठुर व्यक्तियों को तनिक भी ध्यान नहीं हुआ। माता ने पुत्र को अपनी छाती से लगाकर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। अधिकारी उसे वहाँ से ले गए।

कुछ दिनों के बाद आत्वानेत को भी दूसरे बन्दीगृह में भेजने की आज्ञा हुई। एलिजाबेथ के अनुरोध को भी अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया। अब आत्वानेत को विश्वास हो गया कि अब वह अपने इन प्रियजनों से सदैव के लिए बिछुड़ रही है। वह स्थान छोड़ने से प्रथम उसने अपनी पुत्री को बहुत देर तक हृदय से लगाए रखा, और फिर उसका हाथ एलिजाबेथ के हाथों में देकर कहा-“बेटी, अब यही तेरे पिता माता और भाई के स्थान पर हैं। इनकी आज्ञा मानना, मेरे ही समान इनसे स्नेह रखना।”

उसने एलिजाबेथ को गले से लगाकर कहा-“मेरे इन भाग्यहीन बच्चों की अब तुम्ही माता हो। जिस प्रकार तुमने अब तक हमारा साथ नहीं छोड़ा, उसी प्रकार इन पर अपना स्नेह बनाए रखना। तुम्हारे सिवा अब संसार में इनका कौन है।

पुत्र को देखने के लिए वह तरसती रह गई। अधिकारी उसे अन्यत्रं बन्दीगृह में ले गए।

इस बन्दीगृह में आत्वानेत बहुत कष्ट में एकाकी जीवन व्यतीत करने लगी। धीरे-धीरे उसके मन में वीतराग उत्पन्न हुआ और वह मृत्यु की कामना करने लगी, जिससे वह शीघ्र अपने पति के पास पहुँच जाय।

उस पर अभियोग चला, वह दोषी प्रमाणित हुई। अदालत ने उसे भी मृत्युदण्ड दिया। दस महीने तक इस एकाकी बन्दीगृह की यातना भोगकर एक दिन प्रातःकाल ही उसे वध-स्थल पर ले जाया गया और अपने पति की मृत्यु के ग्यारह महीने बाद उसका सिर भी उसी गिलेटन पर रखकर काटा गया जिस पर उसके प्यारे पति और फ्रांस के सम्राट का काटा गया था। आत्वानेत ने जीवन पर्यन्त प्रजा का रोष और तिरस्कार सहा, परन्तु उसने अपनी गरिमा को नहीं गिराया। सिर काटने के समय भी वह भय, शोक और चिन्ता से मुक्त थी।

आत्वानेत को मारकर अधिकारियों ने गिरोण्डिस्ट दल के सदस्यों को ढूंढ-ढूंढकर मारना आरम्भ किया। कितने ही पुरुष और स्त्रियों के सिर गिलेटन पर रखकर काट डाले गए। सम्राट के पुत्र को ऐसी एकान्त कोठरी में रखा गया, जहाँ दिन का प्रकाश भी नहीं पहुँचता था। सर्दी के दिनों में उसे तापने के लिए आग भी नहीं जलाने दी जाती थी। उसे भोजन एक खिड़की में से दिया जाता था। कोई उससे बात नहीं कर सकता था। अन्त में एकान्तवास की यातना सहकर केवल १५ वर्ष की आयु में अपनी माता की मृत्यु के दो वर्ष बाद वह भी मृत्यु की गोद में सो गया।

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