चैप्टर 12 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 12 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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कातिल फरार

“तो तुम नहीं खोलोगे मुझे देखो मैं कहे देता हूँ..”

“बस बस ज्यादा शोर मचाने की ज़रूरत नहीं है। मुझे डॉक्टर शौकत का कारनामा देखने दो।”

“देखो मिस्टर!” सलीम तेजी से बोला, “पहली बात तो मुझे यकीन नहीं कि तुम सरकारी जासूस हो और अगर हो भी, तो मुझे इससे क्या करना? आखिर तुमने मुझे किस कानून के तहत यहाँ बांध रखा है।”

“इसलिए कि तुमने अपना ज़ुर्म अभी-अभी कबूल किया है क्या यह तुम्हें बांध रखने के लिए काफ़ी नहीं?”

“क्या बेवकूफ हो कैसी बातें करते हो सलीम ने यह कहा लगाकर कहा, “क्या तुम उसे सच समझे हो।”

“झूठ समझने की कोई वजह नहीं।” फ़रीदी ने दूरबीन पर झुकते हुए कहा।

“होश की दवा लो मिस्टर जासूस!” सलीम बोला, “कुछ देर पहले मैं एक पागल आदमी से बात कर रहा था। अगर मैं उसकी हाँ में हाँ ना मिलाता, तो वह मेरे साथ ना जाने क्या बर्ताव करता। मैं उसके जुल्म अच्छी तरह जानता हूँ। इसलिए जान बचाने के लिए और कोई चारा नहीं था। वाह मेरे भोले जासूस वाह…खैर जो हुआ सो हुआ। मुझे फौरन खोल दो। इंसान ही से गलती होती है। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे अफसरों से तुम्हारी शिकायत न करूंगा।”

अफरीदी उसे बेबसी से देख रहा था और सलीम के होठों पर शरारत भरी मुस्कान खेल रही थी।

“खैर खैर कोई बात नहीं!” फ़रीदी संभल कर बोला, “लेकिन आज तुम्हें डॉक्टर शौकत को कत्ल करने की जो कोशिशें की है, वो मैंने खुद देखी है। डॉक्टर शौकत की कार मैंने भी बिगाड़ी थी। मैं ये पहले से जानता था कि इस वक्त कोठी में कोई कार मौजूद नहीं थी। मैं दरअसल चाहता था कि वह पैदल आए। सिर्फ यह देखने के लिए की असली साजिश रचने वाला कौन है। क्या तुम कार का बहाना करके वहाँ से टल नहीं गए थे? क्या तुमने प्रोफेसर को जहरीली सुई देकर उसे शौकत से हाथ मिलाने के बहाने उस चुभो देने के लिए नहीं कहा था। जब तुमने उसके गले में रस्सी का फंदा डाला था, तब भी मैं तुमसे थोड़ी ही दूर के फासले पर मौजूद था और मैंने ही शौकत को बचाया था।”

“न जाने तुम कौन सी अलीबाबा चालीस चोर की कहानी सुना रहे हो।” सलीम में उकता कर कहा, “अक्लमंद आदमी ज़रा सोचो! मैं डॉक्टर शौकत की जान क्यों लेना चाहूंगा, जबकि वह मेरे लिए बिल्कुल अजनबी है। तुम कहोगे कि मैंने ऐसा सिर्फ इसलिए किया है कि चाचा जान बच न सके। लेकिन अगर ऐसा होता, तो मैं पहले ही उनको खत्म कर देता और किसी को खबर तक न होती।”

“क्या कहा शौकत तुम्हारे लिए अजनबी है।” फ़रीदी ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम उसके लिए अजनबी हो सकते हो, लेकिन वह तुम्हारे लिए नहीं। क्या मैं बताऊं कि तुम उसकी जान क्यों लेना चाहते हो?”

फ़रीदी के शब्दों का असर जबरदस्त था। सलीम फिर सुस्त पड़ गया। उसकी आँखों से खौफ़  झलकने लगा। लेकिन थोड़ी देर बाद उसने खौफ पर काबू पा लिया।

“आखिर तुम क्या चाहते हो?” उसने फ़रीदी से कहा।

“तुम को कानून के हवाले करना।”

“लेकिन किस ज़ुर्म में?”

“तुमने अभी-अभी जो अपने ज़ुर्म कबूल किए हैं।”

“अच्छा चलो यही सही!” वह बोला, “लेकिन तुम्हारे पास क्या सबूत है कि मैंने एकबाले-ए-ज़ुर्म किया है। अदालत में तुम किसे गवाह की हैसियत से पेश करोगे, जबकि यहाँ मेरे और तुम्हारे सिवा कोई दूसरा नहीं है। देखो मिस्टर फ़रीदी, मुझे झांसा देना आसान काम नहीं। तुम इस तरह अदालत में मेरे खिलाफ़ मुकदमा चलाकर कामयाब नहीं हो सकते।”

“तब तो मुझसे बड़ी गलती हुई।” फ़रीदी ने हाथ मलते हुए बेबसी से कहा, “काश मैं सार्जेंट साजन हमीद को भी यहाँ लाया होता।”

सलीम ने ज़ोरदार कहकहा लगाया और बोला, “अभी कच्चे हो मिस्टर जासूस!”

“उफ्फ मेरे ख़ुदा!” फ़रीदी ने बौखला कर कहना शुरू किया, “लेकिन तुमने अभी मेरे सामने इकबाल-ए-ज़ुर्म किया है कि तुम क…क…कातिल हो।”

“हकलाओ नहीं प्यारे!” सलीम हँसता हुआ बोला, “लो मैं एक बार फिर एकबाल-ए-ज़ुर्म करता हूँ कि मैंने ही शौकत को कत्ल करने या कराने की कोशिश की थी। मैंने ही नेपाली को भी क़त्ल किया था। मैंने तुम पर भी गोलियाँ चलाई थी, लेकिन फिर क्या? तुम मेरा क्या कर सकते हो? मैं एक ऊँचे खानदान का आदमी हूँ। राजरूप नगर का होने वाला नवाब हूँ। तुम्हारी बकवास पर किसे यकीन आएगा।’

“बहुत अच्छे बरखुरदार!” फ़रीदी ने हँसते हुए कहा, “बहुत अक्लमंद हो। लेकिन साफ है कि अब तुमने जो इकबाल-ए-ज़ुर्म किया है वह पागल प्रोफेसर के सामने नहीं, बल्कि डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन के इंस्पेक्टर फ़रीदी के सामने किया है।”

“तो फिर उससे क्या? मैं हजार बार एकबाल-ए-ज़ुर्म कर सकता हूँ क्योंकि यहाँ हम दोनों के सिवा और कौन है। कहो तो एक बार फिर दोहरा दूं।” सलीम ने कहकहा लगा कर कहा।

“बस बस काफ़ी है।” फ़रीदी ने जली हुई सिगरेट का टुकड़ा फेंकते हुए कहा, “तुम फ़रीदी को नहीं जानते। इधर देखो इस अलमारी में लेकिन नहीं तुम्हें नहीं दिखाई देगा। ठहरो, मैं मोमबत्ती उठाता हूं। देखो बेटा सलीम…यह एक बेहद ताकतवर ट्रांसमीटर है और अभी हाल ही की ईज़ाद है। एक छोटी सी बैटरी से चलाने के लिए काफ़ी होती है। क्या समझे? इसके जरिये मेरी और तुम्हारी आवाजें धीरे-धीरे डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन के दफ्तर तक पहुँच रही होंगी और इनको रिकॉर्ड कर लिया गया है। मैं अच्छी तरह जानता था कि तुम मामूली मुज़रिम नहीं हो। इसलिए मैंने पहले ही इसका इंतज़ाम कर लिया था। अब कहो, कौन जीता?” फ़रीदी ने कहकहा लगाया और सलीम निढाल होकर रह गया। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें थी। उसे अपना दिल सिर के उसी हिस्से में धड़कता महसूस हो रहा था, जहाँ चोट लगी थी। लेकिन उसके ज़ेहन ने अभी तक हार का कबूल न की थी। सिगरेट का जलता हुआ टुकड़ा उसे करीब ही पड़ा था। उसने फ़रीदी की नज़र बचाकर उसे पैर से धीरे-धीरे अपनी तरफ खिसकाना शुरू किया। अब सिगरेट का जलता हुआ हिस्सा रस्सी के एक बल से लगा हुआ उसे धीरे-धीरे जला रहा था। सलीम ने अपने दोनों पैर समेटकर रस्सी के सामने कर लिए। रस्सी सूखी थी और आग ने अपना काम शुरू कर दिया था। फ़रीदी इस बात से बेखबर दूरबीन पर झुका हुआ था। अचानक सलीम सोफे समेत दूसरी तरफ पलट गया। फ़रीदी चौंककर उसकी तरफ झपटा, लेकिन इसके पहले कि फरीदी कुछ कर सके, सलीम रस्सी की गिरफ्त से आजाद हो चुका था।

फ़रीदी उस पर टूट पड़ा, लेकिन सलीम को हराना आसान काम ना था। थोड़ी देर बाद दोनों गुथे हुए हांफ रहे थे। सलीम को सुस्त पाकर फ़रीदी को जेब से पिस्तौल निकालने का मौका मिल गया। लेकिन सलीम ने इस फुर्ती के साथ उसका पिस्तौल छीन लिया, जैसे वह उसका इंतज़ार ही कर रहा था। इसी कशमकश में पिस्तौल चल गई। फ़रीदी ने चीख मारी और गिरते-गिरते उसका सिर दूरबीन से टकरा गया। वह लगभग बेहोश होकर जमीन पर औंधा पड़ा था। सलीम खड़ा हांफ रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। अचानक वह ट्रांसमीटर के सामने खड़ा होकर बुरी तरह खांसने लगा। ऐसा मालूम होता था, जैसे वह उस पर खांसी का दौरा पड़ा हो। फिर भर्रायी हुई आवाज में बोलने लगा।

“मैं इंस्पेक्टर फ़रीदी बोल रहा हूँ। अभी सलीम मेरी गिरफ्त से निकल गया था। काफ़ी जद्दोजहद के बाद मैंने उसके पैर में गोली मार दी। अब वह फिर मेरी कैद में है। मैं उसे पुलिस के हवाले करने जा रहा हूँ। बाकी रिपोर्ट कल आठ बजे सुबह।”

अब सलीम ने ट्रांसमीटर का तार बैटरी से अलग कर दिया। उसके पुर्जे-पुर्जे इधर-उधर बिखर गए। वह तेजी से सीढ़ियाँ तय करता हुआ नीचे उतर रहा था।

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